विषयसूची (Table of Contents) 📜
- 1. मौर्यकालीन कला का परिचय (Introduction to Mauryan Art)
- 2. मौर्यकालीन कला की पृष्ठभूमि (Background of Mauryan Art)
- 3. अशोक स्तंभ: इंजीनियरिंग और कला का अद्भुत संगम (Ashokan Pillars: A Marvel of Engineering and Art)
- 4. मौर्यकालीन स्तूप: बौद्ध आस्था के केंद्र (Mauryan Stupas: Centers of Buddhist Faith)
- 5. मौर्यकालीन गुफा वास्तुकला: आजीवकों के लिए आश्रय (Mauryan Cave Architecture: Shelters for Ajivikas)
- 6. मौर्यकालीन मूर्तिकला और लोक कला (Mauryan Sculpture and Popular Art)
- 7. निष्कर्ष: मौर्यकालीन कला की विरासत (Conclusion: Legacy of Mauryan Art)
मौर्यकालीन कला का परिचय (Introduction to Mauryan Art) 🏛️
भारतीय इतिहास का स्वर्णिम अध्याय (A Golden Chapter in Indian History)
नमस्ते विद्यार्थियों! 👋 आज हम भारतीय इतिहास के एक ऐसे गौरवशाली अध्याय की यात्रा पर चलेंगे, जिसने न केवल एक विशाल साम्राज्य की नींव रखी, बल्कि कला और संस्कृति को भी नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। हम बात कर रहे हैं मौर्य साम्राज्य (Mauryan Empire) की, और विशेष रूप से, ‘मौर्यकालीन कला’ की। यह वह दौर था जब पत्थर बोलने लगे, और शिल्पकारों की छेनी ने इतिहास को हमेशा के लिए गढ़ दिया। इस युग की कला सिर्फ सौंदर्य का प्रतीक नहीं, बल्कि सम्राट अशोक के धम्म, राजनीतिक स्थिरता और सांस्कृतिक समृद्धि का जीवंत प्रमाण है।
कला का उद्देश्य और महत्व (Purpose and Importance of Art)
मौर्यकालीन कला का अध्ययन हमें यह समझने में मदद करता है कि कैसे एक शासक अपनी विचारधारा को जनता तक पहुंचाने के लिए कला का उपयोग कर सकता है। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों और अपने ‘धम्म’ के संदेश को फैलाने के लिए विशाल पत्थर के स्तंभ, स्तूप और शिलालेखों का निर्माण करवाया। यह कलाकृतियाँ आज भी हमें उस समय के समाज, धर्म और शासन व्यवस्था की अनमोल जानकारी देती हैं। चलिए, इस रोमांचक यात्रा में आगे बढ़ते हैं और मौर्यकालीन कला के रहस्यों को उजागर करते हैं। 🔍
राजकीय संरक्षण का प्रभाव (Impact of Royal Patronage)
मौर्यकाल से पहले, कलाकृतियाँ मुख्य रूप से लकड़ी, मिट्टी या अन्य नश्वर सामग्रियों से बनती थीं, जिनके अवशेष आज बहुत कम मिलते हैं। मौर्य शासकों, विशेषकर चंद्रगुप्त मौर्य और अशोक, ने कला को राजकीय संरक्षण (royal patronage) प्रदान किया, जिससे पत्थर जैसी स्थायी सामग्री का बड़े पैमाने पर उपयोग शुरू हुआ। इस संरक्षण ने न केवल कलाकारों को प्रोत्साहित किया, बल्कि बड़े और भव्य स्मारकों के निर्माण को भी संभव बनाया, जो आज भी भारत की शान हैं।
कला के विभिन्न रूप (Various Forms of Art)
इस ब्लॉग पोस्ट में, हम मौर्यकालीन कला के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे। हम अशोक स्तंभों की भव्यता और उनकी चमकदार पॉलिश के रहस्य को जानेंगे, सांची जैसे महान स्तूपों की संरचना और उनके धार्मिक महत्व को समझेंगे, और बराबर की गुफाओं की अनूठी वास्तुकला को देखेंगे। इसके अलावा, हम यक्ष-यक्षिणियों की मूर्तियों जैसी लोक कला पर भी प्रकाश डालेंगे, जो हमें उस समय के आम लोगों की आस्थाओं और जीवनशैली की एक झलक देती है। ✨
मौर्यकालीन कला की पृष्ठभूमि (Background of Mauryan Art) 📜
मौर्य साम्राज्य का उदय (Rise of the Mauryan Empire)
मौर्यकालीन कला को समझने के लिए, हमें पहले उस समय की राजनीतिक और सामाजिक पृष्ठभूमि को समझना होगा। 322 ईसा पूर्व में, चंद्रगुप्त मौर्य ने आचार्य चाणक्य की सहायता से नंद वंश को समाप्त कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। यह भारत का पहला विशाल और संगठित साम्राज्य था, जो पश्चिम में फारस से लेकर पूर्व में बंगाल तक और उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में मैसूर तक फैला हुआ था। इस विशाल साम्राज्य ने एक मजबूत केंद्रीयकृत शासन (centralized administration) प्रदान किया, जिससे शांति और समृद्धि का माहौल बना।
शांति और समृद्धि का काल (An Era of Peace and Prosperity)
एक स्थिर और शक्तिशाली साम्राज्य ने व्यापार, कृषि और उद्योग को बढ़ावा दिया। जब समाज में आर्थिक समृद्धि आती है, तो कला और संस्कृति का विकास स्वाभाविक रूप से होता है। मौर्य शासकों के पास विशाल संसाधन थे, जिनका उपयोग उन्होंने भव्य स्मारकों और कलाकृतियों के निर्माण में किया। यह कला न केवल उनकी शक्ति का प्रदर्शन थी, बल्कि उनके शासन को वैधता प्रदान करने का एक माध्यम भी थी। यह कला उस आत्मविश्वास को दर्शाती है जो एक एकीकृत साम्राज्य से आता है।
सम्राट अशोक और बौद्ध धर्म का प्रभाव (Emperor Ashoka and the Influence of Buddhism)
मौर्यकालीन कला पर सबसे गहरा प्रभाव सम्राट अशोक (Emperor Ashoka) और उनके द्वारा अपनाए गए बौद्ध धर्म का पड़ा। कलिंग युद्ध की भयावहता ने अशोक का हृदय परिवर्तन कर दिया और उन्होंने ‘भेरीघोष’ (युद्ध की घोषणा) के स्थान पर ‘धम्मघोष’ (नैतिकता की घोषणा) की नीति अपनाई। उन्होंने बौद्ध धर्म को राजकीय संरक्षण दिया और इसके सिद्धांतों को अपनी प्रजा तक पहुंचाने के लिए कला को एक शक्तिशाली माध्यम बनाया। अशोक के शिलालेख, स्तंभ और स्तूप इसी धम्म प्रचार का हिस्सा थे।
धम्म का प्रचार-प्रसार (Propagation of Dhamma)
अशोक का धम्म (Dhamma) कोई नया धर्म नहीं, बल्कि एक नैतिक संहिता थी, जिसमें बड़ों का सम्मान, छोटों से प्रेम, अहिंसा, सत्य और सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता जैसे सिद्धांत शामिल थे। इन संदेशों को स्थायी बनाने के लिए, उन्होंने उन्हें पत्थर पर खुदवाया ताकि आने वाली पीढ़ियां भी उन्हें पढ़ सकें। इस प्रकार, मौर्यकालीन कला केवल सजावटी नहीं थी, बल्कि इसका एक गहरा नैतिक और सामाजिक उद्देश्य भी था। यह कला अशोक के शांति और सद्भाव के संदेश का स्थायी प्रतीक बन गई। 🕊️
विदेशी प्रभाव की बहस (Debate on Foreign Influence)
कुछ इतिहासकार मौर्यकालीन कला, विशेष रूप से अशोक स्तंभों की चमकदार पॉलिश और स्तंभशीर्षों पर, फारसी (अकेमेनिड) प्रभाव का उल्लेख करते हैं। यह तर्क दिया जाता है कि चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनानी राजदूत मेगस्थनीज की उपस्थिति और फारसी साम्राज्य के साथ संबंधों के कारण कलात्मक विचारों का आदान-प्रदान हुआ होगा। हालांकि, कई भारतीय इतिहासकार इस मत से सहमत नहीं हैं और उनका मानना है कि मौर्यकालीन कला पूर्णतः स्वदेशी थी और इसकी अपनी अनूठी विशेषताएं थीं।
मौर्य कला की मौलिकता (Originality of Mauryan Art)
भले ही कुछ समानताएं हों, लेकिन मौर्यकालीन कला की मौलिकता को नकारा नहीं जा सकता। अशोक स्तंभ एक ही पत्थर (एकपाषाण) से बने हैं, जबकि फारसी स्तंभ कई टुकड़ों को जोड़कर बनाए जाते थे। मौर्य स्तंभों के शीर्ष पर पशु आकृतियाँ भारतीय परंपरा का प्रतीक हैं, जिनका फारसी कला में अभाव है। इसलिए, यह कहना उचित है कि मौर्य कलाकारों ने भले ही बाहरी दुनिया से प्रेरणा ली हो, लेकिन उन्होंने अपनी कला को एक विशिष्ट भारतीय पहचान दी, जो उनकी अपनी रचनात्मकता का प्रमाण है। 🇮🇳
अशोक स्तंभ: इंजीनियरिंग और कला का अद्भुत संगम (Ashokan Pillars: A Marvel of Engineering and Art) 🏛️
अशोक स्तंभों का उद्देश्य (Purpose of Ashokan Pillars)
सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए स्तंभ मौर्यकालीन कला के सर्वश्रेष्ठ उदाहरणों में से एक हैं। ये केवल पत्थर के खंभे नहीं थे, बल्कि इनके निर्माण के पीछे कई गहरे उद्देश्य थे। इनका मुख्य उद्देश्य अशोक के धम्म (नैतिक संहिता) का प्रचार करना था। इन स्तंभों पर धम्म से संबंधित संदेशों को प्रजा के लिए खुदवाया गया था, जिन्हें ‘स्तंभ शिलालेख’ (Pillar Edicts) कहा जाता है। ये स्तंभ साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में स्थापित किए गए थे, ताकि अधिक से अधिक लोग इन्हें पढ़ सकें और प्रेरित हो सकें।
साम्राज्य की शक्ति का प्रतीक (Symbol of Imperial Power)
धार्मिक संदेशों के अलावा, ये विशाल और भव्य स्तंभ मौर्य साम्राज्य की शक्ति, प्रतिष्ठा और विस्तार का भी प्रतीक थे। 40 से 50 फीट ऊंचे और लगभग 50 टन वजनी इन स्तंभों को सैकड़ों मील दूर खदानों से लाकर स्थापित करना उस समय की इंजीनियरिंग और संगठनात्मक कौशल का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। ये स्तंभ मानो आकाश से बात करते हुए अशोक के धर्म-साम्राज्य की घोषणा कर रहे थे। ये साम्राज्य की सीमाओं को चिह्नित करने और महत्वपूर्ण प्रशासनिक केंद्रों को दर्शाने का भी काम करते थे।
स्तंभों की संरचना और निर्माण (Structure and Construction of Pillars)
प्रत्येक अशोक स्तंभ को एक ही पत्थर (एकपाषाण – monolithic) को तराश कर बनाया गया है, जो उन्हें अद्वितीय बनाता है। ये स्तंभ मुख्य रूप से चुनार (उत्तर प्रदेश) के बलुआ पत्थर से निर्मित हैं। एक स्तंभ के मुख्य रूप से चार भाग होते हैं: पहला, लंबा और सीधा ‘यष्टि’ (Shaft) जो नीचे से ऊपर की ओर थोड़ा पतला होता जाता है। दूसरा, यष्टि के ऊपर रखा गया ‘घंटा’ या ‘कमल’ (Bell or Lotus) का उलटा आकार, जिसे शीर्ष कहा जाता है।
स्तंभ के ऊपरी भाग (Upper Parts of the Pillar)
कमल के आकार के शीर्ष के ऊपर एक ‘चौकी’ (Abacus) होती है, जो गोलाकार या चौकोर हो सकती है। इस चौकी पर विभिन्न पशु-पक्षियों की आकृतियाँ उकेरी गई हैं, जैसे दौड़ते हुए घोड़े, हाथी, बैल और हंस। सबसे ऊपर, चौकी पर एक या एक से अधिक पशुओं की भव्य मूर्ति स्थापित की जाती है, जिसे ‘शीर्षस्थ पशु’ (Crowning Animal) कहते हैं। इन पशुओं में सिंह, हाथी, बैल और घोड़ा प्रमुख हैं। यह पूरी संरचना बिना किसी जोड़ के एक ही पत्थर से बनी है, जो आश्चर्यजनक है।
स्तंभों की पॉलिश: एक रहस्य (The Polish on the Pillars: A Mystery)
अशोक स्तंभों की एक और विशेषता है उनकी अद्भुत चमकदार पॉलिश, जिसे ‘मौर्यकालीन वज्रलेप’ (Mauryan Polish) भी कहा जाता है। 2300 साल से भी अधिक समय तक खुले आसमान के नीचे रहने के बावजूद, इन स्तंभों की सतह आज भी शीशे की तरह चमकती है। यह पॉलिश इतनी उच्च कोटि की है कि आज के आधुनिक विज्ञान के लिए भी यह एक रहस्य है। यह कैसे बनाई और लगाई जाती थी, इस पर इतिहासकार और वैज्ञानिक अभी भी शोध कर रहे हैं। यह पॉलिश स्तंभों को मौसम की मार से बचाती है और उन्हें एक अद्वितीय सौंदर्य प्रदान करती है। ✨
प्रमुख अशोक स्तंभ और उनके प्रतीक (Major Ashokan Pillars and their Symbols)
अशोक ने अपने साम्राज्य में कई स्तंभ स्थापित करवाए, जिनमें से लगभग 20 आज भी मौजूद हैं। इनमें से कुछ प्रमुख स्तंभ हैं – सारनाथ (उत्तर प्रदेश), लौरिया-नंदनगढ़ (बिहार), रामपुरवा (बिहार), और सांची (मध्य प्रदेश)। प्रत्येक स्तंभ के शीर्ष पर बना पशु प्रतीक किसी न किसी बात का द्योतक है। उदाहरण के लिए, सिंह को बुद्ध का प्रतीक माना जाता है, जिन्हें ‘शाक्यसिंह’ भी कहा जाता है। बैल बुद्ध के जन्म का प्रतीक है, हाथी उनके गर्भ में आने का और घोड़ा उनके गृहत्याग का प्रतीक माना जाता है।
लौरिया-नंदनगढ़ और रामपुरवा स्तंभ (Lauriya-Nandangarlı and Rampurva Pillars)
बिहार के चंपारण जिले में स्थित लौरिया-नंदनगढ़ का स्तंभ सबसे अच्छी स्थिति में संरक्षित स्तंभों में से एक है। इसके शीर्ष पर एक बैठे हुए सिंह की भव्य मूर्ति है, जिसका मुख उत्तर दिशा की ओर है, जिधर बुद्ध ने अपनी अंतिम यात्रा की थी। रामपुरवा में दो स्तंभ मिले थे – एक के शीर्ष पर सिंह था और दूसरे पर एक शानदार बैल (वृषभ)। रामपुरवा का यह बैल शिल्प (bull sculpture) मौर्यकालीन मूर्तिकला का एक उत्कृष्ट नमूना माना जाता है और वर्तमान में यह राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में प्रदर्शित है।
सारनाथ का सिंह चतुर्मुख स्तंभशीर्ष (The Lion Capital of Sarnath)
मौर्यकालीन कला का सबसे प्रसिद्ध और उत्कृष्ट नमूना सारनाथ में मिला सिंह चतुर्मुख स्तंभशीर्ष है। यह उस स्थान पर स्थापित किया गया था जहाँ महात्मा बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश दिया था। इस स्तंभशीर्ष में चार एशियाई शेर एक-दूसरे से पीठ सटाकर चारों दिशाओं में दहाड़ते हुए दिखाए गए हैं। ये शेर बुद्ध के ‘धम्मचक्रप्रवर्तन’ (धर्म के चक्र को गतिमान करना) के चारों दिशाओं में प्रसार का प्रतीक हैं। यह शक्ति, साहस, आत्मविश्वास और गौरव का प्रतीक है। 🦁
सारनाथ स्तंभशीर्ष का प्रतीकात्मक अर्थ (Symbolic Meaning of the Sarnath Capital)
शेरों के नीचे की गोलाकार चौकी (abacus) पर चार छोटे पशु – एक दौड़ता हुआ घोड़ा, एक बैल, एक हाथी और एक सिंह – उकेरे गए हैं। इन पशुओं के बीच में 24 तीलियों वाला एक ‘धर्मचक्र’ (Wheel of Dharma) भी है। यह पूरा स्तंभशीर्ष एक उलटे कमल के फूल पर टिका हुआ है, जो पवित्रता और सृजन का प्रतीक है। इस स्तंभशीर्ष की कलात्मक उत्कृष्टता और गहरे प्रतीकात्मक अर्थ के कारण, इसे स्वतंत्र भारत के राष्ट्रीय प्रतीक (National Emblem of India) के रूप में अपनाया गया है। हमारे राष्ट्रीय ध्वज के केंद्र में मौजूद चक्र भी यहीं से लिया गया है। 🇮🇳
स्तंभों पर अंकित शिलालेख (Inscriptions on the Pillars)
जैसा कि पहले बताया गया है, इन स्तंभों का एक प्रमुख उद्देश्य अशोक के आदेशों और संदेशों को जनता तक पहुंचाना था। इन संदेशों को स्तंभों पर प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में खुदवाया गया था। ब्राह्मी लिपि को अधिकांश आधुनिक भारतीय लिपियों (जैसे देवनागरी) की जननी माना जाता है। इन शिलालेखों (edicts) में अशोक अपनी प्रजा को नैतिक जीवन जीने, प्राणियों पर दया करने, और सभी के प्रति सद्भाव रखने का उपदेश देते हैं। ये शिलालेख मौर्यकालीन समाज और अशोक की प्रशासनिक नीतियों को समझने के लिए अमूल्य ऐतिहासिक स्रोत हैं।
मौर्यकालीन स्तूप: बौद्ध आस्था के केंद्र (Mauryan Stupas: Centers of Buddhist Faith) ☸️
स्तूप क्या होते हैं? (What are Stupas?)
स्तूप, बौद्ध वास्तुकला के सबसे महत्वपूर्ण प्रतीकों में से एक हैं। स्तूप का शाब्दिक अर्थ है ‘ढेर’। ये मूल रूप से मिट्टी और ईंटों से बने अर्ध-गोलाकार टीले जैसी संरचनाएं होती थीं, जिनके भीतर महात्मा बुद्ध या अन्य बौद्ध संतों के अवशेष (जैसे बाल, नाखून, या अस्थियाँ) रखे जाते थे। इस प्रकार, स्तूप बौद्धों के लिए पूजा और ध्यान के पवित्र केंद्र बन गए। परंपरा के अनुसार, सम्राट अशोक ने बुद्ध के अवशेषों को निकालकर उन्हें अपने साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में भेजकर 84,000 स्तूपों का निर्माण करवाया था।
स्तूप निर्माण की परंपरा (The Tradition of Stupa Construction)
हालांकि अशोक द्वारा 84,000 स्तूप बनाने की बात अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकती है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि उन्होंने बड़ी संख्या में स्तूपों का निर्माण और जीर्णोद्धार करवाया। उनके समय में बने स्तूप मुख्य रूप से ईंटों के थे। बाद के शासकों, जैसे शुंग और सातवाहन, ने इन स्तूपों का विस्तार किया और उन्हें पत्थर की वेदिकाओं (railings) और तोरण द्वारों (gateways) से सजाया। स्तूप निर्माण मौर्यकालीन कला का एक अभिन्न अंग है और बौद्ध धर्म के प्रति अशोक की गहरी आस्था को दर्शाता है।
स्तूपों की संरचना (Structure of a Stupa)
एक सामान्य स्तूप की संरचना में कई महत्वपूर्ण भाग होते हैं। सबसे मुख्य भाग अर्ध-गोलाकार गुंबद होता है, जिसे ‘अंड’ (Anda) कहा जाता है। यह ब्रह्मांड या अनंतता का प्रतीक है। अंड के ऊपर एक चौकोर कटघरा होता है, जिसे ‘हर्मिका’ (Harmika) कहते हैं, जो देवताओं के निवास का प्रतीक है। हर्मिका के बीच से एक छड़ निकलती है, जिसे ‘यष्टि’ (Yashti) कहते हैं, जो दुनिया की धुरी का प्रतिनिधित्व करती है। यष्टि के ऊपर एक के ऊपर एक तीन ‘छत्र’ (Chhatra) लगे होते हैं, जो बुद्ध, धम्म और संघ के तीन रत्नों का प्रतीक हैं।
प्रदक्षिणा पथ और तोरण (Pradakshina Path and Torana)
मुख्य स्तूप के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए एक गोलाकार मार्ग होता है, जिसे ‘प्रदक्षिणा पथ’ या ‘मेधि’ (Medhi) कहा जाता है। भक्तगण इस पर दक्षिणावर्त (clockwise) दिशा में घूमकर स्तूप की परिक्रमा करते हैं। इस पूरे परिसर को एक चारदीवारी या ‘वेदिका’ (Vedika) से घेरा जाता था। इसमें प्रवेश के लिए चारों दिशाओं में भव्य प्रवेश द्वार बनाए जाते थे, जिन्हें ‘तोरण’ (Torana) कहा जाता है। इन तोरणों पर जातक कथाओं और बुद्ध के जीवन से जुड़ी घटनाओं का खूबसूरती से चित्रण किया जाता था।
सांची का महान स्तूप (The Great Stupa at Sanchi)
मौर्यकालीन स्तूपों में सबसे प्रसिद्ध और सबसे अच्छी तरह से संरक्षित मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित सांची का महान स्तूप है। इसका मूल ढांचा (ईंटों का) सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में बनवाया था। यह स्तूप एक पहाड़ी की चोटी पर स्थित है और इसके आसपास कई अन्य छोटे स्तूप, मंदिर और मठ हैं, जो इस स्थान के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं। सांची को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Site) भी घोषित किया गया है। 🗺️
सांची स्तूप का विस्तार और अलंकरण (Expansion and Decoration of Sanchi Stupa)
हालांकि अशोक ने इसका निर्माण शुरू किया था, लेकिन इसका वर्तमान स्वरूप बाद के शुंग और सातवाहन काल में विकसित हुआ। शुंग शासकों ने मूल ईंट के स्तूप को पत्थर की पट्टियों से ढककर इसका आकार लगभग दोगुना कर दिया। बाद में, सातवाहन काल में इसके चारों दिशाओं में चार भव्य तोरण द्वार जोड़े गए। इन तोरणों पर की गई मूर्तिकारी भारतीय कला की अमूल्य निधि है, जिसमें बुद्ध के जीवन और जातक कथाओं को बड़े ही जीवंत तरीके से दर्शाया गया है।
तोरणों पर मूर्तिकला (Sculpture on the Toranas)
सांची के तोरण द्वारों पर बुद्ध को कभी भी मानव रूप में नहीं दिखाया गया है। उनकी उपस्थिति को प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया गया है, जैसे उनके जन्म को कमल के फूल से, ज्ञान प्राप्ति को बोधि वृक्ष से, प्रथम उपदेश को धर्मचक्र से, और महापरिनिर्वाण को स्तूप से। इन तोरणों पर यक्ष-यक्षिणियों, हाथियों, शेरों और विभिन्न सजावटी रूपांकनों का भी सुंदर चित्रण है, जो उस समय की कलात्मक उत्कृष्टता को प्रदर्शित करता है। यह शिल्प (sculpture) उस युग की कहानी कहता है।
भरहुत और अन्य स्तूप (Bharhut and Other Stupas)
सांची के अलावा, भरहुत (मध्य प्रदेश) का स्तूप भी मौर्य और शुंग काल का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। हालांकि आज यह स्तूप नष्ट हो चुका है, लेकिन इसके तोरण और वेदिका के अवशेष कोलकाता के भारतीय संग्रहालय में संरक्षित हैं। इन पर भी जातक कथाओं का अद्भुत अंकन मिलता है। इसके अलावा, पिपरहवा (उत्तर प्रदेश) और वैशाली (बिहार) में भी प्राचीन स्तूपों के अवशेष मिले हैं, जो मौर्यकालीन कला और बौद्ध धर्म के प्रसार को प्रमाणित करते हैं।
स्तूपों का प्रतीकात्मक महत्व (Symbolic Significance of Stupas)
स्तूप केवल एक वास्तुशिल्प संरचना नहीं है, बल्कि इसका गहरा आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक महत्व है। इसका गुंबद आकाश और अनंतता का प्रतीक है, जो सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठने का संदेश देता है। हर्मिका देवताओं का निवास है, और छत्र बुद्ध, धम्म, और संघ के प्रति सम्मान का प्रतीक हैं। स्तूप की परिक्रमा करना जीवन-मृत्यु के चक्र से गुजरने और अंततः निर्वाण प्राप्त करने की प्रक्रिया का प्रतीक है। यह बौद्ध ब्रह्मांड विज्ञान (Buddhist cosmology) का एक त्रि-आयामी मॉडल है। 🌌
मौर्यकालीन गुफा वास्तुकला: आजीवकों के लिए आश्रय (Mauryan Cave Architecture: Shelters for Ajivikas) ⛰️
चट्टानों को काटकर बनाई गई गुफाएँ (Rock-Cut Caves)
मौर्यकाल ने भारत में चट्टानों को काटकर गुफाएँ (गुहा-विहार) बनाने की परंपरा की शुरुआत की। यह भारतीय वास्तुकला के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर था। इससे पहले, साधु-संत प्राकृतिक गुफाओं में रहते थे, लेकिन मौर्य शासकों ने पहली बार कठोर ग्रेनाइट जैसी चट्टानों को काटकर भिक्षुओं के रहने के लिए कृत्रिम गुफाओं का निर्माण करवाया। यह तकनीक अत्यंत श्रमसाध्य और कुशल कारीगरी की मांग करती थी, जो मौर्यकालीन शिल्पकारों की दक्षता को दर्शाती है।
आजीवक संप्रदाय के लिए दान (Donation for the Ajivika Sect)
दिलचस्प बात यह है कि ये शुरुआती गुफाएँ बौद्ध भिक्षुओं के लिए नहीं, बल्कि आजीवक संप्रदाय के तपस्वियों के लिए बनाई गई थीं। आजीवक संप्रदाय एक नास्तिक और नियतिवादी दर्शन था, जिसके संस्थापक मक्खलि गोसाल थे। सम्राट अशोक और उनके पौत्र दशरथ, धार्मिक रूप से सहिष्णु शासक थे। उन्होंने बौद्ध धर्म को संरक्षण देने के साथ-साथ अन्य संप्रदायों का भी सम्मान किया और उनके लिए इन गुफा-आश्रमों का निर्माण करवाया। यह उनकी धार्मिक सहिष्णुता (religious tolerance) की नीति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
बराबर और नागार्जुनी गुफाएँ (Barabar and Nagarjuni Caves)
मौर्यकालीन गुफा वास्तुकला का सबसे प्रमुख उदाहरण बिहार के जहानाबाद जिले में स्थित बराबर और नागार्जुनी पहाड़ियों में मिलता है। बराबर पहाड़ियों में चार गुफाएँ हैं – कर्ण चौपर, सुदामा गुफा, लोमस ऋषि गुफा और विश्व झोपड़ी। इन गुफाओं का निर्माण सम्राट अशोक ने आजीवकों को दान में देने के लिए करवाया था। पास की नागार्जुनी पहाड़ियों में तीन और गुफाएँ हैं, जिनका निर्माण अशोक के पौत्र दशरथ ने करवाया था।
गुफाओं की विशेषताएँ (Features of the Caves)
ये गुफाएँ अत्यंत कठोर ग्रेनाइट चट्टान को काटकर बनाई गई हैं। इनकी सबसे आश्चर्यजनक विशेषता इनकी भीतरी दीवारों पर की गई अद्भुत पॉलिश है। इन गुफाओं की दीवारें और छतें इतनी चिकनी और चमकदार हैं कि वे शीशे की तरह लगती हैं, ठीक अशोक स्तंभों की तरह। यह मौर्यकालीन शिल्पकारों की असाधारण कुशलता का प्रमाण है। इन गुफाओं की योजना बहुत सरल है – आमतौर पर एक आयताकार कक्ष और कभी-कभी एक छोटा गोलाकार कक्ष। ये वर्षा ऋतु के दौरान तपस्वियों के लिए आश्रय (वर्षावास) का काम करती थीं।
सुदामा और कर्ण चौपर गुफा (Sudama and Karna Chaupar Caves)
सुदामा गुफा को अशोक ने अपने शासनकाल के 12वें वर्ष में आजीवकों को दान दिया था, जैसा कि इसके शिलालेख से पता चलता है। इसमें एक बड़ा आयताकार मंडप और एक गोलाकार गर्भगृह है। कर्ण चौपर गुफा भी एक ही आयताकार कक्ष से बनी है, जिसकी दीवारें पूरी तरह से पॉलिश की हुई हैं। इन गुफाओं के अंदर की ध्वनिकी (acoustics) बहुत प्रभावशाली है, जहाँ हल्की सी आवाज भी गूंज उठती है, जो शायद ध्यान और मंत्रोच्चार के लिए उपयुक्त रही होगी। 🧘
लोमस ऋषि गुफा का प्रवेश द्वार (The Entrance of Lomas Rishi Cave)
बराबर गुफाओं में सबसे प्रसिद्ध लोमस ऋषि गुफा है, जिसका मुख्य कारण इसका भव्य और अलंकृत प्रवेश द्वार है। हालांकि यह गुफा अधूरी रह गई और इस पर कोई अशोक का शिलालेख नहीं है, लेकिन इसका प्रवेश द्वार अद्वितीय है। यह एक चैत्य मेहराब (Chaitya Arch) के आकार का है, जो उस समय की लकड़ी की वास्तुकला की नकल करता है। मेहराब के ऊपर, हाथियों की एक पंक्ति को स्तूप की ओर बढ़ते हुए खूबसूरती से उकेरा गया है। यह प्रवेश द्वार भारत में चैत्य-मेहराब का सबसे पुराना उदाहरण है और इसने बाद की बौद्ध गुफा वास्तुकला को बहुत प्रभावित किया। 🐘
वास्तुकला पर प्रभाव (Impact on Architecture)
बराबर की गुफाओं ने भारत में चट्टानों को काटकर बनाई जाने वाली वास्तुकला की एक लंबी और शानदार परंपरा की नींव रखी। मौर्यों के बाद, पश्चिमी भारत में भाजा, कार्ले, कन्हेरी और बाद में अजंता और एलोरा जैसी भव्य बौद्ध गुफाओं का निर्माण हुआ। इन सभी पर मौर्यकालीन गुफाओं का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इस प्रकार, मौर्यकालीन गुफाएँ (Barabar Caves) न केवल अपने समय की एक अनूठी कला थीं, बल्कि भविष्य की वास्तुकला के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी बनीं।
मौर्यकालीन मूर्तिकला और लोक कला (Mauryan Sculpture and Popular Art) 🗿
राजकीय कला बनाम लोक कला (Court Art vs. Popular Art)
मौर्यकालीन कला को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है: राजकीय कला (Court Art) और लोक कला (Popular Art)। राजकीय कला वह थी जिसे सम्राटों और राजपरिवार के संरक्षण में बनाया गया था। इसमें अशोक स्तंभ, स्तूप और राजकीय स्मारक शामिल हैं। यह कला बहुत परिष्कृत, भव्य और अक्सर राजनीतिक या धार्मिक संदेश देने के उद्देश्य से बनाई जाती थी। इसके विपरीत, लोक कला आम लोगों द्वारा बनाई और उपयोग की जाने वाली कला थी, जो उनकी दैनिक जीवन, आस्थाओं और परंपराओं को दर्शाती थी।
लोक कला की विशेषताएँ (Characteristics of Popular Art)
लोक कला राजकीय कला की तरह भव्य और विशाल नहीं थी, लेकिन यह अधिक जीवंत और स्वाभाविक थी। इसमें मुख्य रूप से पत्थर और मिट्टी (टेराकोटा) से बनी मूर्तियाँ शामिल हैं। ये मूर्तियाँ हमें उस समय के आम लोगों की धार्मिक मान्यताओं, विशेष रूप से यक्ष और यक्षिणियों की पूजा के बारे में जानकारी देती हैं। यह कला मौर्य साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में पाई गई है, जो इसकी व्यापक लोकप्रियता को दर्शाती है। यह आम जनता की कला थी, जो उनके जीवन का अभिन्न अंग थी।
यक्ष और यक्षिणी की मूर्तियाँ (Statues of Yaksha and Yakshini)
मौर्यकालीन लोक कला का सबसे अच्छा उदाहरण यक्ष (पुरुष प्रकृति-आत्मा) और यक्षिणी (स्त्री प्रकृति-आत्मा) की विशाल पत्थर की मूर्तियाँ हैं। ये मूर्तियाँ पटना, विदिशा, और मथुरा जैसे स्थानों से मिली हैं। यक्ष-यक्षिणी को उर्वरता, धन और प्रकृति की शक्तियों का देवता माना जाता था और बौद्ध तथा जैन धर्म के आगमन से पहले इनकी पूजा बहुत लोकप्रिय थी। ये मूर्तियाँ आकार में बड़ी, शक्तिशाली और स्थूल शरीर वाली होती थीं, जो उनकी शक्ति और जीवन-दायिनी क्षमता का प्रतीक था।
दीदारगंज यक्षिणी (Didarganj Yakshini)
यक्षिणी की मूर्तियों में सबसे प्रसिद्ध ‘दीदारगंज यक्षिणी’ की मूर्ति है, जो पटना (प्राचीन पाटलिपुत्र) के पास दीदारगंज से मिली थी। यह मूर्ति एक सुंदर स्त्री की है, जिसके दाहिने हाथ में एक चंवर (fly-whisk) है, इसलिए इसे ‘चंवरधारिणी यक्षिणी’ भी कहते हैं। बलुआ पत्थर से बनी इस मूर्ति पर भी मौर्यकालीन चमकदार पॉलिश है, जो इसे राजकीय कला से जोड़ती है। इस मूर्ति में शारीरिक सौंदर्य, वस्त्रों की सलवटें और आभूषणों को बड़ी बारीकी से दर्शाया गया है, जो मौर्यकालीन शिल्पकारों की उत्कृष्टता का प्रमाण है। 💎
परखम यक्ष (Parkham Yaksha)
यक्ष की मूर्तियों में मथुरा के पास परखम से मिली ‘परखम यक्ष’ की मूर्ति उल्लेखनीय है। यह एक विशाल और भारी-भरकम मूर्ति है, जो यक्ष की शक्ति को दर्शाती है। इन मूर्तियों की एक खास बात यह है कि इन्हें सामने से देखने के लिए बनाया गया है (frontal view)। हालांकि इनमें राजकीय कला जैसी सूक्ष्मता नहीं है, लेकिन इनमें एक आदिम ऊर्जा और जीवंतता है, जो इन्हें बेहद आकर्षक बनाती है। ये मूर्तियाँ हमें दिखाती हैं कि मौर्य काल में बौद्ध धर्म के साथ-साथ लोक धर्म और परंपराएं भी जीवित थीं।
टेराकोटा की कलाकृतियाँ (Terracotta Figurines)
मौर्यकालीन लोक कला का एक और महत्वपूर्ण पहलू टेराकोटा (पकी हुई मिट्टी) से बनी छोटी-छोटी मूर्तियाँ और खिलौने हैं। ये कलाकृतियाँ साम्राज्य के लगभग सभी पुरातात्विक स्थलों से बड़ी संख्या में मिली हैं। इनमें देवी-देवताओं, मनुष्यों, जानवरों की आकृतियाँ और खिलौना गाड़ियाँ शामिल हैं। ये ज्यादातर सांचों से बनाई जाती थीं, लेकिन कुछ हाथ से भी गढ़ी जाती थीं। ये हमें उस समय के लोगों के पहनावे, केश-सज्जा और मनोरंजन के साधनों के बारे में बहुमूल्य जानकारी देती हैं। 🏺
टेराकोटा कला का महत्व (Significance of Terracotta Art)
चूंकि टेराकोटा सस्ता और आसानी से उपलब्ध था, इसलिए यह आम लोगों की कला का माध्यम था। ये मूर्तियाँ धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग की जाती थीं और बच्चों के लिए खिलौनों का काम करती थीं। बुलंदी बाग (पटना) से मिली एक मुस्कुराती हुई लड़की की टेराकोटा मूर्ति मौर्यकालीन कला की जीवंतता का एक सुंदर उदाहरण है। यह कला हमें महलों और मठों से बाहर निकालकर आम आदमी के घर और जीवन में झाँकने का मौका देती है, जो इतिहास को समझने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मौर्यकालीन शिल्प की विशेषताएँ (Characteristics of Mauryan Sculpture)
कुल मिलाकर, मौर्यकालीन शिल्प की कुछ प्रमुख विशेषताएँ हैं: पत्थर का व्यापक उपयोग, विशेष रूप से बलुआ पत्थर का; सतहों पर शीशे जैसी चमकदार पॉलिश; यथार्थवादी और सजीव चित्रण; और स्मारकीय पैमाना (monumental scale)। राजकीय कला में जहाँ एकरूपता और औपचारिकता दिखाई देती है, वहीं लोक कला में विविधता और स्वाभाविकता। इन दोनों शैलियों ने मिलकर मौर्यकालीन कला को एक समृद्ध और बहुआयामी पहचान दी, जिसने आने वाली सदियों की भारतीय कला को प्रभावित किया।
निष्कर्ष: मौर्यकालीन कला की विरासत (Conclusion: Legacy of Mauryan Art) ✨
भारतीय कला पर प्रभाव (Impact on Indian Art)
मौर्यकालीन कला भारतीय कला के इतिहास में एक युगांतकारी घटना थी। इसने पहली बार कला में पत्थर जैसी स्थायी सामग्री का बड़े पैमाने पर उपयोग किया, जिसने कला को अमर बना दिया। अशोक स्तंभों की इंजीनियरिंग, स्तूपों की वास्तुकला, और गुफाओं को तराशने की तकनीक ने आने वाली पीढ़ियों के लिए मानक स्थापित किए। शुंग, सातवाहन, कुषाण और गुप्त काल की कला पर मौर्यकालीन कला का स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है। इसने भारतीय कला को एक नई दिशा और पहचान दी।
कला की एक नई परंपरा (A New Tradition in Art)
मौर्यों ने ही भारत में राजकीय कला की परंपरा शुरू की, जहाँ कला का उपयोग राज्य की शक्ति, विचारधारा और गौरव को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता था। अशोक ने दिखाया कि कैसे कला शांति, नैतिकता और धार्मिक सहिष्णुता का एक शक्तिशाली माध्यम बन सकती है। यह परंपरा बाद के भारतीय राजवंशों द्वारा भी अपनाई गई। मौर्यकालीन कला ने भारतीय सौंदर्यशास्त्र (Indian aesthetics) को परिभाषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें आध्यात्मिकता और भौतिकता का सुंदर संतुलन था।
राजनीतिक और धार्मिक संदेश (Political and Religious Message)
मौर्यकालीन कला सिर्फ कला के लिए नहीं थी; इसका एक स्पष्ट उद्देश्य था। अशोक स्तंभ और शिलालेख अशोक के विशाल साम्राज्य को एक साथ जोड़ने वाले संचार के माध्यम थे। वे उनकी ‘धम्म’ की नीति के मूक प्रचारक थे। इसी तरह, स्तूपों और विहारों के निर्माण ने बौद्ध धर्म को एक जन-आंदोलन बनाने में मदद की। कला के माध्यम से, मौर्य शासकों ने अपनी प्रजा के साथ एक संवाद स्थापित किया, जो उनकी सफलता का एक बड़ा कारण था।
अहिंसा और शांति का प्रतीक (Symbol of Non-violence and Peace)
मौर्यकालीन कला, विशेष रूप से अशोक के काल की कला, अहिंसा, करुणा और शांति के सार्वभौमिक संदेशों का प्रतीक है। कलिंग युद्ध के बाद, अशोक ने कला का उपयोग युद्ध की विभीषिका को भूलकर एक नैतिक और शांतिपूर्ण समाज बनाने के लिए किया। सारनाथ का सिंह चतुर्मुख, जो बुद्ध के शांति के संदेश को चारों दिशाओं में फैलाता है, आज भी दुनिया को शांति और सद्भाव का मार्ग दिखाता है। यह कला की परिवर्तनकारी शक्ति का एक जीवंत प्रमाण है। 🕊️
आज के समय में प्रासंगिकता (Relevance in Modern Times)
मौर्यकालीन कला की विरासत आज भी हमारे बीच जीवित है। सारनाथ का सिंह स्तंभशीर्ष हमारा राष्ट्रीय प्रतीक है, जो हमारे संप्रभुता और गौरव का प्रतिनिधित्व करता है। हमारे ध्वज में ‘अशोक चक्र’ हमें निरंतर प्रगति और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। सांची और बराबर की गुफाएँ जैसे स्मारक हमें हमारी समृद्ध वास्तुकला और इंजीनियरिंग विरासत की याद दिलाते हैं। ये स्मारक न केवल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं, बल्कि इतिहासकारों और छात्रों के लिए ज्ञान के अमूल्य स्रोत भी हैं।
अंतिम विचार (Final Thoughts)
अंत में, हम कह सकते हैं कि मौर्यकालीन कला भारतीय सभ्यता की आधारशिलाओं में से एक है। यह उस दौर का प्रतिबिंब है जब भारत ने राजनीतिक एकता, आर्थिक समृद्धि और नैतिक जागृति का अनुभव किया। अशोक स्तंभों की भव्यता से लेकर सांची स्तूप की शांति तक, और बराबर गुफाओं के रहस्य से लेकर यक्षिणियों की जीवंतता तक, यह कला हमें अपने अतीत पर गर्व करने और उससे प्रेरणा लेने का अवसर देती है। यह हमें सिखाती है कि कला केवल सौंदर्य की वस्तु नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और मानवीय मूल्यों का एक शक्तिशाली संरक्षक है। 🙏

