कल्पना कीजिए, आपके गाँव में एक नई सड़क बन रही है। सरकारी कागज़ों पर इसके लिए एक मोटी रकम आवंटित की गई है और बेहतरीन गुणवत्ता वाली सामग्री का उपयोग करने का वादा किया गया है। लेकिन कुछ ही महीनों बाद सड़क पर गड्ढे उभर आते हैं। आप जानना चाहते हैं कि कितना पैसा खर्च हुआ, कौन सा ठेकेदार था, और कौन सी सामग्री इस्तेमाल हुई, लेकिन कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं है। आप शिकायत करना चाहते हैं, लेकिन आपको पता नहीं कि किससे करें और किसकी ज़िम्मेदारी तय करें। यह स्थिति सुशासन की कमी को दर्शाती है, और इस कमी की जड़ में दो महत्वपूर्ण शब्दों का अभाव है। यही वह बिंदु है जहाँ शासन की सफलता के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाती है। ये केवल भारी-भरकम शब्द नहीं, बल्कि किसी भी जीवंत और सफल लोकतंत्र की आत्मा हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि सत्ता का उपयोग नागरिकों के हित में हो, न कि व्यक्तिगत लाभ के लिए।
इस लेख में आप क्या सीखेंगे? (Table of Contents)
- 1. पारदर्शिता और जवाबदेही: एक विस्तृत परिभाषा (Transparency and Accountability: A Detailed Definition)
- 2. ऐतिहासिक जड़ें: प्राचीन भारत से आधुनिक लोकतंत्र तक (Historical Roots: From Ancient India to Modern Democracy)
- 3. सुशासन के महत्वपूर्ण स्तंभ (The Important Pillars of Good Governance)
- 4. कानूनी और संस्थागत ढांचा (Legal and Institutional Framework)
- 5. राह के रोड़े और आगे का रास्ता (Obstacles on the Path and the Way Forward)
- 6. जमीनी हकीकत: सफलता की कहानियाँ (Ground Reality: Success Stories)
- 7. निष्कर्ष: एक बेहतर कल की नींव (Conclusion: The Foundation for a Better Tomorrow)
- 8. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions – FAQs)
1. पारदर्शिता और जवाबदेही: एक विस्तृत परिभाषा (Transparency and Accountability: A Detailed Definition)
किसी भी स्वस्थ शासन प्रणाली को समझने के लिए, उसके दो आधारभूत सिद्धांतों—पारदर्शिता और जवाबदेही—को समझना अनिवार्य है। ये दोनों अवधारणाएँ एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं और मिलकर एक ऐसी प्रणाली का निर्माण करती हैं जो नागरिकों के प्रति उत्तरदायी होती है। आइए, इन दोनों को विस्तार से समझते हैं।
पारदर्शिता का अर्थ (Meaning of Transparency)
पारदर्शिता का सीधा-सादा अर्थ है ‘खुलापन’। शासन के संदर्भ में, इसका मतलब है कि सरकार के कामकाज, निर्णय प्रक्रिया और योजनाओं से संबंधित जानकारी आम नागरिकों के लिए आसानी से उपलब्ध हो। जब कोई सरकार पारदर्शी होती है, तो वह अँधेरे में काम नहीं करती।
- सूचना तक पहुँच: इसका मतलब है कि नागरिकों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार उनके पैसे का उपयोग कैसे कर रही है, नीतियां क्यों बना रही है, और निर्णय कौन ले रहा है।
- स्पष्ट प्रक्रियाएं: सरकारी काम करने के नियम और प्रक्रियाएं स्पष्ट और सार्वजनिक होनी चाहिए, ताकि कोई भ्रम या गुप्त एजेंडा न हो।
- खुली बैठकें और रिकॉर्ड: सरकारी बैठकों का विवरण और महत्वपूर्ण दस्तावेजों को सार्वजनिक डोमेन में रखा जाना चाहिए ताकि नागरिक उनकी समीक्षा कर सकें।
- संक्षेप में, पारदर्शिता एक शीशे की तरह है जिसके आर-पार देखा जा सकता है। यह सरकार और नागरिकों के बीच विश्वास की एक मजबूत कड़ी स्थापित करती है, क्योंकि जब लोगों को पता होता है कि क्या हो रहा है, तो वे व्यवस्था पर अधिक भरोसा करते हैं।
जवाबदेही का अर्थ (Meaning of Accountability)
जवाबदेही का अर्थ है अपने कार्यों और उनके परिणामों के लिए उत्तरदायी होना। यदि पारदर्शिता ‘क्या हो रहा है’ का जवाब देती है, तो जवाबदेही ‘किसकी ज़िम्मेदारी है’ का जवाब देती है। यह सुनिश्चित करती है कि सत्ता में बैठे लोग अपने कर्तव्यों का पालन करें और विफल होने पर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहें।
- उत्तरदायित्व: सरकारी अधिकारियों और निर्वाचित प्रतिनिधियों को अपने निर्णयों और कार्यों के लिए जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए। उन्हें बताना होगा कि उन्होंने कोई विशेष कदम क्यों उठाया।
- प्रदर्शन का मूल्यांकन: जवाबदेही में प्रदर्शन का मूल्यांकन शामिल है। क्या किसी योजना ने अपने लक्ष्य पूरे किए? यदि नहीं, तो क्यों? इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
- सुधारात्मक कार्रवाई: यदि कोई अधिकारी या संस्था गलती करती है या भ्रष्टाचार (corruption) में लिप्त पाई जाती है, तो जवाबदेही तंत्र यह सुनिश्चित करता है कि उनके खिलाफ उचित कार्रवाई हो।
- जवाबदेही के बिना, पारदर्शिता केवल जानकारी का एक ढेर बनकर रह जाएगी। जब अधिकारियों को पता होता है कि उनसे उनके काम के बारे में सवाल पूछा जाएगा, तो वे अधिक सावधानी और ईमानदारी से काम करते हैं।
दोनों में अंतर और अटूट संबंध (Difference and Unbreakable Relationship)
पारदर्शिता और जवाबदेही एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और एक-दूसरे के बिना अधूरे हैं। उनका संबंध पूरक है:
- पारदर्शिता, जवाबदेही का आधार है: आप किसी को तब तक जवाबदेह नहीं ठहरा सकते जब तक आपको यह पता न हो कि उन्होंने क्या किया है। उदाहरण के लिए, यदि आपको यह जानकारी (पारदर्शिता) ही नहीं है कि किसी पुल के निर्माण में कितना सीमेंट इस्तेमाल होना था, तो आप घटिया निर्माण के लिए ठेकेदार को जवाबदेह (जवाबदेही) कैसे ठहराएंगे?
- जवाबदेही, पारदर्शिता को सार्थक बनाती है: जानकारी का होना तब तक व्यर्थ है जब तक उस जानकारी के आधार पर कार्रवाई करने का कोई तंत्र न हो। यदि आरटीआई से आपको भ्रष्टाचार का पता चलता है, लेकिन दोषियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती, तो पारदर्शिता का उद्देश्य अधूरा रह जाता है। जवाबदेही उस कार्रवाई को सुनिश्चित करती है।
इस प्रकार, एक प्रभावी शासन प्रणाली के लिए पारदर्शिता और जवाबदेही का एक साथ काम करना नितांत आवश्यक है। ये दोनों मिलकर एक ऐसा चक्र बनाते हैं जो सरकार को अधिक कुशल, ईमानदार और नागरिक-केंद्रित बनाता है।
2. ऐतिहासिक जड़ें: प्राचीन भारत से आधुनिक लोकतंत्र तक (Historical Roots: From Ancient India to Modern Democracy)
शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही की अवधारणा कोई नई नहीं है। इसकी जड़ें हमारे इतिहास और सभ्यता की गहराइयों में समाई हुई हैं। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक लोकतंत्र के निर्माण तक, इन सिद्धांतों ने अलग-अलग रूपों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। यह ऐतिहासिक यात्रा हमें यह समझने में मदद करती है कि ये मूल्य हमारे समाज के लिए कितने मौलिक हैं।
प्राचीन भारत में शासन (Governance in Ancient India)
प्राचीन भारत में ‘राजधर्म’ की अवधारणा शासन का मूल आधार थी। यह राजा के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को परिभाषित करती थी, जिसका केंद्र बिंदु प्रजा का कल्याण था।
- कौटिल्य का अर्थशास्त्र: महान विद्वान चाणक्य (कौटिल्य) द्वारा रचित ‘अर्थशास्त्र’ में एक कुशल शासन प्रणाली का विस्तृत वर्णन है। इसमें राजा के कर्तव्यों, मंत्रियों की नियुक्ति, और वित्तीय प्रबंधन पर स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं। कौटिल्य ने इस बात पर जोर दिया कि “प्रजा के सुख में ही राजा का सुख है।” यह एक प्रकार की नैतिक जवाबदेही थी, जहाँ राजा अपनी प्रजा के प्रति उत्तरदायी था।
- धर्म का शासन: शासन ‘धर्म’ (नैतिक कर्तव्य) के सिद्धांतों पर आधारित था। राजा से यह अपेक्षा की जाती थी कि वह न्यायपूर्ण और निष्पक्ष हो। यदि राजा धर्म के मार्ग से विचलित होता, तो उसे पद से हटाने तक का विधान था। यह दर्शाता है कि शासक भी नियमों से ऊपर नहीं थे, जो जवाबदेही का एक प्रारंभिक रूप है।
- सभा और समिति: वैदिक काल में, ‘सभा’ और ‘समिति’ जैसी संस्थाएं थीं, जो राजा को सलाह देती थीं और उसके निर्णयों पर अंकुश लगाती थीं। ये संस्थाएं एक तरह से विचार-विमर्श और पारदर्शिता के मंच के रूप में काम करती थीं।
औपनिवेशिक काल और स्वतंत्रता संग्राम (Colonial Era and Freedom Struggle)
ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान, शासन की प्रकृति पूरी तरह से बदल गई। पारदर्शिता और जवाबदेही लगभग समाप्त हो गई क्योंकि शासक वर्ग भारतीय जनता के प्रति नहीं, बल्कि ब्रिटिश क्राउन के प्रति उत्तरदायी था।
- जवाबदेही का अभाव: ब्रिटिश सरकार की नीतियां, जैसे कि भारी कराधान और संसाधनों का शोषण, भारतीय हितों के विरुद्ध थीं। नागरिकों के पास इन नीतियों पर सवाल उठाने या उन्हें बदलने का कोई प्रभावी तंत्र नहीं था। यह जवाबदेही की पूर्ण अनुपस्थिति थी।
- स्वतंत्रता संग्राम की मांग: भारत का स्वतंत्रता संग्राम केवल आजादी की लड़ाई नहीं था, बल्कि यह एक ऐसे शासन की मांग थी जो भारतीयों के प्रति जवाबदेह हो। ‘स्वराज’ का नारा अपने शासन, अपनी नीतियों और अपनी जवाबदेही की मांग थी।
- प्रेस की भूमिका: उस दौर में, भारतीय समाचार पत्रों ने एक प्रहरी (watchdog) की भूमिका निभाई। वे ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों को उजागर करते थे और जनता में जागरूकता फैलाते थे, जो पारदर्शिता स्थापित करने का एक प्रारंभिक प्रयास था।
स्वतंत्र भारत और संवैधानिक प्रावधान (Independent India and Constitutional Provisions)
भारत की स्वतंत्रता के बाद, हमारे संविधान निर्माताओं ने एक ऐसे लोकतंत्र की नींव रखी जिसका आधार ही पारदर्शिता और जवाबदेही था। भारत का संविधान (Constitution of India) इन सिद्धांतों को सुनिश्चित करने वाले कई प्रावधानों से परिपूर्ण है।
- मौलिक अधिकार: संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार, विशेष रूप से अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’, नागरिकों को सरकार के कार्यों पर सवाल उठाने और जानकारी मांगने का अधिकार देती है। यह पारदर्शिता की आधारशिला है।
- संसदीय लोकतंत्र: हमारी संसदीय प्रणाली में, सरकार (कार्यपालिका) संसद (विधायिका) के प्रति जवाबदेह होती है। अविश्वास प्रस्ताव, प्रश्नकाल और बहस जैसे तंत्रों के माध्यम से सांसद सरकार से सवाल कर सकते हैं और उसे जवाबदेह ठहरा सकते हैं।
- सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार: प्रत्येक पांच वर्ष में होने वाले चुनाव जवाबदेही का सबसे बड़ा साधन हैं। नागरिक अपने वोटों के माध्यम से सरकार के प्रदर्शन का मूल्यांकन करते हैं और उसे सत्ता में बनाए रखने या हटाने का फैसला करते हैं।
इस ऐतिहासिक यात्रा से स्पष्ट है कि पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग भारतीय समाज के डीएनए में रही है। यह कोई पश्चिमी अवधारणा नहीं है, बल्कि हमारे अपने सामाजिक और राजनीतिक विकास का एक अभिन्न अंग है, जिसने प्राचीन राजधर्म से लेकर आधुनिक संवैधानिक लोकतंत्र तक का सफर तय किया है।
3. सुशासन के महत्वपूर्ण स्तंभ (The Important Pillars of Good Governance)
सुशासन (Good Governance) केवल एक आदर्शवादी सपना नहीं है, बल्कि इसे हकीकत में बदलने के लिए ठोस तंत्र और संस्थाओं की आवश्यकता होती है। आधुनिक लोकतंत्र में, पारदर्शिता और जवाबदेही को सुनिश्चित करने के लिए कई स्तंभ स्थापित किए गए हैं। ये स्तंभ मिलकर एक ऐसा ढांचा तैयार करते हैं जो सरकार को नागरिकों के प्रति उत्तरदायी बनाता है और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाता है।
सूचना का अधिकार (Right to Information – RTI)
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 को भारत में पारदर्शिता की क्रांति का अग्रदूत माना जाता है। यह एक ऐतिहासिक कानून है जो सामान्य नागरिकों को सरकारी फाइलों और रिकॉर्ड तक पहुँचने की शक्ति देता है।
- नागरिकों का सशक्तिकरण: आरटीआई के माध्यम से कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी विभाग से जानकारी मांग सकता है, जैसे कि किसी सड़क निर्माण पर कितना खर्च हुआ, किसी अधिकारी की नियुक्ति कैसे हुई, या किसी योजना के लाभार्थी कौन हैं।
- भ्रष्टाचार पर प्रहार: इस कानून ने कई घोटालों और अनियमितताओं को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। जब अधिकारियों को पता होता है कि उनके हर काम का रिकॉर्ड मांगा जा सकता है, तो वे गलत काम करने से डरते हैं।
- शासन में सुधार: आरटीआई ने सरकारी विभागों को अपने रिकॉर्ड को व्यवस्थित और अद्यतन रखने के लिए मजबूर किया है, जिससे उनकी कार्यप्रणाली में सुधार हुआ है। यह कानून सीधे तौर पर पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देता है।
सूचना का अधिकार: सकारात्मक और नकारात्मक पहलू (Right to Information: Positive and Negative Aspects)
आरटीआई एक शक्तिशाली उपकरण है, लेकिन इसके कुछ सकारात्मक और नकारात्मक पहलू भी हैं जिनका विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है।
सकारात्मक पहलू (Positive Aspects)
- नागरिक सशक्तिकरण (Citizen Empowerment): इसने आम आदमी को सवाल पूछने की ताकत दी है, जिससे लोकतंत्र में उनकी भागीदारी बढ़ी है।
- भ्रष्टाचार का पर्दाफाश: आदर्श सोसाइटी घोटाला, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला जैसे कई बड़े मामलों को सामने लाने में आरटीआई आवेदनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
- सेवा वितरण में सुधार: नागरिक अपने पासपोर्ट, राशन कार्ड, या पेंशन आवेदन की स्थिति जानने के लिए आरटीआई का उपयोग करते हैं, जिससे अधिकारियों पर समय पर काम करने का दबाव बनता है।
नकारात्मक पहलू (Negative Aspects)
- कानून का दुरुपयोग: कुछ लोग व्यक्तिगत दुश्मनी निकालने या अधिकारियों को परेशान करने के लिए आरटीआई का दुरुपयोग करते हैं, जिससे सरकारी काम में बाधा आती है।
- सूचना आयुक्तों की कमी: कई राज्यों में सूचना आयोगों में पद खाली पड़े हैं, जिससे अपीलों के निपटारे में वर्षों लग जाते हैं और कानून का प्रभाव कम हो जाता है।
- कार्यकर्ताओं पर हमले: जानकारी उजागर करने के कारण कई आरटीआई कार्यकर्ताओं को धमकियों और हमलों का सामना करना पड़ा है, जो एक गंभीर चिंता का विषय है।
सोशल ऑडिट (Social Audit)
सोशल ऑडिट या सामाजिक अंकेक्षण, जवाबदेही सुनिश्चित करने का एक जमीनी और सामुदायिक तरीका है। इसमें सरकार के बजाय, स्थानीय समुदाय के लोग स्वयं किसी योजना या परियोजना के कार्यान्वयन का मूल्यांकन करते हैं।
- समुदाय द्वारा जांच: इसमें गाँव के लोग सरकारी रिकॉर्ड (जैसे मस्टर रोल, बिल, वाउचर) की तुलना जमीन पर हुए वास्तविक काम से करते हैं।
- जन सुनवाई: ऑडिट के बाद एक ‘जन सुनवाई’ आयोजित की जाती है, जहाँ समुदाय के लोग सीधे अधिकारियों से सवाल पूछते हैं। यह तत्काल जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
- मनरेगा में सफलता: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के तहत सोशल ऑडिट को अनिवार्य किया गया है। इसने फर्जी हाजिरी और भ्रष्टाचार को रोकने में अभूतपूर्व सफलता हासिल की है। यह जमीनी स्तर पर पारदर्शिता और जवाबदेही का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
स्वतंत्र न्यायपालिका (Independent Judiciary)
एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका (judiciary) लोकतंत्र में जवाबदेही का सबसे बड़ा रक्षक है। यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी, चाहे वह सरकार हो या कोई शक्तिशाली व्यक्ति, कानून से ऊपर नहीं है।
- कानून की व्याख्या: न्यायपालिका संविधान और कानूनों की व्याख्या करती है। यह सरकार द्वारा बनाए गए किसी भी कानून को रद्द कर सकती है यदि वह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है।
- जनहित याचिका (PIL): जनहित याचिका एक शक्तिशाली उपकरण है जिसने न्यायपालिका को आम लोगों से जुड़े मुद्दों पर सरकार को जवाबदेह ठहराने में सक्षम बनाया है, जैसे कि पर्यावरण संरक्षण, मानवाधिकार, और भ्रष्टाचार।
- कार्यपालिका पर नियंत्रण: न्यायपालिका अपने निर्णयों के माध्यम से कार्यपालिका (सरकार) को मनमाने ढंग से काम करने से रोकती है और उसे कानून के दायरे में रहने के लिए बाध्य करती है।
मीडिया और नागरिक समाज (Media and Civil Society)
लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में जानी जाने वाली मीडिया और सक्रिय नागरिक समाज संगठन (Civil Society Organizations) सरकार पर निरंतर निगरानी रखते हैं।
- वॉचडॉग की भूमिका: मीडिया सरकारी नीतियों की आलोचनात्मक समीक्षा करता है, घोटालों को उजागर करता है, और जनता की आवाज को सत्ता के गलियारों तक पहुंचाता है। एक स्वतंत्र प्रेस सरकार को हमेशा सतर्क रखता है।
- जागरूकता फैलाना: नागरिक समाज संगठन विभिन्न मुद्दों पर शोध करते हैं, अभियानों के माध्यम से जागरूकता फैलाते हैं, और सरकार पर जनहित में नीतियां बनाने के लिए दबाव डालते हैं। वे नागरिकों और सरकार के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में काम करते हैं, जिससे पारदर्शिता और जवाबदेही की संस्कृति को बल मिलता है।
ये सभी स्तंभ मिलकर एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र बनाते हैं जो यह सुनिश्चित करता है कि शासन केवल कुछ लोगों के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए काम करे।
4. कानूनी और संस्थागत ढांचा (Legal and Institutional Framework)
भारत ने पारदर्शिता और जवाबदेही को केवल नैतिक सिद्धांतों तक सीमित नहीं रखा है, बल्कि इन्हें मजबूती प्रदान करने के लिए एक व्यापक कानूनी और संस्थागत ढांचा भी विकसित किया है। ये कानून और संस्थाएं नागरिकों को अधिकार देते हैं और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए एक प्रहरी के रूप में कार्य करते हैं। यह ढांचा हमारे लोकतंत्र की जड़ों को गहरा करता है।
लोकपाल और लोकायुक्त (Lokpal and Lokayukta)
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 का उद्देश्य देश में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए एक स्वतंत्र निकाय की स्थापना करना है। यह संस्था एक ‘एंटी-करप्शन ओम्बुड्समैन’ के रूप में कार्य करती है।
- उच्च स्तरीय भ्रष्टाचार की जांच: लोकपाल (Lokpal) को प्रधानमंत्री, मंत्रियों, सांसदों और केंद्र सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करने का अधिकार है।
- राज्यों में लोकायुक्त: इसी तरह, राज्यों के स्तर पर ‘लोकायुक्त’ की स्थापना की गई है, जो मुख्यमंत्री, मंत्रियों और राज्य सरकार के अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करते हैं।
- स्वतंत्र जांच: इन संस्थाओं को स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है ताकि वे बिना किसी राजनीतिक दबाव के उच्च पदों पर बैठे लोगों को भी जवाबदेह ठहरा सकें। यह संस्थागत जवाबदेही का एक प्रमुख उदाहरण है।
केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission – CVC)
केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) भारत सरकार की एक शीर्ष संस्था है जिसका मुख्य कार्य सरकारी कार्यालयों में भ्रष्टाचार को रोकना और उस पर नियंत्रण रखना है।
- सलाहकार भूमिका: CVC केंद्र सरकार के विभागों और संगठनों को उनके सतर्कता कार्यों की योजना बनाने, निष्पादित करने और समीक्षा करने में सलाह देता है।
- भ्रष्टाचार की शिकायतों पर कार्रवाई: यह ‘व्हिसलब्लोअर’ (मुखबिर) संकल्प के तहत प्राप्त शिकायतों की जांच करता है और उचित कार्रवाई की सिफारिश करता है।
- प्रणालीगत सुधार: CVC केवल व्यक्तिगत मामलों की जांच नहीं करता, बल्कि सरकारी प्रक्रियाओं का अध्ययन करके ऐसे सुधारों का भी सुझाव देता है जिससे भविष्य में भ्रष्टाचार की गुंजाइश कम हो सके। यह निवारक सतर्कता (preventive vigilance) पर जोर देता है।
नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (Comptroller and Auditor General – CAG)
भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) का पद भारतीय संविधान द्वारा स्थापित एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्राधिकरण है। CAG को ‘सार्वजनिक पर्स का संरक्षक’ कहा जाता है।
- सरकारी खर्चों का ऑडिट: CAG का मुख्य कार्य भारत सरकार और राज्य सरकारों के सभी खर्चों का ऑडिट (लेखा परीक्षण) करना है। यह जांचता है कि क्या सार्वजनिक धन को कानूनी रूप से और बुद्धिमानी से खर्च किया गया है।
- वित्तीय अनियमितताओं को उजागर करना: CAG अपनी ऑडिट रिपोर्ट के माध्यम से वित्तीय अनियमितताओं, फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करता है। 2जी स्पेक्ट्रम, कोयला ब्लॉक आवंटन जैसे कई बड़े घोटाले CAG की रिपोर्टों के बाद ही सामने आए।
- संसद के प्रति जवाबदेही: CAG अपनी रिपोर्ट सीधे राष्ट्रपति को सौंपता है, जिसे संसद के दोनों सदनों में रखा जाता है। इसके बाद लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) इन रिपोर्टों की जांच करती है, जो सरकार की वित्तीय जवाबदेही सुनिश्चित करने में मदद करता है।
अधिक जानकारी के लिए, आप भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक की आधिकारिक वेबसाइट देख सकते हैं।
ई-गवर्नेंस पहलें (E-Governance Initiatives)
प्रौद्योगिकी के आगमन ने शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के नए द्वार खोले हैं। ई-गवर्नेंस (E-governance) का उद्देश्य सरकारी सेवाओं को नागरिकों के लिए सुलभ, कुशल और पारदर्शी बनाना है।
- डिजिटल इंडिया मिशन: इस मिशन का उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था में बदलना है। इसके तहत सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन उपलब्ध कराया जा रहा है।
- सेवाओं का सरलीकरण: अब आप जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, टैक्स रिटर्न जैसी कई सेवाओं के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। इससे दफ्तरों के चक्कर काटने और बिचौलियों पर निर्भरता कम हुई है, जिससे भ्रष्टाचार में कमी आई है।
- जानकारी की उपलब्धता: सरकारी वेबसाइटें और पोर्टल (जैसे MyGov, GeM) नागरिकों को योजनाओं, निविदाओं और सरकारी डेटा तक सीधी पहुँच प्रदान करते हैं। यह वास्तविक समय में पारदर्शिता को बढ़ावा देता है।
- प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT): डीबीटी योजना के तहत, सब्सिडी और अन्य लाभों का पैसा सीधे लाभार्थियों के बैंक खातों में भेजा जाता है। इससे बिचौलियों की भूमिका समाप्त हो गई है और यह सुनिश्चित हुआ है कि लाभ सही व्यक्ति तक पहुंचे, जो जवाबदेही का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
यह कानूनी और संस्थागत ढांचा सामूहिक रूप से एक ऐसी प्रणाली का निर्माण करता है जहाँ सत्ता का दुरुपयोग मुश्किल हो जाता है और नागरिकों के अधिकार सुरक्षित रहते हैं। यह निरंतर विकसित हो रहा ढांचा ही एक जीवंत लोकतंत्र की पहचान है।
5. राह के रोड़े और आगे का रास्ता (Obstacles on the Path and the Way Forward)
हालांकि भारत ने पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन यह सफर चुनौतियों से खाली नहीं है। इन सिद्धांतों को पूरी तरह से जमीनी स्तर पर लागू करने में कई बाधाएं हैं। इन चुनौतियों को समझना और उनके समाधान खोजना एक अधिक मजबूत और उत्तरदायी शासन प्रणाली के निर्माण के लिए आवश्यक है।
प्रमुख चुनौतियाँ (Major Challenges)
प्रभावी पारदर्शिता और जवाबदेही के मार्ग में कई बाधाएं हैं जो प्रणालीगत और सामाजिक दोनों स्तरों पर मौजूद हैं।
- नौकरशाही की मानसिकता और लालफीताशाही (Bureaucratic Mindset and Red-Tapism): कई सरकारी विभागों में आज भी गोपनीयता की संस्कृति हावी है। अधिकारी जानकारी साझा करने में हिचकिचाते हैं और जटिल प्रक्रियाएं आम आदमी के लिए जानकारी प्राप्त करना मुश्किल बना देती हैं।
- नागरिकों में जागरूकता का अभाव: एक बड़ी आबादी अभी भी अपने अधिकारों, जैसे कि आरटीआई, के बारे में नहीं जानती है। जागरूकता की कमी के कारण वे शक्तिशाली उपकरणों का उपयोग नहीं कर पाते और सरकार को जवाबदेह नहीं ठहरा पाते।
- राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: कभी-कभी, राजनीतिक वर्ग में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति का अभाव होता है, क्योंकि इससे उनके अधिकार और नियंत्रण कम हो सकते हैं। लोकपाल जैसी संस्थाओं की नियुक्ति में देरी इसका एक उदाहरण है।
- कानूनों का कमजोर प्रवर्तन: हमारे पास कई उत्कृष्ट कानून हैं, लेकिन उनका कार्यान्वयन अक्सर कमजोर होता है। सूचना आयोगों में रिक्तियां, व्हिसलब्लोअर्स को अपर्याप्त सुरक्षा, और भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ धीमी कार्रवाई कानून के प्रभाव को कम कर देती है।
- व्हिसलब्लोअर्स की सुरक्षा का मुद्दा: जो लोग भ्रष्टाचार को उजागर करने का साहस दिखाते हैं, उन्हें अक्सर धमकियों, उत्पीड़न और हिंसा का सामना करना पड़ता है। व्हिसलब्लोअर संरक्षण कानून के बावजूद, उन्हें पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
- डिजिटल डिवाइड: ई-गवर्नेंस एक शक्तिशाली उपकरण है, लेकिन देश के एक बड़े हिस्से में अभी भी इंटरनेट और डिजिटल साक्षरता की कमी है। यह ‘डिजिटल डिवाइड’ कई नागरिकों को पारदर्शी प्रणालियों का लाभ उठाने से रोकता है।
संभावित समाधान और आगे का रास्ता (Potential Solutions and the Way Forward)
इन चुनौतियों से निपटने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सरकार, नागरिक समाज और आम नागरिकों की सक्रिय भागीदारी हो।
- संस्थाओं को मजबूत करना: लोकपाल, लोकायुक्त, CVC और सूचना आयोग जैसी संस्थाओं को वित्तीय और कार्यात्मक स्वायत्तता प्रदान की जानी चाहिए। इनमें नियुक्तियां समय पर और पारदर्शी तरीके से होनी चाहिए ताकि वे बिना किसी डर या पक्षपात के काम कर सकें।
- प्रक्रियाओं का सरलीकरण: सरकारी प्रक्रियाओं को सरल और नागरिक-अनुकूल बनाने की आवश्यकता है। ‘एकल खिड़की प्रणाली’ (Single Window System) और प्रौद्योगिकी का अधिक उपयोग लालफीताशाही को कम कर सकता है।
- जागरूकता अभियानों को बढ़ावा देना: सरकार और नागरिक समाज को मिलकर आरटीआई, सोशल ऑडिट और अन्य नागरिक अधिकारों के बारे में व्यापक जागरूकता अभियान चलाने चाहिए, खासकर ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में।
- नागरिक भागीदारी को प्रोत्साहित करना: शासन में नागरिकों की भागीदारी को बढ़ाना महत्वपूर्ण है। बजट बनाने, योजनाओं की निगरानी और नीतियों के मूल्यांकन में स्थानीय समुदायों को शामिल करने से पारदर्शिता और जवाबदेही स्वतः ही बढ़ जाती है।
- व्हिसलब्लोअर्स के लिए मजबूत सुरक्षा: व्हिसलब्लोअर संरक्षण कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने और भ्रष्टाचार को उजागर करने वालों को तत्काल और मजबूत कानूनी और शारीरिक सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है।
- डिजिटल साक्षरता बढ़ाना: डिजिटल डिवाइड को पाटने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता और इंटरनेट कनेक्टिविटी बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा ताकि ई-गवर्नेंस का लाभ सभी तक पहुंच सके।
यह स्पष्ट है कि एक पूर्ण पारदर्शी और जवाबदेह प्रणाली का निर्माण एक सतत प्रक्रिया है। इसके लिए निरंतर प्रयास, राजनीतिक इच्छाशक्ति और सबसे महत्वपूर्ण, जागरूक और सक्रिय नागरिकों की आवश्यकता है जो अपने अधिकारों की मांग करें और अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें।
6. जमीनी हकीकत: सफलता की कहानियाँ (Ground Reality: Success Stories)
सिद्धांत और कानून अपनी जगह हैं, लेकिन पारदर्शिता और जवाबदेही का असली महत्व तब सामने आता है जब वे आम लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाते हैं। भारत में ऐसे कई उदाहरण हैं जहां इन सिद्धांतों ने जमीनी स्तर पर क्रांति ला दी है, भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई है और यह सुनिश्चित किया है कि सरकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचे जिनके लिए वे बनी हैं।
मनरेगा में सोशल ऑडिट की क्रांति (The Revolution of Social Audit in MGNREGA)
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), जो दुनिया की सबसे बड़ी रोजगार गारंटी योजनाओं में से एक है, शुरुआत में भ्रष्टाचार और रिसाव (leakages) से ग्रस्त थी। फर्जी मस्टर रोल, मशीनों का उपयोग, और मजदूरी का भुगतान न होना आम समस्याएं थीं।
- समस्या: ठेकेदार और अधिकारी मिलकर मजदूरों के नाम पर पैसा निकाल लेते थे, जबकि असल में कोई काम होता ही नहीं था या मजदूरों को उनका पूरा हक नहीं मिलता था।
- समाधान – सोशल ऑडिट: आंध्र प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों ने सोशल ऑडिट को एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में अपनाया। इसमें मजदूर अधिकार संगठन (जैसे, राजस्थान में ‘मजदूर किसान शक्ति संगठन’) गाँव के लोगों को प्रशिक्षित करते हैं कि वे सरकारी रिकॉर्ड की जाँच कैसे करें।
- प्रक्रिया: सोशल ऑडिट टीम गाँव में जाकर मनरेगा के सभी दस्तावेजों (मस्टर रोल, माप पुस्तिका, बिल) की प्रतियां प्राप्त करती है। फिर वे घर-घर जाकर मजदूरों से पूछते हैं कि क्या उन्होंने काम किया और उन्हें कितना भुगतान मिला। वे कार्य स्थल पर जाकर काम की गुणवत्ता की भी जांच करते हैं।
- प्रभाव: इस प्रक्रिया के माध्यम से करोड़ों रुपये का भ्रष्टाचार उजागर हुआ। जन सुनवाई के दौरान, जब पूरे गाँव के सामने अधिकारियों से सवाल पूछे गए, तो उन्हें गबन की गई राशि वापस करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसने न केवल भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया, बल्कि इसने ग्रामीणों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और सशक्त बनाया। यह प्रत्यक्ष जवाबदेही का एक शानदार मॉडल है।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में सुधार (Reforms in the Public Distribution System – PDS)
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) का उद्देश्य गरीबों को रियायती दरों पर अनाज उपलब्ध कराना है। लेकिन दशकों तक यह प्रणाली ‘भूत लाभार्थियों’ (ghost beneficiaries) और अनाज की कालाबाजारी जैसी समस्याओं से जूझती रही।
- समस्या: राशन दुकान के मालिक अक्सर गरीबों के हिस्से का अनाज खुले बाजार में बेच देते थे। कई राशन कार्ड फर्जी नामों पर बने हुए थे, जिससे बड़े पैमाने पर रिसाव होता था।
- समाधान – प्रौद्योगिकी का उपयोग: सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए प्रौद्योगिकी आधारित सुधारों को अपनाया, जिससे प्रणाली में अभूतपूर्व पारदर्शिता और जवाबदेही आई।
- आधार-लिंक्ड बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण: अब, राशन लेने के लिए लाभार्थी को अपनी उंगली को प्वाइंट ऑफ सेल (PoS) मशीन पर रखना होता है। मशीन आधार डेटाबेस से फिंगरप्रिंट का मिलान करती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि अनाज सही व्यक्ति को ही मिल रहा है। इससे भूत लाभार्थियों को खत्म करने में मदद मिली।
- आपूर्ति श्रृंखला का डिजिटलीकरण: गोदामों से अनाज निकलने से लेकर राशन की दुकान तक पहुंचने तक, पूरी आपूर्ति श्रृंखला को कम्प्यूटरीकृत किया गया है। इससे अनाज की चोरी और कालाबाजारी को ट्रैक करना आसान हो गया है।
- प्रभाव: इन सुधारों के परिणामस्वरूप, PDS में रिसाव में भारी कमी आई है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, करोड़ों फर्जी राशन कार्ड रद्द किए गए हैं और हजारों करोड़ रुपये की सब्सिडी की बचत हुई है, यह सुनिश्चित करते हुए कि भोजन गरीबों की थाली तक पहुंचे। यह दिखाता है कि कैसे प्रौद्योगिकी पारदर्शिता को लागू करने और जवाबदेही सुनिश्चित करने में एक गेम-चेंजर हो सकती है।
ये सफलता की कहानियाँ आशा जगाती हैं और यह साबित करती हैं कि जब पारदर्शिता और जवाबदेही के उपकरणों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाता है, तो वे शासन की तस्वीर बदल सकते हैं और लाखों लोगों के जीवन में वास्तविक अंतर ला सकते हैं।
7. निष्कर्ष: एक बेहतर कल की नींव (Conclusion: The Foundation for a Better Tomorrow)
शासन की विशाल और जटिल मशीनरी में, पारदर्शिता और जवाबदेही केवल दो शब्द नहीं हैं; वे उस मशीनरी को चलाने वाले तेल की तरह हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि हर पुर्जा सुचारू रूप से और सही दिशा में काम करे। हमने इस यात्रा में देखा कि कैसे ये सिद्धांत प्राचीन भारत के ‘राजधर्म’ से लेकर आधुनिक भारत के ‘सूचना के अधिकार’ तक हमारे लोकतंत्र की यात्रा के हर चरण में मौजूद रहे हैं। ये सुशासन की आत्मा हैं, जो सत्ता को सेवा में बदलते हैं और शासकों को जनता का सेवक बनाते हैं।
पारदर्शिता वह रोशनी है जो सरकार के कामकाज के अँधेरे कोनों को रोशन करती है, जिससे नागरिकों को यह देखने का अवसर मिलता है कि निर्णय कैसे लिए जा रहे हैं और उनका पैसा कहाँ खर्च हो रहा है। वहीं, जवाबदेही वह तंत्र है जो यह सुनिश्चित करता है कि इस रोशनी में उजागर हुई किसी भी गलती या भ्रष्टाचार के लिए कोई न कोई जिम्मेदार हो और उसे उसके परिणाम भुगतने पड़ें। एक के बिना दूसरा अधूरा है। पारदर्शिता के बिना जवाबदेही अंधी है, और जवाबदेही के बिना पारदर्शिता दंतहीन है।
हमने आरटीआई, सोशल ऑडिट, एक स्वतंत्र न्यायपालिका और एक जीवंत मीडिया जैसे स्तंभों की ताकत को पहचाना है, जो इन सिद्धांतों को वास्तविकता में बदलते हैं। हमने मनरेगा और पीडीएस जैसे उदाहरणों में देखा है कि जब इन उपकरणों का सही ढंग से उपयोग किया जाता है, तो वे भ्रष्टाचार को खत्म कर सकते हैं और लाखों लोगों के जीवन को बेहतर बना सकते हैं। लेकिन हमने चुनौतियों को भी स्वीकार किया है—नौकरशाही की जड़ता, जागरूकता की कमी और कानूनों के कमजोर प्रवर्तन जैसी बाधाएं अभी भी हमारे रास्ते में हैं।
अंततः, एक पारदर्शी और जवाबदेह शासन प्रणाली का निर्माण केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। यह एक सामूहिक प्रयास है। यह हम पर, भारत के नागरिकों पर निर्भर करता है कि हम जागरूक बनें, अपने अधिकारों का प्रयोग करें, सवाल पूछें और सत्ता में बैठे लोगों को उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराएं। जब हम एक आरटीआई आवेदन दाखिल करते हैं, एक ग्राम सभा में भाग लेते हैं, या गलत के खिलाफ आवाज उठाते हैं, तो हम लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत कर रहे होते हैं।
पारदर्शिता और जवाबदेही एक मंजिल नहीं, बल्कि एक निरंतर चलने वाली यात्रा है। यह एक बेहतर, न्यायपूर्ण और समृद्ध भारत के निर्माण की नींव है, जहाँ हर नागरिक को यह विश्वास हो कि सरकार उनके लिए, उनके द्वारा और उनके प्रति उत्तरदायी है।
8. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions – FAQs)
प्रश्न 1: शासन में पारदर्शिता क्यों महत्वपूर्ण है? (Why is transparency important in governance?)
उत्तर: पारदर्शिता कई कारणों से महत्वपूर्ण है। सबसे पहले, यह भ्रष्टाचार को रोकती है क्योंकि जब सरकारी कामकाज सार्वजनिक जांच के लिए खुला होता है, तो अधिकारी गलत काम करने से डरते हैं। दूसरा, यह सरकार और नागरिकों के बीच विश्वास पैदा करती है। तीसरा, यह नागरिकों को सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाती है, जिससे लोकतंत्र में उनकी भागीदारी बढ़ती है। अंत में, यह बेहतर नीति-निर्माण और संसाधनों के कुशल उपयोग को बढ़ावा देती है।
प्रश्न 2: जवाबदेही और जिम्मेदारी में क्या अंतर है? (What is the difference between accountability and responsibility?)
उत्तर: ये दोनों शब्द अक्सर एक दूसरे के स्थान पर उपयोग किए जाते हैं, लेकिन इनमें एक सूक्ष्म अंतर है। ‘जिम्मेदारी’ (Responsibility) किसी कार्य को करने का कर्तव्य है, जो आपको सौंपा जाता है। यह कार्य-उन्मुख है। वहीं, ‘जवाबदेही’ (Accountability) उस कार्य के परिणामों के लिए उत्तरदायी होना है। यह परिणाम-उन्मुख है। आप किसी कार्य के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं, लेकिन जवाबदेही का अर्थ है कि यदि कार्य ठीक से नहीं होता है तो आपको उसके परिणाम भुगतने होंगे और सवालों के जवाब देने होंगे।
प्रश्न 3: एक आम नागरिक पारदर्शिता और जवाबदेही को कैसे बढ़ावा दे सकता है? (How can a common citizen promote transparency and accountability?)
उत्तर: एक आम नागरिक कई तरीकों से योगदान दे सकता है। आप सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम का उपयोग करके सरकारी विभागों से जानकारी मांग सकते हैं। आप अपने क्षेत्र में हो रहे विकास कार्यों की निगरानी कर सकते हैं और अनियमितता दिखने पर शिकायत कर सकते हैं। ग्राम सभाओं और स्थानीय निकायों की बैठकों में सक्रिय रूप से भाग लें। डिजिटल प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया का उपयोग करके अपनी आवाज उठाएं और सार्वजनिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाएं। सबसे महत्वपूर्ण, अपने मताधिकार का प्रयोग सोच-समझकर करें और ऐसे प्रतिनिधियों को चुनें जो पारदर्शिता और जवाबदेही के प्रति प्रतिबद्ध हों।
प्रश्न 4: सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम क्या है? (What is the Right to Information (RTI) Act?)
उत्तर: सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005, भारत का एक क्रांतिकारी कानून है जो देश के प्रत्येक नागरिक को केंद्र और राज्य सरकारों के विभागों और संगठनों से जानकारी मांगने का अधिकार देता है। इसका उद्देश्य सरकारी कामकाज में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देना है। कोई भी नागरिक एक निर्धारित शुल्क (आमतौर पर ₹10) देकर किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण से कोई भी जानकारी (जो छूट प्राप्त न हो) मांग सकता है, और प्राधिकरण को 30 दिनों के भीतर जानकारी प्रदान करनी होती है।
प्रश्न 5: क्या भारत में पारदर्शिता और जवाबदेही में सुधार हुआ है? (Has there been an improvement in transparency and accountability in India?)
उत्तर: हाँ, निश्चित रूप से सुधार हुआ है। पिछले कुछ दशकों में, आरटीआई कानून, लोकपाल अधिनियम, और ई-गवर्नेंस जैसी पहलों ने भारत में पारदर्शिता और जवाबदेही के परिदृश्य को काफी बदला है। अब नागरिकों के पास जानकारी तक पहुंचने और सवाल पूछने के लिए पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली उपकरण हैं। हालांकि, अभी भी कई चुनौतियां मौजूद हैं, जैसे कानूनों का धीमा कार्यान्वयन और जागरूकता की कमी। सुधार एक सतत प्रक्रिया है, लेकिन दिशा सकारात्मक है।

