निर्वाचन प्रणाली (Electoral System): भारतीय लोकतंत्र की नींव और कार्यप्रणाली
निर्वाचन प्रणाली (Electoral System): भारतीय लोकतंत्र की नींव और कार्यप्रणाली

भारतीय निर्वाचन प्रणाली (Indian Electoral System)

1. प्रस्तावना: भारतीय निर्वाचन प्रणाली का परिचय (Introduction to the Indian Electoral System)

लोकतंत्र का आधार: निर्वाचन (Foundation of Democracy: Elections)

भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र 🇮🇳, अपनी जीवंत और गतिशील राजनीतिक व्यवस्था के लिए जाना जाता है। इस लोकतंत्र की नींव एक मजबूत और निष्पक्ष निर्वाचन प्रणाली (electoral system) पर टिकी है। यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि देश के नागरिक अपनी पसंद की सरकार चुन सकें और शासन में अपनी भागीदारी निभा सकें। भारतीय निर्वाचन प्रणाली केवल वोट डालने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह देश के भविष्य को आकार देने वाला एक महत्वपूर्ण तंत्र है।

निर्वाचन प्रणाली का अर्थ (Meaning of an Electoral System)

एक निर्वाचन प्रणाली उन नियमों, प्रक्रियाओं और कानूनों का समूह है जो यह निर्धारित करते हैं कि चुनाव कैसे आयोजित किए जाएंगे और वोटों को सीटों में कैसे बदला जाएगा। यह तय करती है कि कौन वोट दे सकता है, कौन चुनाव लड़ सकता है, राजनीतिक दल कैसे काम करते हैं, और चुनाव अभियानों का प्रबंधन कैसे किया जाता है। एक अच्छी निर्वाचन प्रणाली (electoral system) पारदर्शिता, निष्पक्षता और वैधता सुनिश्चित करती है, जिससे लोगों का लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास बना रहता है।

भारतीय संविधान और निर्वाचन (The Indian Constitution and Elections)

भारतीय संविधान निर्माताओं ने एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया के महत्व को गहराई से समझा था। इसलिए, उन्होंने संविधान के भाग XV में अनुच्छेद 324 से 329 तक चुनावों से संबंधित विस्तृत प्रावधान किए। ये अनुच्छेद एक स्वतंत्र निर्वाचन आयोग (Election Commission) की स्थापना, वयस्क मताधिकार (adult suffrage), और चुनावी मामलों में अदालतों के हस्तक्षेप पर रोक जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को कवर करते हैं। यह संवैधानिक ढांचा हमारी चुनाव प्रक्रिया की रीढ़ है।

इस लेख का उद्देश्य (Purpose of this Article)

प्रिय छात्रों, यह लेख आपको भारतीय निर्वाचन प्रणाली के हर पहलू से परिचित कराने के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका है। हम भारत के निर्वाचन आयोग की शक्तियों और कार्यों से लेकर, जटिल चुनाव प्रक्रिया, विभिन्न मतदान प्रणालियों (voting systems), और समय के साथ हुए महत्वपूर्ण चुनावी सुधारों तक की यात्रा करेंगे। हमारा उद्देश्य आपको इस महत्वपूर्ण विषय की गहरी समझ प्रदान करना है, ताकि आप एक सूचित और जागरूक नागरिक बन सकें। 🎓

2. भारत का निर्वाचन आयोग (ECI): लोकतंत्र का प्रहरी (Election Commission of India: The Guardian of Democracy)

निर्वाचन आयोग की स्थापना और संवैधानिक आधार (Establishment and Constitutional Basis of the Election Commission)

भारतीय लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिए, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष निकाय की आवश्यकता थी जो बिना किसी दबाव के चुनाव करा सके। इसी उद्देश्य से, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत 25 जनवरी 1950 को ‘भारत निर्वाचन आयोग’ (Election Commission of India – ECI) की स्थापना की गई। यह एक स्थायी और स्वायत्त संवैधानिक निकाय है, जिसे देश में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों के संचालन, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार है। 🏛️

निर्वाचन आयोग की संरचना (Structure of the Election Commission)

प्रारंभ में, निर्वाचन आयोग में केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner – CEC) होता था। लेकिन, 1989 में मतदाता आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष करने के बाद काम का बोझ बढ़ने पर, इसे एक बहु-सदस्यीय निकाय बना दिया गया। वर्तमान में, इसमें एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्त (Election Commissioners) होते हैं। इन सभी की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है और इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (जो भी पहले हो) तक होता है।

आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता (Independence and Impartiality of the Commission)

संविधान ने निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए कई प्रावधान किए हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त को केवल संसद द्वारा महाभियोग जैसी प्रक्रिया के माध्यम से ही हटाया जा सकता है, ठीक उसी तरह जैसे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है। उनकी सेवा शर्तों में नियुक्ति के बाद कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि आयोग बिना किसी भय या पक्षपात के अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सके। ⚖️

निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ और कार्य (Powers and Functions of the Election Commission)

निर्वाचन आयोग के कार्य बहुत व्यापक हैं, जिन्हें तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है: प्रशासनिक, सलाहकारी और अर्ध-न्यायिक। यह न केवल चुनाव कराता है, बल्कि लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करने वाले कई महत्वपूर्ण कार्य भी करता है। आइए इन शक्तियों और कार्यों को विस्तार से समझें।

प्रशासनिक कार्य (Administrative Functions)

ECI के प्रशासनिक कार्यों में चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन (delimitation of constituencies), मतदाता सूचियों (electoral rolls) को तैयार करना और समय-समय पर अपडेट करना, और चुनावों की तिथियों और अनुसूची की घोषणा करना शामिल है। यह राजनीतिक दलों को मान्यता देता है और उन्हें चुनाव चिन्ह आवंटित करता है। आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct) को लागू करना भी इसका एक प्रमुख प्रशासनिक कार्य है ताकि सभी उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने का समान अवसर मिले।

राजनीतिक दलों को मान्यता (Recognition of Political Parties)

यह निर्वाचन आयोग का एक महत्वपूर्ण कार्य है। आयोग प्रदर्शन के आधार पर पार्टियों को राष्ट्रीय या राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता देता है। इसके लिए कुछ शर्तें होती हैं, जैसे कि पिछले चुनावों में प्राप्त वोटों का प्रतिशत या जीती गई सीटों की संख्या। मान्यता प्राप्त दलों को आरक्षित चुनाव चिन्ह, चुनाव प्रचार के लिए सरकारी मीडिया पर मुफ्त प्रसारण समय जैसी कुछ विशेष सुविधाएँ मिलती हैं।

चुनाव चिन्ह का आवंटन (Allotment of Election Symbols)

भारत जैसे देश में जहाँ साक्षरता दर हमेशा एक समान नहीं रही है, चुनाव चिन्हों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। ये चिन्ह मतदाताओं को, विशेषकर जो पढ़ नहीं सकते, उम्मीदवारों और पार्टियों की पहचान करने में मदद करते हैं। निर्वाचन आयोग मान्यता प्राप्त दलों को आरक्षित चिन्ह आवंटित करता है और निर्दलीय उम्मीदवारों को तत्काल उपलब्ध चिन्हों में से चुनने का विकल्प देता है। पार्टियों के विभाजन की स्थिति में, चुनाव चिन्ह पर अधिकार का निर्णय भी आयोग ही करता है।

सलाहकारी कार्य (Advisory Functions)

निर्वाचन आयोग के पास सलाहकारी शक्तियाँ भी हैं। यह संसद और राज्य विधानमंडलों के सदस्यों की अयोग्यता से संबंधित मामलों पर क्रमशः राष्ट्रपति और राज्यपाल को सलाह देता है। चुनाव के बाद किसी सांसद या विधायक के खिलाफ अयोग्यता की याचिका आने पर राष्ट्रपति/राज्यपाल इस मामले को आयोग के पास भेजते हैं, और आयोग की राय उनके लिए बाध्यकारी होती है।

अर्ध-न्यायिक कार्य (Quasi-Judicial Functions)

कुछ मामलों में निर्वाचन आयोग एक अर्ध-न्यायिक निकाय के रूप में भी कार्य करता है। जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, राजनीतिक दलों को मान्यता देने और चुनाव चिन्हों से संबंधित विवादों का निपटारा करने में इसकी भूमिका न्यायिक प्रकृति की होती है। आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों में कार्रवाई करना भी इसके अर्ध-न्यायिक अधिकार क्षेत्र में आता है। यह चुनावी कदाचार (electoral malpractices) में लिप्त उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित कर सकता है।

3. भारत में चुनाव प्रक्रिया: एक विस्तृत चरण-दर-चरण मार्गदर्शिका (The Election Process in India: A Detailed Step-by-Step Guide)

चुनाव की तैयारी: एक विशाल अभ्यास (Preparation for Elections: A Massive Exercise)

भारत में चुनाव कराना एक बहुत बड़ा और जटिल कार्य है, जिसमें महीनों की योजना और तैयारी लगती है। यह प्रक्रिया चुनाव की घोषणा से बहुत पहले शुरू हो जाती है। यह एक बहु-चरणीय प्रक्रिया है जिसमें निर्वाचन आयोग से लेकर स्थानीय प्रशासन तक कई एजेंसियां शामिल होती हैं। आइए, इस पूरी प्रक्रिया को चरण-दर-चरण समझते हैं। 🗳️

चरण 1: निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन (Step 1: Delimitation of Constituencies)

चुनाव प्रक्रिया का पहला कदम पूरे देश को चुनावी क्षेत्रों या निर्वाचन क्षेत्रों (constituencies) में विभाजित करना है। यह कार्य ‘परिसीमन आयोग’ (Delimitation Commission) द्वारा किया जाता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में लगभग समान आबादी हो ताकि “एक व्यक्ति, एक वोट, एक मूल्य” का सिद्धांत कायम रहे। परिसीमन का आधार नवीनतम जनगणना के आंकड़े होते हैं।

चरण 2: मतदाता सूचियों का निर्माण और संशोधन (Step 2: Preparation and Revision of Voter Lists)

एक बार जब निर्वाचन क्षेत्र तय हो जाते हैं, तो अगला कदम मतदाता सूची (जिसे निर्वाचक नामावली भी कहते हैं) तैयार करना होता है। यह उन सभी पात्र नागरिकों की सूची है जो उस निर्वाचन क्षेत्र में मतदान कर सकते हैं। निर्वाचन आयोग यह सुनिश्चित करता है कि 18 वर्ष की आयु पूरी कर चुके प्रत्येक भारतीय नागरिक का नाम इस सूची में शामिल हो। चुनावों से पहले इस सूची को लगातार अपडेट किया जाता है ताकि नए मतदाताओं को जोड़ा जा सके और मृत या स्थानांतरित हो चुके मतदाताओं के नाम हटाए जा सकें।

चरण 3: चुनाव की तारीखों की घोषणा (Step 3: Announcement of Election Dates)

जब निर्वाचन आयोग को यह विश्वास हो जाता है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए सभी आवश्यक तैयारियां पूरी हो चुकी हैं, तो वह एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करता है। इस घोषणा में नामांकन, जांच, नाम वापसी, मतदान और मतगणना की तारीखें शामिल होती हैं। इस घोषणा के साथ ही पूरे देश या संबंधित राज्यों में तत्काल प्रभाव से ‘आदर्श आचार संहिता’ (Model Code of Conduct) लागू हो जाती है।

आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct – MCC)

आदर्श आचार संहिता (MCC) राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए निर्वाचन आयोग द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देशों का एक सेट है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सत्ताधारी दल सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग न करे और सभी को चुनाव प्रचार के लिए समान अवसर मिले। इसके तहत, सरकार कोई नई नीतिगत घोषणा नहीं कर सकती, और उम्मीदवार जाति या धर्म के नाम पर वोट नहीं मांग सकते। इसका उल्लंघन करने पर आयोग कड़ी कार्रवाई कर सकता है।

चरण 4: नामांकन प्रक्रिया (Step 4: Nomination Process)

चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद, उम्मीदवारों को अपना नामांकन पत्र दाखिल करने के लिए एक निश्चित समय दिया जाता है। कोई भी पात्र भारतीय नागरिक जो निर्धारित मानदंडों (जैसे आयु, नागरिकता) को पूरा करता है, चुनाव लड़ सकता है। उम्मीदवारों को रिटर्निंग ऑफिसर (Returning Officer) के पास अपना नामांकन पत्र जमा करना होता है, जिसमें उनकी संपत्ति, देनदारियों, शैक्षिक योग्यता और किसी भी आपराधिक रिकॉर्ड का विवरण होता है। साथ ही, उन्हें एक सुरक्षा जमा राशि भी जमा करनी होती है।

चरण 5: नामांकन पत्रों की जांच और नाम वापसी (Step 5: Scrutiny of Nomination Papers and Withdrawal)

नामांकन की अंतिम तिथि के बाद, रिटर्निंग ऑफिसर सभी नामांकन पत्रों की जांच (scrutiny) करता है। यदि किसी उम्मीदवार के कागजात में कोई कमी पाई जाती है या वह पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं करता है, तो उसका नामांकन रद्द किया जा सकता है। जांच के बाद, उम्मीदवारों को अपना नाम वापस लेने के लिए कुछ दिनों का समय दिया जाता है। नाम वापसी की समय सीमा समाप्त होने के बाद, चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की अंतिम सूची जारी की जाती है।

चरण 6: चुनाव प्रचार (Step 6: Election Campaigning)

उम्मीदवारों की अंतिम सूची जारी होने के बाद, चुनाव प्रचार (election campaign) आधिकारिक तौर पर शुरू हो जाता है। यह वह अवधि है जब राजनीतिक दल और उम्मीदवार अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को मतदाताओं के सामने रखते हैं और उनसे वोट मांगते हैं। प्रचार के विभिन्न तरीके होते हैं, जैसे रैलियां, जनसभाएं, पोस्टर, बैनर और सोशल मीडिया अभियान। मतदान की तारीख से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार समाप्त हो जाता है। 📢

चरण 7: मतदान दिवस (Step 7: Polling Day)

यह चुनाव प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है। मतदाता अपने निर्धारित मतदान केंद्रों (polling booths) पर जाकर अपना वोट डालते हैं। मतदान प्रक्रिया को सुचारू और निष्पक्ष बनाने के लिए, प्रत्येक मतदान केंद्र पर एक पीठासीन अधिकारी (Presiding Officer) और अन्य मतदान अधिकारी तैनात होते हैं। आजकल मतदान के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) का उपयोग किया जाता है, जो मतदान प्रक्रिया को तेज और सुरक्षित बनाता है।

ईवीएम और वीवीपैट की भूमिका (Role of EVM and VVPAT)

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) ने पारंपरिक मतपत्र प्रणाली की जगह ले ली है, जिससे वोटों की गिनती बहुत तेज हो गई है और अमान्य वोटों की संख्या कम हो गई है। चुनावी प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता लाने के लिए, अब EVM के साथ वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) मशीन भी जोड़ी गई है। जब कोई मतदाता EVM पर बटन दबाता है, तो VVPAT मशीन से एक पर्ची निकलती है जिसमें उम्मीदवार का क्रम संख्या, नाम और चुनाव चिन्ह होता है। यह पर्ची 7 सेकंड के लिए दिखाई देती है और फिर एक सीलबंद बॉक्स में गिर जाती है, जिससे मतदाता यह पुष्टि कर सकता है कि उसका वोट सही उम्मीदवार को गया है।

चरण 8: वोटों की गिनती और परिणामों की घोषणा (Step 8: Counting of Votes and Declaration of Results)

मतदान समाप्त होने के बाद, सभी EVMs को सुरक्षित रूप से मतगणना केंद्रों (counting centres) पर ले जाया जाता है। निर्धारित तिथि और समय पर, रिटर्निंग ऑफिसर और उम्मीदवारों या उनके एजेंटों की उपस्थिति में वोटों की गिनती शुरू होती है। गिनती पूरी होने के बाद, सबसे अधिक वोट पाने वाले उम्मीदवार को विजयी घोषित किया जाता है। रिटर्निंग ऑफिसर विजयी उम्मीदवार को चुनाव का प्रमाण पत्र प्रदान करता है, और इसके साथ ही चुनाव प्रक्रिया (election process) संपन्न होती है। 🥳

4. मतदान प्रणाली के प्रकार: FPTP बनाम आनुपातिक प्रतिनिधित्व (Types of Voting Systems: FPTP vs. Proportional Representation)

मतदान प्रणाली क्या है? (What is a Voting System?)

मतदान प्रणाली (voting system) वह तरीका है जिसके द्वारा मतदाताओं की पसंद को चुनाव के परिणामों में बदला जाता है। दुनिया भर में कई अलग-अलग प्रकार की मतदान प्रणालियाँ हैं, लेकिन भारत में मुख्य रूप से दो प्रणालियों का उपयोग किया जाता है: ‘फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट’ (First-Past-the-Post – FPTP) और ‘आनुपातिक प्रतिनिधित्व’ (Proportional Representation – PR)। इन दोनों प्रणालियों के अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं और इनका उपयोग विभिन्न प्रकार के चुनावों के लिए किया जाता है।

फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट (FPTP) प्रणाली (First-Past-the-Post (FPTP) System)

इसे ‘बहुलता प्रणाली’ (Plurality System) भी कहा जाता है। यह एक बहुत ही सरल मतदान प्रणाली है। इस प्रणाली के तहत, पूरे देश को कई निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है। चुनाव में जिस उम्मीदवार को अन्य सभी उम्मीदवारों से अधिक वोट मिलते हैं (भले ही उसे कुल वोटों का 50% से कम मिला हो), उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है। भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव इसी प्रणाली के आधार पर होते हैं।

FPTP प्रणाली के फायदे (Advantages of the FPTP System)

FPTP प्रणाली का सबसे बड़ा फायदा इसकी सादगी है। मतदाताओं के लिए इसे समझना और उपयोग करना बहुत आसान है। यह आमतौर पर एक स्थिर सरकार की ओर ले जाती है क्योंकि यह बड़ी पार्टियों को सदन में बहुमत हासिल करने में मदद करती है, जिससे गठबंधन सरकारों की अस्थिरता से बचा जा सकता है। इसके अलावा, यह निर्वाचन क्षेत्र और उसके प्रतिनिधि के बीच एक सीधा संबंध स्थापित करती है, जिससे प्रतिनिधि अपने क्षेत्र के प्रति जवाबदेह बनता है। 👍

FPTP प्रणाली के नुकसान (Disadvantages of the FPTP System)

इस प्रणाली की सबसे बड़ी आलोचना यह है कि यह हमेशा लोकप्रिय जनादेश का सही प्रतिनिधित्व नहीं करती है। ऐसा हो सकता है कि किसी पार्टी को कुल वोटों का एक छोटा प्रतिशत मिले, लेकिन वह सीटों का एक बड़ा हिस्सा जीत जाए। उदाहरण के लिए, यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में 4 उम्मीदवार हैं और विजेता को 30% वोट मिलते हैं, तो इसका मतलब है कि 70% मतदाताओं ने उसे वोट नहीं दिया, फिर भी वह उनका प्रतिनिधि है। इसमें छोटी पार्टियों और अल्पसंख्यक समूहों का प्रतिनिधित्व कम हो जाता है। 👎

आनुपातिक प्रतिनिधित्व (PR) प्रणाली (Proportional Representation (PR) System)

आनुपातिक प्रतिनिधित्व (Proportional Representation) प्रणाली का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसी राजनीतिक दल को विधायिका में उतनी ही सीटें मिलें जितने प्रतिशत वोट उसे चुनाव में मिले हैं। यदि किसी पार्टी को 30% वोट मिलते हैं, तो उसे सदन में लगभग 30% सीटें मिलेंगी। यह प्रणाली विभिन्न रूपों में आती है, लेकिन भारत में मुख्य रूप से ‘एकल संक्रमणीय मत प्रणाली’ (Single Transferable Vote – STV) का उपयोग किया जाता है।

PR प्रणाली कैसे काम करती है? (How does the PR System work?)

PR प्रणाली में, मतदाता किसी एक उम्मीदवार को वोट देने के बजाय, उम्मीदवारों को अपनी पसंद के अनुसार वरीयता (preference) क्रम में रैंक करते हैं (1, 2, 3…)। वोटों की गिनती के लिए, एक कोटा निर्धारित किया जाता है (जीतने के लिए आवश्यक न्यूनतम वोट)। जिन उम्मीदवारों को पहली वरीयता के वोटों से कोटा मिल जाता है, वे निर्वाचित हो जाते हैं। उनके अतिरिक्त वोट (सरप्लस वोट) उनकी दूसरी वरीयता के अनुसार अन्य उम्मीदवारों को हस्तांतरित कर दिए जाते हैं। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक सभी सीटें भर नहीं जातीं।

भारत में PR प्रणाली का उपयोग (Use of PR System in India)

भारत में, आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली का उपयोग सीधे चुनावों के लिए नहीं किया जाता है। इसका उपयोग कुछ अप्रत्यक्ष चुनावों के लिए होता है, जैसे:
1. राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव।
2. राष्ट्रपति का चुनाव।
3. उपराष्ट्रपति का चुनाव।
4. राज्य विधान परिषदों के सदस्यों का चुनाव। यह प्रणाली सुनिश्चित करती है कि विधायिकाओं में विभिन्न दलों और समूहों को उनकी ताकत के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिले।

PR प्रणाली के फायदे (Advantages of the PR System)

PR प्रणाली का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह मतदाताओं की इच्छा का अधिक सटीक प्रतिनिधित्व करती है और ‘व्यर्थ वोटों’ (wasted votes) की संख्या को कम करती है। यह छोटी पार्टियों और अल्पसंख्यक समूहों को भी विधायिका में प्रतिनिधित्व का अवसर देती है, जिससे लोकतंत्र अधिक समावेशी बनता है। यह विभिन्न विचारों और दृष्टिकोणों को विधायी प्रक्रिया में शामिल करने को प्रोत्साहित करती है, जिससे बेहतर नीतियां बन सकती हैं।

PR प्रणाली के नुकसान (Disadvantages of the PR System)

इसकी मुख्य कमियों में इसकी जटिलता शामिल है; मतदाताओं और चुनाव अधिकारियों दोनों के लिए इसे समझना मुश्किल हो सकता है। यह अक्सर खंडित जनादेश (fractured mandate) और गठबंधन सरकारों की ओर ले जाती है, जो अस्थिर हो सकती हैं। इसके अलावा, यह FPTP की तरह निर्वाचन क्षेत्र और प्रतिनिधि के बीच सीधा संबंध स्थापित नहीं करती है, जिससे जवाबदेही कम हो सकती है।

FPTP बनाम PR: एक तुलनात्मक विश्लेषण (FPTP vs. PR: A Comparative Analysis)

संक्षेप में, FPTP प्रणाली स्थिरता और सरलता प्रदान करती है, जबकि PR प्रणाली निष्पक्ष प्रतिनिधित्व और समावेशिता पर जोर देती है। भारत के संविधान निर्माताओं ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए FPTP को चुना ताकि एक स्थिर सरकार सुनिश्चित हो सके, जो एक नए और विविधतापूर्ण राष्ट्र के लिए आवश्यक थी। वहीं, राज्यसभा जैसे सदनों के लिए PR को अपनाया गया ताकि राज्यों और विभिन्न दलों को उचित प्रतिनिधित्व (fair representation) मिल सके। दोनों प्रणालियों का यह मिश्रण भारतीय लोकतंत्र की एक अनूठी विशेषता है।

5. भारत में चुनावी सुधार: चुनौतियाँ और समाधान (Electoral Reforms in India: Challenges and Solutions)

चुनावी सुधारों की आवश्यकता क्यों है? (Why are Electoral Reforms needed?)

समय के साथ, भारतीय निर्वाचन प्रणाली में कुछ गंभीर चुनौतियाँ सामने आई हैं, जैसे राजनीति का अपराधीकरण, चुनाव में धन-बल का बढ़ता प्रयोग, जाति और धर्म आधारित राजनीति, और झूठी खबरें। इन चुनौतियों से निपटने और लोकतंत्र को और अधिक मजबूत, पारदर्शी और निष्पक्ष बनाने के लिए, समय-समय पर चुनावी सुधार (electoral reforms) की आवश्यकता महसूस की गई है। चुनावी सुधारों का उद्देश्य चुनाव प्रक्रिया को स्वच्छ बनाना और मतदाताओं का विश्वास बनाए रखना है। 💡

प्रमुख चुनावी सुधार समितियाँ (Major Committees on Electoral Reforms)

भारत में चुनावी सुधारों पर विचार करने के लिए कई समितियाँ और आयोग गठित किए गए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:
1. तारकुंडे समिति (1974): इसने मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 करने, चुनाव आयोग को एक बहु-सदस्यीय निकाय बनाने और चुनाव खर्चों का लेखा-जोखा रखने की सिफारिश की।
2. दिनेश गोस्वामी समिति (1990): इसने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) के उपयोग, उम्मीदवारों के लिए आपराधिक रिकॉर्ड का खुलासा अनिवार्य करने और दलबदल विरोधी कानून को मजबूत करने का सुझाव दिया।
3. इंद्रजीत गुप्त समिति (1998): इसने चुनावों के लिए राज्य वित्तपोषण (state funding of elections) की व्यवहार्यता का अध्ययन किया।

1996 से पहले के महत्वपूर्ण सुधार (Key Reforms Before 1996)

चुनावी सुधारों की प्रक्रिया आजादी के बाद से ही चल रही है। एक सबसे महत्वपूर्ण सुधार 1988 में 61वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से किया गया, जिसके द्वारा लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई। इससे देश के युवाओं को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने का अवसर मिला। इसके अलावा, 1989 में EVM का पहली बार प्रायोगिक तौर पर उपयोग किया गया, जो बाद में चुनावी प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग बन गया।

1996 के बाद के महत्वपूर्ण सुधार (Key Reforms After 1996)

पिछले कुछ दशकों में कई महत्वपूर्ण सुधार हुए हैं। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद, 2003 से उम्मीदवारों के लिए नामांकन पत्र के साथ एक हलफनामा (affidavit) दाखिल करना अनिवार्य कर दिया गया है, जिसमें उन्हें अपनी संपत्ति, देनदारियों, शैक्षिक योग्यता और आपराधिक पृष्ठभूमि का खुलासा करना होता है। इससे मतदाताओं को अपने उम्मीदवारों के बारे में सूचित निर्णय लेने में मदद मिली है।

NOTA का परिचय (Introduction of NOTA)

‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ (None of the Above – NOTA) का विकल्प एक महत्वपूर्ण सुधार है, जिसे 2013 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर लागू किया गया था। यह मतदाताओं को यह अधिकार देता है कि यदि वे चुनाव लड़ रहे किसी भी उम्मीदवार को पसंद नहीं करते हैं, तो वे NOTA का बटन दबाकर अपनी असहमति दर्ज करा सकते हैं। हालांकि, NOTA के वोटों का चुनाव परिणाम पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है, लेकिन यह राजनीतिक दलों पर अच्छे उम्मीदवार खड़े करने के लिए एक नैतिक दबाव बनाता है।

वीवीपैट (VVPAT) का आगमन (Advent of VVPAT)

ईवीएम की विश्वसनीयता पर उठते सवालों के जवाब में, वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) प्रणाली को लागू किया गया। जैसा कि पहले बताया गया है, यह प्रणाली मतदाताओं को यह सत्यापित करने की अनुमति देती है कि उनका वोट सही उम्मीदवार को गया है। यह चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वास को बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। अब सभी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में VVPAT का उपयोग अनिवार्य है।

राजनीति का अपराधीकरण: एक बड़ी चुनौती (Criminalization of Politics: A Major Challenge)

भारतीय राजनीति की सबसे गंभीर समस्याओं में से एक राजनीति का अपराधीकरण (criminalization of politics) है। कई उम्मीदवार जिनके खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं, न केवल चुनाव लड़ते हैं बल्कि जीत भी जाते हैं। हालांकि कानून के अनुसार, दो साल से अधिक की सजा पाने वाले व्यक्ति को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है, लेकिन जब तक किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जाता, वह चुनाव लड़ सकता है। इस समस्या से निपटने के लिए और कड़े सुधारों की आवश्यकता है।

धन-बल का प्रभाव (Influence of Money Power)

चुनावों में काले धन का उपयोग एक और बड़ी चुनौती है। उम्मीदवार और राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए निर्धारित सीमा से कहीं अधिक खर्च करते हैं। यह न केवल चुनावी प्रक्रिया को विकृत करता है, बल्कि ईमानदार उम्मीदवारों के लिए चुनाव लड़ना भी मुश्किल बना देता है। निर्वाचन आयोग ने चुनाव खर्चों पर निगरानी के लिए पर्यवेक्षक नियुक्त करने जैसे कई कदम उठाए हैं, लेकिन यह समस्या अभी भी बनी हुई है।

प्रस्तावित भविष्य के सुधार (Proposed Future Reforms)

भविष्य के लिए कई सुधारों पर बहस चल रही है। इनमें ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ (One Nation, One Election) का विचार शामिल है, जिसका उद्देश्य लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना है ताकि खर्च और प्रशासनिक बोझ को कम किया जा सके। इसके अलावा, ‘राइट टू रिजेक्ट’ (Right to Reject) और ‘राइट टू रिकॉल’ (Right to Recall) जैसे सुधारों पर भी चर्चा होती है, जो मतदाताओं को और अधिक सशक्त बना सकते हैं। चुनावों का राज्य वित्तपोषण (state funding of elections) भी एक महत्वपूर्ण प्रस्तावित सुधार है।

चुनावी बॉन्ड की भूमिका और विवाद (Role and Controversy of Electoral Bonds)

राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से 2018 में चुनावी बॉन्ड (Electoral Bonds) योजना शुरू की गई थी। इसके माध्यम से कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक से बॉन्ड खरीदकर किसी भी पंजीकृत राजनीतिक दल को गुमनाम रूप से चंदा दे सकती थी। हालांकि, इसकी इस आधार पर आलोचना की गई कि यह पारदर्शिता को कम करता है क्योंकि दानदाता की पहचान गुप्त रहती है। फरवरी 2024 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस योजना को सूचना के अधिकार का उल्लंघन बताते हुए असंवैधानिक घोषित कर दिया।

6. प्रमुख केस स्टडी: इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण (1975) (Landmark Case Study: Indira Gandhi v. Raj Narain (1975))

मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case)

यह मामला भारतीय लोकतंत्र और न्यायपालिका के इतिहास में एक मील का पत्थर है। 1971 के लोकसभा चुनाव में, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से अपने प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को हराया था। चुनाव हारने के बाद, राज नारायण ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने इंदिरा गांधी पर चुनाव जीतने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने और भ्रष्ट चुनावी आचरण (corrupt electoral practices) अपनाने का आरोप लगाया। 🏛️

राज नारायण के मुख्य आरोप (Key Allegations by Raj Narain)

राज नारायण ने अपनी याचिका में कई आरोप लगाए थे। इनमें से दो प्रमुख आरोप थे:
1. इंदिरा गांधी ने अपने निजी सचिव यशपाल कपूर (जो एक सरकारी कर्मचारी थे) की सेवाओं का उपयोग चुनाव एजेंट के रूप में किया, जो कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951) का उल्लंघन था।
2. उन्होंने चुनाव प्रचार के लिए मंच बनाने और लाउडस्पीकर की व्यवस्था करने जैसे कार्यों के लिए स्थानीय जिला अधिकारियों और पुलिस की मदद ली थी।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला (The Historic Judgment of the Allahabad High Court)

12 जून 1975 को, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहनलाल सिन्हा ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। उन्होंने इंदिरा गांधी को चुनावी कदाचार का दोषी पाया और उनके चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया। अदालत ने उन्हें अगले छह वर्षों के लिए कोई भी चुनाव लड़ने से भी रोक दिया। यह पहली बार था जब भारत में किसी मौजूदा प्रधानमंत्री के चुनाव को रद्द किया गया था। इस फैसले ने पूरे देश की राजनीति में भूचाल ला दिया।

फैसले की राजनीतिक प्रतिक्रिया (Political Reaction to the Judgment)

इस फैसले के बाद, विपक्षी दलों ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग तेज कर दी। राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बन गया। इस स्थिति से निपटने के लिए, इंदिरा गांधी ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की, जिसने उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने की अनुमति तो दी, लेकिन संसद में मतदान करने से रोक दिया। इस राजनीतिक संकट के बीच, 25 जून 1975 को, राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इंदिरा गांधी की सलाह पर देश में राष्ट्रीय आपातकाल (National Emergency) की घोषणा कर दी।

39वां संविधान संशोधन अधिनियम (The 39th Constitutional Amendment Act)

आपातकाल के दौरान, संसद ने अगस्त 1975 में 39वां संविधान संशोधन अधिनियम पारित किया। इस संशोधन ने अनुच्छेद 329-A जोड़ा, जिसमें यह प्रावधान किया गया कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के चुनावों को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। इस संशोधन को पूर्वव्यापी प्रभाव (retrospective effect) से लागू किया गया, जिसका सीधा मतलब था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला स्वतः ही रद्द हो जाएगा।

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला (The Supreme Court’s Verdict)

जब यह मामला अपील में सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा, तो पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इस पर सुनवाई की। सर्वोच्च न्यायालय ने 39वें संशोधन अधिनियम के उस हिस्से को रद्द कर दिया जो न्यायिक समीक्षा (judicial review) को समाप्त करता था। अदालत ने कहा कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव तथा न्यायिक समीक्षा संविधान की ‘बुनियादी संरचना’ (Basic Structure) का हिस्सा हैं और संसद इन्हें संशोधन करके भी नहीं हटा सकती है। यह ‘बुनियादी संरचना के सिद्धांत’ (Doctrine of Basic Structure) की एक और पुष्टि थी, जिसे 1973 के केशवानंद भारती मामले में स्थापित किया गया था।

मामले का अंतिम परिणाम (Final Outcome of the Case)

हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने 39वें संशोधन को रद्द कर दिया, लेकिन उसने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में किए गए अन्य पूर्वव्यापी संशोधनों के आधार पर इंदिरा गांधी को चुनावी कदाचार के आरोपों से बरी कर दिया और उनके चुनाव को वैध ठहराया। इस प्रकार, कानूनी तौर पर तो वह जीत गईं, लेकिन इस पूरे प्रकरण ने भारतीय लोकतंत्र पर गहरा प्रभाव डाला।

इस केस का भारतीय लोकतंत्र पर प्रभाव (Impact of this Case on Indian Democracy)

इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण मामला कई कारणों से महत्वपूर्ण है। इसने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सर्वोच्चता को स्थापित किया। इसने यह स्पष्ट कर दिया कि कोई भी, चाहे वह प्रधानमंत्री ही क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं है। इस मामले ने ‘बुनियादी संरचना के सिद्धांत’ को और मजबूत किया, जो आज भी भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण सुरक्षा कवच है। यह मामला स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों (free and fair elections) के महत्व को रेखांकित करता है और यह याद दिलाता है कि लोकतांत्रिक संस्थानों की रक्षा करना कितना आवश्यक है। ⚖️

7. निष्कर्ष: भारतीय लोकतंत्र का भविष्य (Conclusion: The Future of Indian Democracy)

भारतीय निर्वाचन प्रणाली की उपलब्धियाँ (Achievements of the Indian Electoral System)

भारतीय निर्वाचन प्रणाली ने पिछले सात दशकों में एक लंबा और सफल सफर तय किया है। इसने दुनिया के सबसे बड़े और सबसे विविधतापूर्ण लोकतंत्र में नियमित, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित किए हैं। इसने सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण को संभव बनाया है और समाज के सबसे कमजोर वर्गों को भी राजनीतिक आवाज दी है। भारत के निर्वाचन आयोग ने अपनी स्वायत्तता और दक्षता से विश्व स्तर पर सम्मान अर्जित किया है, और कई विकासशील देश भारत के चुनावी मॉडल से सीखते हैं। 🇮🇳✨

मौजूदा चुनौतियाँ और आगे की राह (Existing Challenges and the Way Forward)

अपनी सफलताओं के बावजूद, हमारी निर्वाचन प्रणाली अभी भी राजनीति के अपराधीकरण, धन-बल के बढ़ते प्रभाव, चुनावी कदाचार और झूठी सूचनाओं के प्रसार जैसी गंभीर चुनौतियों का सामना कर रही है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए निरंतर सुधारों की आवश्यकता है। राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र को बढ़ावा देना, चुनावी फंडिंग में और अधिक पारदर्शिता लाना और चुनाव कानूनों को सख्ती से लागू करना भविष्य के लिए महत्वपूर्ण कदम होंगे।

प्रौद्योगिकी की भूमिका (The Role of Technology)

प्रौद्योगिकी ने हमारी चुनाव प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जैसा कि ईवीएम और वीवीपैट के सफल कार्यान्वयन से स्पष्ट है। भविष्य में, प्रौद्योगिकी का उपयोग मतदाता पंजीकरण को आसान बनाने, मतदाताओं को शिक्षित करने और चुनाव प्रबंधन को और अधिक कुशल बनाने के लिए किया जा सकता है। हालांकि, हमें साइबर सुरक्षा और डेटा गोपनीयता से संबंधित जोखिमों से भी सावधान रहना होगा। तकनीक का संतुलित और सुरक्षित उपयोग हमारी निर्वाचन प्रणाली को और मजबूत बना सकता है।

एक जागरूक मतदाता की भूमिका (The Role of an Aware Voter)

अंततः, किसी भी लोकतंत्र की ताकत उसके नागरिकों पर निर्भर करती है। एक मजबूत और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए एक जागरूक और सूचित मतदाता होना आवश्यक है। छात्रों और युवाओं के रूप में, आपकी यह जिम्मेदारी है कि आप अपने अधिकारों और कर्तव्यों को समझें, उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि की जांच करें, और जाति, धर्म या किसी अन्य संकीर्ण विचार के आधार पर नहीं, बल्कि विकास और नीति के मुद्दों पर अपना वोट दें। आपका एक वोट देश का भविष्य तय करने की शक्ति रखता है। 💪

अंतिम विचार (Final Thoughts)

भारतीय निर्वाचन प्रणाली एक जीवंत और विकसित होती व्यवस्था है। यह हमारे लोकतंत्र की आधारशिला है, जो करोड़ों भारतीयों की आशाओं और आकांक्षाओं को दर्शाती है। चुनौतियों के बावजूद, इसने समय की कसौटी पर खुद को खरा साबित किया है। निरंतर सुधार, नागरिक जागरूकता और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति सामूहिक प्रतिबद्धता के साथ, हम यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि भारतीय लोकतंत्र का भविष्य उज्ज्वल और सुरक्षित बना रहे। जय हिन्द! 🙏

undefined

1 Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *