नैतिक शासन: एक सपना? (Ethical Governance: A Dream?)
नैतिक शासन: एक सपना? (Ethical Governance: A Dream?)

नैतिक शासन: एक सपना? (Ethical Governance: A Dream?)

विषय-सूची (Table of Contents)

परिचय: एक आम नागरिक की कहानी (Introduction: A Common Citizen’s Story)

रमेश, एक छोटे से गाँव का किसान, अपने बेटे के जन्म प्रमाण पत्र (birth certificate) के लिए महीनों से सरकारी दफ्तर के चक्कर काट रहा था। हर बार उसे एक नई खिड़की पर भेज दिया जाता, जहाँ बैठा अधिकारी बिना किसी कारण के उसके दस्तावेज़ों में कोई न कोई कमी निकाल देता। एक दिन, एक ‘शुभचिंतक’ ने उसे सलाह दी कि अगर वह मेज के नीचे से कुछ ‘सेवा शुल्क’ दे दे, तो उसका काम तुरंत हो जाएगा। रमेश के लिए यह एक धर्मसंकट था। क्या वह भ्रष्टाचार (corruption) का हिस्सा बनकर अपना काम निकलवा ले, या अपने सिद्धांतों पर अड़ा रहे? यह छोटी सी कहानी हमारे समाज की एक बड़ी और कड़वी सच्चाई को दर्शाती है, जहाँ शासन व्यवस्था में नैतिकता का अभाव आम नागरिक के जीवन को मुश्किल बना देता है। यहीं पर नैतिक शासन की अवधारणा एक उम्मीद की किरण बनकर सामने आती है। यह सिर्फ एक किताबी शब्द नहीं, बल्कि एक ऐसी व्यवस्था की परिकल्पना है जहाँ रमेश जैसे लाखों लोगों को अपना काम करवाने के लिए किसी ‘सेवा शुल्क’ की जरूरत न पड़े, जहाँ हर नागरिक को सम्मान, न्याय और पारदर्शिता का अनुभव हो।

नैतिक शासन (Ethical Governance) का सीधा सा अर्थ है शासन की प्रक्रियाओं में नैतिक मूल्यों, सिद्धांतों और मानकों का समावेश करना। यह सुनिश्चित करता है कि सत्ता का उपयोग सार्वजनिक हित के लिए हो, न कि व्यक्तिगत लाभ के लिए। जब हम शासन में ‘नैतिकता’ को जोड़ते हैं, तो हम केवल कानूनों और नियमों के पालन की बात नहीं कर रहे होते, बल्कि हम सही और गलत के बीच अंतर करने, ईमानदारी, निष्पक्षता और जवाबदेही जैसे मूल्यों को प्रशासनिक संस्कृति (administrative culture) का हिस्सा बनाने की बात कर रहे होते हैं। एक ऐसा शासन जो न केवल कुशल और प्रभावी हो, बल्कि नैतिक रूप से भी मजबूत हो, वही वास्तव में एक लोक-कल्याणकारी राज्य (welfare state) की नींव रख सकता है। इस लेख में, हम नैतिक शासन की इसी जटिल और महत्वपूर्ण अवधारणा की गहराई में उतरेंगे, इसके सिद्धांतों, चुनौतियों और इसे वास्तविकता में बदलने के उपायों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

1. नैतिक शासन क्या है? – अर्थ और परिभाषा (What is Ethical Governance? – Meaning and Definition)

नैतिक शासन की अवधारणा को समझना (Understanding the Concept of Ethical Governance)

नैतिक शासन दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘नैतिक’ और ‘शासन’। ‘नैतिक’ का अर्थ है सही और गलत के सिद्धांतों से संबंधित, जबकि ‘शासन’ का अर्थ है किसी देश या संगठन को नियंत्रित करने की प्रक्रिया या अधिकार। जब इन दोनों को मिला दिया जाता है, तो यह एक ऐसी शासन प्रणाली को संदर्भित करता है जो नैतिक सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होती है। यह केवल कानूनों का पालन करने से कहीं बढ़कर है; यह उन मूल्यों को अपनाने के बारे में है जो सार्वजनिक विश्वास, अखंडता और निष्पक्षता को बढ़ावा देते हैं।

  • यह एक मूल्य-आधारित दृष्टिकोण है: यह मानता है कि निर्णय केवल नियमों और विनियमों पर आधारित नहीं होने चाहिए, बल्कि नैतिक विचारों पर भी आधारित होने चाहिए।
  • इसका केंद्र बिंदु ‘लोक हित’ है: नैतिक शासन का अंतिम लक्ष्य नागरिकों का कल्याण और समाज का समग्र विकास सुनिश्चित करना है।
  • यह विश्वास का निर्माण करता है: जब नागरिक देखते हैं कि उनके नेता और प्रशासक ईमानदारी और पारदर्शिता से काम कर रहे हैं, तो उनका सरकार में विश्वास बढ़ता है।

विभिन्न विचारकों द्वारा परिभाषाएँ (Definitions by Various Thinkers)

हालांकि नैतिक शासन की कोई एक सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है, लेकिन विभिन्न विद्वानों और संगठनों ने इसे अपने-अपने तरीके से परिभाषित किया है। विश्व बैंक (World Bank) सुशासन को “विकास के लिए किसी देश की आर्थिक और सामाजिक संसाधनों के प्रबंधन में शक्ति का प्रयोग करने का तरीका” के रूप में परिभाषित करता है, और नैतिक शासन इसी सुशासन का एक अनिवार्य नैतिक आयाम है।

  • प्रशासनिक सुधार आयोग (Administrative Reforms Commission) की रिपोर्टों में अक्सर इस बात पर जोर दिया गया है कि शासन में नैतिकता का मतलब है कि लोक सेवक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते समय उच्चतम स्तर की ईमानदारी और सत्यनिष्ठा बनाए रखें।
  • राजनीतिक दार्शनिकों के अनुसार, नैतिक शासन का अर्थ है कि सत्ता में बैठे लोग अपनी शक्ति को एक ‘पवित्र विश्वास’ (sacred trust) के रूप में देखें, जिसे उन्हें जनता के प्रति पूरी जवाबदेही के साथ निभाना चाहिए।
  • संक्षेप में, नैतिक शासन वह आदर्श स्थिति है जहाँ सरकारी मशीनरी का हर पुर्जा नैतिक तेल से चिकना होकर चलता है, ताकि वह बिना किसी घर्षण या भ्रष्टाचार के, जनता की सेवा के पहियों को तेजी से घुमा सके।

2. नैतिक शासन का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Historical Perspective of Ethical Governance)

प्राचीन भारतीय दर्शन में नैतिक शासन (Ethical Governance in Ancient Indian Philosophy)

भारत में नैतिक शासन की जड़ें बहुत गहरी हैं और इसका उल्लेख हमारे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। कौटिल्य (चाणक्य) द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। हालांकि इसे अक्सर राजनीति और अर्थशास्त्र का ग्रंथ माना जाता है, लेकिन इसका मूल सार एक नैतिक और कुशल शासन की स्थापना करना है।

  • कौटिल्य का ‘राजा का धर्म’: कौटिल्य ने स्पष्ट रूप से कहा था, “प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां च हिते हितम्” अर्थात प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है और प्रजा के हित में ही उसका हित है। यह पंक्ति नैतिक शासन के मूल सिद्धांत को दर्शाती है, जहाँ शासक का अस्तित्व केवल जनता की भलाई के लिए होता है।
  • रामराज्य की अवधारणा: महाकाव्य रामायण में ‘रामराज्य’ की अवधारणा एक आदर्श नैतिक शासन का प्रतीक है, जहाँ न्याय, समानता, और कर्तव्य सर्वोपरि थे। यह आज भी भारत में एक आदर्श शासन के लिए एक रूपक के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • अशोक का धम्म: सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद ‘धम्म’ की नीति अपनाई, जो सहिष्णुता, अहिंसा, और सभी के कल्याण पर आधारित थी। उन्होंने अपने शिलालेखों के माध्यम से इन नैतिक सिद्धांतों को अपनी प्रजा और अधिकारियों तक पहुँचाया, जो नैतिक शासन का एक ऐतिहासिक प्रमाण है।

पाश्चात्य दर्शन में नैतिक शासन की जड़ें (Roots of Ethical Governance in Western Philosophy)

पश्चिमी दुनिया में भी, नैतिक शासन की अवधारणा प्राचीन काल से ही दार्शनिकों के चिंतन का विषय रही है। यूनानी दार्शनिकों ने एक आदर्श राज्य और शासक के गुणों पर विस्तार से लिखा है, जो आज भी प्रासंगिक हैं।

  • प्लेटो का ‘दार्शनिक राजा’ (Philosopher King): प्लेटो ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द रिपब्लिक’ में एक ‘दार्शनिक राजा’ की कल्पना की थी। उनका मानना था कि केवल वही व्यक्ति शासन करने के योग्य है जो ज्ञानी, निस्वार्थ और न्यायप्रिय हो, और जिसका एकमात्र लक्ष्य राज्य का कल्याण हो।
  • अरस्तू का ‘कानून का शासन’ (Rule of Law): अरस्तू ने किसी एक व्यक्ति के शासन के बजाय ‘कानून के शासन’ के महत्व पर जोर दिया। उनका मानना था कि कानून तर्क पर आधारित होता है और भावनाओं से मुक्त होता है, इसलिए यह एक निष्पक्ष और स्थिर शासन प्रदान करता है। यह सिद्धांत आज दुनिया भर के लोकतंत्रों में नैतिक शासन की आधारशिला है।
  • आधुनिक काल: प्रबोधन काल (Enlightenment era) के विचारकों जैसे जॉन लॉक और रूसो ने सामाजिक अनुबंध (social contract) के सिद्धांत को सामने रखा, जिसमें कहा गया कि सरकार की वैधता नागरिकों की सहमति पर आधारित होती है और सरकार का कर्तव्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है। यह आधुनिक लोकतांत्रिक नैतिक शासन की नींव है।

3. नैतिक शासन के मूलभूत स्तंभ और सिद्धांत (The Fundamental Pillars and Principles of Ethical Governance)

नैतिक शासन किसी एक विचार पर आधारित नहीं है, बल्कि यह कई सिद्धांतों और मूल्यों का एक समूह है जो मिलकर एक पारदर्शी, जवाबदेह और जन-केंद्रित प्रणाली का निर्माण करते हैं। इन सिद्धांतों को नैतिक शासन के स्तंभ के रूप में देखा जा सकता है।

पारदर्शिता (Transparency)

पारदर्शिता का अर्थ है कि सरकार के निर्णय और कार्य जनता के लिए खुले हों। सूचना तक आसान पहुँच सुनिश्चित करना इसका एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जब सरकार के कामकाज में पारदर्शिता होती है, तो भ्रष्टाचार और मनमानी की गुंजाइश कम हो जाती है।

  • सूचना का अधिकार (Right to Information – RTI): भारत में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। यह नागरिकों को सरकारी विभागों से जानकारी मांगने का अधिकार देता है, जिससे वे सरकार के कामकाज पर नजर रख सकते हैं।
  • खुला डेटा (Open Data): सरकारी डेटा को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराना, जैसे कि बजट, व्यय और योजनाओं के प्रदर्शन से संबंधित आँकड़े, पारदर्शिता को बढ़ाता है।
  • इसका लाभ: पारदर्शिता से जनता का सरकार में विश्वास बढ़ता है और यह अधिकारियों को अधिक जिम्मेदार बनाता है, जो नैतिक शासन का एक प्रमुख लक्ष्य है।

जवाबदेही (Accountability)

जवाबदेही का मतलब है कि सरकारी अधिकारी और राजनेता अपने निर्णयों और कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी हैं। यदि वे अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हैं या अपने कर्तव्यों को निभाने में विफल रहते हैं, तो उन्हें इसके परिणामों का सामना करना पड़ता है।

  • राजनीतिक जवाबदेही: इसमें नियमित चुनाव शामिल हैं, जहाँ जनता के पास खराब प्रदर्शन करने वाली सरकार को हटाने की शक्ति होती है।
  • प्रशासनिक जवाबदेही: इसमें लोकपाल, सतर्कता आयोग (Vigilance Commission) और विभागीय जांच जैसी संस्थाएं शामिल हैं, जो अधिकारियों के गलत कामों की जांच करती हैं।
  • सामाजिक जवाबदेही: इसमें नागरिक समाज, मीडिया और सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit) की भूमिका होती है, जो सरकार के प्रदर्शन की निगरानी करते हैं। एक मजबूत जवाबदेही तंत्र के बिना नैतिक शासन की कल्पना नहीं की जा सकती।

निष्पक्षता और समानता (Fairness and Equity)

नैतिक शासन यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों के साथ निष्पक्ष व्यवहार हो और सरकारी नीतियों और सेवाओं का लाभ बिना किसी भेदभाव (जाति, धर्म, लिंग, या आर्थिक स्थिति) के सभी तक पहुँचे।

  • कानून के समक्ष समानता: इसका मतलब है कि कानून सभी के लिए समान है, चाहे वह एक आम नागरिक हो या कोई शक्तिशाली व्यक्ति।
  • अवसर की समानता: सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के समान अवसर मिलें।
  • समावेशी नीतियां (Inclusive Policies): नीतियां बनाते समय समाज के सबसे कमजोर और वंचित वर्गों की जरूरतों का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। निष्पक्षता नैतिक शासन की आत्मा है, जो समाज में न्याय और सद्भाव स्थापित करती है।

ईमानदारी और सत्यनिष्ठा (Honesty and Integrity)

यह सिद्धांत सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्तियों के व्यक्तिगत चरित्र से जुड़ा है। ईमानदारी का अर्थ है सच्चाई और पारदर्शिता से काम करना, जबकि सत्यनिष्ठा का अर्थ है नैतिक सिद्धांतों पर दृढ़ रहना, भले ही कोई देख न रहा हो।

  • भ्रष्टाचार का अभाव: सत्यनिष्ठा का सीधा संबंध भ्रष्टाचार के उन्मूलन से है। जब अधिकारी ईमानदार होते हैं, तो वे रिश्वत या अन्य अवैध लाभों के लिए अपनी शक्ति का दुरुपयोग नहीं करते हैं।
  • हितों का टकराव (Conflict of Interest) से बचना: लोक सेवकों को ऐसी स्थितियों से बचना चाहिए जहाँ उनके व्यक्तिगत हित उनके सार्वजनिक कर्तव्यों के आड़े आएं।
  • नैतिक आचार संहिता (Code of Ethics): कई सरकारी विभागों में अधिकारियों के लिए एक आचार संहिता होती है, जो उनसे अपेक्षित नैतिक व्यवहार के मानकों को निर्धारित करती है। यह नैतिक शासन को संस्थागत बनाने में मदद करती है।

कानून का शासन (Rule of Law)

कानून का शासन एक ऐसा सिद्धांत है जिसके अनुसार देश का शासन किसी व्यक्ति की मनमर्जी से नहीं, बल्कि स्थापित कानूनों के अनुसार चलता है। यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है और सभी को कानूनी प्रक्रिया का समान संरक्षण प्राप्त है।

  • स्वतंत्र न्यायपालिका: एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका कानून के शासन की रक्षा के लिए आवश्यक है। यह सुनिश्चित करती है कि सरकार भी कानूनों के दायरे में रहकर काम करे।
  • स्पष्ट और स्थिर कानून: कानून स्पष्ट, सार्वजनिक और स्थिर होने चाहिए ताकि नागरिक जान सकें कि उनसे क्या अपेक्षित है।
  • मानवाधिकारों का संरक्षण: कानून का शासन नागरिकों के मौलिक और मानवाधिकारों की रक्षा करता है। यह नैतिक शासन के लिए एक ढांचा प्रदान करता है, जो शक्ति के मनमाने उपयोग को रोकता है।

जन-भागीदारी (Public Participation)

नैतिक शासन केवल ऊपर से नीचे की प्रक्रिया नहीं है; यह एक सहभागी प्रक्रिया है। इसका मतलब है कि नीति-निर्माण और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में नागरिकों की सक्रिय भागीदारी होनी चाहिए।

  • विकेंद्रीकरण (Decentralization): पंचायती राज जैसी संस्थाओं के माध्यम से स्थानीय स्तर पर शक्तियों का हस्तांतरण जन-भागीदारी को बढ़ावा देता है।
  • नागरिक परामर्श: महत्वपूर्ण नीतियां बनाने से पहले सरकार को नागरिकों, विशेषज्ञों और हितधारक समूहों से परामर्श करना चाहिए।
  • जागरूक नागरिक: एक जागरूक और सक्रिय नागरिक समाज सरकार को जवाबदेह बनाता है और नैतिक शासन की मांग करता है।

4. सुशासन (Good Governance) और नैतिक शासन में अंतर (Difference Between Good Governance and Ethical Governance)

अक्सर ‘सुशासन’ (Good Governance) और ‘नैतिक शासन’ (Ethical Governance) शब्दों का प्रयोग एक दूसरे के स्थान पर किया जाता है, लेकिन इनमें एक सूक्ष्म और महत्वपूर्ण अंतर है। इन दोनों अवधारणाओं को समझना यह जानने के लिए आवश्यक है कि एक आदर्श शासन प्रणाली कैसी होनी चाहिए।

सुशासन (Good Governance): प्रक्रिया और परिणाम पर ध्यान केंद्रित

सुशासन मुख्य रूप से शासन की प्रक्रियाओं, प्रणालियों और परिणामों की गुणवत्ता से संबंधित है। यह इस बात पर ध्यान केंद्रित करता है कि सरकार कितनी कुशलता और प्रभावशीलता से अपने कार्यों को करती है।

  • मुख्य तत्व: सुशासन के मुख्य तत्वों में प्रभावशीलता (Effectiveness), दक्षता (Efficiency), जवाबदेही, पारदर्शिता, कानून का शासन और भागीदारी शामिल हैं।
  • उद्देश्य: इसका प्राथमिक उद्देश्य सार्वजनिक सेवाओं को बेहतर बनाना, आर्थिक विकास को बढ़ावा देना और संसाधनों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करना है।
  • दृष्टिकोण: सुशासन का दृष्टिकोण काफी हद तक प्रक्रियात्मक (procedural) और तकनीकी (technical) होता है। यह सही प्रणालियों और संस्थानों को स्थापित करने पर जोर देता है। उदाहरण के लिए, एक सरकारी वेबसाइट जो नागरिकों को जल्दी और आसानी से सेवा प्रदान करती है, सुशासन का एक अच्छा उदाहरण है।

नैतिक शासन (Ethical Governance): मूल्यों और इरादों पर ध्यान केंद्रित

दूसरी ओर, नैतिक शासन सुशासन के सिद्धांतों को लेता है और उनमें एक नैतिक या मूल्य-आधारित आयाम जोड़ता है। यह केवल इस बात से चिंतित नहीं है कि ‘क्या’ किया गया, बल्कि इस बात से भी चिंतित है कि यह ‘क्यों’ और ‘कैसे’ किया गया।

  • मुख्य तत्व: नैतिक शासन के मूल में ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, निष्पक्षता, करुणा और सार्वजनिक सेवा की भावना जैसे मूल्य होते हैं।
  • उद्देश्य: इसका लक्ष्य केवल कुशल शासन प्रदान करना नहीं है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि शासन मानवीय, न्यायपूर्ण और नैतिक रूप से सही हो। यह सत्ता के पीछे के इरादे और चरित्र पर सवाल उठाता है।
  • दृष्टिकोण: इसका दृष्टिकोण दार्शनिक और मूल्यात्मक (evaluative) है। यह मानता है कि सही प्रक्रियाएं ही काफी नहीं हैं; उन प्रक्रियाओं को संचालित करने वाले लोगों का नैतिक रूप से मजबूत होना भी आवश्यक है।

प्रमुख अंतरों की सारणी (Table of Key Differences)

इस अंतर को और स्पष्ट रूप से समझने के लिए, हम एक सरल तुलना कर सकते हैं:

पहलू (Aspect) सुशासन (Good Governance) नैतिक शासन (Ethical Governance)
केंद्र बिंदु (Focus) प्रक्रियाएं, प्रणालियाँ, दक्षता, परिणाम (Processes, Systems, Efficiency, Outcomes) मूल्य, सिद्धांत, इरादे, चरित्र (Values, Principles, Intentions, Character)
प्रकृति (Nature) तकनीकी और प्रक्रियात्मक (Technical and Procedural) दार्शनिक और मूल्यात्मक (Philosophical and Evaluative)
उदाहरण (Example) एक तेज़ और कुशल ऑनलाइन टैक्स फाइलिंग प्रणाली। एक टैक्स अधिकारी जो किसी भी तरह के दबाव या प्रलोभन के बावजूद निष्पक्ष रूप से अपना कर्तव्य निभाता है।
अंतिम लक्ष्य (Ultimate Goal) एक प्रभावी और कुशल सरकार। (An effective and efficient government) एक न्यायपूर्ण, भरोसेमंद और मानवीय सरकार। (A just, trustworthy, and humane government)

संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि सभी नैतिक शासन, सुशासन होते हैं, लेकिन सभी सुशासन आवश्यक रूप से नैतिक शासन नहीं हो सकते। एक सरकार तकनीकी रूप से बहुत कुशल हो सकती है, लेकिन अगर उसके नेता और अधिकारी भ्रष्ट और अनैतिक हैं, तो उसे नैतिक शासन नहीं कहा जा सकता। नैतिक शासन, सुशासन की अवधारणा को एक उच्च स्तर पर ले जाता है, जहाँ ‘सही काम करने’ के साथ-साथ ‘काम को सही तरीके से करना’ भी समान रूप से महत्वपूर्ण होता है।

5. नैतिक शासन को लागू करने की राह में चुनौतियाँ (Challenges in the Path of Implementing Ethical Governance)

नैतिक शासन की अवधारणा सुनने में जितनी आकर्षक लगती है, इसे धरातल पर उतारना उतना ही मुश्किल है। दुनिया भर की सरकारें, विशेषकर विकासशील देशों में, इसे लागू करने में कई गंभीर चुनौतियों का सामना करती हैं। इन चुनौतियों को समझना उन्हें दूर करने के लिए रणनीति बनाने की दिशा में पहला कदम है।

व्यापक भ्रष्टाचार (Widespread Corruption)

भ्रष्टाचार नैतिक शासन के लिए सबसे बड़ा दीमक है। यह शासन की नींव को खोखला कर देता है और जनता के विश्वास को नष्ट कर देता है। भ्रष्टाचार कई रूपों में मौजूद है, जैसे रिश्वतखोरी, भाई-भतीजावाद (nepotism), और सरकारी संसाधनों का गबन।

  • प्रणालीगत भ्रष्टाचार (Systemic Corruption): जब भ्रष्टाचार व्यवस्था का एक हिस्सा बन जाता है, তো اسے ختم کرنا بہت مشکل हो जाता है। यह अक्सर निचले स्तर से लेकर उच्चतम स्तर तक फैला होता है।
  • प्रभाव: भ्रष्टाचार के कारण सरकारी योजनाओं का लाभ सही लोगों तक नहीं पहुँच पाता, सार्वजनिक परियोजनाओं की गुणवत्ता गिर जाती है, और देश का आर्थिक विकास बाधित होता है। यह नैतिक शासन के हर सिद्धांत का उल्लंघन करता है।

लालफीताशाही और जटिल प्रक्रियाएँ (Red Tapism and Complex Procedures)

लालफीताशाही का अर्थ है अत्यधिक नियम, विनियम और जटिल प्रशासनिक प्रक्रियाएँ, जो किसी भी काम को समय पर पूरा होने में बाधा डालती हैं। यह न केवल अक्षमता को जन्म देती है, बल्कि भ्रष्टाचार के लिए अवसर भी पैदा करती है।

  • अनावश्यक देरी: जब प्रक्रियाएं जटिल होती हैं, तो अधिकारी जानबूझकर फाइलों को रोककर या प्रक्रिया को और भी जटिल बनाकर रिश्वत की मांग कर सकते हैं।
  • नागरिकों की हताशा: आम नागरिक इन जटिल प्रक्रियाओं में उलझकर रह जाता है, जिससे उसका सरकारी प्रणाली से मोहभंग हो जाता है। यह नैतिक शासन के एक प्रमुख लक्ष्य – नागरिक-अनुकूल प्रशासन (citizen-friendly administration) – के विपरीत है।

राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी (Lack of Political Will)

नैतिक शासन को स्थापित करने के लिए मजबूत और निरंतर राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। अक्सर, राजनेता सुधारों को लागू करने से हिचकिचाते हैं क्योंकि इससे उनके निहित स्वार्थों (vested interests) को नुकसान पहुँच सकता है।

  • चुनावी राजनीति का दबाव: कई बार राजनेता दीर्घकालिक सुधारों के बजाय अल्पकालिक चुनावी लाभों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • अपराध का राजनीतिकरण: राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों का प्रवेश नैतिक शासन के लिए एक गंभीर खतरा है। ऐसे नेता नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देने के बजाय व्यवस्था का दुरुपयोग करने की अधिक संभावना रखते हैं।
  • बिना मजबूत राजनीतिक समर्थन के, नैतिक सुधार केवल कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं।

नागरिकों में जागरूकता और भागीदारी का अभाव (Lack of Awareness and Participation among Citizens)

एक लोकतंत्र में, नागरिक सरकार पर जवाबदेही का दबाव बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हालांकि, यदि नागरिक अपने अधिकारों और सरकार की जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक नहीं हैं, तो वे यह भूमिका प्रभावी ढंग से नहीं निभा सकते।

  • उदासीनता: भ्रष्टाचार और खराब शासन के प्रति एक हद तक सामाजिक स्वीकृति या उदासीनता की भावना भी एक बड़ी चुनौती है।
  • सूचना की कमी: दूर-दराज के और वंचित समुदायों तक अक्सर उनके अधिकारों और सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी नहीं पहुँच पाती है।
  • सक्रिय नागरिकता का अभाव: जब तक नागरिक स्वयं नैतिक शासन की मांग नहीं करेंगे और इसके लिए सक्रिय रूप से प्रयास नहीं करेंगे, तब तक केवल सरकार के प्रयासों से इसे हासिल करना मुश्किल है।

चुनौतियों का विश्लेषण (Analysis of Challenges)

इन चुनौतियों का एक संतुलित विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है। जहाँ एक ओर ये बाधाएँ गंभीर हैं, वहीं दूसरी ओर कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं जो उम्मीद जगाते हैं।

  • सकारात्मक पहलू (Pros / Sakaratmaka Pahlu):
    • भारत जैसे देशों में एक मजबूत और स्वतंत्र न्यायपालिका है, जो कई बार सरकार को जवाबदेह ठहराती है।
    • एक स्वतंत्र मीडिया और एक जीवंत नागरिक समाज है, जो भ्रष्टाचार और कुशासन के मामलों को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • सूचना का अधिकार (RTI) और लोकपाल जैसे कानूनी और संस्थागत ढांचे मौजूद हैं, जो नैतिक शासन को बढ़ावा देने के लिए उपकरण प्रदान करते हैं।
    • डिजिटलीकरण और ई-गवर्नेंस की बढ़ती स्वीकार्यता से पारदर्शिता बढ़ाने और भ्रष्टाचार को कम करने की अपार संभावनाएं हैं।
  • नकारात्मक पहलू (Cons / Nakaratmaka Pahlu):
    • मौजूदा कानूनों का कार्यान्वयन अक्सर कमजोर होता है। कानून बनाना एक बात है, और उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करना दूसरी।
    • संस्थाएं (जैसे जांच एजेंसियां) अक्सर राजनीतिक दबाव में काम करती हैं, जिससे उनकी निष्पक्षता और प्रभावशीलता कम हो जाती है।
    • राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर गहरे तक समाया हुआ भ्रष्टाचार एक दुष्चक्र बनाता है जिसे तोड़ना मुश्किल है।
    • सामाजिक-आर्थिक असमानता (socio-economic inequality) बहुत अधिक है, जिससे वंचित वर्ग के लिए न्याय और अपने अधिकारों तक पहुँचना और भी मुश्किल हो जाता है।

6. नैतिक शासन को बढ़ावा देने के प्रभावी उपाय (Effective Measures to Promote Ethical Governance)

चुनौतियाँ गंभीर हैं, लेकिन निराशाजनक नहीं। नैतिक शासन के आदर्श को प्राप्त करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सरकार, नागरिक समाज और आम नागरिकों, सभी की भागीदारी हो। यहाँ कुछ प्रभावी उपाय दिए गए हैं जो इस दिशा में सहायक हो सकते हैं।

प्रौद्योगिकी और ई-गवर्नेंस का उपयोग (Use of Technology and E-Governance)

प्रौद्योगिकी नैतिक शासन को बढ़ावा देने में एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में उभरी है। यह प्रक्रियाओं को सरल बना सकती है, पारदर्शिता बढ़ा सकती है और मानवीय हस्तक्षेप को कम कर सकती है, जिससे भ्रष्टाचार के अवसर कम होते हैं।

  • डिजिटल सेवाएँ: जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, टैक्स फाइलिंग जैसी सेवाओं को ऑनलाइन करने से नागरिकों को सरकारी दफ्तरों के चक्कर नहीं काटने पड़ते और प्रक्रिया पारदर्शी हो जाती है।
  • डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT): सरकारी योजनाओं की सब्सिडी और लाभ सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में भेजने से बिचौलियों की भूमिका समाप्त हो जाती है और लीकेज रुकता है।
  • सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता: सरकारी निविदाओं (tenders) और खरीद को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म (जैसे Government e-Marketplace – GeM) पर लाने से कार्टेल और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगता है। ई-गवर्नेंस वास्तव में स्मार्ट-गवर्नेंस है, जो नैतिक शासन की नींव को मजबूत करता है।

कानूनी और संस्थागत ढांचे को मजबूत करना (Strengthening Legal and Institutional Frameworks)

मजबूत कानून और निष्पक्ष संस्थान नैतिक शासन के लिए रीढ़ की हड्डी के समान हैं। मौजूदा कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करना और संस्थानों को स्वायत्तता प्रदान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

  • लोकपाल और लोकायुक्त: इन भ्रष्टाचार विरोधी संस्थाओं को वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्तता के साथ और अधिक सशक्त बनाने की आवश्यकता है ताकि वे बिना किसी डर या पक्षपात के काम कर सकें।
  • व्हिसलब्लोअर संरक्षण अधिनियम (Whistleblower Protection Act): भ्रष्टाचार को उजागर करने वालों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करना आवश्यक है ताकि अधिक से अधिक लोग आगे आने के लिए प्रोत्साहित हों।
  • न्यायिक सुधार: मामलों के त्वरित निपटान के लिए न्यायपालिका में सुधार करना भी आवश्यक है, क्योंकि “देर से मिला न्याय, न्याय नहीं है।”
  • भारत के सूचना का अधिकार पोर्टल जैसे उपकरण नागरिकों को सशक्त बनाते हैं और कानूनी ढांचे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।

लोक सेवकों में नैतिक मूल्यों का विकास (Developing Ethical Values in Public Servants)

नियम और कानून केवल बाहरी नियंत्रण प्रदान कर सकते हैं, जबकि असली बदलाव तब आता है जब लोक सेवक आंतरिक रूप से नैतिक मूल्यों से प्रेरित हों। इसके लिए प्रशिक्षण और संस्कृति में बदलाव की आवश्यकता है।

  • नैतिकता पर प्रशिक्षण: सिविल सेवकों के प्रशिक्षण मॉड्यूल में नैतिकता, सत्यनिष्ठा और सार्वजनिक सेवा की भावना पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए।
  • प्रदर्शन का मूल्यांकन: अधिकारियों के प्रदर्शन का मूल्यांकन केवल लक्ष्यों को प्राप्त करने के आधार पर नहीं, बल्कि उनके नैतिक आचरण के आधार पर भी किया जाना चाहिए।
  • ईमानदारी को पुरस्कृत करना: ईमानदार और सत्यनिष्ठ अधिकारियों को पहचानना और उन्हें पुरस्कृत करना एक सकारात्मक संस्कृति का निर्माण करता है, जो दूसरों को भी प्रेरित करती है। एक नैतिक लोक सेवक नैतिक शासन का सबसे महत्वपूर्ण वाहक होता है।

नागरिक समाज और मीडिया की सक्रिय भूमिका (Active Role of Civil Society and Media)

एक सतर्क नागरिक समाज और एक स्वतंत्र मीडिया सरकार पर नजर रखने वाले (watchdog) के रूप में कार्य करते हैं। वे सरकार को जवाबदेह बनाने और नैतिक शासन की मांग करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  • जागरूकता अभियान: नागरिक समाज संगठन (CSOs) नागरिकों को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित कर सकते हैं और उन्हें सरकारी योजनाओं की निगरानी के लिए संगठित कर सकते हैं।
  • खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism): मीडिया भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग के मामलों को उजागर करके जनता की राय बना सकता है और सरकार पर कार्रवाई के लिए दबाव डाल सकता है।
  • सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit): यह एक प्रक्रिया है जिसमें स्थानीय समुदाय के लोग सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन की जांच करते हैं। यह जमीनी स्तर पर पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक शक्तिशाली तरीका है।

7. भारत में नैतिक शासन की वर्तमान स्थिति: एक विस्तृत विश्लेषण (The Current State of Ethical Governance in India: A Detailed Analysis)

भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, नैतिक शासन की स्थापना की दिशा में एक जटिल और निरंतर यात्रा पर है। यहाँ की तस्वीर विरोधाभासों से भरी है – एक तरफ जहाँ प्रगति के स्पष्ट संकेत हैं, वहीं दूसरी तरफ गहरी जड़ें जमाए हुए चुनौतियाँ भी मौजूद हैं। एक संतुलित दृष्टिकोण से भारत में नैतिक शासन की स्थिति का विश्लेषण करना आवश्यक है।

सकारात्मक पहल और सफलताएँ (Positive Initiatives and Successes)

पिछले कुछ दशकों में, भारत ने नैतिक शासन को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, जिनके सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं।

  • कानूनी ढांचा: सूचना का अधिकार अधिनियम (2005) ने शासन में पारदर्शिता लाने में क्रांति ला दी है। लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम (2013) ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक संस्थागत तंत्र प्रदान किया है। इसके अतिरिक्त, केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) जैसी एजेंसियां भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए काम कर रही हैं।
  • ई-गवर्नेंस का विस्तार: ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम के तहत, कई सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन किया गया है। MyGov.in जैसे प्लेटफॉर्म नागरिकों को नीति-निर्माण में अपनी राय देने का अवसर प्रदान करते हैं। GeM (Government e-Marketplace) ने सरकारी खरीद में पारदर्शिता बढ़ाई है।
  • न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism): भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने समय-समय पर जनहित याचिकाओं (PILs) के माध्यम से शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, चाहे वह पर्यावरण संरक्षण का मामला हो या चुनावी सुधारों का।
  • सक्रिय नागरिक समाज: भारत में एक बहुत ही जीवंत और सक्रिय नागरिक समाज है, जो मानवाधिकारों, पारदर्शिता और जवाबदेही के मुद्दों पर लगातार सरकार से सवाल करता है और सुधारों के लिए दबाव बनाता है।

मौजूदा चुनौतियाँ और कमजोरियाँ (Existing Challenges and Weaknesses)

इन सफलताओं के बावजूद, नैतिक शासन की राह में अभी भी कई बड़ी बाधाएँ हैं, जो प्रगति की गति को धीमा कर देती हैं।

  • कार्यान्वयन की खाई (Implementation Gap): भारत में कानूनों और नीतियों की कोई कमी नहीं है, लेकिन उनके कमजोर कार्यान्वयन एक बड़ी समस्या है। RTI कानून के बावजूद, कई बार जानकारी समय पर नहीं दी जाती या अधूरी दी जाती है।
  • राजनीतिक भ्रष्टाचार और चुनाव: चुनावी प्रक्रिया में धन-बल का बढ़ता प्रयोग और राजनीति का अपराधीकरण नैतिक शासन की जड़ों पर प्रहार करता है। चुनावी बॉन्ड (electoral bonds) जैसी योजनाओं की पारदर्शिता पर भी सवाल उठाए गए हैं।
  • संस्थाओं की स्वायत्तता पर प्रश्न: CBI, ED जैसी जांच एजेंसियों की स्वायत्तता पर अक्सर सवाल उठते रहे हैं। यह आरोप लगाया जाता है कि सरकारें इन एजेंसियों का उपयोग राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए करती हैं, जिससे उनकी विश्वसनीयता कम होती है।
  • जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार: बड़े घोटालों के अलावा, आम नागरिक को आज भी रोजमर्रा के कामों, जैसे राशन कार्ड बनवाने या पुलिस वेरिफिकेशन के लिए छोटे स्तर पर भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है, जो उसके जीवन को सीधे प्रभावित करता है।

भारत में नैतिक शासन की स्थिति का समग्र विश्लेषण (Overall Analysis of the State of Ethical Governance in India)

भारत में नैतिक शासन की स्थिति का विश्लेषण करते समय, हमें एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाना होगा। यह एक ऐसी लड़ाई है जो कई मोर्चों पर एक साथ लड़ी जा रही है।

  • सकारात्मक पहलू (Pros / Sakaratmaka Pahlu):
    • लोकतांत्रिक मूल्य (democratic values) देश की राजनीति और समाज में गहराई से निहित हैं। नियमित चुनाव, स्वतंत्र प्रेस और मौलिक अधिकार एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं।
    • तकनीकी प्रगति और युवा आबादी में बढ़ती जागरूकता भविष्य के लिए आशा जगाती है। युवा पीढ़ी भ्रष्टाचार के प्रति अधिक असहिष्णु है और बदलाव की मांग कर रही है।
    • पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से शासन का विकेंद्रीकरण, यदि सही भावना से लागू किया जाए, तो जमीनी स्तर पर भागीदारी और जवाबदेही बढ़ा सकता है।
  • नकारात्मक पहलू (Cons / Nakaratmaka Pahlu):
    • प्रशासनिक और पुलिस सुधार लंबे समय से लंबित हैं। पुरानी औपनिवेशिक मानसिकता अभी भी नौकरशाही में मौजूद है, जो उन्हें जनता के ‘सेवक’ के बजाय ‘मालिक’ बनाती है।
    • न्यायिक प्रक्रिया बहुत धीमी और महंगी है, जिससे आम आदमी के लिए न्याय पाना मुश्किल हो जाता है।
    • सामाजिक असमानता, गरीबी और अशिक्षा नागरिकों को अपने अधिकारों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने से रोकती है, जिससे वे शोषण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
    • अंतिम विश्लेषण में, भारत में नैतिक शासन की स्थिति एक ‘कार्य प्रगति पर है’ (work in progress) जैसी है। नींव रखी जा चुकी है, कुछ दीवारें भी खड़ी हो गई हैं, लेकिन छत डालना और इसे एक सुंदर घर बनाना अभी बाकी है।

निष्कर्ष: क्या नैतिक शासन सचमुच एक सपना है? (Conclusion: Is Ethical Governance Truly a Dream?)

इस विस्तृत चर्चा के बाद, हम अपने शुरुआती सवाल पर लौटते हैं: क्या नैतिक शासन सिर्फ एक सपना है, एक आदर्शवादी कल्पना जिसे कभी हासिल नहीं किया जा सकता? इसका उत्तर सरल हां या ना में नहीं है। यदि हम पूर्ण, शत-प्रतिशत नैतिक शासन की बात करें, जहाँ कोई भ्रष्टाचार न हो, हर अधिकारी पूरी तरह से ईमानदार हो, और हर नागरिक पूरी तरह से संतुष्ट हो, तो शायद यह एक सपने जैसा लग सकता है। मानवीय स्वभाव की कमजोरियों और सामाजिक-राजनीतिक प्रणालियों की जटिलताओं को देखते हुए, पूर्णता एक मायावी लक्ष्य है।

लेकिन, अगर हम नैतिक शासन को एक सपने के बजाय एक निरंतर यात्रा के रूप में देखें, एक लक्ष्य जिसके দিকে हमें लगातार बढ़ना है, तो यह बिल्कुल भी असंभव नहीं है। यह एक दिशा है, एक मंजिल नहीं। हर RTI आवेदन जो एक छिपी हुई सच्चाई को उजागर करता है, हर ईमानदार अधिकारी जो प्रलोभन को ठुकराता है, हर नागरिक जो रिश्वत देने से इनकार करता है, और हर चुनाव जिसमें विकास और ईमानदारी के मुद्दे पर मतदान होता है, वह हमें नैतिक शासन के लक्ष्य के एक कदम और करीब ले जाता है।

नैतिक शासन एक सपना नहीं, बल्कि एक सामूहिक जिम्मेदारी है। यह केवल सरकार का काम नहीं है, बल्कि यह हम सभी की जिम्मेदारी है – नागरिक के रूप में, मतदाता के रूप में, और समाज के सदस्य के रूप में। प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग, बढ़ती जागरूकता और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में गहरी होती आस्था के साथ, हमारे पास इस यात्रा को आगे बढ़ाने के लिए पहले से कहीं बेहतर उपकरण हैं। चुनौती बड़ी है, रास्ता लंबा है, लेकिन दिशा स्पष्ट है। रमेश जैसे लाखों नागरिकों के लिए एक निष्पक्ष, पारदर्शी और सम्मानजनक व्यवस्था का निर्माण करना एक ऐसा लक्ष्य है जिसके लिए प्रयास करना सार्थक है। इसलिए, नैतिक शासन को एक दूर का सपना मानकर निराश होने के बजाय, इसे एक प्राप्य आदर्श के रूप में देखना चाहिए जिसके लिए निरंतर संघर्ष और प्रतिबद्धता की आवश्यकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. नैतिक शासन और कॉर्पोरेट गवर्नेंस में क्या अंतर है? (What is the difference between Ethical Governance and Corporate Governance?)

नैतिक शासन (Ethical Governance) एक व्यापक अवधारणा है जो मुख्य रूप से सार्वजनिक क्षेत्र, यानी सरकार और उसके संस्थानों पर लागू होती है। इसका लक्ष्य लोक कल्याण और सार्वजनिक हित सुनिश्चित करना है। वहीं, कॉर्पोरेट गवर्नेंस (Corporate Governance) निजी क्षेत्र की कंपनियों के संचालन से संबंधित है। इसका मुख्य उद्देश्य शेयरधारकों (shareholders) के हितों की रक्षा करना, कंपनी के मुनाफे को बढ़ाना और बाजार में विश्वास बनाए रखना है, हालांकि इसमें भी नैतिक आचरण और पारदर्शिता के तत्व शामिल होते हैं।

2. एक आम नागरिक नैतिक शासन को बढ़ावा देने में कैसे योगदान दे सकता है? (How can a common citizen contribute to promoting ethical governance?)

एक आम नागरिक कई तरीकों से योगदान दे सकता है:

  • जागरूक बनें: अपने अधिकारों और सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी रखें।
  • कानूनों का पालन करें: खुद रिश्वत देने या किसी भी भ्रष्ट आचरण में शामिल होने से बचें।
  • RTI का उपयोग करें: सरकारी कामकाज के बारे में जानकारी मांगने के लिए सूचना का अधिकार का उपयोग करें।
  • मतदान करें: सोच-समझकर और ईमानदार छवि वाले उम्मीदवारों को वोट दें।
  • आवाज उठाएं: सोशल मीडिया या स्थानीय समूहों के माध्यम से कुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाएं।

3. क्या प्रौद्योगिकी नैतिक शासन की सभी समस्याओं का समाधान कर सकती है? (Can technology solve all the problems of ethical governance?)

नहीं, प्रौद्योगिकी एक बहुत शक्तिशाली उपकरण है लेकिन यह सभी समस्याओं का समाधान नहीं है। यह पारदर्शिता बढ़ा सकती है और भ्रष्टाचार के अवसरों को कम कर सकती है, लेकिन यह मानवीय इरादे, लालच या नैतिक मूल्यों की कमी को प्रतिस्थापित नहीं कर सकती। नैतिक शासन के लिए प्रौद्योगिकी के साथ-साथ मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति, नैतिक नेतृत्व और एक जागरूक नागरिक समाज की भी आवश्यकता होती है। प्रौद्योगिकी केवल एक साधन है, साध्य नहीं।

4. ‘द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग’ (Second ARC) ने शासन में नैतिकता पर क्या सिफारिशें दी थीं? (What were the recommendations of the Second ARC on ethics in governance?)

द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने अपनी चौथी रिपोर्ट ‘शासन में नैतिकता’ (Ethics in Governance) में कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की थीं। कुछ प्रमुख सिफारिशों में शामिल हैं: मंत्रियों के लिए आचार संहिता बनाना, लोकपाल की स्थापना, व्हिसलब्लोअर की सुरक्षा के लिए एक मजबूत कानून बनाना, सरकारी अनुबंधों में पारदर्शिता सुनिश्चित करना और सिविल सेवकों के लिए नैतिक ढांचे को मजबूत करना। इन सिफारिशों ने भारत में नैतिक शासन पर बहस को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है।

5. क्या नैतिक शासन केवल लोकतंत्र में ही संभव है? (Is ethical governance possible only in a democracy?)

हालांकि लोकतंत्र अपने अंतर्निहित सिद्धांतों जैसे जवाबदेही, पारदर्शिता और जन-भागीदारी के कारण नैतिक शासन के लिए सबसे अनुकूल वातावरण प्रदान करता है, लेकिन यह केवल लोकतंत्र तक ही सीमित नहीं है। सैद्धांतिक रूप से, किसी भी शासन प्रणाली में नैतिक सिद्धांत लागू किए जा सकते हैं। एक प्रबुद्ध राजशाही या एक ईमानदार नौकरशाही भी नैतिक रूप से काम कर सकती है। हालांकि, व्यवहार में, लोकतांत्रिक प्रणालियों में नागरिकों के पास सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए जो संस्थागत तंत्र (जैसे चुनाव, स्वतंत्र प्रेस, न्यायपालिका) होते हैं, वे अन्य प्रणालियों में अक्सर मौजूद नहीं होते, जिससे वहां नैतिक शासन को बनाए रखना अधिक कठिन हो जाता है।

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