सुशासन का रहस्य जानें (Secret of Governance)
सुशासन का रहस्य जानें (Secret of Governance)

सुशासन का रहस्य जानें (Secret of Governance)

इस लेख में आप क्या सीखेंगे? (What will you learn in this article?)

एक छोटे से गाँव में रहने वाले रमेश को अपनी बेटी के स्कूल में दाखिले के लिए जन्म प्रमाण पत्र की तत्काल आवश्यकता थी। उसे याद था कि कुछ साल पहले जब उसके बड़े बेटे का प्रमाण पत्र बनवाना था, तो उसे कई हफ्तों तक सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़े थे, हर टेबल पर छोटी-छोटी रिश्वतें देनी पड़ी थीं और अंत में जाकर बड़ी मुश्किल से काम हुआ था। इस बार वह उसी बुरे अनुभव के लिए मानसिक रूप से तैयार था। लेकिन जब वह पंचायत कार्यालय पहुँचा, तो उसने देखा कि सब कुछ बदल गया था। एक ‘सेवा केंद्र’ काउंटर पर एक युवा कर्मचारी ने उसका आवेदन ऑनलाइन भरा, जरूरी दस्तावेज स्कैन किए और उसे एक रसीद दे दी। उसे बताया गया कि प्रमाण पत्र 7 दिनों के भीतर उसके मोबाइल पर आ जाएगा और वह उसे डाउनलोड कर सकता है। ठीक 5 दिन बाद, उसके फोन पर एक संदेश आया और उसने आसानी से प्रमाण पत्र डाउनलोड कर लिया। यह चमत्कार कैसे हुआ? यह चमत्कार ही सुशासन की शक्ति का एक छोटा सा उदाहरण है। यह कहानी सिर्फ रमेश की नहीं, बल्कि उन करोड़ों भारतीयों की है जिन्होंने शासन के तरीके में सकारात्मक बदलाव महसूस किया है।

शासन (Governance) केवल सरकार चलाने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह वह तरीका है जिससे समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों को हल किया जाता है, निर्णय लिए जाते हैं और नागरिकों के जीवन को बेहतर बनाया जाता है। लेकिन जब यह प्रक्रिया पारदर्शी, जवाबदेह, कुशल और जन-केंद्रित हो जाती है, तो यह ‘शासन’ से ‘सुशासन’ में बदल जाती है। सुशासन का लक्ष्य केवल नियम और कानून बनाना नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करना है कि विकास का लाभ समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे। आज के इस विस्तृत लेख में, हम सुशासन के इसी रहस्य को परत-दर-परत खोलेंगे और समझेंगे कि यह किसी भी देश के विकास और नागरिकों की खुशहाली के लिए क्यों अनिवार्य है।

1. शासन और सुशासन: एक विस्तृत परिचय (Governance and Good Governance: A Detailed Introduction)

शासन का अर्थ क्या है? (What is the meaning of Governance?)

शासन एक व्यापक अवधारणा है जिसमें वे सभी प्रक्रियाएँ, संस्थाएँ और तंत्र शामिल हैं जिनके माध्यम से किसी देश या संगठन का प्रबंधन और नियंत्रण किया जाता है। यह केवल सरकार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें निजी क्षेत्र और नागरिक समाज (civil society) की भी भूमिका होती है।

  • निर्णय लेना: शासन में यह तय किया जाता है कि कौन से निर्णय लिए जाएँगे और उन्हें कौन लेगा।
  • क्रियान्वयन: लिए गए निर्णयों को कैसे लागू किया जाएगा, यह भी शासन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
  • संसाधनों का प्रबंधन: इसमें देश के आर्थिक, सामाजिक और प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन शामिल है।
  • शक्ति का प्रयोग: शासन यह भी निर्धारित करता है कि शक्ति का प्रयोग कैसे और किसके द्वारा किया जाएगा। संक्षेप में, शासन वह “कैसे” है जिसके द्वारा एक समाज खुद को व्यवस्थित करता है।

फिर, सुशासन क्या है? (Then, what is Good Governance?)

सुशासन, शासन का वह आदर्श रूप है जो नैतिक, पारदर्शी, जवाबदेह और जन-भागीदारी पर आधारित होता है। यह सुनिश्चित करता है कि शासन की प्रक्रियाएँ न केवल कुशल हैं, बल्कि न्यायपूर्ण और समावेशी भी हैं। विश्व बैंक (World Bank) के अनुसार, सुशासन का अर्थ है कि “विकास के लिए किसी देश के आर्थिक और सामाजिक संसाधनों के प्रबंधन में शक्ति का प्रयोग कैसे किया जाता है।”

  • यह ‘सही काम’ करने के बारे में है: सुशासन केवल काम करने के बारे में नहीं है, बल्कि सही तरीके से सही काम करने के बारे में है।
  • मानवाधिकारों का सम्मान: यह मानवाधिकारों की रक्षा करता है और कानून के शासन को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है।
  • भ्रष्टाचार मुक्त प्रणाली: एक प्रभावी सुशासन प्रणाली में भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहीं होती।
  • नागरिक-केंद्रित दृष्टिकोण: सुशासन का केंद्र बिंदु हमेशा देश के नागरिक होते हैं। उनकी जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करना ही इसका अंतिम लक्ष्य है।

शासन और सुशासन में मुख्य अंतर (Key Difference between Governance and Good Governance)

शासन और सुशासन के बीच का अंतर गुणवत्ता और नैतिकता का है। हर देश में किसी न किसी रूप में ‘शासन’ होता है, लेकिन हर देश में ‘सुशासन’ हो, यह आवश्यक नहीं है।

  • प्रक्रिया बनाम परिणाम: शासन एक प्रक्रिया है, जबकि सुशासन एक सकारात्मक परिणाम-उन्मुख प्रक्रिया है।
  • शक्ति बनाम सेवा: जहाँ सामान्य शासन अक्सर शक्ति के प्रदर्शन पर केंद्रित हो सकता है, वहीं सुशासन का केंद्र सेवा की भावना है।
  • अनदेखी बनाम जवाबदेही: सामान्य शासन में अक्सर जवाबदेही की कमी हो सकती है, जबकि जवाबदेही सुशासन की आत्मा है।
  • अपारदर्शिता बनाम पारदर्शिता: शासन की प्रक्रियाएँ छिपी हो सकती हैं, लेकिन सुशासन में पारदर्शिता एक अनिवार्य शर्त है। यह अंतर समझना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यही एक तानाशाही और एक लोकतंत्र के बीच मूलभूत अंतर को स्पष्ट करता है।

2. सुशासन का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Historical Perspective of Good Governance)

प्राचीन भारत में सुशासन के सूत्र (Threads of Good Governance in Ancient India)

भारत में सुशासन की अवधारणा कोई नई नहीं है। इसके बीज हमारे प्राचीन ग्रंथों और दर्शन में गहरे समाए हुए हैं। हजारों साल पहले, हमारे मनीषियों ने एक आदर्श राज्य और एक आदर्श शासक के कर्तव्यों को परिभाषित किया था, जो आज भी प्रासंगिक हैं।

  • कौटिल्य का ‘अर्थशास्त्र’: चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में आचार्य चाणक्य (कौटिल्य) द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ सुशासन पर लिखा गया दुनिया का सबसे प्राचीन और विस्तृत ग्रंथ माना जाता है। इसमें उन्होंने एक राजा के कर्तव्यों, कर प्रणाली, न्याय व्यवस्था और लोक कल्याण (public welfare) की नीतियों पर विस्तार से चर्चा की है। उनका प्रसिद्ध कथन “प्रजा सुखे सुखं राज्ञः प्रजानां च हिते हितम्” (प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है और प्रजा के हित में ही उसका हित है) सुशासन का मूल मंत्र है।
  • रामराज्य की अवधारणा: रामायण में वर्णित ‘रामराज्य’ की अवधारणा एक आदर्श शासन व्यवस्था का प्रतीक है, जहाँ कोई दुखी या गरीब नहीं था, और न्याय सर्वोपरि था। यह आज भी भारत में सुशासन के लिए एक मानक के रूप में देखा जाता है।
  • अशोक का ‘धम्म’: सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद ‘धम्म’ (नैतिक कानून) के माध्यम से शासन चलाया, जो शांति, सहिष्णुता और प्रजा के नैतिक उत्थान पर आधारित था। उनके शिलालेख आज भी सुशासन के सिद्धांतों का प्रचार करते हैं।

वैश्विक स्तर पर सुशासन की अवधारणा का विकास (Development of the Concept of Good Governance Globally)

आधुनिक समय में, ‘सुशासन’ शब्द 1980 के दशक के अंत और 1990 की शुरुआत में वैश्विक पटल पर प्रमुखता से उभरा। इसके विकास में अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

  • विश्व बैंक की भूमिका: 1989 में, विश्व बैंक ने उप-सहारा अफ्रीका में आर्थिक संकट पर अपनी एक रिपोर्ट में पहली बार ‘शासन का संकट’ (crisis in governance) शब्द का इस्तेमाल किया। बैंक ने महसूस किया कि केवल वित्तीय सहायता देना पर्याप्त नहीं है, जब तक कि उन देशों में शासन की गुणवत्ता में सुधार न हो। यहीं से ‘सुशासन’ को विकास की एक पूर्व-शर्त के रूप में देखा जाने लगा।
  • संयुक्त राष्ट्र का योगदान: संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने सुशासन को मानवाधिकारों और सतत विकास (sustainable development) से जोड़ा। UNDP ने सुशासन को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जिसमें नागरिक और समूह अपने हितों को व्यक्त करते हैं, अपने कानूनी अधिकारों का प्रयोग करते हैं, अपने दायित्वों को पूरा करते हैं और अपने मतभेदों को सुलझाते हैं।
  • लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रसार: 20वीं सदी के अंत में शीत युद्ध की समाप्ति और दुनिया भर में लोकतांत्रिक लहर ने भी सुशासन की अवधारणा को बल दिया, क्योंकि लोकतंत्र के मूल सिद्धांत – पारदर्शिता, जवाबदेही और भागीदारी – सुशासन के भी मूल तत्व हैं।

3. सुशासन के 8 प्रमुख स्तंभ (The 8 Major Pillars of Good Governance)

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, सुशासन 8 प्रमुख सिद्धांतों या स्तंभों पर टिका है। ये स्तंभ मिलकर एक ऐसी शासन प्रणाली का निर्माण करते हैं जो कुशल, न्यायपूर्ण और टिकाऊ हो। आइए, इन सभी स्तंभों को विस्तार से समझते हैं, क्योंकि यही सुशासन का वास्तविक रहस्य हैं।

1. भागीदारी (Participation)

भागीदारी का अर्थ है कि शासन की प्रक्रिया में हर व्यक्ति को अपनी राय व्यक्त करने का अवसर मिले। यह केवल वोट देने तक सीमित नहीं है, बल्कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में नागरिकों की सीधी या अप्रत्यक्ष भागीदारी सुनिश्चित करना है।

  • प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भागीदारी: नागरिक अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के माध्यम से (अप्रत्यक्ष) या सीधे ग्राम सभा जैसी संस्थाओं के माध्यम से (प्रत्यक्ष) शासन में भाग ले सकते हैं।
  • स्वतंत्रता की गारंटी: भागीदारी के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संघ बनाने की स्वतंत्रता आवश्यक है। जब लोग बिना किसी डर के बोल सकते हैं, तभी वे प्रभावी रूप से भाग ले सकते हैं।
  • समावेशिता: सुशासन यह सुनिश्चित करता है कि समाज के सबसे कमजोर और हाशिए पर पड़े वर्गों (जैसे महिलाएं, गरीब, अल्पसंख्यक) की आवाज भी सुनी जाए और उन्हें निर्णय प्रक्रिया में शामिल किया जाए।

2. कानून का शासन (Rule of Law)

कानून के शासन का अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं है। कानून सभी पर समान रूप से लागू होता है और न्याय प्रणाली निष्पक्ष और स्वतंत्र होती है।

  • निष्पक्ष कानूनी ढाँचा: कानून निष्पक्ष होने चाहिए और उन्हें बिना किसी भेदभाव के लागू किया जाना चाहिए।
  • स्वतंत्र न्यायपालिका: एक स्वतंत्र और निडर न्यायपालिका कानून के शासन की रक्षा करती है और यह सुनिश्चित करती है कि सरकार भी कानून के दायरे में रहकर काम करे।
  • मानवाधिकारों की सुरक्षा: सुशासन में मानवाधिकारों, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों के अधिकारों की पूर्ण सुरक्षा की जाती है।
  • पुलिस और प्रशासन की जवाबदेही: कानून लागू करने वाली एजेंसियां जैसे पुलिस को भी कानून के प्रति जवाबदेह होना चाहिए।

3. पारदर्शिता (Transparency)

पारदर्शिता का अर्थ है कि सरकार द्वारा लिए गए निर्णय और उनके कार्यान्वयन की प्रक्रिया आम जनता के लिए खुली हो। सूचना तक आसान और सुलभ पहुँच पारदर्शिता का मूल है।

  • सूचना की सुलभता: नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार क्या कर रही है, निर्णय क्यों लिए जा रहे हैं और सार्वजनिक धन (public money) कहाँ खर्च हो रहा है।
  • खुले नियम और प्रक्रियाएँ: सरकारी कामकाज के नियम, कानून और प्रक्रियाएँ सरल, स्पष्ट और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होनी चाहिए।
  • मीडिया की स्वतंत्रता: एक स्वतंत्र और जिम्मेदार मीडिया पारदर्शिता सुनिश्चित करने और सरकार को जवाबदेह ठहराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • भ्रष्टाचार पर रोक: जब चीजें पारदर्शी होती हैं, तो भ्रष्टाचार की गुंजाइश अपने आप कम हो जाती है। यही कारण है कि भारत में सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम सुशासन की दिशा में एक मील का पत्थर माना जाता है।

4. जवाबदेही (Accountability)

जवाबदेही, पारदर्शिता का अगला कदम है। इसका मतलब है कि सरकारी संस्थान, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज संगठन अपने निर्णयों और कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी हैं। यदि वे कुछ गलत करते हैं, तो उन्हें इसका हिसाब देना होगा।

  • संस्थागत जवाबदेही: इसमें न केवल सरकारी विभाग, बल्कि निजी कंपनियाँ और गैर-सरकारी संगठन भी शामिल हैं, जो जनता के जीवन को प्रभावित करते हैं।
  • व्यक्तिगत जवाबदेही: सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं को उनके व्यक्तिगत कार्यों और निर्णयों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।
  • शिकायत निवारण तंत्र: एक प्रभावी सुशासन प्रणाली में नागरिकों की शिकायतों को सुनने और उनका समय पर समाधान करने के लिए मजबूत तंत्र होते हैं, जैसे कि लोकपाल और उपभोक्ता अदालतें।

5. सर्वसम्मति उन्मुख (Consensus Oriented)

सुशासन समाज के विभिन्न समूहों के अलग-अलग हितों को समझने और उनमें सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करता है। इसका लक्ष्य ऐसे निर्णय लेना है जो पूरे समुदाय के सर्वोत्तम हित में हों और एक व्यापक सहमति पर आधारित हों।

  • मध्यस्थता और संवाद: यह विभिन्न दृष्टिकोणों को सुनने और एक ऐसे समाधान तक पहुँचने पर जोर देता है जो सभी के लिए स्वीकार्य हो।
  • दीर्घकालिक दृष्टिकोण: सर्वसम्मति बनाने में समय लग सकता है, लेकिन यह समाज के सतत विकास और दीर्घकालिक हितों के लिए आवश्यक है। यह केवल तात्कालिक या अल्पकालिक लाभों पर ध्यान केंद्रित नहीं करता।
  • सामाजिक सद्भाव: यह प्रक्रिया समाज में विभाजन को कम करती है और सामाजिक सद्भाव (social harmony) को बढ़ावा देती है। एक अच्छा सुशासन हमेशा समाज को जोड़ने का काम करता है, तोड़ने का नहीं।

6. प्रभावशीलता और दक्षता (Effectiveness and Efficiency)

सुशासन का अर्थ यह भी है कि संस्थाएँ और प्रक्रियाएँ ऐसे परिणाम दें जो समाज की जरूरतों को पूरा करते हों। इसके साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इन परिणामों को प्राप्त करने के लिए उपलब्ध संसाधनों (जैसे समय, धन, मानव संसाधन) का सर्वोत्तम संभव उपयोग हो।

  • परिणाम-उन्मुख: नीतियां और कार्यक्रम केवल कागजों पर अच्छे नहीं दिखने चाहिए, बल्कि जमीन पर वास्तविक परिणाम देने वाले होने चाहिए।
  • संसाधनों का इष्टतम उपयोग: दक्षता का मतलब है कम से कम लागत और बर्बादी के साथ अधिकतम उत्पादन करना। सार्वजनिक धन का विवेकपूर्ण उपयोग सुशासन का एक प्रमुख संकेतक है।
  • प्राकृतिक संसाधनों का सतत उपयोग: इसमें पर्यावरण की रक्षा करना और यह सुनिश्चित करना भी शामिल है कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग इस तरह से हो कि वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी उपलब्ध रहें।

7. समानता और समावेशिता (Equity and Inclusiveness)

एक समाज की भलाई इस बात पर निर्भर करती है कि उसके सभी सदस्य यह महसूस करें कि इसमें उनका भी हिस्सा है। सुशासन यह सुनिश्चित करता है कि सभी को, विशेष रूप से सबसे कमजोर और वंचित समूहों को, अपने जीवन को बेहतर बनाने और अपनी स्थिति में सुधार करने का अवसर मिले।

  • अवसर की समानता: सभी नागरिकों को लिंग, जाति, धर्म या आर्थिक स्थिति के आधार पर बिना किसी भेदभाव के विकास के समान अवसर मिलने चाहिए।
  • कमजोर वर्गों का उत्थान: सुशासन का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य समाज के सबसे पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाना और उनके सशक्तिकरण के लिए विशेष नीतियां बनाना है।
  • न्यायपूर्ण वितरण: विकास के लाभों का वितरण न्यायपूर्ण होना चाहिए, ताकि अमीर और गरीब के बीच की खाई कम हो सके।

8. उत्तरदायित्व (Responsiveness)

सुशासन के लिए यह आवश्यक है कि संस्थाएँ और प्रक्रियाएँ सभी हितधारकों (stakeholders) को एक उचित समय-सीमा के भीतर सेवाएँ प्रदान करें। इसका मतलब है कि सिस्टम को नागरिकों की जरूरतों और समस्याओं के प्रति संवेदनशील और त्वरित होना चाहिए।

  • समय पर सेवा प्रदान करना: सरकारी सेवाओं के लिए एक निश्चित समय-सीमा होनी चाहिए और नागरिकों को अनावश्यक देरी का सामना नहीं करना पड़ना चाहिए।
  • नागरिक-अनुकूल प्रक्रियाएँ: प्रक्रियाएँ सरल और समझने में आसान होनी चाहिए, ताकि आम नागरिक भी आसानी से उनका लाभ उठा सकें।
  • फीडबैक तंत्र: एक उत्तरदायी प्रणाली नागरिकों से फीडबैक लेती है और अपनी सेवाओं में सुधार के लिए उसका उपयोग करती है। यह एक सतत सुधार की प्रक्रिया है जो सुशासन को जीवंत बनाए रखती है।

4. भारत में सुशासन की यात्रा (The Journey of Good Governance in India)

आजादी के बाद से भारत ने सुशासन की दिशा में एक लंबी यात्रा तय की है। यह यात्रा चुनौतियों और सफलताओं से भरी रही है। भारत के संविधान निर्माताओं ने एक ऐसे लोकतान्त्रिक ढांचे की नींव रखी जो सुशासन के सिद्धांतों पर आधारित था।

संवैधानिक प्रावधान और सुशासन (Constitutional Provisions and Good Governance)

भारतीय संविधान स्वयं सुशासन का एक घोषणापत्र है। इसमें ऐसे कई प्रावधान हैं जो एक जवाबदेह, पारदर्शी और न्यायपूर्ण शासन प्रणाली की गारंटी देते हैं।

  • मौलिक अधिकार (Fundamental Rights): अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता), अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), और अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) जैसे मौलिक अधिकार सुशासन की नींव हैं।
  • राज्य के नीति निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy): ये तत्व सरकार को सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने और एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
  • स्वतंत्र न्यायपालिका: संविधान एक स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना करता है, जो नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती है और सरकार को उसकी सीमा में रखती है।
  • पंचायती राज व्यवस्था: 73वें और 74वें संविधान संशोधनों ने स्थानीय स्वशासन (local self-government) को संवैधानिक दर्जा दिया, जिससे शासन में जमीनी स्तर पर लोगों की भागीदारी सुनिश्चित हुई। यह सुशासन को विकेंद्रीकृत करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम था।

सूचना का अधिकार (RTI) – एक क्रांतिकारी कदम (Right to Information – A Revolutionary Step)

वर्ष 2005 में लागू हुआ सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act) भारत में सुशासन के इतिहास में एक मील का पत्थर है। इस कानून ने आम नागरिक को सशक्त बनाया और सरकारी कामकाज में अभूतपूर्व पारदर्शिता लाई।

  • पारदर्शिता को बढ़ावा: RTI ने सरकारी फाइलों और दस्तावेजों को आम जनता की पहुँच में ला दिया, जिससे भ्रष्टाचार और मनमानी पर अंकुश लगा।
  • जवाबदेही सुनिश्चित करना: अब सरकारी अधिकारी यह जानते हैं कि उनके किसी भी निर्णय या कार्य के बारे में जनता सवाल पूछ सकती है, जिससे उनकी जवाबदेही बढ़ी है।
  • नागरिकों का सशक्तीकरण: इस कानून ने ‘हम सरकार से सवाल क्यों नहीं पूछ सकते’ की मानसिकता को ‘सरकार से सवाल पूछना हमारा अधिकार है’ में बदल दिया।

लोकपाल और लोकायुक्त (Lokpal and Lokayukta)

भ्रष्टाचार, सुशासन की राह में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। इस समस्या से निपटने के लिए, भारत ने केंद्र में ‘लोकपाल’ और राज्यों में ‘लोकायुक्त’ जैसी भ्रष्टाचार विरोधी संस्थाओं की स्थापना की है।

  • भ्रष्टाचार की जाँच: इन संस्थाओं को उच्च पदों पर बैठे सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करने का अधिकार है।
  • स्वतंत्र एजेंसी: इन्हें स्वतंत्र रूप से कार्य करने के लिए डिज़ाइन किया गया है ताकि वे बिना किसी राजनीतिक दबाव के निष्पक्ष जांच कर सकें। हालांकि, इनकी प्रभावशीलता अभी भी बहस का विषय है, लेकिन इनकी स्थापना सही दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

नागरिक चार्टर (Citizen Charter)

नागरिक चार्टर एक ऐसा दस्तावेज है जो किसी सरकारी विभाग द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाओं, उनके मानकों, समय-सीमा और शिकायत निवारण तंत्र के बारे में जानकारी देता है। यह नागरिकों और प्रशासन के बीच एक सेतु का काम करता है।

  • सेवा की गुणवत्ता में सुधार: यह विभागों को अपनी सेवाओं की गुणवत्ता के प्रति अधिक प्रतिबद्ध बनाता है।
  • नागरिकों को जागरूक करना: यह नागरिकों को उनके अधिकारों के बारे में बताता है कि वे किसी सेवा से क्या उम्मीद कर सकते हैं।
  • उत्तरदायित्व बढ़ाना: जब सेवाएँ समय पर नहीं मिलती हैं, तो नागरिक चार्टर के आधार पर अधिकारी को जवाबदेह ठहराया जा सकता है। भारत में कई सरकारी विभागों ने अपने नागरिक चार्टर अपनाए हैं, जो सुशासन की दिशा में एक सकारात्मक पहल है।

सुशासन दिवस का महत्व (Importance of Good Governance Day)

भारत में, सुशासन के प्रति जागरूकता और प्रतिबद्धता बढ़ाने के लिए हर साल 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन को ‘सुशासन दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

  • जागरूकता फैलाना: इस दिन का उद्देश्य सरकारी प्रक्रियाओं को नागरिक-केंद्रित बनाने और शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्व को रेखांकित करना है।
  • नई पहलों की शुरुआत: सरकार इस दिन को अक्सर नई सुशासन-संबंधी योजनाओं और पहलों को शुरू करने के अवसर के रूप में उपयोग करती है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि सुशासन एक सतत प्रयास है।

5. सुशासन में प्रौद्योगिकी की भूमिका: ई-गवर्नेंस (The Role of Technology in Good Governance: E-Governance)

21वीं सदी में, प्रौद्योगिकी ने शासन के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया है। ई-गवर्नेंस (E-Governance) या इलेक्ट्रॉनिक शासन, सुशासन को प्राप्त करने का सबसे शक्तिशाली उपकरणों में से एक बनकर उभरा है। यह सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराकर शासन को अधिक कुशल, पारदर्शी और सुलभ बनाता है।

ई-गवर्नेंस क्या है? (What is E-Governance?)

ई-गवर्नेंस का अर्थ है सरकारी प्रक्रियाओं और सेवाओं के निष्पादन में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology – ICT) का उपयोग करना। इसका उद्देश्य सरकार को ‘SMART’ बनाना है: Simple (सरल), Moral (नैतिक), Accountable (जवाबदेह), Responsive (उत्तरदायी) और Transparent (पारदर्शी)।

  • सेवाओं का डिजिटलीकरण: जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, टैक्स भुगतान, बिल भुगतान जैसी सेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराना।
  • सूचना का प्रसार: वेबसाइटों और पोर्टलों के माध्यम से सरकारी योजनाओं और नीतियों की जानकारी जनता तक पहुँचाना।
  • नागरिकों से जुड़ाव: सोशल मीडिया और मोबाइल ऐप के माध्यम से नागरिकों से सीधे संवाद करना और उनकी प्रतिक्रिया लेना।

डिजिटल इंडिया मिशन और सुशासन (Digital India Mission and Good Governance)

भारत सरकार का ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम ई-गवर्नेंस के माध्यम से सुशासन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वाकांक्षी पहल है। इसका उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था (knowledge economy) में बदलना है।

  • डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर: हर नागरिक तक हाई-स्पीड इंटरनेट की पहुँच सुनिश्चित करना।
  • सेवाओं की डिजिटल डिलीवरी: सभी सरकारी सेवाओं को इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपलब्ध कराना। MyGov.in और UMANG ऐप जैसे प्लेटफॉर्म इसी का हिस्सा हैं।
  • डिजिटल साक्षरता: नागरिकों को डिजिटल उपकरणों का उपयोग करने में सक्षम बनाना।
  • प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT): सरकारी सब्सिडी और लाभों को सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में भेजना, जिससे बिचौलियों की भूमिका समाप्त हो गई है और भ्रष्टाचार में भारी कमी आई है। यह सुशासन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

ई-गवर्नेंस के सकारात्मक पहलू (Pros of E-Governance)

ई-गवर्नेंस ने शासन में कई सकारात्मक बदलाव लाए हैं जो सीधे तौर पर सुशासन के सिद्धांतों को मजबूत करते हैं।

  • बढ़ी हुई पारदर्शिता: ऑनलाइन प्रक्रियाएँ हर कदम पर ट्रैक की जा सकती हैं, जिससे यह जानना आसान हो जाता है कि आपका आवेदन किस चरण में है। इससे मनमानी और देरी की गुंजाइश कम होती है।
  • भ्रष्टाचार में कमी: जब मानवीय हस्तक्षेप कम होता है और भुगतान ऑनलाइन होता है, तो रिश्वतखोरी की संभावना काफी हद तक कम हो जाती है।
  • दक्षता और गति: ऑनलाइन सेवाएँ 24×7 उपलब्ध होती हैं और प्रक्रियाओं को बहुत तेज कर देती हैं। अब सरकारी दफ्तरों की लंबी लाइनों में लगने की जरूरत नहीं है।
  • लागत में कमी: कागजी कार्रवाई कम होने और प्रक्रियाएँ स्वचालित होने से सरकार और नागरिकों, दोनों के लिए लागत में कमी आती है।
  • नागरिकों की सुविधा: अब नागरिक घर बैठे या अपने नजदीकी कॉमन सर्विस सेंटर (CSC) से सरकारी सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं, जिससे उनके समय और धन दोनों की बचत होती है।

ई-गवर्नेंस की चुनौतियाँ और नकारात्मक पहलू (Cons and Challenges of E-Governance)

जहाँ ई-गवर्नेंस के अनेक लाभ हैं, वहीं इसकी अपनी चुनौतियाँ और कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं, जिन्हें दूर करना सुशासन के लिए आवश्यक है।

  • डिजिटल डिवाइड (Digital Divide): भारत में अभी भी एक बड़ी आबादी है, खासकर ग्रामीण और गरीब क्षेत्रों में, जिनकी इंटरनेट और डिजिटल उपकरणों तक पहुँच नहीं है। यह उन्हें ई-गवर्नेंस के लाभों से वंचित कर सकता है, जिससे असमानता बढ़ सकती है।
  • डिजिटल निरक्षरता: बहुत से लोग, विशेष रूप से बुजुर्ग, डिजिटल उपकरणों का उपयोग करने में सहज नहीं हैं। उनके लिए ऑनलाइन प्रक्रियाएँ जटिल और डरावनी हो सकती हैं।
  • साइबर सुरक्षा का खतरा: सरकारी डेटाबेस में नागरिकों की संवेदनशील व्यक्तिगत जानकारी होती है। डेटा लीक और हैकिंग का खतरा एक बड़ी चिंता है, जो नागरिकों के भरोसे को कम कर सकता है।
  • तकनीकी बुनियादी ढाँचे की कमी: कई ग्रामीण क्षेत्रों में विश्वसनीय इंटरनेट कनेक्टिविटी और बिजली की आपूर्ति अभी भी एक समस्या है, जो ई-सेवाओं के सुचारू संचालन में बाधा डालती है।
  • मानवीय संपर्क का अभाव: कभी-कभी, जटिल मुद्दों को हल करने के लिए मानवीय संपर्क आवश्यक होता है। पूरी तरह से डिजिटल प्रणाली में यह मानवीय स्पर्श खो सकता है, जिससे नागरिक अलग-थलग महसूस कर सकते हैं।

6. सुशासन की राह में प्रमुख चुनौतियाँ (Major Challenges on the Path to Good Governance)

एक आदर्श सुशासन प्रणाली की स्थापना कोई आसान काम नहीं है। भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के नाते, इस राह में कई जटिल और गहरी जड़ों वाली चुनौतियों का सामना करता है। इन चुनौतियों को समझना और उनका समाधान खोजना ही वास्तविक सुशासन की कुंजी है।

भ्रष्टाचार: एक गहरी जड़ वाली समस्या (Corruption: A Deep-Rooted Problem)

भ्रष्टाचार को अक्सर सुशासन का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है। यह न केवल देश के आर्थिक विकास को धीमा करता है, बल्कि यह नागरिकों के विश्वास को भी नष्ट कर देता है और असमानता को बढ़ावा देता है।

  • प्रणालीगत भ्रष्टाचार: यह केवल व्यक्तिगत लालच का मामला नहीं है, बल्कि अक्सर यह व्यवस्था का हिस्सा बन जाता है, जिससे निपटना बहुत मुश्किल होता है।
  • संसाधनों की बर्बादी: भ्रष्टाचार के कारण सार्वजनिक धन उन लोगों तक नहीं पहुँच पाता जिनके लिए वह होता है, और विकास परियोजनाएँ या तो अधूरी रह जाती हैं या उनकी गुणवत्ता खराब होती है।
  • विश्वास का क्षरण: जब नागरिक यह देखते हैं कि नियमों को तोड़ा जा सकता है और पैसे से न्याय खरीदा जा सकता है, तो वे पूरी शासन प्रणाली में अपना विश्वास खो देते हैं।

लालफीताशाही और प्रक्रियात्मक देरी (Red Tapism and Procedural Delays)

लालफीताशाही का मतलब है अत्यधिक जटिल और अनावश्यक नियम, प्रक्रियाएँ और कागजी कार्रवाई, जिसके कारण सरकारी कार्यों में अत्यधिक देरी होती है। यह दक्षता और उत्तरदायित्व के सिद्धांतों के सीधे खिलाफ है।

  • निवेश में बाधा: जटिल प्रक्रियाएँ नए व्यवसायों को शुरू करने और निवेश को आकर्षित करने में एक बड़ी बाधा हैं।
  • आम आदमी की परेशानी: आम नागरिकों को अपने छोटे-छोटे कामों के लिए भी महीनों तक इंतजार करना पड़ता है, जिससे उनका समय और ऊर्जा बर्बाद होती है।
  • भ्रष्टाचार को बढ़ावा: जब प्रक्रियाएँ जटिल होती हैं, तो लोग अक्सर काम को जल्दी करवाने के लिए शॉर्टकट या रिश्वत का सहारा लेते हैं। इस प्रकार लालफीताशाही भ्रष्टाचार को जन्म देती है।

राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी (Lack of Political Will)

सुशासन के लिए कड़े और सुधारवादी निर्णय लेने की आवश्यकता होती है, जो कभी-कभी राजनीतिक रूप से अलोकप्रिय हो सकते हैं। अक्सर, राजनीतिक दल अल्पकालिक चुनावी लाभों के लिए दीर्घकालिक सुधारों से बचते हैं।

  • सुधारों का विरोध: कई बार निहित स्वार्थ वाले समूह (vested interests) सुधारों का विरोध करते हैं, और राजनीतिक नेतृत्व उनके दबाव में आ जाता है।
  • आपराधिक-राजनीतिक गठजोड़: राजनीति का अपराधीकरण एक और बड़ी चुनौती है जो कानून के शासन को कमजोर करता है और सुशासन की संभावनाओं को धूमिल करता है।

नागरिकों में जागरूकता का अभाव (Lack of Awareness among Citizens)

एक लोकतंत्र में, नागरिक ही असली मालिक होते हैं। लेकिन अगर नागरिक अपने अधिकारों और सरकार की जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक नहीं हैं, तो वे सरकार को जवाबदेह नहीं ठहरा सकते।

  • अधिकारों की अज्ञानता: बहुत से लोग RTI जैसे शक्तिशाली उपकरणों के बारे में नहीं जानते या उनका उपयोग करना नहीं जानते।
  • उदासीनता: कुछ नागरिकों में यह भावना होती है कि ‘कुछ नहीं बदलेगा’, जिसके कारण वे शासन प्रक्रिया में भाग लेने से बचते हैं।
  • जागरूकता की कमी का फायदा: जब नागरिक जागरूक नहीं होते, तो भ्रष्ट अधिकारियों और राजनेताओं के लिए उनका शोषण करना आसान हो जाता है। इसलिए, नागरिक जागरूकता सुशासन की पहली शर्त है।

चुनौतियों से निपटने के सकारात्मक और नकारात्मक दृष्टिकोण (Positive and Negative Approaches to Tackling Challenges)

इन चुनौतियों से निपटने के लिए विभिन्न दृष्टिकोण अपनाए जा सकते हैं, जिनके अपने सकारात्मक और नकारात्मक पहलू हैं।

  • सकारात्मक दृष्टिकोण (Pros):
    • प्रौद्योगिकी का उपयोग: ई-गवर्नेंस और डिजिटलीकरण के माध्यम से प्रक्रियाओं को सरल बनाना और मानवीय हस्तक्षेप को कम करना।
    • कानूनी सुधार: भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को मजबूत करना और न्याय प्रक्रिया में तेजी लाना।
    • नागरिक समाज को सशक्त बनाना: गैर-सरकारी संगठनों और मीडिया को सरकार पर नजर रखने और जनता को जागरूक करने के लिए प्रोत्साहित करना।
    • शिक्षा और जागरूकता अभियान: स्कूलों और कॉलेजों में सुशासन और नागरिक कर्तव्यों के बारे में पढ़ाना।
  • नकारात्मक दृष्टिकोण (Cons):
    • अत्यधिक केंद्रीकरण: कभी-कभी भ्रष्टाचार से निपटने के नाम पर सारी शक्ति एक ही स्थान पर केंद्रित कर दी जाती है, जो स्वयं पारदर्शिता और भागीदारी के सिद्धांतों के विरुद्ध है।
    • कठोर कानून बनाना लेकिन लागू न करना: केवल कठोर कानून बना देना पर्याप्त नहीं है। यदि उन्हें निष्पक्ष रूप से और तेजी से लागू नहीं किया जाता है, तो वे अप्रभावी हो जाते हैं।
    • केवल दंडात्मक कार्रवाई पर ध्यान देना: भ्रष्टाचार के मूल कारणों, जैसे कि कम वेतन, जटिल प्रक्रियाएँ और नैतिक शिक्षा की कमी, को संबोधित किए बिना केवल भ्रष्ट लोगों को दंडित करना एक अल्पकालिक समाधान है। एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है जो रोकथाम और उपचार दोनों पर ध्यान केंद्रित करे।

7. एक छात्र के रूप में आप सुशासन में कैसे योगदान दे सकते हैं? (How Can You, as a Student, Contribute to Good Governance?)

सुशासन केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है; यह एक सामूहिक प्रयास है जिसमें प्रत्येक नागरिक की भूमिका होती है। छात्र, देश के भविष्य के रूप में, इस प्रयास में एक महत्वपूर्ण और ऊर्जावान भूमिका निभा सकते हैं।

जागरूक बनें और जानकारी साझा करें (Be Aware and Share Information)

ज्ञान ही शक्ति है। एक जागरूक नागरिक ही एक सशक्त नागरिक होता है।

  • पढ़ें और सीखें: अपने देश के संविधान, अपने अधिकारों और सरकार की नीतियों के बारे में पढ़ें। जानें कि सरकार कैसे काम करती है।
  • सही जानकारी साझा करें: आज के डिजिटल युग में, गलत सूचना (misinformation) और फेक न्यूज एक बड़ी समस्या है। एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में, किसी भी जानकारी को साझा करने से पहले उसकी प्रामाणिकता की जाँच करें। अपने परिवार और दोस्तों को भी जागरूक करें।

प्रौद्योगिकी का सही उपयोग करें (Use Technology Correctly)

आपकी पीढ़ी प्रौद्योगिकी के साथ पली-बढ़ी है। आप इसका उपयोग सुशासन को बढ़ावा देने के लिए कर सकते हैं।

  • ई-गवर्नेंस सेवाओं का उपयोग करें: सरकारी ऐप्स और वेबसाइटों का उपयोग करें। इससे न केवल आपका काम आसान होगा, बल्कि यह डिजिटल सिस्टम को मजबूत करने में भी मदद करेगा।
  • सोशल मीडिया का सकारात्मक उपयोग: सोशल मीडिया का उपयोग स्थानीय समस्याओं को उजागर करने, अधिकारियों का ध्यान आकर्षित करने और सकारात्मक सामाजिक अभियानों का हिस्सा बनने के लिए करें।

स्थानीय शासन में भाग लें (Participate in Local Governance)

बदलाव की शुरुआत हमेशा स्थानीय स्तर से होती है।

  • ग्राम सभा / वार्ड बैठकों में शामिल हों: यदि संभव हो, तो अपने क्षेत्र की स्थानीय शासन की बैठकों में शामिल हों। सुनें कि क्या चर्चा हो रही है और अपनी राय रखें।
  • स्वयंसेवा (Volunteer): स्थानीय सामाजिक पहलों, जैसे स्वच्छता अभियान, वृक्षारोपण या जागरूकता कार्यक्रमों में स्वयंसेवक के रूप में भाग लें। यह भागीदारी ही सुशासन की आत्मा है।

अपने अधिकारों और कर्तव्यों को जानें (Know Your Rights and Duties)

अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

  • RTI का उपयोग करना सीखें: सूचना का अधिकार आपका एक शक्तिशाली हथियार है। इसका सही तरीके से उपयोग करना सीखें ताकि आप सरकार को जवाबदेह बना सकें।
  • अपने कर्तव्यों का पालन करें: एक अच्छे नागरिक बनें। कानूनों का पालन करें, टैक्स का भुगतान करें, सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान करें और मतदान के अपने अधिकार का प्रयोग अवश्य करें। आपका एक वोट सुशासन लाने में मदद कर सकता है।

8. सुशासन का भविष्य: आगे की राह (The Future of Good Governance: The Road Ahead)

जैसे-जैसे दुनिया बदल रही है, शासन की चुनौतियाँ और अवसर भी बदल रहे हैं। भविष्य का सुशासन नई तकनीकों और नई सोच से संचालित होगा।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और शासन (Artificial Intelligence (AI) and Governance)

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में शासन को और अधिक कुशल और प्रभावी बनाने की अपार क्षमता है।

  • बेहतर सेवा वितरण: AI का उपयोग नागरिकों के लिए सेवाओं को व्यक्तिगत बनाने और उनकी समस्याओं का तेजी से समाधान करने के लिए किया जा सकता है (जैसे चैटबॉट्स)।
  • नीति निर्माण में सहायता: AI बड़े डेटा सेट का विश्लेषण करके सरकार को बेहतर और साक्ष्य-आधारित नीतियां बनाने में मदद कर सकता है।
  • धोखाधड़ी का पता लगाना: AI पैटर्न का विश्लेषण करके टैक्स चोरी और कल्याणकारी योजनाओं में धोखाधड़ी का पता लगा सकता है, जिससे सुशासन मजबूत होगा।

डेटा-संचालित निर्णय (Data-Driven Decision Making)

भविष्य का शासन अनुमानों या राजनीतिक विचारों पर नहीं, बल्कि ठोस डेटा और सबूतों पर आधारित होगा।

  • संसाधनों का सटीक आवंटन: सरकारें डेटा का उपयोग यह पहचानने के लिए कर सकती हैं कि किन क्षेत्रों में सबसे अधिक निवेश की आवश्यकता है।
  • योजनाओं के प्रभाव का मूल्यांकन: डेटा के माध्यम से यह मापना संभव होगा कि कोई सरकारी योजना कितनी सफल रही है और उसमें क्या सुधार की आवश्यकता है।
  • पारदर्शिता में वृद्धि: सरकार द्वारा ओपन डेटा प्लेटफॉर्म के माध्यम से डेटा को सार्वजनिक करना पारदर्शिता को और बढ़ाएगा और नागरिकों को शासन का विश्लेषण करने में सक्षम बनाएगा। भारत सरकार का Open Government Data (OGD) Platform इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

सतत विकास लक्ष्य (SDGs) और सुशासन (Sustainable Development Goals (SDGs) and Good Governance)

संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित 17 सतत विकास लक्ष्य (SDGs) 2030 तक एक बेहतर और अधिक टिकाऊ भविष्य प्राप्त करने का एक वैश्विक खाका है। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सुशासन एक अनिवार्य शर्त है।

  • लक्ष्य 16: SDG का लक्ष्य 16 विशेष रूप से शांति, न्याय और मजबूत संस्थानों को बढ़ावा देने पर केंद्रित है, जो सीधे तौर पर सुशासन से संबंधित है।
  • आपसी निर्भरता: गरीबी को समाप्त करने (लक्ष्य 1), अच्छा स्वास्थ्य सुनिश्चित करने (लक्ष्य 3), या गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने (लक्ष्य 4) जैसे अन्य सभी लक्ष्यों को प्रभावी, समावेशी और जवाबदेह संस्थानों के बिना प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इसलिए, भविष्य का विकास पथ सुशासन के पथ से होकर ही गुजरेगा।

9. निष्कर्ष: सुशासन एक मंजिल नहीं, एक सतत यात्रा है (Conclusion: Good Governance is Not a Destination, but a Continuous Journey)

इस विस्तृत चर्चा के बाद, हम यह समझ सकते हैं कि सुशासन कोई जादुई छड़ी नहीं है जो रातोंरात सब कुछ ठीक कर दे। यह एक आदर्श है, एक लक्ष्य है जिसकी ओर लगातार बढ़ने का प्रयास किया जाना चाहिए। यह केवल कानूनों और संस्थानों का एक समूह नहीं है, बल्कि यह एक संस्कृति है – पारदर्शिता की संस्कृति, जवाबदेही की संस्कृति और सेवा की संस्कृति। रमेश की कहानी से लेकर ई-गवर्नेंस की चुनौतियों तक, हमने देखा कि सुशासन का हर पहलू सीधे तौर पर आम नागरिक के जीवन की गुणवत्ता से जुड़ा हुआ है।

सुशासन एक गतिशील अवधारणा है जो समय और प्रौद्योगिकी के साथ विकसित होती रहती है। इसकी सफलता केवल सरकार की इच्छाशक्ति पर ही नहीं, बल्कि नागरिकों की जागरूकता और भागीदारी पर भी निर्भर करती है। जब नागरिक अपने अधिकारों के प्रति सजग होते हैं और अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, तो वे सरकार को बेहतर प्रदर्शन करने के लिए मजबूर करते हैं। इसलिए, एक बेहतर भारत का निर्माण करने के लिए, हमें न केवल एक अच्छी सरकार की मांग करनी चाहिए, बल्कि अच्छे नागरिक भी बनना होगा। सुशासन का रहस्य किसी एक व्यक्ति या संस्था में नहीं, बल्कि हम सभी के सामूहिक प्रयासों में निहित है।

10. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions – FAQs)

प्रश्न 1: सुशासन की अवधारणा सबसे पहले किसने दी? (Who first gave the concept of Good Governance?)

उत्तर: आधुनिक संदर्भ में, ‘सुशासन’ (Good Governance) शब्द को 1989 में विश्व बैंक (World Bank) द्वारा अपनी एक रिपोर्ट में प्रमुखता से इस्तेमाल किया गया था। हालांकि, इसके सिद्धांत, जैसे कि न्याय, कर्तव्य और लोक कल्याण, कौटिल्य के ‘अर्थशास्त्र’ और अन्य प्राचीन ग्रंथों में हजारों साल पहले से मौजूद हैं।

प्रश्न 2: भारत में सुशासन दिवस क्यों मनाया जाता है? (Why is Good Governance Day celebrated in India?)

उत्तर: भारत में हर साल 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर सुशासन दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य सरकार की जवाबदेही के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाना और शासन में पारदर्शिता लाने की प्रतिबद्धता को दोहराना है।

प्रश्न 3: शासन (governance) और सरकार (government) में क्या अंतर है? (What is the difference between governance and government?)

उत्तर: सरकार (Government) उन लोगों और संस्थाओं का समूह है जिन्हें किसी देश पर शासन करने का अधिकार होता है। यह शासन का एक औपचारिक अंग है। वहीं, शासन (Governance) एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें निर्णय लिए जाते हैं और उन्हें लागू किया जाता है। इसमें सरकार के अलावा निजी क्षेत्र और नागरिक समाज (NGOs, समुदाय) भी शामिल होते हैं। सरकार ‘कर्ता’ है, जबकि शासन ‘क्रिया’ है।

प्रश्न 4: क्या पारदर्शिता ही सुशासन का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है? (Is transparency the most important pillar of good governance?)

उत्तर: हालांकि पारदर्शिता सुशासन का एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्तंभ है, लेकिन यह अकेला सबसे महत्वपूर्ण नहीं है। सुशासन के सभी 8 स्तंभ (भागीदारी, कानून का शासन, जवाबदेही आदि) एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक दूसरे पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिए, पारदर्शिता बिना जवाबदेही के अधूरी है। यदि आपको जानकारी तो मिल जाए लेकिन आप उसके आधार पर किसी को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते, तो उस पारदर्शिता का कोई खास मतलब नहीं रह जाता।

प्रश्न 5: एक आम नागरिक सुशासन को कैसे माप सकता है? (How can a common citizen measure good governance?)

उत्तर: एक आम नागरिक कई तरीकों से सुशासन को महसूस और माप सकता है:

  • सरकारी सेवाओं की सुलभता: क्या आपको सरकारी सेवाएँ (जैसे प्रमाण पत्र, लाइसेंस) आसानी से और समय पर मिल रही हैं?
  • शिकायत निवारण: क्या आपकी शिकायतों पर सुनवाई होती है और उनका समाधान किया जाता है?
  • भ्रष्टाचार का स्तर: क्या आपको अपने काम करवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है?
  • कानून-व्यवस्था: क्या आप अपने क्षेत्र में सुरक्षित महसूस करते हैं और क्या कानून सभी के लिए बराबर है?
  • सूचना तक पहुँच: क्या आपको सरकारी कामकाज के बारे में आसानी से जानकारी मिल जाती है?
इन सवालों के जवाब आपको अपने क्षेत्र में सुशासन के स्तर का एक अच्छा संकेत दे सकते हैं।

मुख्य विषय (Main Topic)उप-विषय (Sub-Topic)विस्तृत टॉपिक (Detailed Sub-Topics)
शासन का परिचयअवधारणाशासन और सुशासन (Governance & Good Governance), जवाबदेही (Accountability), पारदर्शिता (Transparency)
संविधान और शासनप्रावधानमौलिक अधिकार, DPSP, 73वाँ व 74वाँ संशोधन (Panchayati Raj & Urban Local Bodies), विकेंद्रीकरण (Decentralization)
संस्थानवैधानिक संस्थाएँनिर्वाचन आयोग (ECI), UPSC, वित्त आयोग, CAG
संस्थानअर्ध-न्यायिक संस्थाएँNHRC, SHRC, NGT, CIC, लोकपाल और लोकायुक्त
संस्थानगैर-वैधानिक संस्थाएँनीति आयोग (NITI Aayog), योजना आयोग (पूर्व), स्वायत्त निकाय

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