वैदिक काल (Vedic Age) UPSC

वैदिक काल (Vedic Age) UPSC

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वैदिक काल भारतीय इतिहास की नींव माना जाता है। इस काल का नाम वेद (Veda) पर पड़ा क्योंकि इसकी जानकारी हमें मुख्य रूप से ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद से मिलती है। इसके साथ ही ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक और उपनिषद (Upanishads) भी महत्वपूर्ण स्रोत हैं। वैदिक काल को दो हिस्सों में बाँटा जाता है—ऋग्वैदिक काल (Rigvedic Period, लगभग 1500–1000 ई.पू.) और उत्तर वैदिक काल (Later Vedic Period, लगभग 1000–600 ई.पू.)


समाज (Society)

ऋग्वैदिक समाज जनजातीय (Tribal) ढाँचे पर आधारित था। परिवार को कुल, कई कुलों को मिलाकर विश, और कई विश को मिलाकर जन कहा जाता था। इस समय स्त्रियों की स्थिति सम्मानजनक थी—वे सभा (Sabha) और समिति (Samiti) में भाग ले सकती थीं और वैदिक मंत्रों का अध्ययन करती थीं। उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति कमजोर हुई और शिक्षा तथा धार्मिक अधिकार सीमित होने लगे। इसी समय वर्ण व्यवस्था (Varna System) का विकास हुआ, जिसमें समाज को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में बाँटा गया।


राजनीति (Polity)

ऋग्वैदिक काल में शासन का प्रमुख राजा (Rajan) कहलाता था। उसके साथ पुरोहित (Purohit) और सेनापति (Senani) जैसे अधिकारी होते थे। सभा और समिति राजा को सलाह देती थीं, इसलिए उसकी शक्ति सीमित रहती थी। उत्तर वैदिक काल में राजा की शक्ति बढ़ी और वह साम्राट (Samrat) कहलाने लगा। अब जनपद और महाजनपद (Janapada & Mahajanapada) बनने लगे। कर (Tax) प्रणाली का आरंभ हुआ और सभा-समिति का महत्व घट गया।


अर्थव्यवस्था (Economy)

ऋग्वैदिक काल की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से पशुपालन और कृषि पर आधारित थी। गाय संपत्ति और सम्पन्नता का प्रतीक मानी जाती थी। विनिमय (Barter) प्रथा प्रचलित थी। उत्तर वैदिक काल में लौह (Iron) के प्रयोग से कृषि में तेजी आई। अब धान और गेहूँ जैसी फसलों की खेती होने लगी। अधिशेष (Surplus) उत्पादन से व्यापार और नगरों का विकास हुआ। निष्क और शतमान (Nishka & Satamana) जैसे धातु के टुकड़े लेन-देन में प्रयोग होने लगे।


धर्म और दर्शन (Religion & Philosophy)

ऋग्वैदिक काल में लोग प्रकृति पूजा (Nature Worship) करते थे—इंद्र, अग्नि, वरुण, वायु और सूर्य प्रमुख देवता थे। इस समय यज्ञ (Sacrifice) और मंत्रों का महत्व था, मूर्ति पूजा का प्रचलन नहीं था। उत्तर वैदिक काल में यज्ञों और कर्मकांड की प्रधानता बढ़ गई। पुरोहित वर्ग का वर्चस्व स्थापित हुआ। नए देवताओं में प्रजापति, विष्णु और रुद्र/शिव का महत्व बढ़ा। इसी समय उपनिषद (Upanishads) रचे गए, जिनमें आत्मा (Atman) और ब्रह्म (Brahman) की एकता, कर्म और मोक्ष (Moksha) की अवधारणाएँ प्रस्तुत हुईं।


शिक्षा और संस्कृति (Education & Culture)

वैदिक शिक्षा मौखिक (Oral Tradition) थी और गुरुकुल प्रणाली (Gurukul System) में दी जाती थी। इसमें शिष्य वेद, गणित, खगोल और धनुर्विद्या सीखते थे। भाषा संस्कृत (Sanskrit) थी। संगीत और छंद पर आधारित सामवेद को गाने के लिए प्रयोग किया जाता था। सामाजिक जीवन में अतिथि देवो भव, गृहस्थ आश्रम और यज्ञ संस्कार प्रमुख थे।


भौगोलिक विस्तार (Geographical Expansion)

ऋग्वैदिक काल का केंद्र सप्तसिंधु क्षेत्र (Punjab और अफगानिस्तान का भाग) था। उत्तर वैदिक काल में आर्य पूर्व की ओर बढ़कर कुरु-पांचाल, कोशल और विदेह तक फैल गए। यही क्षेत्र आगे चलकर महाजनपद और बौद्ध-जैन आंदोलन का केंद्र बने।


महत्व (Significance)

वैदिक काल ने भारतीय संस्कृति की नींव रखी। इसी समय हिंदू धर्म के प्रारंभिक स्वरूप का विकास हुआ, वर्ण व्यवस्था और गुरुकुल परंपरा बनी, और दार्शनिक विचारधारा का उद्भव हुआ। यह काल भारतीय समाज, राजनीति और धर्म के विकास का प्रारंभिक चरण था, जिसने आगे के इतिहास को दिशा दी।


ऋग्वेद की विशिष्टता

ऋग्वेद सबसे प्राचीन ग्रंथ है, इसमें कुल 10 मंडल (Mandal) हैं। दूसरे से सातवें मंडल को परिवार मंडल कहा जाता है क्योंकि इन्हें विशेष ऋषि परिवारों ने रचा। इसमें कुल 1028 सूक्त (Hymns) और लगभग 10,600 ऋचाएँ (Verses) हैं। यह न सिर्फ धार्मिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक जीवन का भी दस्तावेज है।


भाषा और साहित्य

वैदिक भाषा वैदिक संस्कृत (Vedic Sanskrit) कहलाती है, जो बाद में क्लासिकल संस्कृत बनी। इसमें उच्चारण और छंद (Meter) का विशेष महत्व था। ऋग्वेदिक छंदों में गायत्री, त्रिष्टुप, जगती और अनुष्टुप प्रमुख हैं।


गायत्री मंत्र

ऋग्वेद (मंडल 3) से लिया गया गायत्री मंत्र विश्व का सबसे प्रसिद्ध वैदिक मंत्र है, जिसे ऋषि विश्वामित्र ने रचा। यह सूर्य देवता की स्तुति है और आज भी भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।


पर्यावरण और जीवन शैली

ऋग्वैदिक काल में लोग गोपोषक (cattle-rearing) थे, इसलिए गाय का विशेष महत्व था। ऋग्वेद में गंगा (Ganga) और यमुना (Yamuna) का उल्लेख मिलता है, लेकिन सबसे अधिक बार सरस्वती नदी का वर्णन हुआ है। उत्तर वैदिक काल में खेती का महत्व बढ़ा और लोग स्थायी जीवन जीने लगे।


युद्ध और सैन्य जीवन

ऋग्वैदिक काल में युद्ध रथों (Chariots), घोड़ों और धनुष-बाण से लड़े जाते थे। राजा को गोपति (lord of cattle) और जनपति (lord of people) कहा जाता था। युद्ध में विजय के बाद बलि और समर्पण की परंपरा थी।


सामाजिक सुधार की झलक

ऋग्वेद में कुछ स्त्रियों को ‘ब्रहमवादिनी’ कहा गया, जिन्होंने वेदों का ज्ञान प्राप्त किया। उदाहरण के लिए घोषा और लोपामुद्रा। यह दर्शाता है कि प्रारंभिक वैदिक काल में महिलाओं को शिक्षा और विद्या में सम्मानजनक स्थान था।


उत्तर वैदिक साहित्य

इस काल में ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक और उपनिषद लिखे गए।

  • ब्राह्मण ग्रंथ – यज्ञ और कर्मकांड की व्याख्या।
  • आरण्यक – जंगलों में लिखे गए ग्रंथ, जो साधकों के लिए थे।
  • उपनिषद (Upanishads) – दार्शनिक ग्रंथ, जिनमें आत्मा और ब्रह्म की एकता की चर्चा है।

विज्ञान और गणित की झलक

वैदिक काल में खगोल विज्ञान (Astronomy) का ज्ञान था। लोग सूर्य और चंद्रमा की गति, ऋतु परिवर्तन और वर्षा का अनुमान लगाते थे। यज्ञ-वेदियाँ ज्यामिति (Geometry) के ज्ञान से बनाई जाती थीं, जिससे प्रारंभिक गणित का पता चलता है।


दास प्रथा

ऋग्वेद में दास और दस्यु शब्द मिले हैं। दास कभी-कभी शत्रु जातियों के लिए प्रयोग होता था, जबकि बाद में यह सेवा-निवृत्त वर्ग को दर्शाने लगा। उत्तर वैदिक काल में दास प्रथा स्थायी हो गई और शूद्रों की स्थिति कमजोर होती गई।


वैश्विक महत्व

वैदिक काल की परंपराएँ केवल भारत तक सीमित नहीं थीं, बल्कि इंडो-यूरोपियन सभ्यता (Indo-European Civilization) से भी जुड़ी हैं। वैदिक भाषा और संस्कृत का मेल यूनानी (Greek), लैटिन (Latin) और प्राचीन फारसी (Persian) भाषाओं से मिलता है।



वैदिक समाज में महिलाओं की स्थिति

वैदिक काल में महिलाओं को उच्च स्थान प्राप्त था। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति थी और वे उपासना, यज्ञ, वाद-विवाद (debates) और दार्शनिक चर्चाओं में सक्रिय भाग लेती थीं।

  • गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषी महिलाओं का उल्लेख मिलता है।
  • उन्हें “ब्रह्मवादिनी” (जो वेदों का ज्ञान रखती थी) की उपाधि मिलती थी।

विवाह प्रणाली और सामाजिक नियम

  • विवाह मुख्यतः एकपत्नी प्रथा (monogamy) पर आधारित था, लेकिन विशेष परिस्थितियों में बहुपत्नी प्रथा भी देखने को मिलती थी।
  • सप्तपदी (सात फेरे) की परंपरा इसी काल में स्थापित हुई।
  • विधवाओं के पुनर्विवाह (Remarriage) की भी परंपरा विद्यमान थी।

धर्म और नैतिक मूल्य

  • वैदिक समाज ऋत (Rita – Cosmic Order) के सिद्धांत पर आधारित था।
  • लोग सत्य, दान, अहिंसा और यज्ञ को जीवन का प्रमुख अंग मानते थे।
  • पाप और पुण्य की अवधारणा भी इसी काल में विकसित हुई।

शिक्षा प्रणाली

  • शिक्षा का माध्यम गुरुकुल प्रणाली था।
  • विद्यार्थी गुरु के आश्रम (Ashram) में रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे।
  • शिक्षा में वेद, गणित, खगोल, आयुर्वेद, संगीत और दर्शन शामिल थे।

राजसत्ता और प्रशासन

  • राजा का चुनाव (Election of King) होता था, जो प्रजापालक और न्यायप्रिय होना चाहिए।
  • राजा को सीमित शक्तियाँ थीं और वह सभा और समिति की सलाह के बिना निर्णय नहीं ले सकता था।
  • कर प्रणाली (Tax System) बहुत सरल थी, जिसमें बली और कर प्रमुख थे।

कला और संस्कृति

  • संगीत और नृत्य वैदिक समाज का अहम हिस्सा थे।
  • सामवेद को “संगीत का मूल” माना जाता है।
  • लोककला और लोकगीत भी विद्यमान थे।

वेदांग (Vedanga) – वैदिक ज्ञान को समझने और संरक्षित करने के लिए छह वेदांग बने: शिक्षा (phonetics), व्याकरण (grammar), निरुक्त (etymology), छन्द (metrics), ज्योतिष (astronomy/astrology), कल्प (rituals)। यह बच्चों को बताने से उन्हें पता चलेगा कि ज्ञान को व्यवस्थित किया जा रहा था।

धर्मसूत्र और गृहतसूत्र (Dharmasutra & Grihyasutra) – उत्तर वैदिक काल में सामाजिक और धार्मिक नियमों को लिखित रूप में देने की परंपरा शुरू हुई। गृहतसूत्र में घर-परिवार के संस्कार (जन्म, नामकरण, विवाह, श्राद्ध आदि) बताए गए।

ऋषि और आश्रम परंपरा (Rishi & Ashram tradition) – वैदिक काल में ऋषि (sages) ज्ञान-संरक्षक माने जाते थे। बाद के चरण में आश्रम व्यवस्था (Brahmacharya, Grihastha, Vanaprastha, Sannyasa) विकसित हुई, हालांकि इसका पूरा रूप उत्तर वैदिक और बाद के युग में मिला।

त्योहार और यज्ञ (Festivals & Rituals) – वैदिक लोग यज्ञ (sacrifices) को धार्मिक और सामाजिक जीवन का केंद्र मानते थे। अग्नि, सोम, इंद्र की पूजा विशेष महत्व रखती थी। यज्ञ से जुड़े उत्सव सामूहिक जीवन को जोड़ते थे।

चिकित्सा और विज्ञान (Medicine & Science) – वैदिक मंत्रों में औषधियों का उल्लेख है। चरक और सुश्रुत का समय बाद में है, परंतु वैदिक लोग जड़ी-बूटियों से उपचार जानते थे। खगोल ज्ञान (Astronomy) भी उनके पास था — ऋग्वेद में सूर्य, चंद्रमा, ऋतुओं का उल्लेख मिलता है।

संगीत और कला (Music & Arts) – सामवेद (Samaveda) को संगीत का आधार माना जाता है। इसमें ऋचाओं को लयबद्ध और सुरों में गाने की परंपरा थी। यह भारतीय संगीत की जड़ है।



📝 वैदिक सभ्यता – UPSC स्तर MCQs

Q1. ऋग्वैदिक काल की ‘सभा’ और ‘समिति’ के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

  1. सभा में आम जनता की व्यापक भागीदारी होती थी।
  2. समिति मुख्यतः प्रशासनिक और सैन्य मामलों में सक्रिय थी।
  3. दोनों संस्थाएँ राजा की शक्ति पर नियंत्रण रखती थीं।

सही कथन चुनिए:
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3

उत्तर: b) केवल 2 और 3
👉 सभा अपेक्षाकृत अभिजात वर्ग की संस्था थी, जबकि समिति अधिक लोकतांत्रिक और सक्रिय थी। दोनों राजा की शक्ति पर अंकुश लगाती थीं।


Q2. वैदिक अर्थव्यवस्था के संदर्भ में कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

  1. कृषि प्रमुख पेशा था और हल के प्रयोग का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
  2. निष्क और शतमान धातु के रूप में विनिमय (exchange) के साधन थे।
  3. पशुपालन को समृद्धि का प्रमुख सूचक माना जाता था।

a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3

उत्तर: d) 1, 2 और 3
👉 ऋग्वेद में हल (Langala) का उल्लेख है, निष्क-शतमान सोने-चाँदी के टुकड़े थे और पशुपालन समृद्धि का प्रतीक माना जाता था।


Q3. वैदिक देवताओं के बारे में सही युग्म चुनिए:

  1. इंद्र – वज्रधारी और पुरंदर
  2. वरुण – ऋत (Cosmic order) के संरक्षक
  3. अग्नि – देवताओं और मनुष्यों के बीच संदेशवाहक

नीचे दिए विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए:
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3

उत्तर: d) 1, 2 और 3
👉 तीनों युग्म सही हैं। इंद्र प्रमुख देवता, वरुण नैतिक व ऋत के देवता और अग्नि यज्ञों के माध्यम से संदेशवाहक।


Q4. उत्तर वैदिक काल (Later Vedic Period) में निम्नलिखित में से कौन-सा परिवर्तन नहीं हुआ?
a) लौह (Iron) का उपयोग बढ़ा और कृषि भूमि का विस्तार हुआ।
b) राजा की शक्ति सभा-समिति के स्थान पर और मजबूत हुई।
c) यज्ञों का महत्व घटने लगा और मूर्तिपूजा का आरंभ हुआ।
d) जाति व्यवस्था (Caste system) अधिक कठोर हो गई।

उत्तर: c) यज्ञों का महत्व घटने लगा और मूर्तिपूजा का आरंभ हुआ।
👉 उत्तर वैदिक काल में यज्ञों का महत्व घटा नहीं बल्कि बढ़ा। मूर्तिपूजा का प्रचलन बाद में पुराणिक काल में प्रमुख हुआ।


Q5. वैदिक शिक्षा व्यवस्था के बारे में कौन-सा कथन गलत है?
a) शिक्षा गुरुकुल प्रणाली पर आधारित थी।
b) विद्यार्थी गुरु की सेवा करके शिक्षा प्राप्त करते थे।
c) शिक्षा मुख्यतः मौखिक (Oral) थी।
d) शिक्षा केवल धनी वर्ग तक सीमित थी।

उत्तर: d) शिक्षा केवल धनी वर्ग तक सीमित थी।
👉 शिक्षा सभी वर्णों (विशेषकर ब्राह्मण और क्षत्रिय) के लिए खुली थी; धनी वर्ग तक सीमित नहीं थी।


Q6. वैदिक सभ्यता में ‘सप्तसिंधु’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया गया है?
a) गंगा के सात उपनदी क्षेत्र
b) सात बड़े नगर
c) सिंधु क्षेत्र की सात नदियाँ
d) सात समुद्र

उत्तर: c) सिंधु क्षेत्र की सात नदियाँ
👉 सप्तसिंधु ऋग्वेद में उल्लिखित सात नदियों का समूह है।


Q7. उपनिषदों (Upanishads) की विशेषता है:

  1. यज्ञ और कर्मकांड का महत्व बढ़ाना।
  2. आत्मा और ब्रह्म के संबंध पर बल देना।
  3. ध्यान और ज्ञानमार्ग की श्रेष्ठता पर बल देना।

सही विकल्प चुनिए:
a) केवल 1 और 2
b) केवल 2 और 3
c) केवल 1 और 3
d) 1, 2 और 3

उत्तर: b) केवल 2 और 3
👉 उपनिषदों में दार्शनिक चिंतन, आत्मा-ब्रह्म की एकता और ध्यान-ज्ञान पर बल था; यज्ञों का महत्व घटाया गया।


Q8. वैदिक समाज की स्त्रियों के संदर्भ में कौन-सा कथन सही नहीं है?
a) ऋग्वैदिक काल में कुछ स्त्रियों को वेदों के मंत्र रचने का अवसर मिला।
b) स्त्रियाँ समिति जैसी संस्थाओं में भाग ले सकती थीं।
c) उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति में और सुधार हुआ।
d) कुछ स्त्रियाँ ब्रह्मवादिनी कहलाती थीं।

उत्तर: c) उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति में और सुधार हुआ।
👉 उल्टा हुआ — उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर हो गई।


Q9. वैदिक सभ्यता और सिंधु सभ्यता में मुख्य अंतर कौन-सा था?
a) सिंधु लोग कृषक नहीं थे, वैदिक लोग कृषक थे।
b) सिंधु लोग नगरीय थे, वैदिक लोग ग्राम्य (rural) थे।
c) सिंधु लोग धातु से अनभिज्ञ थे, वैदिक लोग धातु प्रयोग जानते थे।
d) सिंधु लोग लौह का प्रयोग करते थे, वैदिक लोग नहीं।

उत्तर: b) सिंधु लोग नगरीय थे, वैदिक लोग ग्राम्य थे।
👉 सिंधु सभ्यता शहरी (urban) थी जबकि वैदिक सभ्यता गाँव-केंद्रित (rural, pastoral + agricultural) थी।


Q10. वेदांग (Vedanga) का मुख्य उद्देश्य था:
a) यज्ञ-कर्मकांड का विस्तार
b) वेदों के अध्ययन और व्याख्या में सहायता
c) धर्मसूत्र और गृहतसूत्र की रचना
d) स्मृति साहित्य का संकलन

उत्तर: b) वेदों के अध्ययन और व्याख्या में सहायता
👉 वेदांग (छह सहायक शास्त्र) का कार्य वेदों को समझना और सुरक्षित रखना था।



✍️ UPSC Mains – Answer Writing

प्रश्न:
“वैदिक सभ्यता ने भारतीय समाज, धर्म और राजनीति की नींव रखी। चर्चा कीजिए।” (Discuss how Vedic Civilization laid the foundation of Indian society, religion, and politics.)


उत्तर:

भूमिका (Introduction):
भारत के इतिहास में वैदिक सभ्यता (1500 ई.पू.–600 ई.पू.) का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस काल में समाज, धर्म और राजनीति की वे नींवें रखी गईं, जिन्होंने आगे चलकर भारतीय संस्कृति और परंपरा को आकार दिया। ऋग्वैदिक एवं उत्तर वैदिक दोनों चरणों में अनेक परिवर्तन हुए, परंतु इनकी जड़ें एक ही सभ्यता में थीं।


1. समाज पर प्रभाव (Impact on Society):

  • वर्ण व्यवस्था (Varna System): प्रारंभिक काल में वर्ण विभाजन व्यवसाय और गुणों पर आधारित था, पर उत्तर वैदिक काल में यह जन्म-आधारित और कठोर होने लगा।
  • पारिवारिक संरचना: पितृसत्तात्मक संयुक्त परिवार प्रचलित था, स्त्रियों की स्थिति ऋग्वैदिक काल में अपेक्षाकृत बेहतर थी, किंतु उत्तर वैदिक काल में गिरावट आई।
  • शिक्षा एवं गुरुकुल परंपरा: मौखिक परंपरा (Oral tradition) पर आधारित शिक्षा प्रणाली विकसित हुई, जिससे वैदिक साहित्य सुरक्षित रहा।

2. धर्म पर प्रभाव (Impact on Religion):

  • देवताओं की पूजा: प्रारंभिक वैदिक काल में इंद्र, अग्नि, वरुण जैसे प्रकृति-देवताओं की पूजा होती थी।
  • यज्ञ-कर्मकांड: यज्ञ सामाजिक व धार्मिक जीवन का केंद्र बने, जिससे पुरोहित वर्ग (Priestly class) का महत्व बढ़ा।
  • दार्शनिक विकास: उत्तर वैदिक काल में उपनिषदों का उदय हुआ, जिसने आत्मा (Atman) और ब्रह्म (Brahman) की एकता तथा मोक्ष (Moksha) जैसे गहन विचार प्रस्तुत किए।

3. राजनीति पर प्रभाव (Impact on Polity):

  • राजशक्ति: प्रारंभिक वैदिक काल में राजा की शक्ति सभा और समिति द्वारा नियंत्रित थी।
  • उत्तर वैदिक काल: धीरे-धीरे राजा अधिक शक्तिशाली हुआ और राजसत्ता वंशानुगत होने लगी।
  • जनतांत्रिक संस्थाएँ: सभा और समिति जैसी संस्थाओं ने भारतीय राजनीति में परामर्श और जनभागीदारी की परंपरा स्थापित की।

निष्कर्ष (Conclusion):
वैदिक सभ्यता ने भारतीय समाज, धर्म और राजनीति की मूल संरचना प्रदान की। वर्ण व्यवस्था, गुरुकुल शिक्षा, यज्ञ परंपरा, दार्शनिक चिंतन, तथा सभा-समिति जैसी संस्थाएँ आगे के शताब्दियों में विकसित होकर भारतीय संस्कृति का स्थायी आधार बनीं। अतः यह कहना उचित है कि वैदिक सभ्यता भारतीय जीवन के लिए “Foundation Stone” साबित हुई।



प्रश्न :

“वैदिक सभ्यता में स्त्रियों की स्थिति का मूल्यांकन कीजिए।”


उत्तर :

वैदिक सभ्यता भारतीय इतिहास की वह अवधि है, जिसमें सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन की नींव रखी गई। इस युग में स्त्रियों की स्थिति को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह समाज के विकास और मूल्य प्रणाली को स्पष्ट करता है।

प्रारंभिक वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति
ऋग्वेद से ज्ञात होता है कि स्त्रियों को सम्मान प्राप्त था। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने की स्वतंत्रता थी और वे यज्ञ तथा धार्मिक अनुष्ठानों में सक्रिय भाग लेती थीं। गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियों का उल्लेख इस बात का प्रमाण है कि स्त्रियाँ दार्शनिक चर्चाओं तक में भाग लेती थीं। विवाह प्रथा अपेक्षाकृत सरल थी और विधवा को पुनर्विवाह का अधिकार भी प्राप्त था।

उत्तर वैदिक काल में स्थिति का परिवर्तन
समय के साथ स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आने लगी। वर्ण व्यवस्था कठोर हुई और स्त्रियों को गृहस्थ जीवन तक सीमित किया जाने लगा। वेद अध्ययन पर रोक लगाई गई और उनका धार्मिक व सामाजिक भागीदारी का अधिकार धीरे-धीरे कम होने लगा। इस काल में बाल विवाह और बहुपत्नी प्रथा जैसी परंपराएँ भी उभरने लगीं।

निष्कर्ष
स्पष्ट है कि वैदिक काल के प्रारंभिक चरण में स्त्रियों की स्थिति सम्मानजनक और स्वतंत्र थी, किंतु उत्तर वैदिक काल में उनकी स्थिति अधोगति को प्राप्त हुई। यही प्रवृत्ति आगे चलकर भारतीय समाज की संरचना में गहराई से स्थापित हो गई।



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