हिंदू मंदिर स्थापत्य की 3 शैलियाँ (Hindu Temple Architecture)
हिंदू मंदिर स्थापत्य की 3 शैलियाँ (Hindu Temple Architecture)

हिंदू मंदिर स्थापत्य की 3 शैलियाँ (Hindu Temple Architecture)

विषय-सूची (Table of Contents)

  1. परिचय: हिंदू मंदिर स्थापत्य की भव्य दुनिया (Introduction: The Grand World of Hindu Temple Architecture)
  2. हिंदू मंदिर के मूल तत्व (Basic Elements of a Hindu Temple)
  3. तीन प्रमुख शैलियाँ: एक सिंहावलोकन (The Three Main Styles: An Overview)
  4. नागर शैली: उत्तर भारत की शान (Nagara Style: The Pride of North India)
  5. द्रविड़ शैली: दक्षिण भारत का वैभव (Dravida Style: The Splendor of South India)
  6. वेसर शैली: नागर और द्रविड़ का संगम (Vesara Style: The Confluence of Nagara and Dravida)
  7. तीनों शैलियों की तुलना: नागर बनाम द्रविड़ बनाम वेसर (Comparison of the Three Styles: Nagara vs. Dravida vs. Vesara)
  8. हिंदू मंदिर स्थापत्य की स्थायी विरासत (The Enduring Legacy of Hindu Temple Architecture)
  9. निष्कर्ष (Conclusion)
  10. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions – FAQs)

परिचय: हिंदू मंदिर स्थापत्य की भव्य दुनिया (Introduction: The Grand World of Hindu Temple Architecture)

कला और आस्था का संगम (A Confluence of Art and Faith)

भारत की भूमि केवल नदियों, पहाड़ों और मैदानों का देश नहीं है, बल्कि यह कला, संस्कृति और आध्यात्मिकता की एक जीवंत टेपेस्ट्री भी है। 🎨 इस टेपेस्ट्री का एक सबसे चमकदार धागा है यहाँ की मंदिर वास्तुकला। हिंदू मंदिर केवल पूजा के स्थान नहीं हैं; वे इतिहास, विज्ञान, कला और धर्म के अद्भुत संगम हैं। ये विशाल संरचनाएं प्राचीन भारत के ज्ञान, कौशल और भक्ति की कहानी कहती हैं, जो आज भी हमें आश्चर्यचकित करती हैं।

वास्तुकला की विविधता (Diversity in Architecture)

जब हम हिंदू मंदिर स्थापत्य (Hindu temple architecture) की बात करते हैं, तो हम किसी एक शैली की बात नहीं कर रहे होते। भारत की विशाल भौगोलिक और सांस्कृतिक विविधता की तरह, यहाँ की मंदिर निर्माण कला भी विविध है। उत्तर में हिमालय की छाया से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी के तट तक, प्रत्येक क्षेत्र ने अपनी अनूठी शैली विकसित की। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम आपको इस अद्भुत दुनिया की सैर पर ले जाएंगे और मुख्य रूप से तीन प्रमुख शैलियों पर ध्यान केंद्रित करेंगे: नागर, द्रविड़ और वेसर।

छात्रों के लिए एक मार्गदर्शिका (A Guide for Students)

यह लेख विशेष रूप से छात्रों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। 🎓 हम जटिल अवधारणाओं को सरल भाषा में समझाएंगे, ताकि आप भारत की इस अनमोल विरासत को आसानी से समझ सकें। हम इन शैलियों की विशेषताओं, उनके प्रसिद्ध उदाहरणों और उनके बीच के सूक्ष्म अंतरों का पता लगाएंगे। तो तैयार हो जाइए, क्योंकि हम पत्थर में खुदी कविताओं, यानी भारत के मंदिरों की दुनिया में एक अविस्मरणीय यात्रा शुरू करने वाले हैं।

हिंदू मंदिर के मूल तत्व (Basic Elements of a Hindu Temple)

गर्भगृह (Garbhagriha – Sanctum Sanctorum)

किसी भी हिंदू मंदिर का हृदय उसका गर्भगृह होता है। 🙏 यह मंदिर का सबसे पवित्र और केंद्रीय कक्ष है, जहाँ मुख्य देवता की मूर्ति स्थापित होती है। ‘गर्भ’ का अर्थ है ‘गर्भ’ और ‘गृह’ का अर्थ है ‘घर’, इसलिए यह शाब्दिक रूप से ‘गर्भ-गृह’ है। यह आमतौर पर एक छोटा, अंधेरा कमरा होता है, जो ब्रह्मांड के निर्माण से पहले की शून्यता और रहस्य का प्रतीक है। केवल पुजारी ही इस पवित्र स्थान में प्रवेश कर सकते हैं।

मंडप (Mandapa – Hall)

गर्भगृह के ठीक सामने स्थित स्तंभों पर आधारित हॉल को मंडप कहा जाता है। 🏛️ यह वह स्थान है जहाँ भक्तगण एकत्रित होकर प्रार्थना, भजन-कीर्तन और अन्य धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। बड़े मंदिरों में एक से अधिक मंडप हो सकते हैं, जैसे अर्धमंडप (प्रवेश द्वार), महामंडप (मुख्य सभा हॉल), और नाट्यमंडप (नृत्य प्रदर्शन के लिए)। मंडप की छत और स्तंभों पर अक्सर सुंदर नक्काशी की जाती है।

शिखर या विमान (Shikhara or Vimana – Tower)

गर्भगृह के ऊपर बनी ऊँची संरचना को उत्तर भारत में ‘शिखर’ और दक्षिण भारत में ‘विमान’ कहा जाता है। यह संरचना मंदिर के सबसे प्रमुख भागों में से एक है और दूर से ही दिखाई देती है। शिखर (spire) अक्सर एक वक्र रेखा के रूप में ऊपर की ओर संकरा होता जाता है, जबकि विमान (vimana) एक सीढ़ीदार पिरामिड के आकार का होता है। यह ब्रह्मांड के दिव्य पर्वत, मेरु पर्वत का प्रतीक माना जाता है।

आमलक और कलश (Amalaka and Kalasha)

नागर शैली के मंदिरों में शिखर के शीर्ष पर एक गोलाकार, चपटी डिस्क जैसी संरचना होती है जिसे आमलक कहा जाता है। यह आंवले के फल जैसा दिखता है और इसे पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। आमलक के ऊपर ‘कलश’ स्थापित होता है, जो एक पवित्र पात्र (urn) है। यह मंदिर का सबसे ऊपरी हिस्सा होता है और इसे ब्रह्मांडीय जल का प्रतीक माना जाता है, जो जीवन का स्रोत है। ✨

जगती (Jagati – Raised Platform)

कई हिंदू मंदिर, विशेष रूप से नागर शैली के, एक ऊँचे चबूतरे पर बनाए जाते हैं जिसे ‘जगती’ कहा जाता है। यह चबूतरा न केवल मंदिर को एक भव्य रूप प्रदान करता है, बल्कि इसे सांसारिक दुनिया से अलग और ऊंचा भी दिखाता है। भक्तगण सीढ़ियों से चढ़कर जगती पर पहुँचते हैं, जहाँ वे मंदिर की परिक्रमा (circumambulation) कर सकते हैं, जिसे ‘प्रदक्षिणा’ कहा जाता है।

गोपुरम (Gopuram – Gateway Tower)

यह द्रविड़ शैली के मंदिरों की एक विशिष्ट विशेषता है। गोपुरम मंदिर परिसर की चारदीवारी में बने विशाल और अलंकृत प्रवेश द्वार होते हैं। 🚪 ये विमान से भी ऊँचे और अधिक भव्य हो सकते हैं। गोपुरम पर देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं और विभिन्न आकृतियों की विस्तृत नक्काशी की जाती है, जो भक्तों का स्वागत करते हुए मंदिर की भव्यता को दर्शाती है।

तीन प्रमुख शैलियाँ: एक सिंहावलोकन (The Three Main Styles: An Overview)

भौगोलिक विभाजन (Geographical Division)

प्राचीन भारतीय वास्तुशिल्प ग्रंथों, जैसे ‘शिल्प शास्त्र’, में मंदिर निर्माण की तीन मुख्य शैलियों का वर्णन किया गया है। यह विभाजन मुख्य रूप से भौगोलिक आधार पर किया गया है। 🗺️ उत्तर भारत में, हिमालय और विंध्य पर्वत के बीच के क्षेत्र में, नागर शैली (Nagara style) का विकास हुआ। कृष्णा नदी और कन्याकुमारी के बीच, दक्षिण भारत में, द्रविड़ शैली (Dravida style) फली-फूली।

मिश्रित शैली का उदय (Rise of the Hybrid Style)

विंध्य पर्वत और कृष्णा नदी के बीच के क्षेत्र में, विशेष रूप से कर्नाटक में, एक तीसरी और मिश्रित शैली का उदय हुआ जिसे वेसर शैली (Vesara style) के नाम से जाना जाता है। इस शैली ने नागर और द्रविड़ दोनों शैलियों के तत्वों को अपनाया और उन्हें मिलाकर एक नई, अनूठी पहचान बनाई। ‘वेसर’ शब्द का संस्कृत में अर्थ ‘खच्चर’ होता है, जो इसके मिश्रित स्वरूप को दर्शाता है।

शैलीगत भिन्नताएँ (Stylistic Differences)

इन तीनों शैलियों के बीच मुख्य अंतर उनके शिखर या विमान के आकार, मंदिर की योजना (ground plan) और समग्र सजावट में देखा जा सकता है। नागर शैली में वक्ररेखीय शिखर होते हैं, द्रविड़ शैली में पिरामिड के आकार के विमान होते हैं, और वेसर शैली में इन दोनों का मिश्रण होता है। इन भिन्नताओं ने भारतीय उपमहाद्वीप में वास्तुकला की एक अविश्वसनीय रूप से समृद्ध और विविध विरासत को जन्म दिया है। 🧭

नागर शैली: उत्तर भारत की शान (Nagara Style: The Pride of North India)

नागर का अर्थ और उत्पत्ति (Meaning and Origin of Nagara)

‘नागर’ शब्द ‘नगर’ से बना है, जिसका अर्थ है शहर। ऐसा माना जाता है कि इस शैली का विकास और प्रसार शहरी केंद्रों में हुआ, इसलिए इसे यह नाम मिला। हिंदू मंदिर स्थापत्य नागर शैली (Hindu temple architecture Nagara style) का विकास गुप्त काल (4थी से 6ठी शताब्दी ईस्वी) के दौरान शुरू हुआ और उत्तर भारत में विभिन्न राजवंशों के संरक्षण में अपने चरम पर पहुंचा। यह शैली अपनी भव्यता और ऊँचाई के लिए जानी जाती है।

योजना और संरचना (Plan and Structure)

नागर शैली के मंदिर आमतौर पर एक ऊँचे पत्थर के चबूतरे, यानी जगती, पर बनाए जाते हैं। मंदिर की योजना अक्सर वर्गाकार होती है, जिसमें गर्भगृह सबसे पवित्र स्थान होता है। गर्भगृह के चारों ओर एक प्रदक्षिणा पथ (circumambulatory path) हो सकता है। एक और महत्वपूर्ण विशेषता पंचायतन योजना (Panchayatana plan) है, जिसमें मुख्य मंदिर के चारों कोनों पर चार छोटे सहायक मंदिर होते हैं, जो इसे एक संतुलित और सममित रूप देते हैं।

नागर शैली की प्रमुख विशेषताएँ (Key Characteristics of Nagara Style)

वक्ररेखीय शिखर (Curvilinear Shikhara)

नागर शैली की सबसे पहचानने योग्य विशेषता इसका शिखर है। यह आधार पर चौड़ा होता है और धीरे-धीरे ऊपर की ओर एक वक्र (curve) बनाते हुए संकरा होता जाता है। इस शिखर को ‘रेखा प्रसाद’ भी कहा जाता है। शिखर पर अक्सर छोटे-छोटे शिखर की प्रतिकृतियां बनाई जाती हैं, जिन्हें ‘उरुशृंग’ कहा जाता है, जो मुख्य शिखर को और अधिक ऊँचाई और भव्यता प्रदान करते हैं। 🗼

पंचायतन शैली (Panchayatana Style)

कई नागर मंदिरों में पंचायतन शैली की योजना का पालन किया जाता है। इसमें एक मुख्य मंदिर होता है जो एक वर्गाकार चबूतरे के केंद्र में स्थित होता है, और चार छोटे सहायक मंदिर चबूतरे के चारों कोनों पर स्थित होते हैं। यह पांच देवताओं की पूजा का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें केंद्रीय देवता मुख्य होते हैं और अन्य चार उनके सहायक होते हैं। यह संरचना ब्रह्मांड के एक लघु मॉडल का प्रतीक है।

गर्भगृह की स्थिति (Position of the Garbhagriha)

नागर शैली के मंदिरों में, गर्भगृह हमेशा सबसे ऊँचे शिखर के ठीक नीचे स्थित होता है। यह मंदिर के आध्यात्मिक केंद्र के रूप में इसकी स्थिति को और मजबूत करता है। गर्भगृह तक पहुँचने के लिए भक्तों को एक या एक से अधिक मंडपों से होकर गुजरना पड़ता है, जो एक आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक है जो बाहरी दुनिया से आंतरिक पवित्र स्थान की ओर ले जाती है।

जलाशयों का अभाव (Absence of Water Tanks)

द्रविड़ शैली के मंदिरों के विपरीत, नागर शैली के मंदिरों के परिसर में बड़े और विस्तृत मंदिर तालाब या जलाशय (water tanks) आमतौर पर नहीं पाए जाते हैं। हालांकि पास में नदियाँ या छोटे कुंड हो सकते हैं, लेकिन वे मंदिर परिसर की वास्तुकला का एक अभिन्न अंग नहीं होते हैं। ध्यान मुख्य रूप से मंदिर की ऊर्ध्वाधर संरचना और उसकी भव्यता पर केंद्रित होता है।

नागर शैली की उप-शैलियाँ (Sub-styles of Nagara Architecture)

ओडिशा शैली (Odisha Style)

ओडिशा में विकसित हुई नागर शैली की इस उप-शैली की अपनी अलग पहचान है। यहाँ शिखर को ‘देउल’ कहा जाता है और मंडप को ‘जगमोहन’ कहा जाता है। ओडिशा के मंदिरों में बाहरी दीवारों पर बहुत विस्तृत और जटिल नक्काशी होती है, जबकि भीतरी दीवारें सादी होती हैं। यहाँ शिखर लगभग सीधा ऊपर उठता है और शीर्ष पर तेजी से अंदर की ओर मुड़ जाता है। कोणार्क का सूर्य मंदिर इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

खजुराहो / चंदेला शैली (Khajuraho / Chandela Style)

मध्य भारत में चंदेल शासकों द्वारा विकसित यह शैली अपनी कामुक मूर्तियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। खजुराहो के मंदिरों की विशेषता उनके ऊँचे चबूतरे, अर्द्धमंडप, मंडप और महामंडप की श्रृंखला है जो गर्भगृह की ओर ले जाती है। यहाँ के शिखर कई छोटे-छोटे शिखरों (उरुशृंगों) से घिरे होते हैं, जो एक पर्वत श्रृंखला का आभास देते हैं। कंदरिया महादेव मंदिर इस शैली का सबसे अच्छा प्रतिनिधित्व करता है।

सोलंकी शैली (Solanki Style)

गुजरात और राजस्थान में सोलंकी शासकों के संरक्षण में विकसित हुई यह शैली भी नागर स्थापत्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस शैली की विशेषता मंदिर की दीवारों पर बारीक नक्काशी, नक्काशीदार छतें और ‘सूर्य कुंड’ नामक सीढ़ीदार तालाबों की उपस्थिति है। मोढेरा का सूर्य मंदिर इस शैली का एक शानदार उदाहरण है, जहाँ हर इंच पत्थर पर कला की कहानी कही गई है।

नागर शैली के प्रसिद्ध मंदिर (Famous Nagara Style Temples)

कोणार्क सूर्य मंदिर, ओडिशा (Konark Sun Temple, Odisha)

यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है और इसे एक विशाल रथ के रूप में डिजाइन किया गया है, जिसमें 24 पहिये और सात घोड़े हैं। ☀️ यह ओडिशा शैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण है और अपनी विशाल संरचना और जटिल पत्थर की नक्काशी के लिए जाना जाता है। मंदिर की दीवारों पर संगीतकारों, नर्तकियों और पौराणिक कथाओं के दृश्य उकेरे गए हैं, जो इसे कला का एक जीवंत संग्रहालय बनाते हैं।

खजुराहो समूह के स्मारक, मध्य प्रदेश (Khajuraho Group of Monuments, Madhya Pradesh)

खजुराहो के मंदिर अपनी नागर शैली की वास्तुकला और कामुक मूर्तियों (erotic sculptures) के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। ये मंदिर हिंदू और जैन धर्मों को समर्पित हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कंदरिया महादेव मंदिर है, जिसका शिखर 30 मीटर से अधिक ऊँचा है और यह कैलाश पर्वत का प्रतीक है। ये मंदिर चंदेल राजवंश की कलात्मक उत्कृष्टता को दर्शाते हैं।

लिंगराज मंदिर, भुवनेश्वर (Lingaraja Temple, Bhubaneswar)

यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और भुवनेश्वर के सबसे पुराने और सबसे बड़े मंदिरों में से एक है। यह मंदिर ओडिशा वास्तुकला का एक आदर्श उदाहरण है, जिसमें 54 मीटर ऊँचा एक विशाल ‘देउल’ (शिखर) और एक ‘जगमोहन’ (सभा हॉल) है। मंदिर परिसर में 50 से अधिक अन्य छोटे मंदिर भी हैं, जो इसे एक महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र बनाते हैं।

सोमनाथ मंदिर, गुजरात (Somnath Temple, Gujarat)

सोमनाथ मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से पहला है और इसका इतिहास बहुत प्राचीन है। इसे कई बार नष्ट किया गया और फिर से बनाया गया, जो विनाश पर आस्था की जीत का प्रतीक है। वर्तमान मंदिर सोलंकी शैली से प्रेरित है और इसे चालुक्य शैली में बनाया गया है। यह अरब सागर के तट पर स्थित है, जो इसकी सुंदरता को और भी बढ़ा देता है। 🌊

द्रविड़ शैली: दक्षिण भारत का वैभव (Dravida Style: The Splendor of South India)

द्रविड़ स्थापत्य का परिचय (Introduction to Dravida Architecture)

दक्षिण भारत की भूमि पर पल्लव, चोल, पांड्य और विजयनगर जैसे महान राजवंशों ने शासन किया, जिन्होंने एक अद्वितीय और भव्य मंदिर वास्तुकला को जन्म दिया, जिसे द्रविड़ शैली (Dravida style) के नाम से जाना जाता है। यह शैली अपनी विशालता, जटिल मूर्तिकला और विस्तृत मंदिर परिसरों के लिए प्रसिद्ध है। ये मंदिर सिर्फ पूजा स्थल नहीं, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक गतिविधियों के केंद्र भी थे।

संरचनात्मक लेआउट (Structural Layout)

हिंदू मंदिर स्थापत्य द्रविड़ शैली (Hindu temple architecture Dravida style) के मंदिर आमतौर पर एक विशाल चारदीवारी के भीतर स्थित होते हैं। इस परिसर के केंद्र में मुख्य मंदिर होता है। द्रविड़ मंदिरों की एक प्रमुख विशेषता उनके विशाल प्रवेश द्वार हैं, जिन्हें गोपुरम कहा जाता है। ये गोपुरम अक्सर मुख्य मंदिर के विमान से भी ऊँचे होते हैं और दूर से ही दिखाई देते हैं, जो मंदिर की भव्यता की घोषणा करते हैं।

द्रविड़ शैली की प्रमुख विशेषताएँ (Key Characteristics of Dravida Style)

पिरामिड आकार का विमान (Pyramidal Vimana)

द्रविड़ शैली की सबसे विशिष्ट विशेषता इसका विमान है, जो गर्भगृह के ऊपर स्थित होता है। नागर शैली के वक्ररेखीय शिखर के विपरीत, द्रविड़ विमान एक सीढ़ीदार पिरामिड (stepped pyramid) के आकार का होता है। यह कई मंजिलों या ‘तलों’ में विभाजित होता है, जो ऊपर की ओर छोटे होते जाते हैं। सबसे ऊपरी मंजिल पर एक गुंबद के आकार की संरचना होती है जिसे ‘स्तूपिका’ या ‘शिखर’ कहते हैं। 🗼

ऊँचे और अलंकृत गोपुरम (Tall and Ornate Gopurams)

गोपुरम या प्रवेश द्वार द्रविड़ वास्तुकला का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। ये विशाल संरचनाएं मंदिर परिसर की दीवारों में बनाई जाती हैं और अक्सर मुख्य मंदिर से भी अधिक प्रभावशाली होती हैं। गोपुरम पर देवी-देवताओं, पौराणिक प्राणियों और मानव आकृतियों की सैकड़ों मूर्तियां उकेरी जाती हैं, जो इसे एक रंगीन और जीवंत रूप प्रदान करती हैं। समय के साथ, ये गोपुरम और भी ऊँचे और भव्य होते गए।

विशाल मंदिर परिसर और जलाशय (Large Temple Complexes and Tanks)

द्रविड़ मंदिर सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि एक पूरा शहर होते थे। वे एक विशाल परिसर में फैले होते थे, जिसमें कई मंडप, गलियारे, छोटे मंदिर और अन्य संरचनाएं शामिल होती थीं। एक और महत्वपूर्ण विशेषता मंदिर परिसर के भीतर एक बड़े पवित्र जलाशय, जिसे ‘कल्याणी’ या ‘पुष्करिणी’ कहा जाता है, की उपस्थिति है। इस जल का उपयोग अनुष्ठानों और त्योहारों के लिए किया जाता था। 💧

स्तंभों वाले हॉल (Pillared Halls)

द्रविड़ मंदिरों में ‘मंडप’ या स्तंभों वाले हॉल बहुत प्रमुख होते हैं। इन हॉलों का उपयोग धार्मिक सभाओं, संगीत, नृत्य और प्रवचनों के लिए किया जाता था। कुछ मंदिरों में ‘हजार स्तंभों वाले मंडप’ (Hall of a thousand pillars) भी पाए जाते हैं। इन स्तंभों पर अक्सर जटिल नक्काशी की जाती है, जिसमें पौराणिक कथाओं का चित्रण होता है या फिर संगीत निकालने वाले स्तंभ भी होते हैं, जैसे कि हम्पी के विट्ठल मंदिर में।

द्रविड़ वास्तुकला का विकास (Evolution of Dravida Architecture)

पल्लव काल (Pallava Period)

द्रविड़ शैली की नींव पल्लव शासकों (6ठी से 9ठी शताब्दी) ने रखी थी। उन्होंने चट्टानों को काटकर मंदिर बनाने की शुरुआत की, जिन्हें ‘रथ’ कहा जाता है, जैसा कि महाबलीपुरम में देखा जा सकता है। बाद में, उन्होंने स्वतंत्र संरचनात्मक मंदिरों का निर्माण शुरू किया, जैसे कांचीपुरम का कैलाशनाथ मंदिर। पल्लव काल की वास्तुकला अपेक्षाकृत सरल लेकिन सुंदर थी।

चोल काल (Chola Period)

चोल राजवंश (9वीं से 13वीं शताब्दी) के तहत द्रविड़ वास्तुकला अपने स्वर्ण युग में पहुँची। चोल शासकों ने विशाल और भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया, जो उनकी शक्ति और भक्ति का प्रतीक थे। तंजावुर का बृहदीश्वर मंदिर इसका सबसे अच्छा उदाहरण है, जिसके विमान की ऊँचाई 66 मीटर है। चोल काल के मंदिरों की विशेषता उनके विशाल विमान, विस्तृत मूर्तिकला और उत्तम कांस्य प्रतिमाएं हैं।

विजयनगर काल (Vijayanagara Period)

विजयनगर साम्राज्य (14वीं से 16वीं शताब्दी) के दौरान द्रविड़ शैली में नई विशेषताएँ जोड़ी गईं। इस काल में मंदिरों को और अधिक अलंकृत बनाया गया। ‘कल्याणमंडप’ (विवाह समारोहों के लिए हॉल) का निर्माण शुरू हुआ। स्तंभों पर जानवरों, विशेष रूप से उछलते हुए घोड़ों की नक्काशी बहुत लोकप्रिय हुई। हम्पी के विट्ठल मंदिर का पत्थर का रथ इस काल की कला का एक अद्भुत नमूना है।

द्रविड़ शैली के प्रसिद्ध मंदिर (Famous Dravida Style Temples)

बृहदीश्वर मंदिर, तंजावुर (Brihadeeswarar Temple, Thanjavur)

महान चोल राजा राजराज चोल प्रथम द्वारा निर्मित, यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और इसे ‘महान जीवित चोल मंदिरों’ में से एक के रूप में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल का दर्जा प्राप्त है। इसका 66 मीटर ऊँचा विमान पूरी तरह से ग्रेनाइट से बना है, और इसके शीर्ष पर स्थित 80 टन का पत्थर एक वास्तुशिल्प आश्चर्य है। यह चोल कला और वास्तुकला की भव्यता का प्रतीक है।

मीनाक्षी अम्मन मंदिर, मदुरै (Meenakshi Amman Temple, Madurai)

यह मंदिर देवी मीनाक्षी और उनके पति सुंदरेश्वर (शिव) को समर्पित है। यह अपने 14 विशाल गोपुरमों के लिए प्रसिद्ध है, जो हजारों रंग-बिरंगी मूर्तियों से सजे हैं। यह मंदिर एक जीवंत आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र है, जहाँ हर दिन हजारों श्रद्धालु आते हैं। इसका ‘हजार स्तंभों वाला हॉल’ और पवित्र स्वर्ण कमल तालाब इसके मुख्य आकर्षण हैं। 🌸

शोर मंदिर, महाबलीपुरम (Shore Temple, Mahabalipuram)

बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित, यह मंदिर 8वीं शताब्दी में पल्लव राजा नरसिंहवर्मन द्वितीय द्वारा बनवाया गया था। यह दक्षिण भारत के सबसे पुराने संरचनात्मक पत्थर के मंदिरों में से एक है। इसमें तीन मंदिर हैं, दो भगवान शिव को और एक भगवान विष्णु को समर्पित हैं। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय समुद्र की लहरों के साथ इसकी सुंदरता देखने लायक होती है।

विरुपाक्ष मंदिर, हम्पी (Virupaksha Temple, Hampi)

यह हम्पी के स्मारकों के समूह का हिस्सा है और विजयनगर साम्राज्य की राजधानी का मुख्य मंदिर था। यह मंदिर विरुपाक्ष (शिव का एक रूप) को समर्पित है और सदियों से एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल रहा है। इसका पूर्वी गोपुरम 50 मीटर ऊँचा है और इसकी वास्तुकला में चोल, होयसल और विजयनगर शैलियों का प्रभाव देखा जा सकता है।

वेसर शैली: नागर और द्रविड़ का संगम (Vesara Style: The Confluence of Nagara and Dravida)

एक संकर शैली का जन्म (Birth of a Hybrid Style)

जब उत्तर की नागर शैली और दक्षिण की द्रविड़ शैली की वास्तुकला परंपराएं दक्कन के पठार पर मिलीं, तो एक नई और अनूठी शैली का जन्म हुआ: वेसर शैली (Vesara style)। 🤝 यह शैली, जिसे ‘चालुक्य शैली’ या ‘कर्नाटक द्रविड़ शैली’ भी कहा जाता है, 7वीं शताब्दी के आसपास बादामी के चालुक्यों के संरक्षण में विकसित हुई। इसने दोनों प्रमुख शैलियों के सर्वश्रेष्ठ तत्वों को अपनाया और उन्हें एक नए रूप में प्रस्तुत किया।

वेसर का भौगोलिक केंद्र (Geographical Center of Vesara)

हिंदू मंदिर स्थापत्य वेसर शैली (Hindu temple architecture Vesara style) का प्रभाव मुख्य रूप से कर्नाटक क्षेत्र में केंद्रित था। बादामी के चालुक्यों के बाद, राष्ट्रकूटों और होयसलों जैसे राजवंशों ने इस शैली को आगे बढ़ाया और इसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। वेसर मंदिर अपनी जटिल नक्काशी, अलंकृत स्तंभों और अद्वितीय तारकीय (star-shaped) योजनाओं के लिए जाने जाते हैं।

वेसर शैली की प्रमुख विशेषताएँ (Key Characteristics of Vesara Style)

मिश्रित विमान/शिखर (Hybrid Vimana/Shikhara)

वेसर शैली की सबसे प्रमुख विशेषता इसका विमान या शिखर है। इसमें नागर शिखर की वक्ररेखीय रूपरेखा और द्रविड़ विमान की सीढ़ीदार संरचना दोनों के तत्व शामिल हैं। इसका शिखर नागर की तरह बहुत ऊँचा नहीं होता, लेकिन द्रविड़ की तरह स्पष्ट रूप से स्तरित होता है। यह एक सुंदर संतुलन बनाता है जो वेसर शैली को एक अलग पहचान देता है।

तारकीय योजना (Stellar Plan)

कई वेसर मंदिर, विशेष रूप से होयसल काल के, एक तारकीय या तारे के आकार की योजना (stellate plan) पर बनाए गए हैं। इसमें मंदिर की बाहरी दीवारें एक साधारण वर्गाकार या आयताकार आकार के बजाय कई कोणों पर मुड़ी होती हैं, जिससे एक तारे जैसा पैटर्न बनता है। यह डिज़ाइन न केवल दिखने में आकर्षक है, बल्कि यह दीवारों पर नक्काशी के लिए अधिक सतह क्षेत्र भी प्रदान करता है। ⭐

अत्यधिक अलंकृत नक्काशी (Highly Ornate Carvings)

वेसर शैली अपनी अविश्वसनीय रूप से विस्तृत और जटिल नक्काशी के लिए जानी जाती है। होयसल कारीगरों ने नरम सोपस्टोन (soapstone) का उपयोग किया, जिससे उन्हें आभूषणों और मूर्तियों पर बहुत बारीक काम करने में मदद मिली। मंदिर की हर सतह, दीवारों से लेकर स्तंभों और छतों तक, देवी-देवताओं, पौराणिक कथाओं, जानवरों और फूलों के पैटर्न से ढकी होती है।

लेथ-टर्न्ड स्तंभ (Lathe-turned Pillars)

वेसर मंदिरों, विशेषकर होयसल मंदिरों के मंडपों में पाए जाने वाले स्तंभ अद्वितीय हैं। ऐसा माना जाता है कि इन स्तंभों को लेथ (मशीन) पर घुमाकर बनाया गया था, जिससे उन्हें एक चिकना और पॉलिश किया हुआ रूप मिला। इन स्तंभों में अक्सर जटिल गोलाकार छल्ले और ज्यामितीय पैटर्न होते हैं, जो उस समय के कारीगरों के असाधारण कौशल को दर्शाते हैं।

वेसर शैली की उत्पत्ति और विकास (Origin and Development of Vesara Style)

बादामी चालुक्य (Badami Chalukyas)

वेसर शैली की शुरुआत का श्रेय बादामी के चालुक्यों (6ठी से 8ठी शताब्दी) को दिया जाता है। उनके प्रारंभिक मंदिर ऐहोल और बादामी में पाए जाते हैं, जहाँ नागर और द्रविड़ दोनों शैलियों के साथ प्रयोग किए गए थे। पट्टदकल में, उनके कुछ मंदिर पूरी तरह से द्रविड़ शैली में हैं (जैसे विरुपाक्ष मंदिर), जबकि अन्य नागर शैली में हैं (जैसे पापनाथ मंदिर), जो इस संक्रमणकालीन चरण को दर्शाता है।

राष्ट्रकूट काल (Rashtrakuta Period)

राष्ट्रकूटों (8वीं से 10वीं शताब्दी) ने चालुक्यों के बाद सत्ता संभाली और वेसर शैली को आगे बढ़ाया। उनका सबसे बड़ा योगदान एलोरा का कैलाश मंदिर है, जो एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया दुनिया का सबसे बड़ा अखंड स्मारक है। हालांकि इसकी शैली मुख्य रूप से द्रविड़ है, लेकिन इसमें कुछ नागर और चालुक्य प्रभाव भी दिखाई देते हैं, जो वेसर परंपरा को जारी रखते हैं।

होयसल काल (Hoysala Period)

होयसल राजवंश (11वीं से 14वीं शताब्दी) के तहत वेसर शैली अपनी कलात्मकता के चरम पर पहुंच गई। होयसल कारीगरों ने नरम सोपस्टोन का उपयोग करके मूर्तिकला को एक नए स्तर पर पहुंचाया। बेलूर, हलेबिडु और सोमनाथपुरा के मंदिर उनकी उत्कृष्ट कृति हैं। इन मंदिरों की विशेषता उनकी जटिल तारकीय योजना, लेथ-टर्न्ड स्तंभ और आभूषणों जैसी बारीक नक्काशी है।

वेसर शैली के प्रसिद्ध मंदिर (Famous Vesara Style Temples)

होयसलेश्वर मंदिर, हलेबिडु (Hoysaleswara Temple, Halebidu)

यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और होयसल वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। हालांकि यह कभी पूरा नहीं हो सका, लेकिन इसकी दीवारों पर उकेरी गई मूर्तियां और नक्काशी दुनिया में सबसे बेहतरीन में से कुछ हैं। मंदिर की दीवारों पर हिंदू पौराणिक कथाओं, रामायण, महाभारत और भागवत पुराण के दृश्यों को दर्शाती एक विशाल चित्रमाला है।

चेन्नाकेशव मंदिर, बेलूर (Chennakeshava Temple, Belur)

राजा विष्णुवर्धन द्वारा निर्मित, यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। यह अपनी तारकीय योजना और ‘मदनिकाओं’ या ब्रैकेट आकृतियों के लिए प्रसिद्ध है, जो छत को सहारा देती हैं। ये 42 मदनिकाएं नृत्य, संगीत और सौंदर्य के विभिन्न रूपों को दर्शाती हैं और होयसल मूर्तिकला की उत्कृष्टता का प्रमाण हैं। मंदिर का हर कोना कला से सुसज्जित है।

डोड्डाबसप्पा मंदिर, डंबल (Doddabasappa Temple, Dambal)

यह मंदिर 12वीं शताब्दी में पश्चिमी चालुक्य वास्तुकला का एक बेहतरीन उदाहरण है। इसकी सबसे अनूठी विशेषता इसकी 24-नुकीली, अबाधित तारकीय योजना है, जो इसे पूरी तरह से गोलाकार जैसा दिखाती है। इसका शिखर द्रविड़ और नागर तत्वों का एक जटिल मिश्रण है, जो वेसर शैली की संकर प्रकृति को पूरी तरह से प्रदर्शित करता है।

कैलाश मंदिर, एलोरा (Kailasa Temple, Ellora)

हालांकि मुख्य रूप से द्रविड़ शैली से प्रभावित है, राष्ट्रकूटों द्वारा निर्मित यह मंदिर दक्कन क्षेत्र में स्थित होने के कारण वेसर परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। इसे एक ही चट्टान से ऊपर से नीचे की ओर तराशा गया है, जो इंजीनियरिंग और कला का एक बेजोड़ कारनामा है। यह मंदिर भगवान शिव के निवास, कैलाश पर्वत का प्रतिनिधित्व करता है।

तीनों शैलियों की तुलना: नागर बनाम द्रविड़ बनाम वेसर (Comparison of the Three Styles: Nagara vs. Dravida vs. Vesara)

टावर: शिखर बनाम विमान (Tower: Shikhara vs. Vimana)

मुख्य अंतर टावर के डिजाइन में है। नागर शैली (Nagara style) में एक वक्ररेखीय शिखर होता है जो एक बिंदु पर समाप्त होता है। द्रविड़ शैली (Dravida style) में एक सीढ़ीदार पिरामिड के आकार का विमान होता है जिसके ऊपर एक गुंबद (स्तूपिका) होता है। वेसर शैली (Vesara style) इन दोनों का मिश्रण है, जिसमें टावर की ऊंचाई कम होती है और इसमें नागर और द्रविड़ दोनों के तत्व होते हैं।

प्रवेश द्वार (Gateway)

द्रविड़ मंदिरों की एक प्रमुख पहचान उनके विशाल प्रवेश द्वार हैं, जिन्हें गोपुरम कहा जाता है। ये अक्सर मंदिर के मुख्य विमान से भी ऊँचे और अधिक सजावटी होते हैं। इसके विपरीत, नागर शैली के मंदिरों में गोपुरम का अभाव होता है। उनके प्रवेश द्वार आमतौर पर छोटे और कम भव्य होते हैं, क्योंकि मुख्य ध्यान शिखर पर होता है। वेसर शैली में भी गोपुरम प्रमुख नहीं होते हैं।

मंदिर परिसर की योजना (Temple Complex Plan)

द्रविड़ मंदिर विशाल चारदीवारी के भीतर बने होते हैं और इनमें बड़े जलाशय (temple tanks) होते हैं। नागर मंदिर आमतौर पर एक ऊँचे चबूतरे (जगती) पर बने होते हैं और इनमें बड़े जलाशयों का अभाव होता है। वेसर मंदिर, विशेष रूप से होयसल काल के, अपनी अनूठी तारकीय (star-shaped) जमीनी योजना के लिए जाने जाते हैं, जो नागर और द्रविड़ दोनों में नहीं पाई जाती है।

भौगोलिक वितरण (Geographical Distribution)

यह सबसे स्पष्ट अंतर है। नागर शैली उत्तर भारत (हिमालय और विंध्य के बीच) में प्रचलित थी। द्रविड़ शैली दक्षिण भारत (कृष्णा नदी और कन्याकुमारी के बीच) में फली-फूली। वेसर शैली इन दोनों क्षेत्रों के बीच, मुख्य रूप से दक्कन क्षेत्र (विशेषकर कर्नाटक) में विकसित हुई, जो इसके संकर स्वरूप का भौगोलिक कारण भी है।

हिंदू मंदिर स्थापत्य की स्थायी विरासत (The Enduring Legacy of Hindu Temple Architecture)

कला और संस्कृति के केंद्र (Centers of Art and Culture)

भारत के मंदिर केवल पूजा स्थल से कहीं बढ़कर थे। वे कला, संगीत, नृत्य और शिक्षा के जीवंत केंद्र थे। मंदिरों की दीवारों पर उकेरी गई मूर्तियां और चित्र उस समय के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन (social and cultural life) का एक दृश्य रिकॉर्ड प्रदान करते हैं। इन मंदिरों ने पीढ़ियों तक कलाकारों, वास्तुकारों और कारीगरों को प्रेरित किया है और भारतीय कला के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इंजीनियरिंग के चमत्कार (Marvels of Engineering)

हजारों साल पहले बिना आधुनिक उपकरणों और प्रौद्योगिकी के इन विशाल संरचनाओं का निर्माण कैसे किया गया, यह आज भी एक रहस्य है। तंजावुर के बृहदीश्वर मंदिर के शीर्ष पर 80 टन का पत्थर चढ़ाना हो या एलोरा में एक पूरी पहाड़ी को काटकर कैलाश मंदिर बनाना, ये प्राचीन भारत के वास्तुकारों और इंजीनियरों के असाधारण ज्ञान और कौशल का प्रमाण हैं। ये मंदिर गणित, ज्यामिति और खगोल विज्ञान में उनकी गहरी समझ को दर्शाते हैं। 🔭

आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत (A Source of Spiritual Inspiration)

आज भी, ये प्राचीन मंदिर लाखों लोगों के लिए आध्यात्मिक प्रेरणा और शांति का स्रोत हैं। वे भारत की गहरी धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं के स्थायी प्रतीक हैं। एक मंदिर की यात्रा केवल एक पर्यटक अनुभव नहीं है, बल्कि एक तीर्थयात्रा है जो व्यक्ति को ब्रह्मांड और स्वयं से जोड़ती है। उनकी वास्तुकला को ब्रह्मांड के एक मॉडल के रूप में डिजाइन किया गया है, जो भक्तों को एक दिव्य अनुभव प्रदान करता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

स्थापत्य की त्रिमूर्ति (The Trinity of Architecture)

हिंदू मंदिर स्थापत्य की तीन प्रमुख शैलियाँ – नागर, द्रविड़ और वेसर – भारत की अविश्वसनीय सांस्कृतिक विविधता और रचनात्मक प्रतिभा का प्रमाण हैं। नागर शैली अपनी ऊँचाई और भव्यता से प्रभावित करती है, द्रविड़ शैली अपनी विशालता और विस्तार से मंत्रमुग्ध करती है, और वेसर शैली अपनी जटिल कलात्मकता और संकर सुंदरता से चकित करती है। ये शैलियाँ पत्थर में लिखी गई कविता की तरह हैं, जो भारत के गौरवशाली अतीत की कहानी कहती हैं।

एक जीवित विरासत (A Living Heritage)

ये मंदिर केवल अतीत के अवशेष नहीं हैं, बल्कि एक जीवित विरासत हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं। वे हमें हमारे पूर्वजों के ज्ञान, कौशल और भक्ति की याद दिलाते हैं। छात्रों के रूप में, इन वास्तुशिल्प चमत्कारों का अध्ययन करना केवल इतिहास के बारे में सीखना नहीं है, बल्कि यह कला की सराहना करना, इंजीनियरिंग के सिद्धांतों को समझना और भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से जुड़ना भी है। 🌟

अन्वेषण के लिए एक निमंत्रण (An Invitation to Explore)

हम आशा करते हैं कि इस लेख ने आपको हिंदू मंदिर स्थापत्य नागर शैली, द्रविड़ शैली, वेसर शैली की दुनिया की एक झलक दी है। यह केवल सतह को खुरचना है; अन्वेषण के लिए एक पूरी दुनिया है। अगली बार जब आप किसी प्राचीन मंदिर की यात्रा करें, तो रुकें, उसकी वास्तुकला को देखें, उसकी नक्काशी को पढ़ें और उन हजारों गुमनाम कलाकारों को याद करें जिन्होंने इन कालातीत कृतियों को बनाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions – FAQs)

प्रश्न 1: हिंदू मंदिर स्थापत्य की तीन मुख्य शैलियाँ कौन सी हैं? (What are the three main styles of Hindu temple architecture?)

हिंदू मंदिर स्थापत्य की तीन मुख्य शैलियाँ हैं: नागर शैली, जो उत्तर भारत में पाई जाती है; द्रविड़ शैली, जो दक्षिण भारत में प्रचलित है; और वेसर शैली, जो नागर और द्रविड़ का मिश्रण है और मुख्य रूप से दक्कन क्षेत्र (विशेषकर कर्नाटक) में पाई जाती है।

प्रश्न 2: नागर और द्रविड़ शैली के शिखर में क्या अंतर है? (What is the difference between the Shikhara of Nagara and Dravida styles?)

मुख्य अंतर उनके आकार में है। नागर शैली का शिखर (Shikhara) एक वक्ररेखीय (curvilinear) टावर होता है जो ऊपर की ओर संकरा होता जाता है। वहीं, द्रविड़ शैली का टावर, जिसे विमान (Vimana) कहा जाता है, एक सीढ़ीदार पिरामिड (stepped pyramid) के आकार का होता है जिसमें कई मंजिलें होती हैं।

प्रश्न 3: ‘गोपुरम’ क्या है और यह किस शैली की विशेषता है? (What is a ‘Gopuram’ and which style is it characteristic of?)

‘गोपुरम’ एक विशाल और अलंकृत प्रवेश द्वार है जो मंदिर परिसर की चारदीवारी में बनाया जाता है। यह द्रविड़ शैली की एक प्रमुख विशेषता है। ये गोपुरम अक्सर मुख्य मंदिर के विमान से भी ऊँचे होते हैं और इन पर देवी-देवताओं की सैकड़ों मूर्तियां उकेरी जाती हैं।

प्रश्न 4: वेसर शैली को ‘संकर’ या ‘मिश्रित’ शैली क्यों कहा जाता है? (Why is the Vesara style called a ‘hybrid’ or ‘mixed’ style?)

वेसर शैली को संकर (hybrid) शैली कहा जाता है क्योंकि यह नागर और द्रविड़ दोनों शैलियों के तत्वों को मिश्रित करती है। इसके टावर में नागर शिखर की वक्रता और द्रविड़ विमान की स्तरित संरचना दोनों की झलक मिलती है। यह शैली उन क्षेत्रों में विकसित हुई जहाँ उत्तरी और दक्षिणी भारत की सांस्कृतिक सीमाएँ मिलती थीं।

प्रश्न 5: क्या पंचायतन शैली सभी मंदिरों में पाई जाती है? (Is the Panchayatana style found in all temples?)

नहीं, पंचायतन शैली सभी मंदिरों में नहीं पाई जाती है। यह नागर शैली के मंदिरों की एक विशिष्ट विशेषता है। इस शैली में, मुख्य मंदिर केंद्र में होता है और चार छोटे सहायक मंदिर परिसर के चारों कोनों पर स्थित होते हैं। यह पांच देवताओं की पूजा का एक स्वरूप है।

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