विषय-सूची (Table of Contents)
- परिचय: एक कहानी से शुरुआत (Introduction: Starting with a Story)
- 1. शासन क्या है? (What is Governance?)
- 2. सुशासन क्या है? (What is Good Governance?)
- 3. शासन और सुशासन में मुख्य अंतर (Key Differences between Governance and Good Governance)
- 4. सुशासन के 8 प्रमुख स्तंभ (The 8 Major Pillars of Good Governance)
- 5. सामाजिक न्याय और सुशासन का अटूट संबंध (The Unbreakable Bond of Social Justice and Good Governance)
- 6. भारत में शासन और सुशासन की यात्रा (The Journey of Governance and Good Governance in India)
- 7. शासन और सुशासन के समक्ष चुनौतियां (Challenges before Governance and Good Governance)
- 8. भविष्य की राह: सुशासन को कैसे मजबूत करें? (The Way Forward: How to Strengthen Good Governance?)
- 9. निष्कर्ष (Conclusion)
- 10. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions – FAQs)
कल्पना कीजिए, एक गाँव है जिसका नाम रामपुर है। गाँव के लोग सालों से पानी की कमी से जूझ रहे थे। सरकार ने उनकी समस्या सुनी और एक ‘शासन’ (governance) की प्रक्रिया के तहत गाँव में एक हैंडपंप लगवाया। यह एक अच्छा कदम था, लेकिन हैंडपंप गाँव के एक कोने में, सरपंच के घर के पास लगा दिया गया, जिससे दलित बस्ती के लोगों को पानी लेने के लिए मीलों चलना पड़ता था। कुछ ही महीनों में हैंडपंप खराब हो गया और उसकी मरम्मत के लिए कोई नहीं आया। यह ‘शासन’ का एक उदाहरण है – जहाँ निर्णय तो लिया गया, लेकिन प्रक्रिया समावेशी और टिकाऊ नहीं थी। अब एक दूसरी स्थिति की कल्पना कीजिए। सरकार ने गाँव वालों के साथ एक बैठक की, सबकी राय ली और हैंडपंप को गाँव के बीचों-बीच स्थापित किया। उसकी देखरेख के लिए एक समिति बनाई जिसमें हर समुदाय के लोग शामिल थे। यह है ‘सुशासन’ (good governance)। यहाँ निर्णय लेने की प्रक्रिया पारदर्शी, भागीदारीपूर्ण और जवाबदेह है। यही शासन और सुशासन का मूल अंतर है, जो सामाजिक न्याय की नींव रखता है।
आज के इस विस्तृत लेख में, हम इसी महत्वपूर्ण विषय ‘न्याय की नींव: शासन और सुशासन’ पर गहराई से चर्चा करेंगे। हम समझेंगे कि शासन क्या है, सुशासन इससे कैसे अलग और बेहतर है, और कैसे एक अच्छी शासन व्यवस्था ही समाज के हर व्यक्ति तक न्याय और समानता पहुँचा सकती है। यह विषय न केवल प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों के लिए, बल्कि हर उस जागरूक नागरिक के लिए महत्वपूर्ण है जो एक बेहतर और न्यायपूर्ण समाज का सपना देखता है। एक प्रभावी शासन और सुशासन प्रणाली ही किसी भी देश की प्रगति का आधार होती है।
1. शासन क्या है? (What is Governance?)
शासन की परिभाषा (Definition of Governance)
‘शासन’ एक व्यापक अवधारणा है। सरल शब्दों में, शासन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी देश, समाज या संगठन में निर्णय लिए जाते हैं और उन्हें लागू किया जाता है। यह उन सभी तंत्रों, प्रक्रियाओं और संस्थानों का समूह है जिनके माध्यम से नागरिक और समूह अपने हितों को स्पष्ट करते हैं, अपने कानूनी अधिकारों का प्रयोग करते हैं, अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं और अपने मतभेदों को सुलझाते हैं। शासन केवल सरकार द्वारा किए जाने वाले कार्यों तक सीमित नहीं है; इसमें निजी क्षेत्र और नागरिक समाज (civil society) की भूमिका भी शामिल होती है। यह शक्ति के प्रयोग का एक तरीका है, जिसके माध्यम से किसी देश के आर्थिक और सामाजिक संसाधनों का प्रबंधन किया जाता है।
शासन का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Historical Perspective of Governance)
शासन की अवधारणा मानव सभ्यता जितनी ही पुरानी है। जब से मनुष्यों ने समूहों में रहना शुरू किया, तब से किसी न किसी रूप में शासन व्यवस्था मौजूद रही है।
- प्राचीन काल: प्राचीन सभ्यताओं जैसे मेसोपोटामिया, मिस्र, सिंधु घाटी और चीन में राजतंत्र (monarchy) और साम्राज्यवादी शासन व्यवस्थाएं थीं। राजा या सम्राट सर्वोच्च अधिकारी होता था और कानून बनाना, न्याय करना और राज्य की रक्षा करना उसका कर्तव्य था। कौटिल्य का ‘अर्थशास्त्र’ प्राचीन भारत में शासन की एक उत्कृष्ट कृति है, जो राज्य प्रबंधन के सिद्धांतों पर प्रकाश डालती है।
- मध्यकाल: इस युग में सामंतवाद (feudalism) का उदय हुआ, जहाँ राजा अपनी भूमि सामंतों में बाँट देता था और वे बदले में राजा को सैन्य सेवा प्रदान करते थे। धर्म का शासन पर गहरा प्रभाव था और चर्च या धार्मिक संस्थान अक्सर राजनीतिक शक्तियों के केंद्र होते थे।
- आधुनिक काल: पुनर्जागरण और औद्योगिक क्रांति के बाद राष्ट्र-राज्यों (nation-states) का उदय हुआ। लोकतंत्र, संविधानवाद और नागरिक अधिकारों की अवधारणाएँ विकसित हुईं। शासन का ध्यान केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखने से हटकर नागरिकों के कल्याण, शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास पर केंद्रित हो गया। आज का शासन और सुशासन इसी आधुनिक सोच का परिणाम है।
शासन के विभिन्न प्रकार (Different Types of Governance)
विश्व में शासन के कई मॉडल मौजूद हैं, जो उस देश की राजनीतिक विचारधारा और सामाजिक संरचना (social structure) पर निर्भर करते हैं।
- लोकतांत्रिक शासन (Democratic Governance): इसमें सत्ता जनता के हाथों में होती है। नागरिक अपने प्रतिनिधियों को चुनाव के माध्यम से चुनते हैं। यहाँ स्वतंत्रता, समानता और न्याय जैसे मूल्यों पर जोर दिया जाता है। भारत, अमेरिका और ब्रिटेन इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
- सत्तावादी शासन (Authoritarian Governance): इसमें शक्ति एक व्यक्ति या एक छोटे समूह के हाथों में केंद्रित होती है। नागरिकों के अधिकार सीमित होते हैं और सरकार की आलोचना को बर्दाश्त नहीं किया जाता है। चीन और उत्तर कोरिया इसके उदाहरण हैं।
- राजतंत्रीय शासन (Monarchical Governance): यहाँ शासन का प्रमुख एक राजा या रानी होता है, जिसे यह पद विरासत में मिलता है। कुछ राजतंत्र संवैधानिक होते हैं (जैसे ब्रिटेन), जहाँ राजा केवल एक औपचारिक प्रमुख होता है, जबकि कुछ पूर्ण राजतंत्र होते हैं (जैसे सऊदी अरब)।
- अराजकता (Anarchy): यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ कोई औपचारिक शासन व्यवस्था नहीं होती है। यह अक्सर राजनीतिक अस्थिरता या गृहयुद्ध के परिणामस्वरूप होता है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि केवल ‘शासन’ का होना ही पर्याप्त नहीं है। एक देश में शासन तो हो सकता है, लेकिन अगर वह नागरिकों की जरूरतों को पूरा नहीं करता, भ्रष्ट है, और पारदर्शी नहीं है, तो वह एक विफल शासन माना जाएगा। यहीं पर शासन और सुशासन के बीच का अंतर स्पष्ट होता है।
2. सुशासन क्या है? (What is Good Governance?)
सुशासन की अवधारणा का विकास (Evolution of the Concept of Good Governance)
‘सुशासन’ (Good Governance) की अवधारणा 1980 के दशक के अंत में विश्व बैंक (World Bank) और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund) जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा लोकप्रिय बनाई गई। उन्होंने पाया कि कई विकासशील देशों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता का सही उपयोग नहीं हो रहा था क्योंकि वहाँ का ‘शासन’ कमजोर, भ्रष्ट और अक्षम था। तब यह महसूस किया गया कि केवल आर्थिक सुधार काफी नहीं हैं; स्थायी विकास के लिए शासन की गुणवत्ता में सुधार करना भी आवश्यक है। सुशासन का मतलब है कि शासन की प्रक्रियाएँ और संस्थाएँ ऐसे परिणाम देती हैं जो समाज की जरूरतों को पूरा करते हैं, साथ ही अपने संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करते हैं।
सुशासन की परिभाषा और अर्थ (Definition and Meaning of Good Governance)
सुशासन, शासन का एक आदर्श रूप है। यह इस विचार पर आधारित है कि शासन प्रक्रिया नैतिक, पारदर्शी, जवाबदेह और जन-केंद्रित होनी चाहिए। यह सिर्फ निर्णय लेने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि ‘सही’ निर्णय लेने और उन्हें ‘सही’ तरीके से लागू करने की प्रक्रिया है। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) के अनुसार, सुशासन की कुछ प्रमुख विशेषताएँ हैं: भागीदारी, कानून का शासन, पारदर्शिता, जवाबदेही, सर्वसम्मति-उन्मुख, समानता और समावेशिता, प्रभावशीलता और दक्षता। एक प्रभावी शासन और सुशासन प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि भ्रष्टाचार को कम से कम किया जाए, अल्पसंख्यकों की राय को ध्यान में रखा जाए, और निर्णय लेने में समाज के सबसे कमजोर लोगों की आवाज सुनी जाए।
सुशासन क्यों आवश्यक है? (Why is Good Governance Necessary?)
किसी भी देश के समग्र विकास और सामाजिक न्याय के लिए सुशासन अत्यंत आवश्यक है। इसके बिना, एक स्थिर और समृद्ध समाज की कल्पना नहीं की जा सकती।
- सतत विकास के लिए (For Sustainable Development): सुशासन यह सुनिश्चित करता है कि देश के प्राकृतिक और वित्तीय संसाधनों का उपयोग कुशलतापूर्वक और भविष्य की पीढ़ियों को ध्यान में रखकर किया जाए।
- सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए (To Ensure Social Justice): यह सुनिश्चित करता है कि विकास का लाभ समाज के सभी वर्गों, विशेषकर गरीबों और वंचितों तक पहुँचे। यह अवसरों की समानता प्रदान करता है।
- मानवाधिकारों की रक्षा के लिए (To Protect Human Rights): सुशासन ‘कानून के शासन’ पर आधारित है, जो सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है और यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।
- भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए (To Curb Corruption): पारदर्शिता और जवाबदेही सुशासन के मूल तत्व हैं, जो भ्रष्टाचार के अवसरों को कम करते हैं और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग को रोकते हैं।
- निवेश और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिए (To Promote Investment and Economic Growth): एक स्थिर, पूर्वानुमानित और पारदर्शी शासन व्यवस्था निवेशकों का विश्वास बढ़ाती है, जिससे देश में निवेश और आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ती हैं। प्रभावी शासन और सुशासन एक मजबूत अर्थव्यवस्था की कुंजी है।
3. शासन और सुशासन में मुख्य अंतर (Key Differences between Governance and Good Governance)
दृष्टिकोण में अंतर (Difference in Approach)
शासन और सुशासन के बीच सबसे बड़ा अंतर उनके दृष्टिकोण का है। शासन एक ‘तटस्थ’ (neutral) शब्द है, जो केवल निर्णय लेने और लागू करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है। यह प्रक्रिया अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी। एक तानाशाह का शासन भी ‘शासन’ कहलाता है। वहीं, सुशासन एक ‘मानक’ (normative) या ‘मूल्य-आधारित’ (value-based) अवधारणा है। यह इस बात पर जोर देता है कि शासन की प्रक्रिया कैसी ‘होनी चाहिए’ – यानी नैतिक, न्यायपूर्ण, पारदर्शी और जन-केंद्रित।
प्रक्रिया बनाम परिणाम (Process vs. Outcome)
शासन का मुख्य ध्यान प्रक्रियाओं और संरचनाओं पर होता है – जैसे कि संसद कैसे काम करती है, कानून कैसे बनते हैं, आदि। जबकि सुशासन प्रक्रियाओं के साथ-साथ परिणामों पर भी समान रूप से ध्यान केंद्रित करता है। सुशासन में यह महत्वपूर्ण है कि प्रक्रियाएँ पारदर्शी और भागीदारीपूर्ण हों, लेकिन यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि उन प्रक्रियाओं से समाज के लिए सकारात्मक और न्यायपूर्ण परिणाम निकलें। उदाहरण के लिए, एक कानून बनाना ‘शासन’ का हिस्सा है, लेकिन यह सुनिश्चित करना कि वह कानून गरीबों और वंचितों के जीवन में सुधार लाए, ‘सुशासन’ का लक्ष्य है।
तुलनात्मक तालिका (Comparative Table)
नीचे दी गई तालिका शासन और सुशासन के बीच के अंतर को और स्पष्ट करती है:
| विशेषता (Feature) | शासन (Governance) | सुशासन (Good Governance) |
|---|---|---|
| अर्थ (Meaning) | निर्णय लेने और लागू करने की प्रक्रिया। | नैतिक, पारदर्शी और जवाबदेह तरीके से निर्णय लेने और लागू करने की प्रक्रिया। |
| प्रकृति (Nature) | वर्णनात्मक (Descriptive) और तटस्थ (Neutral)। | मानकीय (Normative) और मूल्य-आधारित (Value-based)। |
| केंद्र-बिंदु (Focus) | शक्ति का प्रयोग और संस्थानों का प्रबंधन। | नागरिकों का कल्याण, अधिकारों की रक्षा और न्याय। |
| नागरिकों की भूमिका (Role of Citizens) | अक्सर निष्क्रिय या केवल प्राप्तकर्ता के रूप में। | सक्रिय भागीदार और हितधारक (stakeholder) के रूप में। |
| उद्देश्य (Objective) | व्यवस्था और नियंत्रण बनाए रखना। | मानव विकास को बढ़ावा देना और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना। |
| उदाहरण (Example) | किसी भी प्रकार की सरकार, चाहे वह लोकतांत्रिक हो या तानाशाही। | सूचना का अधिकार (RTI), नागरिक चार्टर, सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit)। |
संक्षेप में, हर सुशासन ‘शासन’ है, लेकिन हर शासन ‘सुशासन’ नहीं है। सुशासन, शासन का वह परिष्कृत रूप है जो न्याय, समानता और मानवाधिकारों के सिद्धांतों पर आधारित है। यही कारण है कि आज दुनिया भर में केवल शासन नहीं, बल्कि एक प्रभावी शासन और सुशासन प्रणाली स्थापित करने पर जोर दिया जा रहा है।
4. सुशासन के 8 प्रमुख स्तंभ (The 8 Major Pillars of Good Governance)
संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने सुशासन के आठ प्रमुख स्तंभों की पहचान की है। ये स्तंभ एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक साथ मिलकर एक प्रभावी शासन और सुशासन प्रणाली का निर्माण करते हैं। इन स्तंभों के बिना, सुशासन की कल्पना अधूरी है।
1. भागीदारी (Participation)
सुशासन में यह आवश्यक है कि सभी नागरिकों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में प्रत्यक्ष या अपने वैध प्रतिनिधियों के माध्यम से भाग लेने का अवसर मिले।
- इसका अर्थ है कि पुरुषों और महिलाओं, अल्पसंख्यकों और समाज के सबसे कमजोर वर्गों सहित सभी की आवाज सुनी जानी चाहिए।
- भागीदारी केवल वोट देने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन में सक्रिय रूप से शामिल होना भी है।
- ग्राम सभा, जन सुनवाई (public hearing) और नागरिक समाज संगठनों की भागीदारी इसके अच्छे उदाहरण हैं।
2. कानून का शासन (Rule of Law)
इसका अर्थ है कि कानून सर्वोच्च है और कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं है।
- कानूनी ढाँचा निष्पक्ष होना चाहिए और इसे सभी पर समान रूप से लागू किया जाना चाहिए।
- एक स्वतंत्र न्यायपालिका (independent judiciary) और एक निष्पक्ष पुलिस बल कानून के शासन के लिए अनिवार्य हैं।
- यह मानवाधिकारों की रक्षा करता है और नागरिकों को राज्य की मनमानी से बचाता है।
3. पारदर्शिता (Transparency)
पारदर्शिता का अर्थ है कि निर्णय कैसे लिए जाते हैं और उन्हें कैसे लागू किया जाता है, इस बारे में जानकारी जनता के लिए स्वतंत्र रूप से उपलब्ध हो।
- इसका मतलब है कि सरकारी कामकाज में खुलापन होना चाहिए और नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार उनके लिए क्या कर रही है।
- भारत में ‘सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005’ (Right to Information Act, 2005) पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है।
- पारदर्शिता भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और सरकार को जनता के प्रति अधिक जवाबदेह बनाने में मदद करती है।
4. जवाबदेही (Accountability)
जवाबदेही का अर्थ है कि सरकारी संस्थान, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज संगठन अपने निर्णयों और कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी हैं।
- यह केवल वित्तीय जवाबदेही तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें प्रदर्शन और परिणामों की जवाबदेही भी शामिल है।
- लोकपाल, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) जैसी संस्थाएँ सरकारी जवाबदेही सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- एक मजबूत शासन और सुशासन ढाँचे में, अधिकारी अपने काम के लिए जिम्मेदार ठहराए जाते हैं।
5. सर्वसम्मति-उन्मुख (Consensus Oriented)
सुशासन में विभिन्न हितों और दृष्टिकोणों के बीच मध्यस्थता करके समाज के व्यापक हित में एक आम सहमति बनाने का प्रयास किया जाता है।
- इसका उद्देश्य ऐसे निर्णय लेना है जो टिकाऊ हों और जिन्हें समाज का एक बड़ा वर्ग स्वीकार करे।
- यह सुनिश्चित करता है कि नीतियां केवल बहुमत की इच्छा पर नहीं, बल्कि सभी हितधारकों (stakeholders) की जरूरतों और आकांक्षाओं पर आधारित हों।
6. समानता और समावेशिता (Equity and Inclusiveness)
सुशासन यह सुनिश्चित करता है कि समाज के सभी सदस्यों को यह महसूस हो कि वे व्यवस्था का हिस्सा हैं और उनके पास अपने जीवन स्तर को सुधारने का अवसर है।
- इसका विशेष ध्यान समाज के सबसे कमजोर और वंचित वर्गों (vulnerable sections) पर होता है।
- आरक्षण नीतियां, सामाजिक सुरक्षा योजनाएं और समावेशी विकास कार्यक्रम इस सिद्धांत के उदाहरण हैं।
7. प्रभावशीलता और दक्षता (Effectiveness and Efficiency)
इसका अर्थ है कि संस्थाएं और प्रक्रियाएं ऐसे परिणाम उत्पन्न करें जो समाज की जरूरतों को पूरा करते हों, और ऐसा करते समय उपलब्ध संसाधनों (मानव, वित्तीय, प्राकृतिक) का सर्वोत्तम संभव उपयोग करें।
- दक्षता का मतलब है कम लागत में अधिक काम करना, और प्रभावशीलता का मतलब है सही काम करना।
- ई-गवर्नेंस और प्रौद्योगिकी का उपयोग सरकारी कामकाज को अधिक प्रभावी और कुशल बनाने में मदद करता है।
8. अनुक्रियाशीलता (Responsiveness)
सुशासन की आवश्यकता है कि संस्थान और प्रक्रियाएं सभी हितधारकों को एक उचित समय-सीमा के भीतर सेवा प्रदान करें।
- इसका अर्थ है कि सरकार को नागरिकों की समस्याओं और शिकायतों पर तुरंत ध्यान देना चाहिए और उनका समाधान करना चाहिए।
- नागरिक चार्टर (Citizen’s Charter) और शिकायत निवारण तंत्र (grievance redressal mechanisms) अनुक्रियाशीलता सुनिश्चित करने के उपकरण हैं।
सुशासन के स्तंभों का विश्लेषण (Analysis of the Pillars of Good Governance)
सुशासन के इन स्तंभों को लागू करना किसी भी देश के लिए एक आदर्श स्थिति है, लेकिन इसकी अपनी खूबियाँ और खामियाँ हैं।
- सकारात्मक पहलू (Positive Aspects):
- नागरिक सशक्तीकरण (Citizen Empowerment): ये सिद्धांत नागरिकों को केवल लाभार्थी नहीं, बल्कि विकास प्रक्रिया में भागीदार बनाते हैं।
- भ्रष्टाचार में कमी (Reduction in Corruption): पारदर्शिता और जवाबदेही जैसे सिद्धांत भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहीं छोड़ते।
- टिकाऊ विकास (Sustainable Development): सर्वसम्मति और दक्षता पर ध्यान केंद्रित करने से ऐसी नीतियां बनती हैं जो लंबी अवधि के लिए फायदेमंद होती हैं।
- सामाजिक सद्भाव (Social Harmony): समावेशिता और समानता समाज में विभिन्न समूहों के बीच विश्वास और सद्भाव को बढ़ावा देती है।
- नकारात्मक पहलू/चुनौतियां (Negative Aspects/Challenges):
- धीमी निर्णय प्रक्रिया (Slow Decision-Making): सर्वसम्मति बनाने और सभी को शामिल करने की प्रक्रिया में अक्सर निर्णय लेने में देरी हो सकती है।
- लागत और संसाधन (Cost and Resources): पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए मजबूत प्रणालियों (जैसे आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर) में भारी निवेश की आवश्यकता होती है।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी (Lack of Political Will): कई बार राजनेता और नौकरशाह यथास्थिति बनाए रखना चाहते हैं और पारदर्शिता और जवाबदेही का विरोध करते हैं।
- जागरूकता का अभाव (Lack of Awareness): यदि नागरिक अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नहीं हैं, तो सुशासन के सिद्धांत केवल कागजों पर ही रह जाते हैं। एक प्रभावी शासन और सुशासन के लिए नागरिकों का जागरूक होना भी उतना ही आवश्यक है।
5. सामाजिक न्याय और सुशासन का अटूट संबंध (The Unbreakable Bond of Social Justice and Good Governance)
सामाजिक न्याय क्या है? (What is Social Justice?)
सामाजिक न्याय (Social Justice) एक ऐसी अवधारणा है जो समाज में धन, अवसरों और विशेषाधिकारों के उचित और समान वितरण पर जोर देती है। इसका मूल सिद्धांत यह है कि किसी भी व्यक्ति के साथ उसकी जाति, धर्म, लिंग, जन्म स्थान या सामाजिक स्थिति के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। सामाजिक न्याय का लक्ष्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहाँ हर व्यक्ति को गरिमा के साथ जीने और अपनी पूरी क्षमता का विकास करने का अवसर मिले। यह केवल कानूनी न्याय तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें आर्थिक और राजनीतिक न्याय भी शामिल है।
सुशासन सामाजिक न्याय की गारंटी कैसे देता है? (How Good Governance Guarantees Social Justice?)
शासन और सुशासन, विशेष रूप से सुशासन, सामाजिक न्याय को प्राप्त करने का सबसे महत्वपूर्ण साधन है। बिना सुशासन के सामाजिक न्याय केवल एक नारा बनकर रह जाता है। सुशासन के सिद्धांत सीधे तौर पर सामाजिक न्याय के लक्ष्यों को पूरा करते हैं।
- समानता और समावेशिता के माध्यम से (Through Equity and Inclusiveness): सुशासन यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी नीतियां और कार्यक्रम समाज के सबसे कमजोर वर्गों, जैसे कि दलित, आदिवासी, महिलाएं और अल्पसंख्यक, की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाए जाएं। मनरेगा (MGNREGA) जैसी योजनाएं, जो ग्रामीण गरीबों को रोजगार की गारंटी देती हैं, समावेशी सुशासन का एक उदाहरण हैं।
- कानून के शासन के माध्यम से (Through Rule of Law): जब कानून का शासन होता है, तो सभी नागरिक, चाहे वे अमीर हों या गरीब, कानून के समक्ष बराबर होते हैं। यह कमजोरों को शक्तिशाली के शोषण से बचाता है और उनके अधिकारों की रक्षा करता है। एक स्वतंत्र न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि हर किसी को निष्पक्ष न्याय मिले।
- भागीदारी के माध्यम से (Through Participation): जब निर्णय लेने की प्रक्रिया में वंचित समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है, तो वे अपनी समस्याओं और जरूरतों को सीधे सरकार के सामने रख पाते हैं। इससे ऐसी नीतियां बनती हैं जो वास्तव में उनकी समस्याओं का समाधान करती हैं। पंचायती राज व्यवस्था इसका एक शक्तिशाली उदाहरण है, जहाँ स्थानीय स्तर पर लोग अपने विकास के लिए खुद निर्णय लेते हैं।
- पारदर्शिता और जवाबदेही के माध्यम से (Through Transparency and Accountability): जब सरकारी कामकाज पारदर्शी होता है, तो यह जानना आसान हो जाता है कि गरीबों और वंचितों के लिए आवंटित धन वास्तव में उन तक पहुँच रहा है या नहीं। सामाजिक अंकेक्षण (Social Audit) जैसी प्रक्रियाएं सरकारी योजनाओं में भ्रष्टाचार को उजागर करती हैं और अधिकारियों को जवाबदेह बनाती हैं, जिससे सामाजिक न्याय सुनिश्चित होता है।
उदाहरण: सुशासन के उपकरण और सामाजिक न्याय (Example: Tools of Good Governance and Social Justice)
भारत में ऐसे कई कानून और पहलें हैं जो सुशासन के माध्यम से सामाजिक न्याय को बढ़ावा देते हैं:
- सूचना का अधिकार (RTI): यह आम नागरिक को यह जानने की शक्ति देता है कि सरकारी योजनाएं कैसे काम कर रही हैं। एक गरीब व्यक्ति आरटीआई का उपयोग करके यह पता लगा सकता है कि उसे राशन कार्ड या पेंशन क्यों नहीं मिल रही है, इस प्रकार यह उसे अपने हक के लिए लड़ने का एक हथियार देता है।
- लोकपाल और लोकायुक्त (Lokpal and Lokayukta): ये संस्थाएं उच्च पदों पर बैठे सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार की जांच करती हैं। भ्रष्टाचार सीधे तौर पर सामाजिक न्याय पर हमला करता है, क्योंकि यह उन संसाधनों को लूटता है जो गरीबों के कल्याण के लिए होते हैं।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act): यह कानून देश की लगभग दो-तिहाई आबादी को रियायती दरों पर खाद्यान्न प्राप्त करने का कानूनी अधिकार देता है। यह सुशासन का एक उदाहरण है जहाँ राज्य अपने नागरिकों के भोजन के अधिकार को सुनिश्चित करता है, जो सामाजिक न्याय का एक मूल तत्व है।
- ई-गवर्नेंस (E-Governance): डिजिटल इंडिया जैसी पहलों ने सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराकर बिचौलियों को खत्म करने और भ्रष्टाचार को कम करने में मदद की है। अब एक छात्र सीधे ऑनलाइन छात्रवृत्ति के लिए आवेदन कर सकता है, जिससे पूरी प्रक्रिया पारदर्शी हो जाती है।
अतः यह स्पष्ट है कि शासन और सुशासन सामाजिक न्याय से गहराई से जुड़े हुए हैं। एक अच्छा शासन तंत्र ही वह प्लेटफॉर्म प्रदान करता है जिस पर सामाजिक न्याय की इमारत खड़ी हो सकती है।
6. भारत में शासन और सुशासन की यात्रा (The Journey of Governance and Good Governance in India)
स्वतंत्रता के बाद का दौर (Post-Independence Era)
1947 में स्वतंत्रता के बाद, भारत ने एक लोकतांत्रिक और कल्याणकारी राज्य (welfare state) का मॉडल अपनाया। भारतीय संविधान ने एक मजबूत शासनिक ढाँचे की नींव रखी, जिसमें एक स्वतंत्र न्यायपालिका, एक शक्तिशाली चुनाव आयोग और नागरिकों के लिए मौलिक अधिकार शामिल थे। शुरुआती दशकों में, शासन का मुख्य ध्यान राष्ट्र-निर्माण, औद्योगिक विकास और गरीबी उन्मूलन पर था। पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से विकास को दिशा दी गई। हालांकि, इस दौर का शासन ‘टॉप-डाउन’ दृष्टिकोण पर आधारित था, जहाँ निर्णय केंद्र में लिए जाते थे और नीचे तक लागू किए जाते थे। इसे अक्सर ‘लाइसेंस-परमिट राज’ के रूप में जाना जाता था, जिसमें अत्यधिक नौकरशाही और लालफीताशाही (red tapism) थी।
सुशासन की ओर बढ़ता भारत (India’s Move towards Good Governance)
1990 के दशक में आर्थिक उदारीकरण के साथ, भारत में शासन की अवधारणा में एक बड़ा बदलाव आया। यह महसूस किया गया कि केवल सरकार ही सब कुछ नहीं कर सकती और विकास के लिए एक अधिक कुशल, पारदर्शी और जवाबदेह प्रणाली की आवश्यकता है। यहीं से भारत में सुशासन की यात्रा सही मायनों में शुरू हुई।
- 73वां और 74वां संविधान संशोधन (1992): यह भारत में सुशासन की दिशा में एक मील का पत्थर था। इन संशोधनों ने पंचायती राज संस्थाओं और नगर पालिकाओं को संवैधानिक दर्जा दिया, जिससे सत्ता का विकेंद्रीकरण (decentralization) हुआ और स्थानीय स्तर पर लोगों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में शामिल किया गया।
- नागरिक चार्टर (Citizen’s Charter): 1990 के दशक के अंत में, विभिन्न सरकारी विभागों ने नागरिक चार्टर अपनाना शुरू किया। यह एक दस्तावेज़ है जो बताता है कि एक विभाग नागरिकों को क्या सेवाएं प्रदान करेगा, उनका गुणवत्ता स्तर क्या होगा और शिकायतों का निवारण कैसे किया जाएगा।
- सूचना का अधिकार अधिनियम (2005): इसने शासन में पारदर्शिता की एक नई लहर पैदा की। इसने आम नागरिक को सरकार से सवाल पूछने और जानकारी प्राप्त करने का अधिकार दिया, जिससे सरकारी अधिकारी अधिक जवाबदेह बने।
आधुनिक भारत में ई-गवर्नेंस और सुशासन (E-Governance and Good Governance in Modern India)
21वीं सदी में, प्रौद्योगिकी ने भारत में शासन और सुशासन को पूरी तरह से बदल दिया है। ई-गवर्नेंस का उद्देश्य सरकारी सेवाओं को नागरिकों के लिए आसानी से, कुशलतापूर्वक और पारदर्शी रूप से उपलब्ध कराना है।
- डिजिटल इंडिया मिशन (Digital India Mission): इस महत्वाकांक्षी कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलना है। इसके तहत सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन लाया जा रहा है, जिससे नागरिक घर बैठे पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, और अन्य सेवाओं के लिए आवेदन कर सकते हैं।
- डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT): इस प्रणाली के तहत, सरकारी योजनाओं की सब्सिडी और अन्य लाभ सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में भेजे जाते हैं। इसने बिचौलियों को खत्म कर दिया है और यह सुनिश्चित किया है कि पैसा सही व्यक्ति तक पहुँचे।
- MyGov.in प्लेटफॉर्म: यह एक नागरिक सहभागिता मंच है जहाँ नागरिक नीतियों और कार्यक्रमों पर अपनी राय और सुझाव दे सकते हैं। यह शासन में जन-भागीदारी को बढ़ावा देता है।
- जेम (GeM – Government e-Marketplace): यह एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है जहाँ सरकारी विभाग पारदर्शी तरीके से सामान और सेवाएँ खरीद सकते हैं। इसने सरकारी खरीद में भ्रष्टाचार को कम करने में मदद की है।
भारत सरकार प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (Department of Administrative Reforms and Public Grievances) के माध्यम से सुशासन को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। हर साल 25 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन को ‘सुशासन दिवस’ (Good Governance Day) के रूप में मनाया जाता है, जो इस दिशा में सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह यात्रा अभी भी जारी है, लेकिन भारत ने एक मजबूत शासन और सुशासन प्रणाली की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है।
7. शासन और सुशासन के समक्ष चुनौतियां (Challenges before Governance and Good Governance)
एक आदर्श शासन और सुशासन प्रणाली स्थापित करना एक जटिल और निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में, इस राह में कई बाधाएं और चुनौतियां हैं। इन चुनौतियों को समझना और उनका समाधान खोजना एक बेहतर भविष्य के लिए आवश्यक है।
1. भ्रष्टाचार (Corruption)
भ्रष्टाचार सुशासन की जड़ों को खोखला करने वाली सबसे बड़ी चुनौती है। यह सार्वजनिक संसाधनों को गलत हाथों में पहुँचाता है, विकास कार्यों की गुणवत्ता को कम करता है और आम नागरिकों का व्यवस्था पर से विश्वास उठा देता है।
- यह भाई-भतीजावाद (nepotism), रिश्वतखोरी और सार्वजनिक धन के गबन के रूप में प्रकट होता है।
- भ्रष्टाचार के कारण, गरीबों के लिए बनी योजनाएं उन तक नहीं पहुँच पातीं, जिससे सामाजिक न्याय का लक्ष्य अधूरा रह जाता है।
- हालांकि लोकपाल और केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) जैसी संस्थाएं मौजूद हैं, लेकिन भ्रष्टाचार पर पूरी तरह से अंकुश लगाना अभी भी एक बड़ी चुनौती है।
2. लालफीताशाही और नौकरशाही की जड़ता (Red Tapism and Bureaucratic Inertia)
भारतीय प्रशासनिक प्रणाली अक्सर अपनी धीमी गति, जटिल नियमों और प्रक्रियाओं के लिए जानी जाती है, जिसे लालफीताशाही कहा जाता है।
- यह न केवल आम नागरिकों के लिए परेशानी का सबब बनता है, बल्कि देश में व्यापार और निवेश के माहौल को भी प्रभावित करता है।
- नौकरशाही में अक्सर नवाचार और बदलाव का विरोध करने की प्रवृत्ति होती है, जिसे ‘नौकरशाही की जड़ता’ कहते हैं। यह सुशासन सुधारों को लागू करने में एक बड़ी बाधा है।
3. जवाबदेही का अभाव (Lack of Accountability)
अक्सर देखा जाता है कि सरकारी अधिकारी अपने कार्यों या निष्क्रियता के लिए जवाबदेह नहीं ठहराए जाते हैं।
- प्रदर्शन का मूल्यांकन करने और खराब प्रदर्शन करने वालों को दंडित करने के लिए एक मजबूत तंत्र का अभाव है।
- राजनीतिक हस्तक्षेप (political interference) भी अधिकारियों को निष्पक्ष रूप से काम करने से रोकता है और जवाबदेही को कमजोर करता है।
- जब तक हर स्तर पर सच्ची जवाबदेही सुनिश्चित नहीं की जाती, तब तक एक प्रभावी शासन और सुशासन प्रणाली का सपना साकार नहीं हो सकता।
4. राजनीतिक अपराधीकरण (Criminalization of Politics)
राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों का प्रवेश सुशासन के लिए एक गंभीर खतरा है। जब कानून बनाने वाले ही कानून तोड़ने वाले हों, तो ‘कानून के शासन’ की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
- यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है और शासन की गुणवत्ता को गिराता है।
- यह अच्छे और ईमानदार लोगों को राजनीति में आने से हतोत्साहित करता है।
5. नागरिक जागरूकता और भागीदारी की कमी (Lack of Citizen Awareness and Participation)
सुशासन एक दो-तरफा प्रक्रिया है। सरकार की कोशिशों के साथ-साथ नागरिकों की सक्रिय भागीदारी भी आवश्यक है।
- बहुत से नागरिक अपने अधिकारों और सरकार की जिम्मेदारियों के बारे में जागरूक नहीं हैं।
- जागरूकता के अभाव में, वे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते और भ्रष्टाचार तथा खराब सेवा की शिकायत भी नहीं कर पाते।
- जब तक नागरिक सक्रिय रूप से शासन प्रक्रिया में भाग नहीं लेंगे और सरकार से सवाल नहीं पूछेंगे, तब तक सुधार की गति धीमी रहेगी।
6. डिजिटल डिवाइड (Digital Divide)
ई-गवर्नेंस सुशासन को बेहतर बनाने का एक शक्तिशाली उपकरण है, लेकिन इसका लाभ सभी तक नहीं पहुँच पा रहा है।
- भारत में अभी भी एक बड़ी आबादी, विशेष रूप से ग्रामीण और गरीब क्षेत्रों में, के पास इंटरनेट और डिजिटल उपकरणों तक पहुँच नहीं है।
- डिजिटल साक्षरता (digital literacy) की कमी भी एक बड़ी बाधा है। यह ‘डिजिटल डिवाइड’ ई-गवर्नेंस के लाभों को सीमित कर देता है और असमानता को बढ़ा सकता है।
8. भविष्य की राह: सुशासन को कैसे मजबूत करें? (The Way Forward: How to Strengthen Good Governance?)
उपरोक्त चुनौतियों के बावजूद, भारत में एक मजबूत शासन और सुशासन प्रणाली स्थापित करने की अपार संभावनाएं हैं। इसके लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सरकार, नागरिक समाज और आम नागरिकों को मिलकर काम करना होगा।
1. प्रशासनिक सुधार (Administrative Reforms)
नौकरशाही को अधिक कुशल, जवाबदेह और नागरिक-अनुकूल बनाने के लिए व्यापक प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता है।
- मिशन कर्मयोगी: सरकार द्वारा शुरू किया गया यह कार्यक्रम सिविल सेवकों के कौशल और क्षमताओं को बढ़ाने पर केंद्रित है, ताकि वे भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार हो सकें।
- प्रक्रियाओं का सरलीकरण: अनावश्यक कानूनों और नियमों को खत्म करना और प्रक्रियाओं को सरल बनाना आवश्यक है ताकि लालफीताशाही को कम किया जा सके।
- प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन: सरकारी अधिकारियों के प्रदर्शन का नियमित मूल्यांकन होना चाहिए और अच्छे काम को पुरस्कृत किया जाना चाहिए।
2. प्रौद्योगिकी का अधिकतम उपयोग (Maximizing the Use of Technology)
प्रौद्योगिकी, विशेष रूप से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), ब्लॉकचेन और डेटा एनालिटिक्स, शासन में क्रांति ला सकती है।
- डेटा-चालित शासन (Data-Driven Governance): सरकारी योजनाओं के प्रभाव का आकलन करने और नीतियों को बेहतर बनाने के लिए डेटा का उपयोग किया जा सकता है।
- ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी: इसका उपयोग भूमि रिकॉर्ड और सरकारी अनुबंधों जैसी चीजों को सुरक्षित और पारदर्शी बनाने के लिए किया जा सकता है, जिससे धोखाधड़ी की संभावना कम हो जाती है।
- डिजिटल डिवाइड को पाटने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी और डिजिटल साक्षरता कार्यक्रमों में निवेश करना महत्वपूर्ण है।
3. विकेंद्रीकरण को मजबूत करना (Strengthening Decentralization)
पंचायती राज संस्थाओं और शहरी स्थानीय निकायों को अधिक वित्तीय और प्रशासनिक शक्तियां दी जानी चाहिए।
- जब निर्णय स्थानीय स्तर पर लिए जाते हैं, तो वे लोगों की वास्तविक जरूरतों के अधिक करीब होते हैं।
- स्थानीय सरकारों की क्षमता निर्माण (capacity building) पर ध्यान देना आवश्यक है ताकि वे अपनी जिम्मेदारियों को प्रभावी ढंग से निभा सकें।
4. नागरिक केंद्रितता (Citizen Centricity)
शासन का केंद्र बिंदु नागरिक होना चाहिए। सभी नीतियों और सेवाओं को नागरिकों की सुविधा और जरूरतों को ध्यान में रखकर डिजाइन किया जाना चाहिए।
- शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत करना: यह सुनिश्चित करना कि नागरिकों की शिकायतों को सुना जाए और समय पर उनका समाधान किया जाए।
- सेवा का अधिकार अधिनियम (Right to Service Act): कई राज्यों ने यह कानून लागू किया है, जो नागरिकों को एक निर्धारित समय-सीमा के भीतर सरकारी सेवाएं प्राप्त करने का कानूनी अधिकार देता है। इसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी ढंग से लागू करने की आवश्यकता है।
5. न्यायिक सुधार (Judicial Reforms)
न्याय में देरी न्याय से वंचित करने के समान है। न्यायपालिका में सुधार करके मामलों का त्वरित निपटान सुनिश्चित करना ‘कानून के शासन’ को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण है।
- न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाना, अदालतों के बुनियादी ढांचे में सुधार करना और ई-कोर्ट जैसी तकनीकों को अपनाना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं।
- एक कुशल न्यायिक प्रणाली के बिना एक प्रभावी शासन और सुशासन संभव नहीं है।
9. निष्कर्ष (Conclusion)
‘शासन’ वह तंत्र है जो समाज को चलाता है, लेकिन ‘सुशासन’ वह आत्मा है जो इसे न्यायपूर्ण, समान और मानवीय बनाती है। हमने इस विस्तृत लेख में देखा कि कैसे शासन और सुशासन की अवधारणाएं एक-दूसरे से भिन्न हैं और कैसे सुशासन के स्तंभ – भागीदारी, पारदर्शिता, जवाबदेही और कानून का शासन – सामाजिक न्याय की नींव रखते हैं। रामपुर गाँव की कहानी से लेकर भारत की डिजिटल यात्रा तक, यह स्पष्ट है कि जब शासन जन-केंद्रित और नैतिक होता है, तभी विकास का फल समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचता है।
चुनौतियां निस्संदेह बड़ी हैं – भ्रष्टाचार से लेकर नौकरशाही की सुस्ती तक। लेकिन समाधान भी मौजूद हैं – प्रौद्योगिकी के उपयोग से लेकर नागरिक जागरूकता तक। एक मजबूत और प्रभावी शासन और सुशासन प्रणाली का निर्माण केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है; यह एक सामूहिक प्रयास है। एक जागरूक नागरिक के रूप में, जब हम अपने अधिकारों की मांग करते हैं, अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, और शासन प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, तो हम सुशासन की नींव को मजबूत करते हैं। अंततः, एक बेहतर शासन प्रणाली ही एक बेहतर और न्यायपूर्ण भारत का मार्ग प्रशस्त करेगी, जहाँ हर नागरिक को गरिमा और अवसर के साथ जीने का अधिकार होगा।
10. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions – FAQs)
प्रश्न 1: शासन और सरकार में क्या अंतर है? (What is the difference between governance and government?)
उत्तर: ‘सरकार’ (Government) उन लोगों और संस्थानों का समूह है जिनके पास किसी देश या राज्य पर शासन करने का अधिकार होता है (जैसे कि प्रधानमंत्री, मंत्री, संसद)। यह शासन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वहीं, ‘शासन’ (Governance) एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें निर्णय लिए जाते हैं और लागू किए जाते हैं। इसमें सरकार के अलावा निजी क्षेत्र (कंपनियां) और नागरिक समाज (NGOs, समुदाय) भी शामिल होते हैं। संक्षेप में, सरकार एक ‘कर्ता’ (actor) है, जबकि शासन एक ‘प्रक्रिया’ (process) है।
प्रश्न 2: भारत में सुशासन दिवस क्यों मनाया जाता है? (Why is Good Governance Day celebrated in India?)
उत्तर: भारत में हर साल 25 दिसंबर को ‘सुशासन दिवस’ मनाया जाता है। यह दिन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य सरकार की प्रक्रियाओं को नागरिक-केंद्रित बनाने और शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। यह दिन सरकार को एक प्रभावी शासन और सुशासन प्रणाली के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराने का अवसर प्रदान करता है।
प्रश्न 3: ई-गवर्नेंस, सुशासन को कैसे बेहतर बनाता है? (How does e-governance improve good governance?)
उत्तर: ई-गवर्नेंस (e-governance) सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का उपयोग करके सरकारी सेवाओं को नागरिकों तक पहुँचाने की प्रक्रिया है। यह सुशासन को कई तरीकों से बेहतर बनाता है:
- पारदर्शिता: ऑनलाइन प्रक्रियाओं से जानकारी आसानी से उपलब्ध होती है।
- दक्षता: यह सेवाओं को तेजी से और कम लागत पर प्रदान करता है।
- जवाबदेही: डिजिटल रिकॉर्ड होने से अधिकारियों को ट्रैक करना और जवाबदेह बनाना आसान होता है।
- पहुँच: नागरिक कहीं से भी, कभी भी सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं।
- भ्रष्टाचार में कमी: यह बिचौलियों को खत्म करता है, जिससे भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम हो जाती है।
प्रश्न 4: एक आम नागरिक सुशासन में कैसे योगदान दे सकता है? (How can a common citizen contribute to good governance?)
उत्तर: एक आम नागरिक सुशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। आप निम्नलिखित तरीकों से योगदान दे सकते हैं:
- जागरूक बनें: अपने अधिकारों और सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी रखें।
- मतदान करें: सोच-समझकर और ईमानदार उम्मीदवारों को अपना वोट दें।
- सवाल पूछें: सूचना का अधिकार (RTI) का उपयोग करके सरकार से जानकारी मांगें।
- नियमों का पालन करें: एक जिम्मेदार नागरिक बनें और कानूनों का पालन करें, जैसे कि टैक्स समय पर भरना।
- स्थानीय शासन में भाग लें: ग्राम सभा या मोहल्ला सभा की बैठकों में शामिल हों और अपनी राय रखें।
- प्रतिक्रिया दें: सरकारी सेवाओं के बारे में अपनी प्रतिक्रिया दें और खराब सेवा की शिकायत करें।
प्रश्न 5: क्या ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ (Minimum Government, Maximum Governance) का मतलब सुशासन है?
उत्तर: ‘न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन’ का नारा सुशासन के लक्ष्य से जुड़ा हुआ है। इसका मतलब यह नहीं है कि सरकार की कोई भूमिका नहीं होगी। इसका अर्थ है कि सरकार का हस्तक्षेप कम से कम हो, प्रक्रियाएं सरल हों, और सरकार एक ‘नियामक’ (regulator) और ‘सुविधाप्रदाता’ (facilitator) के रूप में काम करे, न कि हर काम खुद करने वाले के रूप में। इसका उद्देश्य नौकरशाही को कम करना, निर्णय प्रक्रिया को तेज करना और नागरिकों और व्यवसायों के लिए एक सक्षम वातावरण बनाना है। यह एक कुशल, प्रभावी और नागरिक-केंद्रित शासन और सुशासन की अवधारणा के अनुरूप है।

