सहभागी शासन: भविष्य की दिशा (Future of Governance)
सहभागी शासन: भविष्य की दिशा (Future of Governance)

सहभागी शासन: भविष्य की दिशा (Future of Governance)

विषय-सूची (Table of Contents)

1. परिचय: एक नए युग का सूत्रपात (Introduction: The Dawn of a New Era)

एक गाँव की बदली तस्वीर (A Village’s Transformed Picture)

कल्पना कीजिए एक छोटे से गाँव की, जहाँ सालों से एक कच्ची सड़क बरसात में कीचड़ का दरिया बन जाती थी। बच्चे स्कूल नहीं जा पाते, मरीज़ों को अस्पताल ले जाना एक जंग जैसा था। सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट-काटकर गाँव वाले थक चुके थे, पर नतीजा सिफर था। फिर एक दिन, गाँव के कुछ युवा और बुजुर्गों ने मिलकर एक चौपाल बुलाई। उन्होंने तय किया कि वे सरकार का इंतज़ार नहीं करेंगे, बल्कि अपनी मदद खुद करेंगे। हर घर से किसी ने श्रमदान किया, किसी ने थोड़ा पैसा दिया और कुछ लोगों ने मिलकर स्थानीय प्रशासन से संपर्क साधा। उन्होंने सिर्फ समस्या नहीं बताई, बल्कि अपना पूरा प्लान—बजट, श्रमदान का ब्योरा और सड़क का नक्शा—अधिकारियों के सामने रख दिया। इस सामूहिक प्रयास को देखकर अधिकारी भी प्रभावित हुए और उन्होंने सीमेंट, तारकोल जैसी सामग्री मुहैया करा दी। कुछ ही महीनों में, वह कच्ची सड़क एक पक्की सड़क में तब्दील हो चुकी थी। यह केवल एक सड़क नहीं थी; यह उस गाँव के आत्मविश्वास, एकता और शक्ति का प्रतीक थी। यही है सहभागी शासन (Participatory Governance) की असली ताकत, जहाँ नागरिक केवल मूक दर्शक नहीं, बल्कि विकास की कहानी के मुख्य लेखक होते हैं। यह शासन की वह प्रणाली है जहाँ निर्णय लेने की प्रक्रिया (decision-making process) में आम जनता की सीधी और सक्रिय भागीदारी होती है।

शासन का बदलता स्वरूप (The Changing Nature of Governance)

आज की तेजी से बदलती दुनिया में, शासन का पारंपरिक मॉडल, जहाँ कुछ चुने हुए प्रतिनिधि या अधिकारी बंद कमरों में नीतियां बनाते हैं, अब अपर्याप्त साबित हो रहा है। सूचना क्रांति, बढ़ती शिक्षा और सामाजिक जागरूकता ने नागरिकों को अधिक सशक्त बनाया है। वे अब केवल मतदाता बनकर नहीं रहना चाहते, बल्कि उन फैसलों में भी अपनी आवाज़ बुलंद करना चाहते हैं जो उनके जीवन को सीधे प्रभावित करते हैं। इसी aspiration का परिणाम है सहभागी शासन, जो लोकतंत्र को केवल चुनावों तक सीमित न रखकर उसे जीवन का एक अभिन्न अंग बनाता है। यह एक ऐसा भविष्य रचता है जहाँ सरकार और नागरिक मिलकर, कंधे से कंधा मिलाकर एक बेहतर समाज का निर्माण करते हैं। यह लेख इसी क्रांतिकारी अवधारणा—सहभागी शासन—की गहराई में उतरेगा, इसके इतिहास, सिद्धांतों, चुनौतियों और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तार से प्रकाश डालेगा।

2. सहभागी शासन क्या है? (What is Participatory Governance?)

परिभाषा और मूल अवधारणा (Definition and Core Concept)

सहभागी शासन, जिसे ‘सह-शासन’ (Co-governance) या ‘जन-सहभागिता’ (Public Participation) भी कहा जाता है, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से आम नागरिक और नागरिक समाज संगठन (civil society organizations) सीधे तौर पर उन सार्वजनिक नीतियों और निर्णयों के निर्माण, क्रियान्वयन और निगरानी में शामिल होते हैं जो उनके समुदायों को प्रभावित करते हैं। यह ‘ऊपर से नीचे’ (Top-Down) के पारंपरिक मॉडल के विपरीत ‘नीचे से ऊपर’ (Bottom-Up) के दृष्टिकोण पर आधारित है। इसका मूल मंत्र है— “जिनके लिए निर्णय लिए जा रहे हैं, उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिए।”

  • यह मानता है कि स्थानीय लोग अपनी समस्याओं और जरूरतों को सबसे बेहतर तरीके से समझते हैं।
  • इसका उद्देश्य सरकार को अधिक पारदर्शी (transparent), जवाबदेह (accountable) और उत्तरदायी (responsive) बनाना है।
  • यह नागरिकों को केवल अधिकारों के प्राप्तकर्ता के रूप में नहीं, बल्कि विकास प्रक्रिया में सक्रिय भागीदार के रूप में देखता है।
  • सहभागी शासन लोकतंत्र को मजबूत करता है और सरकार तथा नागरिकों के बीच विश्वास की खाई को पाटता है।

पारंपरिक शासन बनाम सहभागी शासन (Traditional Governance vs. Participatory Governance)

इन दोनों मॉडलों के बीच के अंतर को समझना महत्वपूर्ण है ताकि हम सहभागी शासन के महत्व को पूरी तरह से समझ सकें। पारंपरिक शासन में, शक्ति कुछ लोगों के हाथों में केंद्रित होती है, जबकि सहभागी शासन शक्ति के विकेंद्रीकरण (decentralization of power) पर जोर देता है।

  • निर्णय प्रक्रिया: पारंपरिक शासन में निर्णय नौकरशाहों और राजनेताओं द्वारा लिए जाते हैं। सहभागी शासन में, नागरिकों, विशेषज्ञों और हितधारकों (stakeholders) के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद निर्णय लिए जाते हैं।
  • सूचना का प्रवाह: पारंपरिक मॉडल में सूचना का प्रवाह एकतरफा (सरकार से नागरिक) होता है। सहभागी मॉडल में, सूचना का प्रवाह दोतरफा होता है, जहाँ नागरिक भी सरकार को महत्वपूर्ण फीडबैक और जानकारी प्रदान करते हैं।
  • जवाबदेही: पारंपरिक शासन में जवाबदेही मुख्य रूप से चुनावों के माध्यम से होती है। सहभागी शासन में सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit) और सार्वजनिक सुनवाई जैसे उपकरणों के माध्यम से निरंतर जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है।
  • नागरिक की भूमिका: पारंपरिक शासन में नागरिक एक निष्क्रिय प्राप्तकर्ता (passive recipient) होता है। सहभागी शासन में नागरिक एक सक्रिय भागीदार (active participant) होता है।

सहभागी शासन की आवश्यकता क्यों? (Why is Participatory Governance Needed?)

आधुनिक समाजों की जटिलताएँ पारंपरिक शासन प्रणालियों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश करती हैं। जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण, असमानता और महामारी जैसी समस्याओं का समाधान केवल सरकार अकेले नहीं कर सकती। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक ज्ञान, अनुभव और संसाधनों की आवश्यकता होती है।

  • बेहतर नीति निर्माण: जब नागरिक भाग लेते हैं, तो वे अपनी स्थानीय परिस्थितियों और जरूरतों के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करते हैं, जिससे नीतियां अधिक प्रभावी और व्यावहारिक बनती हैं।
  • सार्वजनिक विश्वास में वृद्धि: जब लोग महसूस करते हैं कि उनकी आवाज़ सुनी जा रही है, तो उनका सरकारी संस्थानों में विश्वास बढ़ता है। यह सामाजिक सद्भाव और राजनीतिक स्थिरता (political stability) के लिए महत्वपूर्ण है।
  • संसाधनों का कुशल उपयोग: सहभागी शासन भ्रष्टाचार को कम करने में मदद करता है और यह सुनिश्चित करता है कि सार्वजनिक धन का उपयोग उन परियोजनाओं के लिए किया जाए जिनकी वास्तव में आवश्यकता है।
  • नागरिकों का सशक्तिकरण: यह प्रक्रिया नागरिकों को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करती है, जिससे वे अधिक सक्रिय और जिम्मेदार नागरिक बनते हैं।

3. सहभागी शासन का ऐतिहासिक विकास (Historical Evolution of Participatory Governance)

प्राचीन काल की जड़ें (Roots in Ancient Times)

सहभागी शासन कोई नई अवधारणा नहीं है। इसके बीज हमें प्राचीन सभ्यताओं में भी मिलते हैं।

  • प्राचीन ग्रीस (Ancient Greece): एथेंस के लोकतंत्र में, नागरिक सीधे ‘एगोरा’ (सार्वजनिक सभा) में इकट्ठा होकर कानूनों पर बहस करते और निर्णय लेते थे। यह प्रत्यक्ष लोकतंत्र (direct democracy) का एक प्रारंभिक रूप था।
  • रोमन गणराज्य (Roman Republic): यहाँ भी नागरिकों की सभाएँ होती थीं जो कानून बनाती थीं और मजिस्ट्रेटों का चुनाव करती थीं, हालांकि यह प्रणाली अधिक अभिजात्यवादी थी।
  • प्राचीन भारत (Ancient India): भारत में, ‘सभा’ और ‘समिति’ जैसी वैदिक संस्थाएँ थीं जहाँ कबीले के सदस्य महत्वपूर्ण मामलों पर चर्चा करते थे। चोल साम्राज्य के दौरान ग्राम सभाएँ (Village Assemblies) स्थानीय स्वशासन का एक उत्कृष्ट उदाहरण थीं, जिनके पास भूमि प्रबंधन, न्याय और कर संग्रह जैसे व्यापक अधिकार थे। यह भारत में सहभागी शासन की एक गहरी ऐतिहासिक विरासत को दर्शाता है।

मध्यकाल और पुनर्जागरण (The Middle Ages and the Renaissance)

मध्यकाल में राजशाही और सामंतवाद के उदय के साथ प्रत्यक्ष नागरिक भागीदारी में गिरावट आई। शासन अत्यधिक केंद्रीकृत हो गया। हालांकि, शहरों के विकास के साथ, व्यापारिक संघों (guilds) और नगर परिषदों के रूप में भागीदारी के नए रूप उभरे। पुनर्जागरण और प्रबोधन काल के विचारकों जैसे जॉन लॉक और जीन-जैक्स रूसो ने ‘सामाजिक अनुबंध’ (Social Contract) और ‘लोकप्रिय संप्रभुता’ (Popular Sovereignty) के सिद्धांतों को सामने रखा, जिसने आधुनिक लोकतांत्रिक विचारों की नींव रखी। उन्होंने इस विचार को बढ़ावा दिया कि सरकार की वैधता शासित की सहमति पर आधारित होनी चाहिए।

20वीं सदी और समकालीन युग (The 20th Century and the Contemporary Era)

20वीं सदी में नागरिक अधिकारों के आंदोलनों, उपनिवेशवाद की समाप्ति और वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र के प्रसार ने सहभागी शासन की अवधारणा को नया जीवन दिया।

  • नागरिक अधिकार आंदोलन (Civil Rights Movements): 1960 के दशक में दुनिया भर में हुए आंदोलनों ने हाशिए पर पड़े समुदायों के लिए समान अधिकारों और निर्णय लेने में भागीदारी की मांग की।
  • पर्यावरणीय आंदोलन (Environmental Movements): पर्यावरणविदों ने तर्क दिया कि प्राकृतिक संसाधनों को प्रभावित करने वाले निर्णयों में स्थानीय समुदायों की भागीदारी आवश्यक है।
  • वैश्वीकरण और सूचना प्रौद्योगिकी (Globalization and IT): इंटरनेट और सोशल मीडिया के आगमन ने नागरिकों के लिए सूचना तक पहुँचना, संगठित होना और अपनी आवाज़ उठाना आसान बना दिया है। इसने ई-गवर्नेंस और डिजिटल भागीदारी के नए रास्ते खोले हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की भूमिका: विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) जैसी संस्थाओं ने सुशासन (Good Governance) के एक प्रमुख घटक के रूप में सहभागी शासन को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया है, जिससे विकासशील देशों में इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहन मिला है।

4. सहभागी शासन के प्रमुख सिद्धांत (Core Principles of Participatory Governance)

एक प्रभावी और सार्थक सहभागी शासन प्रणाली कुछ मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित होती है। ये सिद्धांत सुनिश्चित करते हैं कि भागीदारी केवल एक दिखावा न होकर वास्तविक और प्रभावशाली हो।

समावेशिता (Inclusivity)

समावेशिता का अर्थ है कि निर्णय प्रक्रिया में समाज के सभी वर्गों—विशेष रूप से महिलाओं, गरीबों, अल्पसंख्यकों, और अन्य हाशिए पर पड़े समूहों—को भाग लेने का समान अवसर मिलना चाहिए।

  • इसके लिए यह आवश्यक है कि भागीदारी के रास्ते में आने वाली बाधाओं, जैसे कि भाषा, निरक्षरता, भौगोलिक दूरी या सामाजिक पूर्वाग्रह, को दूर किया जाए।
  • इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सबसे कमजोर व्यक्ति की आवाज़ भी सुनी और सम्मानित की जाए।
  • समावेशिता के बिना, सहभागी शासन केवल कुछ प्रभावशाली समूहों के हितों की पूर्ति का एक और साधन बनकर रह सकता है।

पारदर्शिता (Transparency)

पारदर्शिता का तात्पर्य है कि सरकार के कामकाज और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं से संबंधित जानकारी जनता के लिए आसानी से सुलभ हो। नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार क्या कर रही है, क्यों कर रही है और इसका क्या परिणाम हो रहा है।

  • पारदर्शिता के लिए सूचना का अधिकार (Right to Information), सार्वजनिक रिकॉर्ड का प्रकाशन, और खुली बैठकें जैसे उपकरण आवश्यक हैं।
  • जब प्रक्रियाएं पारदर्शी होती हैं, तो भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग की संभावना कम हो जाती है।
  • यह नागरिकों और सरकार के बीच विश्वास बनाने के लिए एक बुनियादी शर्त है।

जवाबदेही (Accountability)

जवाबदेही का अर्थ है कि सरकारी अधिकारी और संस्थान अपने निर्णयों और कार्यों के लिए जनता के प्रति जिम्मेदार हैं। उन्हें अपने प्रदर्शन का औचित्य साबित करने और विफलताओं के लिए परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना चाहिए।

  • सहभागी शासन जवाबदेही को मजबूत करता है क्योंकि नागरिक सीधे तौर पर सरकारी कामकाज की निगरानी कर सकते हैं।
  • सामाजिक अंकेक्षण (Social Audits), नागरिक रिपोर्ट कार्ड (Citizen Report Cards), और लोकपाल (Ombudsman) जैसी प्रणालियाँ जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद करती हैं।
  • जवाबदेही यह सुनिश्चित करती है कि शक्ति का प्रयोग जिम्मेदारी से किया जाए।

उत्तरदायित्व (Responsiveness)

एक उत्तरदायी सरकार वह है जो नागरिकों की जरूरतों, चिंताओं और शिकायतों को समय पर और प्रभावी ढंग से सुनती है और उन पर कार्रवाई करती है।

  • सहभागी शासन सरकार को नागरिकों के करीब लाता है, जिससे वह उनकी बदलती जरूरतों को बेहतर ढंग से समझ सकती है।
  • सार्वजनिक सुनवाई, शिकायत निवारण तंत्र (grievance redressal mechanisms), और नागरिक फीडबैक प्लेटफॉर्म सरकार को अधिक उत्तरदायी बनाने में मदद करते हैं।
  • यह सुनिश्चित करता है कि शासन केवल नियमों और प्रक्रियाओं तक सीमित न रहे, बल्कि लोगों की वास्तविक समस्याओं का समाधान करे।

सहमति-निर्माण (Consensus-Building)

सहभागी शासन का उद्देश्य केवल बहुमत का शासन स्थापित करना नहीं है, बल्कि व्यापक सहमति बनाने का प्रयास करना है। इसमें विभिन्न हितधारकों के बीच संवाद और बातचीत के माध्यम से ऐसे समाधान खोजना शामिल है जो अधिकांश लोगों के लिए स्वीकार्य हों।

  • यह प्रक्रिया संघर्षों को कम करती है और नीतियों के लिए व्यापक समर्थन सुनिश्चित करती है।
  • यह ‘जीरो-सम गेम’ (zero-sum game) के बजाय ‘विन-विन’ (win-win) समाधान खोजने पर केंद्रित है।
  • सहमति-निर्माण लोकतंत्र को अधिक सहयोगात्मक और कम टकरावपूर्ण बनाता है।

5. सहभागी शासन के विभिन्न रूप और मॉडल (Different Forms and Models of Participatory Governance)

सहभागी शासन कोई एक अकेली, निश्चित प्रणाली नहीं है। इसे विभिन्न तरीकों और मॉडलों के माध्यम से व्यवहार में लाया जा सकता है, जो स्थानीय संदर्भ और उद्देश्य के आधार पर भिन्न हो सकते हैं।

सहभागी बजटिंग (Participatory Budgeting)

यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें आम नागरिक सीधे तौर पर यह तय करते हैं कि सार्वजनिक बजट का एक हिस्सा कैसे खर्च किया जाना चाहिए।

  • इसकी शुरुआत 1989 में ब्राजील के पोर्टो एलेग्रे शहर में हुई थी और अब यह दुनिया भर के हजारों शहरों में अपनाया जा चुका है।
  • नागरिक स्थानीय बैठकों में इकट्ठा होते हैं, अपनी प्राथमिकताओं (जैसे पार्क, स्ट्रीटलाइट, या स्वास्थ्य केंद्र) पर चर्चा करते हैं, परियोजनाओं का प्रस्ताव करते हैं और फिर उन पर मतदान करते हैं।
  • यह सार्वजनिक धन के आवंटन में पारदर्शिता लाता है और यह सुनिश्चित करता है कि खर्च लोगों की वास्तविक जरूरतों को पूरा करे।

नागरिक जूरी और सहमति सम्मेलन (Citizens’ Juries and Consensus Conferences)

इन मॉडलों में, नागरिकों के एक छोटे, यादृच्छिक रूप से चुने गए समूह (जैसे एक कानूनी जूरी) को किसी जटिल नीतिगत मुद्दे (जैसे जेनेटिक इंजीनियरिंग या जलवायु नीति) पर विचार-विमर्श करने के लिए बुलाया जाता है।

  • उन्हें विशेषज्ञों से जानकारी मिलती है, वे विभिन्न दृष्टिकोणों पर बहस करते हैं, और अंत में नीति निर्माताओं के लिए सिफारिशें प्रस्तुत करते हैं।
  • इसका उद्देश्य आम नागरिकों के सुविचारित निर्णयों को नीति प्रक्रिया में शामिल करना है। यह एक गहन विचार-विमर्श आधारित सहभागी शासन का उत्कृष्ट उदाहरण है।

सामाजिक अंकेक्षण या सोशल ऑडिट (Social Audit)

सोशल ऑडिट एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से किसी सरकारी योजना या कार्यक्रम के प्रदर्शन का मूल्यांकन सीधे उन लोगों द्वारा किया जाता है जिनके लिए वह योजना है।

  • इसमें सरकारी रिकॉर्ड (जैसे मस्टर रोल, बिल, वाउचर) की जांच की जाती है और उनका मिलान जमीन पर हुए वास्तविक काम से किया जाता है।
  • निष्कर्षों को एक सार्वजनिक सुनवाई (जनसुनवाई) में प्रस्तुत किया जाता है, जहाँ अधिकारी नागरिकों के सवालों का जवाब देने के लिए बाध्य होते हैं।
  • भारत में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत सोशल ऑडिट को कानूनी रूप से अनिवार्य बनाया गया है, जो सहभागी शासन को संस्थागत बनाने का एक महत्वपूर्ण कदम है।

सूचना का अधिकार (Right to Information – RTI)

हालांकि यह सीधे तौर पर एक भागीदारी मॉडल नहीं है, लेकिन आरटीआई सहभागी शासन के लिए एक मौलिक और शक्तिशाली उपकरण है।

  • यह नागरिकों को सरकारी रिकॉर्ड तक पहुंचने का कानूनी अधिकार देता है, जिससे सरकारी कामकाज में पारदर्शिता आती है।
  • जानकारी के बिना, सार्थक भागीदारी संभव नहीं है। आरटीआई नागरिकों को सूचित प्रश्न पूछने और सरकार को जवाबदेह ठहराने में सक्षम बनाता है।
  • यह सत्ता के समीकरण को बदलता है, जहाँ जानकारी अब केवल अधिकारियों का विशेषाधिकार नहीं रह जाती।

डिजिटल प्लेटफॉर्म और ई-गवर्नेंस (Digital Platforms and E-Governance)

प्रौद्योगिकी ने सहभागी शासन के लिए नए और रोमांचक रास्ते खोले हैं।

  • सरकारें ऑनलाइन पोर्टल, मोबाइल ऐप और सोशल मीडिया का उपयोग नागरिकों से सुझाव मांगने, शिकायतों का समाधान करने और जानकारी प्रसारित करने के लिए कर रही हैं।
  • भारत में MyGov.in एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहाँ नागरिक नीतियों पर अपनी राय दे सकते हैं और शासन में योगदान कर सकते हैं।
  • ये प्लेटफॉर्म भौगोलिक बाधाओं को दूर करते हैं और बड़ी संख्या में लोगों को भागीदारी का अवसर प्रदान करते हैं।

6. भारत में सहभागी शासन: एक विस्तृत विश्लेषण (Participatory Governance in India: A Detailed Analysis)

भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र, सहभागी शासन की एक समृद्ध और जटिल परंपरा का घर है। यहाँ प्राचीन पंचायत प्रणाली से लेकर आधुनिक संवैधानिक सुधारों तक, जन-भागीदारी हमेशा शासन की आत्मा रही है।

संवैधानिक और कानूनी ढाँचा (Constitutional and Legal Framework)

भारतीय संविधान और कानूनों ने सहभागी शासन को संस्थागत बनाने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान किया है।

  • 73वां और 74वां संवैधानिक संशोधन (1992): इन ऐतिहासिक संशोधनों ने पंचायतों और नगरपालिकाओं को ‘स्वशासन की संस्थाओं’ के रूप में संवैधानिक दर्जा दिया। इन्होंने ग्राम सभा (सभी पंजीकृत मतदाताओं की सभा) को स्थानीय शासन की नींव बनाया, जिसे सीधे तौर पर विकास योजनाओं को मंजूरी देने और लाभार्थियों का चयन करने की शक्ति दी गई। यह भारत में जमीनी स्तर पर सहभागी शासन का सबसे बड़ा प्रयोग है।
  • सूचना का अधिकार अधिनियम (2005): इसने पारदर्शिता और जवाबदेही के एक नए युग की शुरुआत की, जिससे आम नागरिक को सत्ता के गलियारों में झाँकने और सवाल पूछने का अधिकार मिला।
  • मनरेगा (2005): इस कानून ने न केवल ग्रामीण परिवारों को रोजगार की कानूनी गारंटी दी, बल्कि इसके क्रियान्वयन में ग्राम सभा और सोशल ऑडिट की भूमिका को अनिवार्य बनाकर सहभागी शासन को भी बढ़ावा दिया।
  • वन अधिकार अधिनियम (2006): इसने पारंपरिक वनवासियों के अधिकारों को मान्यता दी और वन संसाधनों के प्रबंधन में ग्राम सभाओं को महत्वपूर्ण अधिकार दिए।

सकारात्मक पहलू (Pros/Sakaratmaka Pahlu)

भारत में सहभागी शासन के प्रयोगों ने कई सकारात्मक परिणाम दिए हैं, जो लोकतंत्र को मजबूत करने की इसकी क्षमता को उजागर करते हैं।

  • स्थानीय सशक्तिकरण (Local Empowerment): 73वें और 74वें संशोधन ने लाखों लोगों, विशेषकर महिलाओं और दलितों को, राजनीतिक प्रक्रिया में पहली बार भागीदारी का अवसर दिया है। पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण एक क्रांतिकारी कदम साबित हुआ है।
  • भ्रष्टाचार पर अंकुश (Curbing Corruption): सोशल ऑडिट और आरटीआई जैसे उपकरणों ने सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार को उजागर करने और कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब स्थानीय समुदाय परियोजनाओं की निगरानी करता है, तो संसाधनों की बर्बादी की संभावना कम हो जाती है।
  • सेवा वितरण में सुधार (Improved Service Delivery): जब नागरिक स्कूलों, स्वास्थ्य केंद्रों और राशन की दुकानों के कामकाज की निगरानी करते हैं, तो उनकी गुणवत्ता में सुधार होता है। नागरिक रिपोर्ट कार्ड जैसे तरीकों ने सार्वजनिक सेवाओं को अधिक उत्तरदायी बनाया है।
  • समावेशी विकास (Inclusive Development): सहभागी शासन यह सुनिश्चित करता है कि विकास की प्राथमिकताएं स्थानीय जरूरतों के अनुसार तय हों। इससे हाशिए पर पड़े समुदायों की जरूरतों को बेहतर ढंग से पूरा किया जा सकता है।

नकारात्मक पहलू (Cons/Nakaratmaka Pahlu)

सफलता की इन कहानियों के बावजूद, भारत में सहभागी शासन की राह चुनौतियों से भरी है।

  • ग्राम सभा की अप्रभावीता (Ineffectiveness of Gram Sabha): कई जगहों पर, ग्राम सभा की बैठकें नियमित रूप से नहीं होतीं, या उनमें उपस्थिति बहुत कम होती है। अक्सर, स्थानीय अभिजात्य वर्ग (elite class) या सरपंच इन सभाओं पर हावी हो जाते हैं और महिलाओं तथा कमजोर वर्गों की आवाज़ को दबा दिया जाता है।
  • क्षमता की कमी (Lack of Capacity): चुने हुए स्थानीय प्रतिनिधियों और नागरिकों में अक्सर योजनाओं को बनाने, बजट को समझने और अपने अधिकारों का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल की कमी होती है।
  • नौकरशाही का प्रतिरोध (Bureaucratic Resistance): सरकारी अधिकारी अक्सर अपनी शक्तियों को स्थानीय समुदायों के साथ साझा करने के अनिच्छुक होते हैं। वे भागीदारी को एक अतिरिक्त बोझ के रूप में देखते हैं और इसे बाधित करने का प्रयास करते हैं।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप (Political Interference): स्थानीय शासन अक्सर राज्य और राष्ट्रीय स्तर की राजनीति से प्रभावित होता है। राजनीतिक दल पंचायतों का उपयोग अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए करते हैं, जिससे वास्तविक सहभागी शासन की भावना कमजोर होती है।
  • सामाजिक असमानता (Social Inequality): जाति, वर्ग और लिंग पर आधारित गहरी सामाजिक संरचनाएं सार्थक भागीदारी के लिए एक बड़ी बाधा हैं। शक्तिशाली समूह अक्सर कमजोर वर्गों को भागीदारी से रोकते हैं।

अधिक जानकारी के लिए, आप पंचायती राज मंत्रालय, भारत सरकार की वेबसाइट देख सकते हैं, जहाँ इन पहलों का विस्तृत विवरण मिलता है।

7. प्रौद्योगिकी की भूमिका: ई-गवर्नेंस और सहभागी शासन (The Role of Technology: E-Governance and Participatory Governance)

डिजिटल क्रांति ने शासन के हर पहलू को बदल दिया है, और सहभागी शासन भी इसका अपवाद नहीं है। प्रौद्योगिकी भागीदारी की बाधाओं को दूर करने और नागरिकों तथा सरकार के बीच संवाद के नए चैनल बनाने की अपार क्षमता रखती है।

डिजिटल उपकरण और प्लेटफॉर्म (Digital Tools and Platforms)

ई-गवर्नेंस के माध्यम से सहभागी शासन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न डिजिटल उपकरणों का उपयोग किया जा रहा है।

  • ऑनलाइन पोर्टल (Online Portals): MyGov.in जैसे पोर्टल नागरिकों को नीतिगत मसौदों पर टिप्पणी करने, चर्चाओं में भाग लेने और रचनात्मक कार्यों के लिए विचार प्रस्तुत करने का अवसर देते हैं।
  • मोबाइल एप्लिकेशन (Mobile Applications): ‘स्वच्छता ऐप’ जैसे एप्लिकेशन नागरिकों को अपने पड़ोस में कचरे जैसी समस्याओं की रिपोर्ट सीधे संबंधित नगरपालिका अधिकारियों को करने की अनुमति देते हैं, जिससे शिकायत निवारण तेज और पारदर्शी होता है।
  • सोशल मीडिया (Social Media): सरकारी विभाग और मंत्री अब ट्विटर और फेसबुक जैसे प्लेटफार्मों का उपयोग नागरिकों से सीधे संवाद करने, उनकी शिकायतों को सुनने और महत्वपूर्ण जानकारी प्रसारित करने के लिए कर रहे हैं।
  • ओपन डेटा (Open Data): जब सरकारें बजट, व्यय और प्रदर्शन से संबंधित डेटा को मशीन-पठनीय प्रारूप (machine-readable format) में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराती हैं, तो यह डेवलपर्स, शोधकर्ताओं और नागरिकों को इसका विश्लेषण करने और सरकार को जवाबदेह ठहराने के लिए नए उपकरण बनाने में सक्षम बनाता है।

सकारात्मक पहलू (Pros/Sakaratmaka Pahlu)

प्रौद्योगिकी के उपयोग ने सहभागी शासन को कई तरह से बेहतर बनाया है।

  • व्यापक पहुंच (Wider Reach): डिजिटल प्लेटफॉर्म भौगोलिक बाधाओं को तोड़ते हैं, जिससे दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले लोग भी शासन प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं।
  • गति और दक्षता (Speed and Efficiency): प्रौद्योगिकी सूचना के प्रसार और फीडबैक के संग्रह को बहुत तेज कर देती है। एक ऑनलाइन सर्वेक्षण या पोल के माध्यम से कुछ ही घंटों में हजारों लोगों की राय जानी जा सकती है।
  • पारदर्शिता में वृद्धि (Increased Transparency): ऑनलाइन डैशबोर्ड पर सरकारी परियोजनाओं की प्रगति को ट्रैक करना या सार्वजनिक व्यय का विवरण देखना अब संभव है, जिससे भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम हो जाती है।
  • युवाओं की भागीदारी (Youth Engagement): युवा पीढ़ी, जो प्रौद्योगिकी के साथ सहज है, को शासन में भाग लेने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म अधिक आकर्षक लगते हैं।

नकारात्मक पहलू और चुनौतियाँ (Cons/Nakaratmaka Pahlu and Challenges)

प्रौद्योगिकी एक शक्तिशाली उपकरण है, लेकिन यह सभी समस्याओं का जादुई समाधान नहीं है। इसके अपने जोखिम और चुनौतियाँ हैं।

  • डिजिटल डिवाइड (Digital Divide): भारत में, अभी भी एक बड़ी आबादी है जिसके पास इंटरनेट या स्मार्टफोन तक पहुंच नहीं है, या जिनके पास डिजिटल साक्षरता (digital literacy) की कमी है। यदि सहभागी शासन पूरी तरह से डिजिटल हो जाता है, तो यह इन लोगों को प्रक्रिया से बाहर कर सकता है, जिससे असमानता और बढ़ सकती है।
  • गलत सूचना और दुष्प्रचार (Misinformation and Disinformation): सोशल मीडिया का उपयोग न केवल सकारात्मक जुड़ाव के लिए किया जा सकता है, बल्कि अफवाहें और नफरत फैलाने के लिए भी किया जा सकता है, जो सार्वजनिक विमर्श को विषाक्त कर सकता है।
  • गोपनीयता और डेटा सुरक्षा (Privacy and Data Security): नागरिक भागीदारी के लिए बड़ी मात्रा में व्यक्तिगत डेटा एकत्र करने से गोपनीयता के उल्लंघन और डेटा के दुरुपयोग का खतरा पैदा होता है।
  • अर्थहीन भागीदारी (Token Participation): कभी-कभी, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म केवल एक दिखावा हो सकते हैं, जहाँ नागरिकों से फीडबैक तो लिया जाता है, लेकिन निर्णय लेने की प्रक्रिया में उसे कोई महत्व नहीं दिया जाता। इसे ‘क्लिक्टिविज्म’ (clicktivism) कहा जाता है, जो वास्तविक भागीदारी का भ्रम पैदा करता है। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि डिजिटल भागीदारी वास्तविक प्रभाव डाले।

8. सहभागी शासन के मार्ग में प्रमुख चुनौतियाँ (Major Challenges in the Path of Participatory Governance)

सहभागी शासन का आदर्श बहुत आकर्षक है, लेकिन इसे जमीन पर उतारना एक जटिल और चुनौतीपूर्ण कार्य है। इसके मार्ग में कई संरचनात्मक, सामाजिक और राजनीतिक बाधाएँ हैं।

जागरूकता और शिक्षा का अभाव (Lack of Awareness and Education)

सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक यह है कि कई नागरिक अपने अधिकारों और भागीदारी के अवसरों से अवगत ही नहीं हैं।

  • उन्हें यह नहीं पता कि ग्राम सभा क्या है, आरटीआई कैसे दाखिल करें, या सोशल ऑडिट में कैसे भाग लें।
  • शिक्षा की कमी और जटिल प्रक्रियाओं के कारण, वे अक्सर खुद को शासन में भाग लेने के लिए अयोग्य महसूस करते हैं।
  • नागरिकों को सूचित और सशक्त बनाए बिना, सहभागी शासन सफल नहीं हो सकता।

राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी (Lack of Political Will)

अक्सर राजनेता और राजनीतिक दल वास्तविक शक्ति विकेंद्रीकरण के विरोधी होते हैं।

  • वे स्थानीय संस्थाओं पर अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहते हैं और उन्हें केवल अपनी नीतियों को लागू करने के एक एजेंट के रूप में देखते हैं।
  • वे स्वतंत्र और मुखर नागरिक भागीदारी को अपने अधिकार के लिए एक चुनौती के रूप में देख सकते हैं।
  • जब तक शीर्ष नेतृत्व सहभागी शासन के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध नहीं होता, तब तक जमीनी स्तर पर बदलाव लाना मुश्किल होता है।

संसाधनों का अभाव (Lack of Resources)

प्रभावी सहभागी शासन के लिए पर्याप्त वित्तीय और मानव संसाधनों की आवश्यकता होती है।

  • स्थानीय सरकारों, जैसे पंचायतों, के पास अक्सर अपना राजस्व उत्पन्न करने के सीमित स्रोत होते हैं और वे धन के लिए राज्य और केंद्र सरकारों पर बहुत अधिक निर्भर रहती हैं।
  • नागरिकों को संगठित करने, बैठकें आयोजित करने, और क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाने के लिए भी धन और प्रशिक्षित कर्मियों की आवश्यकता होती है।

भागीदारी की थकान (Participation Fatigue)

जब नागरिकों को लगता है कि उनकी भागीदारी का कोई नतीजा नहीं निकल रहा है, या जब उनसे बहुत अधिक समय और प्रयास की मांग की जाती है, तो वे निराश और उदासीन हो सकते हैं।

  • यदि बैठकें लंबी और अनिर्णायक होती हैं, या यदि उनकी सिफारिशों को लगातार नजरअंदाज किया जाता है, तो लोग भाग लेना बंद कर देते हैं।
  • भागीदारी को सार्थक और परिणामोन्मुखी बनाना आवश्यक है ताकि नागरिकों का उत्साह बना रहे। एक प्रभावी सहभागी शासन प्रणाली को इन चुनौतियों से सीधे तौर पर निपटना होगा।

9. सहभागी शासन का भविष्य: आगे की राह (The Future of Participatory Governance: The Way Forward)

चुनौतियों के बावजूद, सहभागी शासन केवल एक आदर्शवादी सपना नहीं है, बल्कि यह 21वीं सदी में सुशासन की एक अनिवार्य शर्त है। भविष्य में इसे और अधिक मजबूत और प्रभावी बनाने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

स्थानीय संस्थाओं का सुदृढ़ीकरण (Strengthening Local Institutions)

पंचायतों और नगरपालिकाओं को वास्तविक अर्थों में स्वशासन की संस्थाएँ बनाना होगा।

  • उन्हें पर्याप्त धन (Funds), कार्य (Functions), और कार्यकर्ता (Functionaries) हस्तांतरित किए जाने चाहिए। इसे ‘3F’ फॉर्मूला कहा जाता है।
  • उनके वित्तीय आधार को मजबूत करने के लिए उन्हें स्थानीय कर लगाने और राजस्व एकत्र करने के अधिक अधिकार दिए जाने चाहिए।
  • एक मजबूत स्थानीय सरकार प्रभावी सहभागी शासन की नींव है।

नागरिक शिक्षा और क्षमता निर्माण (Civic Education and Capacity Building)

नागरिकों और उनके प्रतिनिधियों को सशक्त बनाने के लिए बड़े पैमाने पर शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता है।

  • स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में नागरिक शिक्षा को शामिल किया जाना चाहिए।
  • नागरिक समाज संगठनों को लोगों को उनके अधिकारों, बजट प्रक्रिया और भागीदारी के विभिन्न उपकरणों के बारे में प्रशिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए।
  • यह सुनिश्चित करना होगा कि हर नागरिक को यह विश्वास हो कि वह बदलाव ला सकता है।

प्रौद्योगिकी का विवेकपूर्ण उपयोग (Judicious Use of Technology)

प्रौद्योगिकी का उपयोग भागीदारी को समावेशी बनाने के लिए किया जाना चाहिए, न कि बहिष्कृत करने के लिए।

  • डिजिटल पहलों को ऑफ़लाइन तरीकों, जैसे कि सामुदायिक बैठकें और आमने-सामने की बातचीत, के साथ जोड़ा जाना चाहिए ताकि डिजिटल डिवाइड से प्रभावित लोग पीछे न छूटें।
  • डेटा गोपनीयता और सुरक्षा के लिए मजबूत कानून बनाए जाने चाहिए।
  • आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और ब्लॉकचेन जैसी नई तकनीकों का उपयोग शासन को और अधिक पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए किया जा सकता है, लेकिन इसे नैतिक विचारों के साथ संतुलित किया जाना चाहिए।

सहयोगात्मक मानसिकता को बढ़ावा देना (Promoting a Collaborative Mindset)

अंततः, सहभागी शासन की सफलता मानसिकता में बदलाव पर निर्भर करती है।

  • सरकारी अधिकारियों को नागरिकों को भागीदार के रूप में देखना सीखना होगा, न कि समस्या के रूप में।
  • नागरिकों को भी केवल आलोचना करने से आगे बढ़कर रचनात्मक समाधान प्रस्तुत करने और जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार रहना होगा।
  • यह एक ‘हम बनाम वे’ की मानसिकता से ‘हम सब एक साथ’ की भावना की ओर बढ़ने की यात्रा है। यह भविष्य का सहभागी शासन होगा।

10. निष्कर्ष: जनशक्ति से राष्ट्रशक्ति तक (Conclusion: From People’s Power to National Strength)

एक जीवंत लोकतंत्र का सार (The Essence of a Vibrant Democracy)

सहभागी शासन केवल एक प्रशासनिक सुधार या एक तकनीकी प्रक्रिया नहीं है; यह लोकतंत्र का सच्चा सार है। यह इस विश्वास पर आधारित है कि सामान्य नागरिकों में असाधारण ज्ञान और क्षमता होती है, और जब उन्हें अवसर दिया जाता है, तो वे अपने भविष्य को आकार दे सकते हैं। यह शासन को एक दूरस्थ और दुर्गम किले से निकालकर लोगों के आँगन तक लाता है। यह नीतियों को अधिक प्रभावी, सेवाओं को अधिक उत्तरदायी और समाज को अधिक न्यायसंगत बनाता है।

हमने इस लेख में सहभागी शासन की अवधारणा, इसके ऐतिहासिक विकास, इसके मूल सिद्धांतों और भारत में इसके क्रियान्वयन की सफलताओं और चुनौतियों का विस्तार से विश्लेषण किया। हमने देखा कि कैसे 73वें संशोधन से लेकर आरटीआई और डिजिटल इंडिया तक, भारत ने जन-भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। हालांकि, नौकरशाही की जड़ता, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और सामाजिक असमानता जैसी बाधाएँ अभी भी मौजूद हैं। इन चुनौतियों से पार पाने के लिए निरंतर प्रयास, नवाचार और सबसे महत्वपूर्ण, एक मजबूत नागरिक चेतना की आवश्यकता है। भविष्य का मार्ग सरकार और नागरिकों के बीच एक नई साझेदारी बनाने में निहित है—एक ऐसी साझेदारी जो विश्वास, सहयोग और साझा जिम्मेदारी पर आधारित हो। जब हर नागरिक यह महसूस करेगा कि वह देश के विकास में एक सक्रिय भागीदार है, तभी हम वास्तव में एक सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र का निर्माण कर पाएंगे। सहभागी शासन इस यात्रा में हमारा सबसे शक्तिशाली साधन है।

11. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions – FAQs)

1. सरकार (Government) और शासन (Governance) में क्या अंतर है? (What is the difference between Government and Governance?)

सरकार उन संस्थाओं और लोगों का समूह है जिन्हें देश या राज्य पर शासन करने का अधिकार होता है (जैसे संसद, कैबिनेट, नौकरशाही)। यह एक संरचना है। शासन, दूसरी ओर, निर्णय लेने और उन्हें लागू करने की प्रक्रिया है। इसमें सरकार के साथ-साथ नागरिक समाज, निजी क्षेत्र और आम नागरिक भी शामिल हो सकते हैं। शासन एक प्रक्रिया है, जबकि सरकार उस प्रक्रिया का एक हिस्सा है। सहभागी शासन इसी प्रक्रिया को अधिक समावेशी बनाता है।

2. एक आम नागरिक के रूप में मैं सहभागी शासन में कैसे योगदान दे सकता हूँ? (As a common citizen, how can I contribute to participatory governance?)

आप कई तरीकों से योगदान दे सकते हैं:

  • ग्राम सभा या वार्ड सभा की बैठकों में नियमित रूप से भाग लें।
  • अपने क्षेत्र में चल रहे विकास कार्यों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए सूचना का अधिकार (RTI) का उपयोग करें।
  • स्थानीय मुद्दों पर चर्चा करने और समाधान खोजने के लिए अपने पड़ोसियों के साथ एक समूह बनाएं।
  • MyGov.in जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर अपनी राय और सुझाव दें।
  • अपने क्षेत्र में चल रही किसी भी सरकारी योजना के सोशल ऑडिट में एक स्वयंसेवक के रूप में शामिल हों।

3. क्या सहभागी शासन सभी प्रकार के निर्णयों के लिए उपयुक्त है? (Is participatory governance suitable for all types of decisions?)

नहीं, हमेशा नहीं। सहभागी शासन उन निर्णयों के लिए सबसे उपयुक्त है जो सीधे तौर पर स्थानीय समुदायों को प्रभावित करते हैं, जैसे कि स्थानीय बजट, विकास परियोजनाएं और सार्वजनिक सेवाओं का प्रबंधन। हालांकि, कुछ अत्यधिक तकनीकी या राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित निर्णयों के लिए विशेषज्ञ ज्ञान की आवश्यकता हो सकती है और उनमें व्यापक सार्वजनिक भागीदारी अव्यावहारिक हो सकती है। फिर भी, ऐसे मामलों में भी, पारदर्शिता और नागरिकों को निर्णय के कारणों के बारे में सूचित करना महत्वपूर्ण है।

4. भारत में सहभागी शासन का सबसे सफल उदाहरण कौन सा है? (What is the most successful example of participatory governance in India?)

यह बहस का विषय है, लेकिन कई लोग केरल के ‘पीपुल्स प्लान कैंपेन’ (People’s Plan Campaign) को एक बहुत ही सफल उदाहरण मानते हैं। 1990 के दशक के अंत में शुरू हुए इस अभियान में, राज्य ने अपनी विकास योजना बजट का लगभग 40% स्थानीय सरकारों को हस्तांतरित कर दिया और लाखों नागरिकों को स्थानीय योजनाओं के निर्माण में प्रशिक्षित और शामिल किया। इसने जमीनी स्तर पर योजना बनाने और सहभागी शासन की क्षमता का एक शक्तिशाली प्रदर्शन किया। मनरेगा के तहत सोशल ऑडिट भी एक और महत्वपूर्ण सफलता की कहानी है।

5. क्या ‘डिजिटल इंडिया’ सहभागी शासन को मजबूत कर रहा है? (Is ‘Digital India’ strengthening participatory governance?)

हाँ, कई मायनों में। डिजिटल इंडिया ने सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन लाकर और MyGov जैसे प्लेटफॉर्म बनाकर नागरिकों के लिए सरकार से जुड़ना आसान बना दिया है। इसने पारदर्शिता बढ़ाई है और शिकायत निवारण को तेज किया है। हालांकि, जैसा कि लेख में चर्चा की गई है, ‘डिजिटल डिवाइड’ एक बड़ी चुनौती है। जब तक हर नागरिक की इंटरनेट तक सस्ती और विश्वसनीय पहुंच नहीं होगी, तब तक डिजिटल माध्यमों से सहभागी शासन की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

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