न्याय की ओर: विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार (Rights)
न्याय की ओर: विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार (Rights)

न्याय की ओर: विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार (Rights)

75 वर्षीय श्री शर्मा जी, जो कभी एक प्रतिष्ठित स्कूल के प्रिंसिपल थे, आज अपनी पेंशन के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। हर बार उन्हें एक नई खिड़की पर भेज दिया जाता है, सीढ़ियां चढ़ने में उनके कांपते हुए घुटने जवाब दे जाते हैं और कोई उनकी मदद के लिए आगे नहीं आता। वहीं दूसरी ओर, 22 साल की मेधा, एक प्रतिभाशाली सॉफ्टवेयर डेवलपर है, लेकिन उसकी व्हीलचेयर उसे अपने सपनों की कंपनी के ऑफिस में प्रवेश करने से रोकती है क्योंकि वहां रैंप नहीं है। ये कहानियाँ काल्पनिक लग सकती हैं, लेकिन ये हमारे समाज की एक कड़वी सच्चाई हैं, जहाँ सम्मान और अवसर की कमी के कारण हमारे वरिष्ठ नागरिक और दिव्यांगजन हाशिए पर धकेल दिए जाते हैं। इसी खाई को पाटने और उन्हें एक गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करने के लिए विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार की अवधारणा अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। यह केवल दया या सहानुभूति का विषय नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय (social justice), समानता और मानवाधिकारों का एक मौलिक स्तंभ है, जो यह सुनिश्चित करता है कि समाज का हर सदस्य बिना किसी भेदभाव के अपना जीवन पूरी क्षमता से जी सके।

इस लेख में हम जानेंगे (Table of Contents)

1. परिचय: विकलांगजन और वृद्धजन अधिकारों को समझना (Introduction: Understanding the Rights of Persons with Disabilities and the Elderly)

अधिकारों की परिभाषा और महत्व (Definition and Importance of Rights)

विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार वे कानूनी, सामाजिक और नैतिक हक हैं जो यह सुनिश्चित करते हैं कि दिव्यांग व्यक्ति और वरिष्ठ नागरिक समाज में बिना किसी भेदभाव के समानता, गरिमा और स्वतंत्रता के साथ जी सकें। ये अधिकार केवल विशेष रियायतें नहीं हैं, बल्कि ये मानवाधिकारों (human rights) का एक अभिन्न अंग हैं। इन अधिकारों का मुख्य उद्देश्य विकलांगता या उम्र के आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करना और उन्हें विकास की मुख्यधारा से जोड़ना है। एक सभ्य समाज की पहचान इसी बात से होती है कि वह अपने सबसे कमजोर सदस्यों के साथ कैसा व्यवहार करता है। इसलिए, इन अधिकारों को समझना और लागू करना न केवल एक कानूनी बाध्यता है, बल्कि एक नैतिक जिम्मेदारी भी है।

समाज में इन समूहों की स्थिति (Status of These Groups in Society)

भारतीय समाज में पारंपरिक रूप से बड़ों का सम्मान करने और जरूरतमंदों की मदद करने की संस्कृति रही है। हालांकि, बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य, शहरीकरण और एकल परिवारों के उदय के साथ, वृद्धजनों को अक्सर अकेलापन, उपेक्षा और वित्तीय असुरक्षा का सामना करना पड़ता है। इसी तरह, विकलांगजनों को शिक्षा, रोजगार और सार्वजनिक स्थानों तक पहुंचने में भारी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। सामाजिक कलंक (social stigma) और जागरूकता की कमी उनकी समस्याओं को और बढ़ा देती है। इन चुनौतियों से निपटने और एक समावेशी वातावरण बनाने के लिए, एक मजबूत कानूनी ढांचे की आवश्यकता है जो विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार की रक्षा कर सके।

इस लेख का उद्देश्य (Purpose of this Article)

इस लेख का उद्देश्य विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार से संबंधित विभिन्न कानूनी प्रावधानों, सरकारी योजनाओं और सामाजिक पहलुओं पर एक व्यापक और सरल जानकारी प्रदान करना है। हम भारत के संविधान से लेकर विशिष्ट अधिनियमों, जैसे कि ‘विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016’ और ‘माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007’ तक की गहराई से पड़ताल करेंगे। हमारा लक्ष्य पाठकों को इन अधिकारों के प्रति जागरूक करना है ताकि वे स्वयं या अपने प्रियजनों के लिए इन अधिकारों का प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकें और एक अधिक न्यायपूर्ण समाज के निर्माण में योगदान दे सकें।

2. भारत में अधिकारों का ऐतिहासिक और संवैधानिक आधार (Historical and Constitutional Basis of Rights in India)

स्वतंत्रता-पूर्व और स्वतंत्रता-पश्चात का दृष्टिकोण (Pre-Independence and Post-Independence Approach)

स्वतंत्रता से पहले, विकलांगता और वृद्धावस्था को अक्सर दान और परोपकार के नजरिए से देखा जाता था। कानूनी अधिकारों के बजाय, इन समूहों की देखभाल को धार्मिक या सामाजिक कर्तव्य माना जाता था। स्वतंत्रता के बाद, भारतीय संविधान ने एक कल्याणकारी राज्य (welfare state) की नींव रखी। संविधान निर्माताओं ने समानता, स्वतंत्रता और न्याय के सिद्धांतों को अपनाया, जिसने भविष्य में विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार के लिए कानूनी ढांचा तैयार करने का मार्ग प्रशस्त किया। शुरुआती दशकों में ध्यान मुख्य रूप से पुनर्वास और कुछ कल्याणकारी योजनाओं तक ही सीमित था, लेकिन समय के साथ, यह दृष्टिकोण अधिकार-आधारित मॉडल में बदल गया।

भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार (Fundamental Rights in the Indian Constitution)

भारतीय संविधान सीधे तौर पर विकलांगता या वृद्धावस्था का उल्लेख नहीं करता है, लेकिन इसके कई अनुच्छेद एक मजबूत आधार प्रदान करते हैं।

  • अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार): यह कानून के समक्ष सभी को समान मानता है और किसी भी आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। यह विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार की नींव है।
  • अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध): यह राज्य को किसी भी नागरिक के खिलाफ केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव करने से रोकता है। अदालतों ने इसकी व्याख्या करते हुए विकलांगता को भी इसमें शामिल किया है।
  • अनुच्छेद 16 (अवसर की समानता): यह सार्वजनिक रोजगार में सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करता है। सरकार विकलांग व्यक्तियों के लिए आरक्षण का प्रावधान इसी अनुच्छेद के तहत करती है।
  • अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार): सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा है कि ‘जीवन’ का अर्थ केवल जीवित रहना नहीं है, बल्कि गरिमा के साथ जीवन जीना है। इसमें स्वास्थ्य, आश्रय और सामाजिक सुरक्षा का अधिकार भी शामिल है, जो वृद्धजनों और विकलांगजनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत (Directive Principles of State Policy – DPSP)

संविधान के भाग IV में उल्लिखित DPSP, हालांकि कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं, लेकिन देश के शासन के लिए मौलिक हैं।

  • अनुच्छेद 41: यह विशेष रूप से राज्य को ‘बेरोजगारी, बुढ़ापे, बीमारी और विकलांगता’ के मामलों में काम करने, शिक्षा पाने और सार्वजनिक सहायता के अधिकार को सुरक्षित करने के लिए प्रभावी प्रावधान करने का निर्देश देता है। यह अनुच्छेद सीधे तौर पर विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार की वकालत करता है।
  • अनुच्छेद 46: यह राज्य को समाज के कमजोर वर्गों, विशेष रूप से अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देने का निर्देश देता है। इसकी भावना को विकलांगजनों और वृद्धजनों पर भी लागू किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 47: यह राज्य पर पोषण स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने का कर्तव्य डालता है, जो इन दोनों समूहों के लिए महत्वपूर्ण है।

3. विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (RPwD Act, 2016) – एक विस्तृत विश्लेषण (The Rights of Persons with Disabilities Act, 2016 – A Detailed Analysis)

अधिनियम का परिचय और उद्देश्य (Introduction and Objectives of the Act)

विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 (Rights of Persons with Disabilities Act, 2016) भारत में विकलांगता के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कानून है। इसने 1995 के पुराने कानून को प्रतिस्थापित किया और संयुक्त राष्ट्र विकलांग व्यक्ति अधिकार सम्मेलन (UNCRPD) के सिद्धांतों के अनुरूप विकलांगता के प्रति दृष्टिकोण को चिकित्सा मॉडल से सामाजिक और मानवाधिकार-आधारित मॉडल में बदल दिया। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य विकलांग व्यक्तियों के साथ होने वाले सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करना, उन्हें पूर्ण और प्रभावी भागीदारी के लिए समान अवसर प्रदान करना और उनके अंतर्निहित गरिमा का सम्मान सुनिश्चित करना है। यह कानून विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार के ढांचे में एक मील का पत्थर है, क्योंकि कई वृद्धजन भी विकलांगता का अनुभव करते हैं।

मान्यता प्राप्त विकलांगताओं का विस्तार (Expansion of Recognized Disabilities)

1995 के कानून में केवल 7 प्रकार की विकलांगताओं को मान्यता दी गई थी, जबकि RPwD Act, 2016 ने इस दायरे को बढ़ाकर 21 प्रकार की विकलांगताओं को शामिल किया है। यह एक महत्वपूर्ण कदम है क्योंकि यह अधिक लोगों को कानून के तहत संरक्षण और लाभ प्राप्त करने में सक्षम बनाता है।

  • शारीरिक विकलांगता: जैसे कि लोकोमोटर विकलांगता, कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति, बौनापन, एसिड अटैक पीड़ित, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी।
  • दृष्टि और श्रवण विकलांगता: अंधापन, कम दृष्टि, बहरापन, ऊंचा सुनना।
  • बौद्धिक विकलांगता: जैसे विशिष्ट सीखने की अक्षमता (Specific Learning Disabilities), ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर।
  • मानसिक व्यवहार: मानसिक बीमारी (Mental Illness)।
  • पुरानी न्यूरोलॉजिकल स्थितियां: जैसे मल्टीपल स्केलेरोसिस, पार्किंसंस रोग।
  • रक्त विकार: हीमोफिलिया, थैलेसीमिया, सिकल सेल रोग।
  • भाषण और भाषा विकलांगता।
यह अधिनियम केंद्र सरकार को इस सूची में और भी विकलांगताओं को जोड़ने का अधिकार देता है।

शिक्षा और कौशल विकास में अधिकार (Rights in Education and Skill Development)

यह अधिनियम 6 से 18 वर्ष की आयु के बीच बेंचमार्क विकलांगता (benchmark disability) वाले प्रत्येक बच्चे के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान करता है।

  • समावेशी शिक्षा (Inclusive Education): अधिनियम सामान्य स्कूलों में विकलांग बच्चों को प्रवेश देने पर जोर देता है। स्कूलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके पास सुलभ बुनियादी ढांचा और विकलांग बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रशिक्षित शिक्षक हों।
  • आरक्षण: उच्च शिक्षण संस्थानों में विकलांग छात्रों के लिए कम से कम 5% सीटों का आरक्षण अनिवार्य किया गया है।
  • छात्रवृत्ति और वित्तीय सहायता: सरकार को विकलांग छात्रों को उनकी शिक्षा पूरी करने में मदद करने के लिए छात्रवृत्ति योजनाएं प्रदान करने का निर्देश दिया गया है।

रोजगार और आजीविका में अधिकार (Rights in Employment and Livelihood)

रोजगार विकलांग व्यक्तियों के आर्थिक सशक्तिकरण (economic empowerment) के लिए महत्वपूर्ण है। यह कानून इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करता है।

  • सरकारी नौकरियों में आरक्षण: सरकारी प्रतिष्ठानों में कुल रिक्तियों का कम से कम 4% विकलांग व्यक्तियों के लिए आरक्षित है। इसमें अंधापन और कम दृष्टि के लिए 1%, बहरे और सुनने में अक्षम के लिए 1%, लोकोमोटर विकलांगता के लिए 1%, और ऑटिज्म, बौद्धिक विकलांगता आदि के लिए 1% शामिल है।
  • निजी क्षेत्र में प्रोत्साहन: यह अधिनियम निजी क्षेत्र के नियोक्ताओं को विकलांग व्यक्तियों को रोजगार देने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिसके लिए सरकार विभिन्न योजनाएं और प्रोत्साहन प्रदान करती है।
  • भेदभाव का निषेध: किसी भी कर्मचारी के साथ उसकी विकलांगता के आधार पर रोजगार के किसी भी मामले में भेदभाव नहीं किया जा सकता है। सेवा के दौरान विकलांग होने पर किसी को भी नौकरी से नहीं हटाया जा सकता या पदावनत नहीं किया जा सकता है।

सामाजिक सुरक्षा और सुगम्यता (Social Security and Accessibility)

यह अधिनियम विकलांग व्यक्तियों के लिए एक व्यापक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली और एक बाधा मुक्त वातावरण (barrier-free environment) बनाने पर जोर देता है।

  • सामाजिक सुरक्षा योजनाएं: सरकार को विकलांग व्यक्तियों, विशेष रूप से बेरोजगारों और गंभीर विकलांगता वाले लोगों के लिए पेंशन, बेरोजगारी भत्ता और अन्य वित्तीय सहायता योजनाएं शुरू करने का निर्देश दिया गया है।
  • सुगम्यता (Accessibility): अधिनियम में सभी सार्वजनिक भवनों, अस्पतालों, परिवहन के साधनों (बस, ट्रेन, हवाई अड्डे) और सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (वेबसाइट, मोबाइल ऐप) को विकलांग व्यक्तियों के लिए सुलभ बनाने के लिए समय-सीमा निर्धारित की गई है। इसे ‘सुगम्य भारत अभियान’ (Accessible India Campaign) के माध्यम से लागू किया जा रहा है।
  • अभिभावकत्व (Guardianship): यह सीमित अभिभावकत्व (limited guardianship) की अवधारणा पेश करता है, जो विकलांग व्यक्ति को आवश्यक समर्थन प्रदान करते हुए उनकी निर्णय लेने की क्षमता का सम्मान करता है।

RPwD अधिनियम, 2016 के सकारात्मक और नकारात्मक पहलू (Pros and Cons of the RPwD Act, 2016)

किसी भी कानून की तरह, RPwD अधिनियम, 2016 के भी अपने सकारात्मक और नकारात्मक पहलू हैं, जो इसके कार्यान्वयन की प्रभावशीलता को दर्शाते हैं। ये पहलू विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार की जमीनी हकीकत को समझने में मदद करते हैं।

सकारात्मक पहलू (Pros / Sakaratmaka)

  • अधिकार-आधारित दृष्टिकोण: यह कानून विकलांगता को एक चिकित्सा मुद्दे के बजाय एक मानवाधिकार मुद्दे के रूप में देखता है, जो विकलांग व्यक्तियों को सशक्त बनाता है।
  • विस्तृत परिभाषा: 21 प्रकार की विकलांगताओं को शामिल करने से अधिक लोग कानूनी संरक्षण के दायरे में आए हैं, जिनमें एसिड अटैक पीड़ित और बौनापन जैसी श्रेणियां भी शामिल हैं।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: यह पहली बार निजी क्षेत्र को भी अपनी जिम्मेदारियों के दायरे में लाता है, चाहे वह रोजगार हो या सार्वजनिक सेवाओं में सुगम्यता।
  • दंडात्मक प्रावधान: अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने वालों के लिए दंड का प्रावधान है, जो इसे और अधिक प्रभावी बनाता है।
  • समावेशी शिक्षा पर जोर: 6-18 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त शिक्षा का अधिकार एक क्रांतिकारी कदम है जो विकलांग बच्चों को मुख्यधारा से जोड़ने में मदद करेगा।

नकारात्मक पहलू (Cons / Nakaratmaka)

  • धीमा कार्यान्वयन: कानून बनने के कई साल बाद भी, कई राज्यों में नियमों को पूरी तरह से अधिसूचित और लागू नहीं किया गया है। सुगम्यता लक्ष्यों को पूरा करने में भी देरी हो रही है।
  • जागरूकता की कमी: आम जनता और यहां तक कि कई सरकारी अधिकारियों को भी इस कानून के विस्तृत प्रावधानों के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, जिससे इसके लाभ वास्तविक लाभार्थियों तक नहीं पहुंच पाते हैं।
  • फंड की कमी: सुगम्य बुनियादी ढांचे के निर्माण, विशेष शिक्षकों की भर्ती और अन्य प्रावधानों को लागू करने के लिए पर्याप्त धन का आवंटन एक बड़ी चुनौती है।
  • निगरानी तंत्र का अभाव: जिला स्तर पर शिकायत निवारण और निगरानी समितियों का गठन अक्सर कागजों तक ही सीमित रहता है, जिससे जवाबदेही सुनिश्चित करना मुश्किल हो जाता है।
  • बेंचमार्क विकलांगता की शर्त: कई लाभ केवल 40% या अधिक विकलांगता (बेंचमार्क विकलांगता) वाले व्यक्तियों के लिए ही उपलब्ध हैं, जिससे कम विकलांगता वाले लोग लाभ से वंचित रह जाते हैं।

4. माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 – एक गहन समीक्षा (The Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 – An In-depth Review)

अधिनियम का उद्देश्य और दायरा (Objective and Scope of the Act)

यह अधिनियम भारत में वृद्धजनों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी उपकरण है। इसका मुख्य उद्देश्य माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण के लिए एक प्रभावी और त्वरित कानूनी प्रावधान सुनिश्चित करना है, ताकि वे एक गरिमापूर्ण और सुरक्षित जीवन जी सकें। यह कानून इस धारणा पर आधारित है कि अपने माता-पिता और बड़ों की देखभाल करना बच्चों और रिश्तेदारों का नैतिक और कानूनी कर्तव्य है। यह अधिनियम उन वरिष्ठ नागरिकों को कानूनी सहारा प्रदान करता है जिन्हें उनके बच्चों या रिश्तेदारों द्वारा उपेक्षित या त्याग दिया गया है। यह विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार के ताने-बाने का एक अनिवार्य हिस्सा है।

भरण-पोषण का अधिकार (The Right to Maintenance)

इस कानून का सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान वरिष्ठ नागरिकों को उनके बच्चों या निर्दिष्ट रिश्तेदारों से वित्तीय सहायता (financial support) प्राप्त करने का अधिकार देना है।

  • कौन दावा कर सकता है?: कोई भी वरिष्ठ नागरिक (60 वर्ष या उससे अधिक आयु का व्यक्ति) या माता-पिता (चाहे वे वरिष्ठ नागरिक हों या नहीं) जो स्वयं अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं, वे दावा कर सकते हैं।
  • किसके खिलाफ दावा?: दावा उनके एक या अधिक वयस्क बच्चों (पुत्र, पुत्री, पोता, पोती शामिल) या उन रिश्तेदारों के खिलाफ किया जा सकता है जो उनकी संपत्ति के उत्तराधिकारी हैं या होंगे।
  • भरण-पोषण की राशि: भरण-पोषण की राशि जरूरतों और जीवन स्तर के आधार पर तय की जाती है, और यह अधिकतम 10,000 रुपये प्रति माह हो सकती है (हालांकि कुछ राज्यों ने इस सीमा को संशोधित किया है)।
  • आवेदन प्रक्रिया: पीड़ित वरिष्ठ नागरिक या उनकी ओर से कोई अन्य व्यक्ति या संगठन, भरण-पोषण न्यायाधिकरण (Maintenance Tribunal) में एक साधारण आवेदन दायर कर सकता है।

भरण-पोषण न्यायाधिकरण की भूमिका (Role of the Maintenance Tribunal)

यह कानून एक सरल, सस्ती और त्वरित न्याय प्रणाली प्रदान करने के लिए विशेष न्यायाधिकरणों की स्थापना करता है।

  • गठन: प्रत्येक उप-मंडल (Sub-Division) में एक भरण-पोषण न्यायाधिकरण की स्थापना की जाती है, जिसकी अध्यक्षता उप-विभागीय अधिकारी (SDO/SDM) रैंक का अधिकारी करता है।
  • सरल प्रक्रिया: प्रक्रिया बहुत सरल है और इसमें वकीलों की भूमिका को सीमित किया गया है ताकि मामलों का तेजी से निपटारा हो सके। न्यायाधिकरण सुलह के माध्यम से भी मामले को हल करने का प्रयास करता है।
  • समय-सीमा: आवेदन प्राप्त होने के 90 दिनों के भीतर न्यायाधिकरण को अपना निर्णय देना होता है। विशेष परिस्थितियों में इसे 30 दिनों के लिए और बढ़ाया जा सकता है।
  • निर्णय का प्रवर्तन: यदि बच्चे या रिश्तेदार न्यायाधिकरण के आदेश का पालन नहीं करते हैं, तो न्यायाधिकरण वारंट जारी कर सकता है और उन्हें एक महीने तक की कैद की सजा हो सकती है।

जीवन और संपत्ति की सुरक्षा (Protection of Life and Property)

वित्तीय सहायता के अलावा, यह अधिनियम वरिष्ठ नागरिकों की शारीरिक और भावनात्मक सुरक्षा पर भी ध्यान केंद्रित करता है।

  • संपत्ति हस्तांतरण को रद्द करना: यदि कोई वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति किसी बच्चे या रिश्तेदार को इस शर्त पर हस्तांतरित करता है कि वह उनकी देखभाल करेगा, और बाद में वह व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी से मुकर जाता है, तो वरिष्ठ नागरिक उस संपत्ति हस्तांतरण को धोखाधड़ी या दबाव के आधार पर शून्य घोषित करने के लिए न्यायाधिकरण से अनुरोध कर सकता है।
  • परित्याग के विरुद्ध दंड: किसी भी वरिष्ठ नागरिक को किसी भी स्थान पर पूरी तरह से त्यागने के इरादे से छोड़ने वाले व्यक्ति को तीन महीने तक की कैद या 5,000 रुपये का जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
  • वृद्धाश्रमों की स्थापना: अधिनियम राज्य सरकारों को प्रत्येक जिले में कम से कम एक वृद्धाश्रम (Old Age Home) स्थापित करने और उसे बनाए रखने का निर्देश देता है, विशेष रूप से निराश्रित वरिष्ठ नागरिकों के लिए।

वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 के सकारात्मक और नकारात्मक पहलू (Pros and Cons of the Senior Citizens Act, 2007)

यह अधिनियम वृद्धजनों को एक महत्वपूर्ण कानूनी कवच प्रदान करता है, लेकिन इसके कार्यान्वयन में कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां भी हैं। विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार की प्रभावशीलता को समझने के लिए इन दोनों पहलुओं का विश्लेषण आवश्यक है।

सकारात्मक पहलू (Pros / Sakaratmaka)

  • त्वरित न्याय: न्यायाधिकरणों की स्थापना से वरिष्ठ नागरिकों को लंबी और महंगी अदालती कार्यवाही से राहत मिली है। 90-दिन की समय-सीमा एक सराहनीय प्रावधान है।
  • सरल और सस्ती प्रक्रिया: आवेदन प्रक्रिया सरल है और वकीलों की आवश्यकता न होने से यह आर्थिक रूप से कमजोर वरिष्ठ नागरिकों के लिए सुलभ है।
  • संपत्ति की सुरक्षा: संपत्ति हस्तांतरण को रद्द करने का प्रावधान वरिष्ठ नागरिकों को अपनी संपत्ति का दुरुपयोग होने से बचाने के लिए एक शक्तिशाली उपकरण देता है।
  • कानूनी बाध्यता: यह अधिनियम देखभाल को एक नैतिक कर्तव्य से कानूनी बाध्यता में बदल देता है, जिससे बच्चों और रिश्तेदारों पर अपनी जिम्मेदारी निभाने का दबाव बनता है।

नकारात्मक पहलू (Cons / Nakaratmaka)

  • जागरूकता का भारी अभाव: अधिकांश वरिष्ठ नागरिकों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, को इस कानून और अपने अधिकारों के बारे में जानकारी ही नहीं है।
  • भावनात्मक बाधाएं: कई माता-पिता सामाजिक कलंक और अपने बच्चों के साथ संबंधों को खराब करने के डर से उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने से हिचकिचाते हैं।
  • भरण-पोषण की कम राशि: 10,000 रुपये प्रति माह की अधिकतम सीमा आज के समय में बढ़ती महंगाई और चिकित्सा खर्चों को देखते हुए अपर्याप्त हो सकती है।
  • कार्यान्वयन में असमानता: न्यायाधिकरणों का कामकाज और वृद्धाश्रमों की स्थिति विभिन्न राज्यों में बहुत भिन्न है। कई जगहों पर बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
  • बच्चों पर अत्यधिक ध्यान: यह कानून मुख्य रूप से बच्चों पर जिम्मेदारी डालता है और राज्य की व्यापक सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की भूमिका को सीमित करता है।

5. प्रमुख सरकारी योजनाएं और सामाजिक सुरक्षा पहलें (Major Government Schemes and Social Security Initiatives)

विकलांगजनों के लिए योजनाएं (Schemes for Persons with Disabilities)

भारत सरकार और राज्य सरकारें विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण और पुनर्वास के लिए कई योजनाएं चलाती हैं, जो उनके अधिकारों को वास्तविकता में बदलने का प्रयास करती हैं।

  • सुगम्य भारत अभियान (Accessible India Campaign): इस प्रमुख अभियान का उद्देश्य पूरे देश में विकलांग व्यक्तियों के लिए एक बाधा रहित वातावरण बनाना है, जिसमें सार्वजनिक भवन, परिवहन और वेबसाइटें शामिल हैं।
  • सहायक यंत्रों/उपकरणों की खरीद/फिटिंग के लिए विकलांग व्यक्तियों को सहायता (ADIP) योजना: इस योजना के तहत, जरूरतमंद विकलांग व्यक्तियों को मोटराइज्ड ट्राइसाइकिल, व्हीलचेयर, श्रवण यंत्र और अन्य सहायक उपकरण मुफ्त या रियायती दरों पर प्रदान किए जाते हैं।
  • दीनदयाल विकलांग पुनर्वास योजना (DDRS): यह योजना गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) को विकलांग व्यक्तियों के लिए शिक्षा, व्यावसायिक प्रशिक्षण और पुनर्वास कार्यक्रम चलाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
  • विशिष्ट विकलांगता आईडी (UDID) कार्ड: यह परियोजना प्रत्येक विकलांग व्यक्ति को एक विशिष्ट आईडी कार्ड प्रदान करती है, जो देश भर में विभिन्न योजनाओं और लाभों तक पहुंचने के लिए एक एकल दस्तावेज के रूप में काम करेगा। यह विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार को सुलभ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

वृद्धजनों के लिए योजनाएं (Schemes for the Elderly)

वरिष्ठ नागरिकों को वित्तीय सुरक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक जुड़ाव प्रदान करने के लिए कई पहलें की गई हैं।

  • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS): यह राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (NSAP) का एक हिस्सा है, जिसके तहत गरीबी रेखा से नीचे (BPL) के वरिष्ठ नागरिकों को मासिक पेंशन प्रदान की जाती है।
  • राष्ट्रीय वयोश्री योजना (RVY): इस योजना के तहत, गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले वरिष्ठ नागरिकों को उम्र से संबंधित अक्षमताओं (जैसे कम दृष्टि, सुनने में कठिनाई) से निपटने के लिए छड़ी, चश्मे, श्रवण यंत्र जैसे सहायक उपकरण मुफ्त प्रदान किए जाते हैं।
  • वरिष्ठ नागरिक कल्याण कोष (Senior Citizens’ Welfare Fund): इस कोष का उपयोग वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण के लिए योजनाओं को वित्तपोषित करने के लिए किया जाता है, जैसे कि वृद्धाश्रमों में सुधार और डे-केयर केंद्र स्थापित करना।
  • प्रधानमंत्री वय वंदना योजना (PMVVY): यह भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) द्वारा संचालित एक पेंशन योजना है जो वरिष्ठ नागरिकों को उनकी निवेशित राशि पर एक निश्चित गारंटीकृत रिटर्न प्रदान करती है, जिससे उन्हें एक नियमित आय सुनिश्चित होती है।

6. अधिकारों के कार्यान्वयन में चुनौतियां और समाधान (Challenges in Implementation and Solutions)

जागरूकता और सूचना का अभाव (Lack of Awareness and Information)

विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार के कार्यान्वयन में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक जागरूकता की कमी है। कई विकलांग व्यक्ति और वरिष्ठ नागरिक, विशेष रूप से ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में, अपने कानूनी अधिकारों और उनके लिए उपलब्ध सरकारी योजनाओं से अनभिज्ञ हैं। सूचना तक पहुंच की कमी उन्हें उन लाभों से वंचित कर देती है जिनके वे हकदार हैं। यहां तक कि सरकारी अधिकारी और सेवा प्रदाता भी अक्सर इन कानूनों की बारीकियों से पूरी तरह परिचित नहीं होते हैं।

बुनियादी ढांचे और सुगम्यता की समस्याएं (Issues of Infrastructure and Accessibility)

कानूनी प्रावधानों के बावजूद, भौतिक और डिजिटल बुनियादी ढांचा अभी भी काफी हद तक दुर्गम है। सार्वजनिक परिवहन, सरकारी कार्यालय, स्कूल, अस्पताल और बाजार जैसी जगहों पर रैंप, सुलभ शौचालय और अन्य सुविधाओं का अभाव है। सरकारी वेबसाइटें और मोबाइल ऐप्स अक्सर स्क्रीन रीडर के अनुकूल नहीं होते हैं, जो दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए एक बड़ी बाधा है। यह डिजिटल डिवाइड (digital divide) उन्हें आवश्यक सेवाओं और सूचनाओं से दूर रखता है।

सामाजिक दृष्टिकोण और कलंक (Social Attitudes and Stigma)

कानून समाज के दृष्टिकोण को रातोंरात नहीं बदल सकता। विकलांगता और वृद्धावस्था से जुड़ा सामाजिक कलंक अभी भी व्यापक है। विकलांग व्यक्तियों को अक्सर असहाय या अक्षम के रूप में देखा जाता है, जबकि वृद्धजनों को समाज पर बोझ समझा जाता है। यह नकारात्मक दृष्टिकोण भेदभावपूर्ण व्यवहार को जन्म देता है और उन्हें शिक्षा, रोजगार और सामाजिक जीवन में पूरी तरह से भाग लेने से रोकता है। विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार को प्रभावी बनाने के लिए इस मानसिकता को बदलना महत्वपूर्ण है।

संभावित समाधान और आगे की राह (Potential Solutions and the Way Forward)

इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

  • व्यापक जागरूकता अभियान: सरकार और नागरिक समाज को मिलकर प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया के माध्यम से बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चलाने चाहिए। जानकारी को सरल, स्थानीय भाषाओं में और सुलभ प्रारूपों में उपलब्ध कराया जाना चाहिए।
  • कार्यान्वयन की सख्त निगरानी: कानूनों और योजनाओं के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए एक मजबूत और स्वतंत्र तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए। जिला और राज्य स्तर पर जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
  • क्षमता निर्माण: सरकारी अधिकारियों, पुलिस, न्यायाधीशों और सेवा प्रदाताओं को विकलांगता और वृद्धावस्था के मुद्दों पर संवेदनशील बनाने और प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।
  • बजट का उचित आवंटन: विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार से संबंधित योजनाओं और बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधनों का आवंटन सुनिश्चित करना आवश्यक है।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग: प्रौद्योगिकी का उपयोग सुगम्यता बढ़ाने, सूचना प्रदान करने और सेवाओं की डिलीवरी में सुधार करने के लिए किया जा सकता है।

7. अंतर्राष्ट्रीय ढांचा और संयुक्त राष्ट्र की भूमिका (International Framework and the Role of the United Nations)

विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCRPD) (United Nations Convention on the Rights of Persons with Disabilities)

UNCRPD एक अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संधि है जिसे विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों और गरिमा की रक्षा के लिए बनाया गया है। भारत ने 2007 में इस सम्मेलन की पुष्टि की, जिसका अर्थ है कि भारत इसके प्रावधानों को अपने घरेलू कानूनों में लागू करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है। RPwD Act, 2016 को UNCRPD के सिद्धांतों को भारतीय कानून में शामिल करने के लिए ही बनाया गया था। यह सम्मेलन विकलांगता के प्रति एक बड़े वैचारिक बदलाव का प्रतीक है, जो विकलांग व्यक्तियों को ‘अधिकारों के धारक’ के रूप में मान्यता देता है, न कि केवल दान के ‘वस्तु’ के रूप में।

UNCRPD के मुख्य सिद्धांत (Core Principles of UNCRPD)

यह सम्मेलन कई मार्गदर्शक सिद्धांतों पर आधारित है जो विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार के वैश्विक दृष्टिकोण को आकार देते हैं।

  • भेदभाव का अभाव (Non-discrimination): विकलांगता के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव का निषेध।
  • समाज में पूर्ण और प्रभावी भागीदारी और समावेश (Full and effective participation and inclusion in society): विकलांग व्यक्तियों को समाज के सभी पहलुओं में भाग लेने का अधिकार है।
  • अंतर का सम्मान और विकलांग व्यक्तियों को मानव विविधता और मानवता के हिस्से के रूप में स्वीकार करना (Respect for difference and acceptance of persons with disabilities as part of human diversity and humanity): विकलांगता को एक प्राकृतिक मानवीय भिन्नता के रूप में देखना।
  • अवसर की समानता (Equality of opportunity): सभी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना।
  • सुगम्यता (Accessibility): भौतिक वातावरण, परिवहन, सूचना और संचार तक पहुंच सुनिश्चित करना।

वृद्धजनों के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयास (International Efforts for the Elderly)

हालांकि वृद्धजनों के लिए UNCRPD जैसी कोई विशिष्ट बाध्यकारी संधि नहीं है, लेकिन कई अंतर्राष्ट्रीय घोषणाएं और कार्य योजनाएं उनके अधिकारों को बढ़ावा देती हैं।

  • मैड्रिड इंटरनेशनल प्लान ऑफ एक्शन ऑन एजिंग (2002): यह 21वीं सदी में उम्र बढ़ने की चुनौतियों और अवसरों से निपटने के लिए एक व्यापक ढांचा प्रदान करता है। यह तीन प्राथमिकता वाले क्षेत्रों पर केंद्रित है: वृद्ध व्यक्ति और विकास, vieillissement (उम्र बढ़ने) के दौरान स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देना, और एक सक्षम और सहायक वातावरण सुनिश्चित करना।
  • सतत विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals – SDGs): कई SDGs, जैसे कि गरीबी उन्मूलन (SDG 1), अच्छा स्वास्थ्य (SDG 3), और असमानता में कमी (SDG 10), सीधे तौर पर वृद्धजनों के कल्याण से संबंधित हैं। इन लक्ष्यों का नारा ‘किसी को पीछे नहीं छोड़ना’ (Leave No One Behind) वृद्धजनों को भी शामिल करता है।

8. समाज की भूमिका: जागरूकता और समावेशिता को बढ़ावा देना (Role of Society: Promoting Awareness and Inclusivity)

परिवार और समुदाय की जिम्मेदारी (Responsibility of Family and Community)

कानून अपनी पूरी क्षमता तभी हासिल कर सकते हैं जब समाज उन्हें अपनाने के लिए तैयार हो। विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार की रक्षा में परिवार और समुदाय की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। परिवार को एक सहायक और सम्मानजनक वातावरण प्रदान करना चाहिए। समुदाय को अपने सार्वजनिक स्थानों, कार्यक्रमों और गतिविधियों में विकलांगजनों और वृद्धजनों को शामिल करने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए। सामाजिक समारोहों में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना, उनकी राय को महत्व देना और उन्हें अकेला महसूस न होने देना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।

गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) और नागरिक समाज का योगदान (Contribution of NGOs and Civil Society)

NGOs और नागरिक समाज संगठन सरकार और जनता के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करते हैं।

  • जागरूकता फैलाना: वे कार्यशालाओं, अभियानों और मीडिया के माध्यम से अधिकारों और योजनाओं के बारे में जागरूकता फैलाते हैं।
  • सेवा प्रदान करना: कई NGOs पुनर्वास केंद्र, विशेष स्कूल, वृद्धाश्रम और हेल्पलाइन चलाते हैं, जो सीधे तौर पर इन समूहों को सेवाएं प्रदान करते हैं।
  • वकालत और नीतिगत हस्तक्षेप: वे सरकार के साथ मिलकर नीतियों को प्रभावित करने और कानूनों के बेहतर कार्यान्वयन के लिए वकालत (advocacy) करते हैं।
  • कानूनी सहायता: वे जरूरतमंद व्यक्तियों को उनके अधिकारों का दावा करने के लिए मुफ्त कानूनी सलाह और सहायता प्रदान करते हैं।

एक समावेशी मानसिकता का निर्माण (Building an Inclusive Mindset)

एक सच्चा समावेशी समाज केवल रैंप और आरक्षण बनाने से नहीं बनता; यह मानसिकता में बदलाव की मांग करता है।

  • भाषा में संवेदनशीलता: हमें अपमानजनक शब्दों के बजाय सम्मानजनक भाषा का उपयोग करना चाहिए, जैसे ‘विकलांग व्यक्ति’ (Person with Disability) कहना, न कि ‘विकलांग’।
  • सहानुभूति नहीं, समानुभूति: हमें उनके प्रति दया या सहानुभूति दिखाने के बजाय उनकी स्थिति को समझने और उन्हें समान मानने की आवश्यकता है।
  • उनकी क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करें: हमें उनकी अक्षमताओं पर नहीं, बल्कि उनकी क्षमताओं, प्रतिभाओं और योगदान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • शिक्षा प्रणाली में समावेश: स्कूलों को बच्चों को छोटी उम्र से ही विविधता और समावेशिता का सम्मान करना सिखाना चाहिए।

9. अपने अधिकारों का दावा कैसे करें? एक व्यावहारिक मार्गदर्शिका (How to Claim Your Rights? A Practical Guide)

विकलांगता प्रमाण पत्र और UDID कार्ड प्राप्त करना (Obtaining Disability Certificate and UDID Card)

विकलांगता से संबंधित अधिकांश योजनाओं और लाभों का लाभ उठाने के लिए विकलांगता प्रमाण पत्र (Disability Certificate) एक अनिवार्य दस्तावेज है।

  • कहाँ आवेदन करें: आप अपने जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) या जिला अस्पताल में आवेदन कर सकते हैं।
  • आवश्यक दस्तावेज: आमतौर पर पहचान प्रमाण, निवास प्रमाण और पासपोर्ट आकार की तस्वीरें आवश्यक होती हैं।
  • UDID कार्ड: अब आप ऑनलाइन UDID पोर्टल पर भी आवेदन कर सकते हैं। यह प्रक्रिया को सरल बनाता है और आपको एक राष्ट्रीय स्तर पर मान्य कार्ड प्रदान करता है। UDID कार्ड प्राप्त करने से विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार का दावा करना आसान हो जाता है।

वरिष्ठ नागरिकों के लिए भरण-पोषण का दावा करना (Claiming Maintenance for Senior Citizens)

यदि कोई वरिष्ठ नागरिक अपने बच्चों से भरण-पोषण प्राप्त करने में असमर्थ है, तो वे कानूनी कदम उठा सकते हैं।

  • आवेदन कहाँ करें: अपने उप-मंडल (Sub-Division) के भरण-पोषण न्यायाधिकरण (Maintenance Tribunal) में आवेदन करें, जो आमतौर पर SDO/SDM कार्यालय में स्थित होता है।
  • प्रक्रिया: एक सादे कागज पर अपनी समस्या बताते हुए एक आवेदन लिखें। आप स्वयं या किसी NGO की मदद से ऐसा कर सकते हैं।
  • आवश्यक जानकारी: आवेदन में अपने बच्चों/रिश्तेदारों का नाम और पता और आपको कितनी वित्तीय सहायता की आवश्यकता है, इसका उल्लेख करें।
  • हेल्पलाइन: मदद के लिए आप राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक हेल्पलाइन नंबर 14567 पर भी कॉल कर सकते हैं।

भेदभाव या अधिकारों के उल्लंघन की शिकायत कहाँ करें (Where to Complain in Case of Discrimination or Violation of Rights)

यदि आपके अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो शिकायत करने के लिए कई मंच उपलब्ध हैं।

  • विकलांग व्यक्तियों के लिए मुख्य आयुक्त (Chief Commissioner for Persons with Disabilities): यह राष्ट्रीय स्तर पर một निगरानी और शिकायत निवारण निकाय है। आप उनकी वेबसाइट पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
  • राज्य आयुक्त (State Commissioner): प्रत्येक राज्य में एक राज्य आयुक्त होता है जो RPwD अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी करता है।
  • जिला समाज कल्याण अधिकारी (District Social Welfare Officer): आप योजनाओं और लाभों से संबंधित मुद्दों के लिए अपने जिले के समाज कल्याण अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC): मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन के मामलों में, आप NHRC में भी शिकायत कर सकते हैं।

10. निष्कर्ष: एक न्यायपूर्ण और समावेशी समाज की ओर (Conclusion: Towards a Just and Inclusive Society)

अधिकारों के महत्व का सारांश (Summary of the Importance of Rights)

विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार केवल कानूनी दस्तावेज नहीं हैं, बल्कि वे एक न्यायपूर्ण, समान और मानवीय समाज की आत्मा हैं। ये अधिकार सुनिश्चित करते हैं कि विकास का लाभ समाज के हर वर्ग तक पहुंचे और कोई भी व्यक्ति अपनी शारीरिक स्थिति या उम्र के कारण पीछे न रह जाए। RPwD अधिनियम, 2016 और वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 जैसे कानूनों ने एक मजबूत नींव रखी है, जो इन समूहों को गरिमा, स्वतंत्रता और अवसर प्रदान करती है। इन अधिकारों को समझना और उनका सम्मान करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।

सामूहिक कार्रवाई का आह्वान (A Call for Collective Action)

कानून बनाना पहला कदम है, लेकिन असली चुनौती उनके प्रभावी कार्यान्वयन में निहित है। यह केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। एक समाज के रूप में, हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी, अपने आस-पास के वातावरण को सुलभ बनाना होगा और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठानी होगी। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार केवल किताबों में न रहें, बल्कि वे हमारे दैनिक जीवन का एक जीवंत हिस्सा बनें। आइए हम सब मिलकर एक ऐसे भारत का निर्माण करें जहां हर व्यक्ति, चाहे उसकी उम्र या क्षमता कुछ भी हो, सम्मान और समानता के साथ जी सके। यही सच्चा सामाजिक न्याय (social justice) है और यही हमारे संविधान की सच्ची भावना है।

11. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) (Frequently Asked Questions (FAQs))

प्रश्न 1: बेंचमार्क विकलांगता (Benchmark Disability) क्या है?

उत्तर: RPwD अधिनियम, 2016 के अनुसार, बेंचमार्क विकलांगता का अर्थ है किसी व्यक्ति को 21 निर्दिष्ट विकलांगताओं में से कम से कम 40% की विकलांगता होना, जैसा कि प्रमाणित चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा प्रमाणित किया गया हो। आरक्षण और कई सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए यह शर्त आवश्यक है।

प्रश्न 2: यदि कोई बच्चा अपने माता-पिता को भरण-पोषण देने से मना कर दे तो क्या होगा?

उत्तर: यदि कोई बच्चा माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत भरण-पोषण न्यायाधिकरण के आदेश का पालन करने से इनकार करता है, तो न्यायाधिकरण बकाया राशि की वसूली के लिए वारंट जारी कर सकता है। आदेश का पालन न करने पर उसे एक महीने तक की कैद या जब तक भुगतान नहीं किया जाता, जो भी पहले हो, की सजा हो सकती है।

प्रश्न 3: क्या निजी कंपनियों को विकलांग व्यक्तियों के लिए नौकरियां आरक्षित करनी पड़ती हैं?

उत्तर: RPwD अधिनियम, 2016 निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए नौकरियां आरक्षित करना अनिवार्य नहीं करता है। हालांकि, यह उन्हें विकलांग व्यक्तियों को रोजगार देने के लिए प्रोत्साहित करता है और समान अवसर नीति बनाने का निर्देश देता है। सरकार निजी नियोक्ताओं को विकलांग व्यक्तियों को काम पर रखने के लिए विभिन्न प्रोत्साहन भी प्रदान करती है। विकलांगजन और वृद्धजन अधिकार को बढ़ावा देने में निजी क्षेत्र की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 4: सुगम्य भारत अभियान (Accessible India Campaign) का मुख्य लक्ष्य क्या है?

उत्तर: सुगम्य भारत अभियान का मुख्य लक्ष्य देश भर में विकलांग व्यक्तियों के लिए सार्वभौमिक सुगम्यता (universal accessibility) प्राप्त करना है। इसके तीन मुख्य घटक हैं: निर्मित पर्यावरण (सार्वजनिक भवन) में सुगम्यता, परिवहन प्रणाली में सुगम्यता, और सूचना और संचार (ICT) पारिस्थितिकी तंत्र में सुगम्यता, जिसमें वेबसाइटें और सार्वजनिक दस्तावेज शामिल हैं।

प्रश्न 5: क्या एक बहू अपने ससुर और सास के भरण-पोषण के लिए उत्तरदायी है?

उत्तर: वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 के तहत ‘बच्चों’ की परिभाषा में बेटा, बेटी, पोता और पोती शामिल हैं, लेकिन सीधे तौर पर बहू को शामिल नहीं किया गया है। हालांकि, अदालतों ने विभिन्न मामलों में व्याख्या की है कि यदि बहू अपने पति की संपत्ति की उत्तराधिकारी है, तो उसकी भी देखभाल की जिम्मेदारी हो सकती है। यह मामला विशिष्ट परिस्थितियों पर निर्भर करता है।

मुख्य विषय (Main Topic)उप-विषय (Sub-Topic)विस्तृत टॉपिक (Detailed Sub-Topics)
सामाजिक न्याय का आधारअवधारणासमानता (Equality), स्वतंत्रता (Liberty), बंधुत्व (Fraternity), न्याय (Justice)
भारतीय संविधान और सामाजिक न्यायप्रावधानमौलिक अधिकार (Fundamental Rights), राज्य के नीति निदेशक तत्व (DPSP), संवैधानिक गारंटी, आरक्षण नीति
शिक्षा से संबंधित न्यायशिक्षा का अधिकारRTE Act 2009, सर्व शिक्षा अभियान, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020
सामाजिक असमानताजातिगत भेदभावअनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), जातिगत आरक्षण, मंडल आयोग
सामाजिक वंचनालैंगिक असमानतामहिलाओं की स्थिति, महिला सशक्तिकरण, POSH Act, आरक्षण में भागीदारी
धार्मिक और अल्पसंख्यक अधिकारअल्पसंख्यक संरक्षणअल्पसंख्यक आयोग, मदरसा आधुनिकीकरण, धार्मिक स्वतंत्रता
सामाजिक सुरक्षाकल्याणकारी योजनाएँमनरेगा, अन्न सुरक्षा अधिनियम, स्वास्थ्य बीमा योजनाएँ (आयुष्मान भारत)

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